सुबह की ठंडक अब हवा से जा चुकी थी, दोपहर की धूप गार्डन में फैलने लगी थी, लेकिन इस गरम हवा और चिलचिलाती धूप का कोई भी असर मीरा और अनिका पर जैसे हो ही नहीं रहा था। मीरा और अनिका कॉलेज के पास बने छोटे से गार्डन में आमने-सामने बैठी थीं। गार्डन में चारों ओर फूल खिले हुए थे, लेकिन उनकी रंगत और महक से दोनों के दिलों को कोई राहत नहीं मिल रही थी। उनके मन में सवालों का सैलाब था। दोनों के ब्रेस्लट उनके सामने बनी एक पत्थर की मेज़ पर रखे थे, पर उन्हें उठाने की हिम्मत दोनों ही नहीं कर पा रहे थे। मीरा ने अपने मन में घबराते हुए सवाल किया 

मीरा- क्या हम दोनों का बॉयफ्रेंड एक ही आदमी हो सकता है, भगवान जी, प्लीज ऐसा मत करना.... और अगर किया तो मुझे इतनी शक्ति देना कि मैं अनिका की खुशी में खुश हो सकूँ। 

मीरा की बात से साफ था कि अगर उसका वहम सच निकला वो वो अनिका के लिए अपने प्यार की कुर्बानी देने से पीछे नहीं हटने वाली थी। मीरा ने एक गहरी सांस ली, और उसकी उंगलियाँ धीरे-धीरे उनकी ओर बढ़ने लगी। उसकी आंखों में हल्की सी बेचैनी थी, जैसे वो कुछ बड़ा खुलासा करने जा रही हो। अनिका ने भी बिना हिले-डुले बस मीरा को देख रही थी, उसने एक पल के लिए अपनी आँखें बंद करली। फिर एक असमंजस भरी निगाहों से मीरा को देखा और मन ही मन कहा 

अनिका- ये सब सच मत होने देना भगवान.... 

दोनों सहेलियों की निगाहें ब्रेसलेट पर टिक गईं। कुछ पल के लिए गहरी खामोशी छा गई। मेज़ पर रखे ब्रेसलेट, उन दोनों के रिश्तों की असलियत का फैसला करने वाले थे। मीरा ने हिम्मत करते हुए धीरे से अनिका का ब्रेसलेट पलटा, और उस पर लिखा नाम पढ़ा- “अमन”, नाम पढ़ते ही उसके चेहरे पर हल्की सी राहत आई, जैसे कोई बड़ा बोझ उतर गया हो। अनिका ने जैसे ही मीरा को मुसकुराते हुए देखा तो उसने मीरा का ब्रेसलेट अपने हाथ में लेकर उस पर लिखा नाम पढ़ा 

अनिका- “अर्जुन.....”

दोनों की आँखों में एक साथ राहत भरी चमक आ गई। मीरा ने एक छोटी सी हंसी के साथ अनिका को देखा, और अनिका भी मुस्कुरा दी। दोनों ने खुशी से झूमते हुए एक दूसरे को गले से लगा लिया, फिर एक राहत की सांस ली, मानो उनके दिलों से एक बड़ा बोझ उतर गया हो।

मीरा (हंसते हुए)-  तो, हम एक ही लड़के को डेट नहीं कर रहे!

अनिका(मुस्कुराते हुए)- शुक्र है! मेरे दिल की धड़कनें बहुत तेज़ हो गई थी... 

मीरा- हाँ, मुझे तो लगा था मेरा दिल बाहर ही आ जाएगा। चलो.... अब क्लास  चलते हैं... 

