​​खुशबू आंटी जैसे ही पलट कर जाने लगती हैं कि वह अपने सामने खड़े मानव को देखकर चीख पड़ती हैं। जैसे ही मानव की माँ उनके सामने देखती हैं, उनकी आँखें फटी की फटी रह जाती हैं। उन लोगों के ठीक सामने मानव खड़ा है, खून से लथपथ, फटे हुए कपड़ों में। तब खुशबू आंटी उससे पूछती हैं, यह ये...क्या हुआ बेटा? तूने तो मेरी जान ही निकाल दी...तू ठीक तो है न? कोई गाड़ी से टकरा गया क्या? आंटी लगातार यह सवाल करती हैं जबकि मानव अपनी माँ को देखता है। यहाँ उसके सामने खड़ी माँ के दिल का हाल बस वही जानती हैं। एक तरफ बेटे का यह हाल है, दूसरी तरफ उन्हें यह बात खाई जा रही है कि कहीं उसने उसकी शादी के बारे में सुन तो नहीं लिया। जब मानव थोड़ी देर तक कुछ नहीं कहता, तब माँ उससे पूछती है, क्या हुआ बेटा? बता न! किसी से हाथापाई हुई क्या?​

​​यह सुनते ही खुशबू आंटी कविता से कहती हैं, क्या बहन जी! यह हमारा हीरा जैसा बच्चा! यह किसी के साथ कैसे लड़ेगा? इतना कहकर वह मानव के चेहरे की चोट पर हाथ लगाते हुए कहती हैं, बाप रे घाव तो बहुत गहरा है! क्या हुआ बेटा, बता ना!​

​​मानव (झल्लाते हुए): चलते-चलते पांव फिसल गया मेरा...बहुत कीचड़ था, खुद को संभाल नहीं पाया और गली नंबर 6 के आखिरी की ऊँचाई से गिरकर रोड तक पहुँच गया था! मगर किसी गाड़ी के नीचे नहीं आया।​

​​बिना किसी एक्सप्रेशन के, मानव खुशबू आंटी को इतना साफ झूठ कहता है। उसके ऐसा कहने पर वह उसके कपड़ों को देखते हुए कहती हैं, मगर वह कीचड़ बेटा? उनके ऐसा कहते ही, मानव उनकी तरफ देखता है, तब वह अपनी बात घुमाते हुए उससे कहती हैं, मेरा मतलब है! वह... इतनी गर्मी है न...शायद पसीने से सूखकर झड़ गया होगा! बेटा वह तेरे कपड़ों पर दिखा नहीं तो पूछ लिया!​

​​मानव अभी भी अपनी माँ की तरफ देख रहा है, जिसे खुशबू आंटी नोटिस कर लेती हैं और वहां से जाना ही ठीक समझती हैं। तब मानव अपनी माँ से कहता है,​

​​मानव: क्या हम भी घर चले मम्मी!​

​​वह मानव के ऐसा कहने पर हाँ में सर हिलाती है और दोनों अपने घर जाते हैं। यहाँ, सुरु के घर जैसे ही आदि सुरु के बैग से निकले उस पाँच सौ के नोट को देखता है, वह जोर से चिल्लाता है, दीदी के बैग में पाँच सौ रुपये! यह सुनते ही माँ उसका मुँह बंद करते हुए कहती हैं, बात कर रही हूँ न मैं आदि! हर बात पर चिल्लाना ज़रूरी होता है क्या? अभी समझाया था न तुझे, पापा आराम कर रहे हैं, इतना शोर करने की ज़रूरत नहीं है। तब आदि, जिसके मुँह पर उसकी माँ ने हाथ रखा हुआ है, वह उनका हाथ हटाते हुए उनसे कहता है, मम्मी, मगर दीदी के बैग में पाँच सौ रुपये आए कहाँ से! इस पर माँ, सुरु को देखती हैं और थोड़ा नाराज़ होते हुए उससे पूछती हैं, क्या है यह सुरु? कहाँ से आए यह पैसे तेरे पास? तू तो अपनी सहेली के घर प्रोजेक्ट के लिए गई थी न! बोल अब!​

​​सुरु बहुत दिमाग लगाती है कि वह ऐसा क्या कहे कि उसके घरवालों को उस पर भरोसा हो जाए, मगर उसे कुछ समझ नहीं आता। तब वह अपनी माँ के हाथ से वह नोट लेकर ऐसे देखती है, जैसे वह खुद बहुत शॉक्ड है यह देखकर कि उसके बैग में इतने पैसे थे।​

​​यहाँ वह अपने घरवालों से बचने के तरीके ढूंढ रही होती है, वहीं उसके दिमाग में यह बात चल रही होती है कि शायद जब वह अपने बैग में पैसे डाल रही थी, तो यह नोट बैग के नीचे कहीं दबा रह गया जिसपर उसकी नज़र नहीं पड़ी और बदकिस्मती से उसकी माँ ने उसे देख लिया।  सुरु जब सरप्राइज होकर उस नोट को देख रही होती है, तब उसकी माँ उसका चेहरा देख रही होती हैं और उससे कहती हैं, मुझे पूरा भरोसा है, सुरु, कि हमारी परवरिश में कोई कमी नहीं है बेटा! याद कर और बता मुझे कि आखिर यह नोट तेरे बैग में कहाँ से आया।​