मीरा उठकर क्लास के लिए चलने लगी, उसके चेहरे की हंसी कायम थी, लेकिन अनिका के चेहरे पर अब कोई हंसी नहीं थी, वो मीरा को देख रही थी। मीरा ने अनिका की तरफ देखा और कुछ समझते हुए बोली 

मीरा- अभी तो बहुत सी बातें करना बाकी है.... इसलिए मुझे इन सवालिया नज़रों से देख रही हो, लेकिन जो सवाल तुम्हारे हैं, वो ही सवाल मेरे भी हैं, अनिका। 

अनिका ने हामी भरते हुए अपनी गर्दन हिलाई। दोनों वापस उसी जगह बैठ गई। वे कुछ पल के लिए चुप हो गईं,  और फिर हर बार की तरह मीरा ने पहल करते हुए अनिका से कहा 

मीरा- तुमने ये सब मुझसे क्यों छिपाया? मुझसे तो तुम कुछ नहीं छिपाती थी, फिर इतनी बड़ी बात कैसे? 

अनिका ( तंज़ भरी मुसकान  के साथ) - तूने भी तो मुझे कुछ नहीं बताया! तू बता देती, तो शायद मैं भी बता देती, पर तुझे तो शायद मुझपर भरोसा ही नहीं था। 

मीरा- तुझे था? 

मीरा के सवाल पर अनिका ने अपनी नज़रें झुका ली और फिर अफ़सोस के साथ कहा 

अनिका- हाँ, हमेशा से। तुझसे ज़्यादा भरोसा मैंने किसी पर नहीं किया, लेकिन जब से अमन आया और उसने मुझसे हमारे रिश्ते को छिपाने की बात की तो मैं तुझसे भी इसे राज़ रखने की कोशिश करने लगी। तू यकीन नहीं मानेगी, लेकिन जब हम पहले दिन मिले थे मैं उसी दिन तुझे सब बताना चाहती थी, मैंने दो दिन पहले भी अमन से कहा कि मैं तुझे सब बता दूँ, क्योंकि हम एक-दूसरे से दूर जा रहे थे, लेकिन उसने मुझे कहा कि अगर मैं किसी को कुछ बताऊँगी तो वो मुझे छोड़कर चला जाएगा। मेरा दिल घबरा गया.... मैं उसे नहीं खो सकती.... 

अनिका की बात सुनकर मीरा की सोच में पड़ गई। उसे भी अर्जुन की वो बात याद आने लगी जब अर्जुन ने उससे कहा था कि अनिका भी उससे ना जाने कितने राज़ रखती होगी, पर वो उतावलेपन में उसे सब बताना चाहती है। मीरा ने अनिका की तरफ एक मायूसी भरी मुस्कान के साथ देखा फिर एक गहरी सांस छोड़ते हुए कहा  

मीरा- शायद ये ही फर्क होता है, दोस्ती और प्यार में.... हम अपने दोस्त को कई बार फॉर ग्रांटेड ले लेते हैं, ये सोचकर कि वो वापस आ जाएगा, पर जब बात प्यार की आती है हम ऐसा कुछ नहीं कर पाते। सॉरी, अनिका... जैसे अमन  ने तेरे सामने शर्त रखी थी, वैसे ही अर्जुन ने मेरे सामने कुछ ऐसी बातें कही थी जो मैं मानने से इनकार नहीं कर सकी। 

मीरा की बात पर अनिका ने उसे मुस्कुराते हुए देखा और वहीं मीरा ने अपने कंधे झटकते हुए अपनी उसे पुराने मस्त अंदाज़ में कहा  

मीरा- पर कोई बात नहीं, अब तक जो हुआ सो हुआ...अब से हम एक दूसरे से कुछ नहीं छिपाएंगे। वैसे भी उन्हें कौन सा पता चलेगा... 

अनिका(पक्के इरादे के साथ)- हाँ, बिल्कुल सही बात। हम ऐसा ही करेंगे। चल इसी बात पर आइस क्रीम  खाने चले... वैसे भी कल मैंने पूरा दिन व्रत रखा और जिसके लिए व्रत रखा वो मिलने भी नहीं आया। 

अनिका की बात पर मीरा ने उसे हैरान होते हुए देखा और फिर कल उसके फोन पर आई फोटो को याद किया। लेकिन मीरा के मन में अब भी एक झिझक थी, उसने अनिका को कुछ ना बताकर बस इतना पूछा 

मीरा- तो वो क्यों नहीं आया....?

अनिका- पता नहीं.... बोल रहा था बहुत जरूरी काम आ गया, हालांकि उसने मुझे रात को फोन किया... पर आज वो वापस जयपुर चला गया। 

 अनिका की बात सुनकर मीरा ने उसे शरारत भरी मुस्कान के साथ देखा और छेड़ते हुए कहा 

मीरा- ओह्ह....तो अब समझी... तुझे जयपुर इतना पसंद क्यों आया? ये बात थी, मैडम अपने कज़िन नहीं बल्कि अपने प्रेमी के साथ बिजी रहती थी। 

अनिका ने मीरा की बात पर शरमाते हुए उसे खुद से दूर धकेला। वो दोनों अब खुलकर हंस रही थी, जिसे देखकर लग रहा था कि अब दोनों के बीच वो पुरानी दोस्ती फिर से जाग रही थी,  जो बिना झिझक एक-दूसरे से कुछ भी कह सकती थी। अनिका और मीरा बातें करते हुए आइस क्रीम पार्लर तक पहुँच गई, दोनों ने अपनी पसंद की आइस क्रीम ऑर्डर की और एक जगह जाकर बैठ गई। जिसके बाद मीरा ने अनिका की तरफ देखकर उत्सुकता से कहा 

मीरा- अब बता तू अमन से मिली कैसे? और हाँ, डिटेल में बताना.... इसी वजह से हमने कॉलेज बंक किया है। 

मीरा का सवाल सुनकर अनिका के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आई, मानो उसे उस मुलाकात की यादें ताज़ा हो गई हों। उसने धीरे-धीरे बोलना शुरू किया, 

अनिका- मैं उसे जयपुर में मिली थी। एक लाइब्रेरी में। 

अनिका की आवाज़ में हल्की सी शरारत थी। उसने बताया कि वो अपनी बुआ के घर पर काफी अकेला महसूस करती थी। उसके सारे कज़िन उससे बहुत छोटे थे, उनके बीच में अनिका को अच्छा नहीं लगता था। अनिका अपना मन बहलाने के लिए लाइब्रेरी जाती थी, वहीं एक दिन उसने अमन को देखा।  उसने बताया कि अमन  किताबों का दीवाना था, वो हर वक़्त किसी न किसी किताब के साथ ही रहता था। अनिका उसे हर रोज़ वहाँ देखती थी, लेकिन अमन की नज़र कभी भी अनिका पर नहीं जाती। कुछ अजीब एहसास था तो अनिका को अमन की तरफ खींचने लगा था। लेकिन शायद इस बात से वो खुद अनजान थी। मीरा को ये सब बातें बताते वक्त अनिका की आँखों में उन गुजरे हुए लम्हों की चमक थी। मानो अनिका की आँखों के सामने वो वक्त फिर से तैरने लगा था जब उसने पहली बार अमन  से बात की थी। अनिका ने उस शाम को याद करते हुए कहा 

अनिका- एक दिन मैं लाइब्रेरी में बैठी थी, और एक किताब के लिए लड़ रही थी। वही किताब अमन  भी लेना चाहता था। उस पहली मुलाकात में हमारी बातचीत थोड़ी बहस जैसी थी, लेकिन फिर अचानक उसकी नजर मुझपर टिक गई, ना जाने उसे क्या हुआ उसने वो किताब मुझे दी और वहाँ से चला गया। मैं उसे जाते हुए देख रही थी, वो दरवाज़े से बाहर निकला और फिर पीछे मुड़कर मुझे देखा और मुस्कुराया। 

ये बात याद करते हुए अनिका के होंठ खिल उठे। जैसे उसे कोई बहुत प्यारा पल याद आ गया हो। अनिका ने आगे की कहानी बताते हुए कहा 

अनिका- अब हम दोनों में हल्की-हल्की बातचीत होने लगी थी, अमन मुझे अच्छी किताबों के सजेशन देता..फिर एक दिन बारिश हुई... बहुत तेज़ बारिश.... 

अपने प्यार की कहानी बताते हुए अनिका को वो शाम याद आई, जब वो अमन  के साथ बारिश में फंस गई थी और अमन ने बारिश की बूंदों को अपने हाथ पर लेकर कहा 

अमन- जानती हो अनिका, अगर आज तुम मेरे साथ नहीं होती, तो मैं बाहर निकलकर भीग रहा होता। मुझे बारिश बहुत पसंद है... पर अगर मैं तुम्हें लेकर बारिश में गया तो तुम बीमार पड़ जाओगी। 

अमन की ये बात याद करते हुए अनिका के चेहरे पर मुस्कान आ गई, उसने हँसते हुए कहा 

अनिका- तब मुझे वो ढंग से जानता भी नहीं था, पर उसे मेरी फिक्र थी, ऐसा लग रहा था मानों उससे पहले मेरी इतनी चिंता किसी ने नहीं की थी... फिर एक दिन... बारिश में उसने मुझे मिलने बुलाया। वो बारिश की बूंदों में भीगते हुए अचानक मेरे सामने आया और बिना कुछ कहे, घुटनों पर बैठ गया। एक पल को मैं घबरा गई, लेकिन फिर उसने अपने जूतों के फीते बांधने शुरु कर दिए। मैं खुद के ख्यालों पर बहुत हंसी, लेकिन तभी उसने मेरा हाथ थामा और कहा 

अमन- शायद ये थोड़ा जल्दी होगा, लेकिन अब मैं ये बात तुमसे और नहीं छिपा सकता। क्योंकि मेरे लिए ये एक-एक पल एक सदी के बराबर हो रहा है। इसलिए, अब मैं कह देता हूँ। आई लव  यू, अनिका, मैं तुम्हारे साथ अपनी ज़िंदगी बिताना चाहता हूँ.... 

अनिका ने उस पल को एक बार फिर उसी तरह जिया, उसे वो सब महसूस हुआ जो तब हुआ था। अनिका ने मीरा की ओर देखते हुए कहा 

अनिका- मैं तब बिल्कुल भी श्योर नहीं थी, लेकिन अमन की आँखों में एक अजीब सा जादू था। मैं चाहती थी मैं उसे परखूँ पर मैं कुछ नहीं कर पाई, बस उसे देखती रही। मैं खुद को नहीं रोक पाई। उस पल में बारिश की बूंदें, उसका चेहरा और मेरे दिल की धड़कनें... सब कुछ सही लग रहा था। मैंने हाँ कह दी।

मीरा ने अनिका की बातें ध्यान से सुनीं, और फिर एक गहरी सांस लेते हुए कहा

मीरा- काश! मैं भी वहाँ होती....

अनिका ने शक के साथ मीरा की ओर देखा, फिर अपनी तयोरियाँ चढ़ाते हुए कहा 

अनिका- हाँ, तुम वहाँ होती, और मैं वहाँ होती जहां तुम अपने राजकुमार से मिली थी। चलो, अब तुम बताओ, तुम कहाँ मिली थी अपने अर्जुन से... 

 अनिका का सवाल सुनकर मीरा थोड़ा हिचकिचाई, फिर हंसने लगी। मीरा ने थोड़ा रुककर अपनी कहानी शुरू करते हुए कहा 

मीरा- मेरी कहानी तेरी ही तरह थोड़ी फिल्मी सी है, फुल ऑफ ड्रामा! 

(याद करते हुए) मैं एक ट्रिप पर गई थी, हिमाचल में एक छोटा सा ट्रेक है, वहाँ सब लोग दिन में जाने वाले थे, लेकिन मुझे वहाँ जाकर रात का आसमान देखना था, तारों से भरा हुआ। 

मीरा ने अपनी कहानी बताते हुए अनिका को उस दिन की बात बताई जब वो अपने साथियों को छोड़कर अकेले ही trek करने निकल पड़ी। लेकिन रास्ते में लैंडस्लाईड होने की वजह से मीरा वहाँ फंस गई। मीरा ने मदद के लिए पुकार लगाई लेकिन वहाँ कोई नहीं आया। फिर कुछ देर बाद उसके कानों में कदमों की आहट पड़ी, मीरा ने आवाज़ की दिशा में देखा तो उसे एक हट्टा-कट्टा नौजवान उसकी ओर आता दिखाई दिया। वो नौजवान कोई और नहीं बल्कि अर्जुन था, अर्जुन ने मीरा को देखकर कहा 

अर्जुन- जानता हूँ, तुम भी मेरी ही तरह पागल हो शायद। रात का आसमान देखने आई थी ना, लेकिन तुम्हें अनाउंसमेन्ट पर ध्यान देना चाहिए था, आज यहाँ लैंडस्लाईड होने वाला था। वो तो अच्छा हुआ कि मैं आ गया, वरना तीन दिन तक ये रास्ता नहीं खुलेगा। 

मीरा अर्जुन की बात सुनती रही, उसकी नज़र अर्जुन से हट ही नहीं रही थी। उसे देखकर ये अंदाज़ा लगाना बहुत आसान था कि वो अर्जुन को पहली ही नज़र में अपना दिल दे बैठी थी। मीरा ने उस रात की बात याद करते हुए अनिका से कहा 

मीरा- अर्जुन मुझे सुरक्षित वहाँ से निकाल लाया, मैंने उस दिन वो सितारों से जगमगाता आसमान नहीं देखा, वो रात अपने टेंट  में गुज़ारी, पर मैं बहुत खुश थी, क्योंकि मुझे वो मिल गया था जिसकी ना जाने कबसे तलाश थी। हम वहाँ 5 दिन रहे, मैं अर्जुन से अपने दिल की कोई बात नहीं कह पाई। हम दोस्त बन गए, रोज़ बात करने लगे। मैं इज़हार करने से डरती थी, लेकिन फिर एक महीना पहले वो मुझसे मिलने यहीं आया और उसने कहा 

अर्जुन- प्यार करता हूँ, तुमसे.... आदत हो गई है तुम्हारी। साथ दोगी ??? ज़िंदगी भर... 

मीरा के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी, लेकिन उसकी आँखों में एक हल्का सा डर भी छिपा हुआ था। अनिका ने मीरा को देखते हुए कहा 

अनिका- क्या हुआ? तू खुश थी फिर अचानक यूं सहम क्यों गई?

मीरा ने गंभीर होते हुए अनिका की तरफ देखा और फिर अनमने ढंग से मुस्कुराकर कहा 

मीरा- मुझे कभी-कभी सब कुछ बहुत अजीब लगता है। ऐसा लगता है जैसे सब कुछ प्री पलैन्ड था, हमारा मिलना... फिर यहाँ ये सब होना... लगता है जैसे वो बहुत कुछ जानता है और मैं कुछ नहीं। पर मैं उसे कुछ कह नहीं सकती...  

अनिका ने भी मीरा की बात पर अपनी सहमति दर्ज की, उसने हामी भरते हुए कहा 

अनिका- सच कहूँ, तो मुझे भी ऐसा ही लगता है। क्या हमारा ये एक जैसा एहसास महज़ इत्तेफाक है? 

अनिका ने सवालियाँ नज़रों से मीरा को देखा फिर अचानक कुछ याद करते हुए पूछा 

अनिका- वैसे मीरा, तुझे अमन  ने प्रपोज कब किया? 

मीरा ने अनिका के जवाब पर मुसकुराते हुए कहा 

मीरा- 25 जुलाई..... 

मीरा का जवाब सुनकर अनिका की आँखें हैरानी से बड़ी हो गई। 

आखिर क्यों चौंक गई अनिका? क्या ये ही था अमनऔर अर्जुन का सच? क्या ये छोटे-छोटे इत्तेफाक हैं किसी बड़े तूफ़ान के आने के पहले की चेतावनी?? 

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