​​सुरु: अरे मम्मी...अभी याद आया, यह नोट...यह मेरी सहेली के घर पर एक्स्ट्रा था!​

​​सुरु की माँ उसकी इस बात पर भरोसा नहीं करती। वह चुप रहकर उसकी पूरी बात सुनना चाहती है। तब उनके सामने खड़ी सुरु, एक गहरी सांस लेते हुए, उस नोट को फाड़ देती है। उसका ऐसा करना, आदि और उसकी माँ को चौंका देता है। आदि तुरंत ही अपनी दीदी के पास उस नोट को लेने के लिए दौड़ता है, तब तक वह उसके कई टुकड़े करते हुए कहती है,​

​​सुरु: यही प्रॉब्लम है आजकल की जेनरेशन की! पूरी बात सुननी नहीं होती, बस रिएक्शन देना होता है! मम्मी...दिया के घर पर कुछ नकली नोट रखे थे...जिनकी हमें ज़रूरत थी! कुछ सामान मैं लेकर गई थी...कुछ सामान उसके पास था! बस शायद तब बैग से सामान निकालते समय यह नोट गलती से मेरे बैग में आ गया! आप लोग भी न इतनी सी बात का इतना बड़ा बवाल कर दिया!​

​​मधु, सुरु की बात सुनकर मान जाती है। तब वह आदि को प्यार से थप्पड़ दिखाते हुए कहती है, मैं ज़्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हूँ बेटा, इसलिए कुछ भी सोच लेती हूँ। मगर तू तो इस शहर में रहकर पढ़ाई कर रहा है न! और फिर तेरे पास इतनी समझदार बहन भी है। अब कभी कुछ भी कहने से पहले सोच लेना। तेरे बोलने के कारण मैं भी उल्टा-सीधा सोचने लगी थी बेटा।​

​​माँ जैसे ही ऐसा कहती हैं, आदि हाँ में सिर हिलाते हुए घर के अंदर भाग जाता है। सुरु जिसने अपने घरवालों को भरोसा दिलाने के लिए एक असली 500 रुपये के नोट को फाड़ा है, वह ज़मीन पर बिखरे उन टुकड़ों को देखती है और जैसे ही उन्हें उठाने लगती है, कि तभी उसकी माँ पलट कर एक बार फिर से सुरु का नाम लेते हुए उससे कहती है, बेटा, इस में मैं तो पूछना भूल ही गई कि तेरा प्रोजेक्ट कहाँ है, उसे घर नहीं लायी? सुरु एक बार फिर से गहरी सांस लेते हुए अपनी माँ से कहती है,​

​​सुरु: हाँ, वह मम्मी, उसमें थोड़ा काम बाकी था। मैं उसे दिया के घर पर ही रखकर आई हूँ। उसने कहा है वह उसे कम्प्लीट करके स्कूल में ले आएगी। और हाँ, मम्मी, मैं जल्दी फ्री हो गई थी, इसलिए खुद ही घर आ गई, मैंने किसी का...मेरा मतलब है, मानव के आने का इंतजार नहीं किया! आप उसे बता देना कि मैं आ गई हूँ।​

​​यह सुनते ही माँ उसे मुस्कुरा कर देखती है और अंदर जाती है। अब माँ के अंदर जाते ही, सुरु ज़मीन पर गिरे 500 रुपए के टुकड़ों को उठाती है। उधर जीत इस बात से बहुत परेशान है कि उसने अनजाने में मानव को बहुत बड़ी चोट पहुंचाई है। वह अब किसी भी तरह से इस बात को खुद ही ठीक करना चाहता है। इस सोच में डूबा, जीत एहसान भाई के पास जाने का फैसला करता है। हालाँकि वह जानता है कि उसका यह कदम जानलेवा हो सकता है, मगर वह फिर भी इस रिस्क को लेना चाहता है और इसलिए वह एहसान भाई के घर की तरफ जाता है।​

​​इधर, देविका बहुत खुश है। वह जानती है कि अब उसकी जिंदगी बदलने वाली है। वह अपने बेस्ट कपड़े चुनती है और उन्हें खुद पर लगाकर देखती है। वह बहुत खुश है और मन ही मन में सोचती है कि मानव कितना बदल गया होगा! वह कितना बड़ा दिखता होगा! हैंडसम तो वह हमेशा से ही था, मगर अब न जाने उसकी पसंद क्या और कैसी होगी। वह सब कुछ बहुत सोच-समझ कर सलेक्ट कर रही थी, कि तभी उसे उसके घरवालों की आवाज़ें आने लगती हैं। यह किस तरह की आवाज़ें हैं, यह वह समझ नहीं पाती।​

​​इसलिए घबराकर, सब कुछ छोड़कर वह तुरंत ही लिविंग रूम के पास पहुँचती है। वह जैसे-जैसे हॉल की तरफ बढ़ती है, उसे जोर से हंसने और ठहाके लगाने की आवाज़ें सुनाई देने लगती हैं। अब उसके चेहरे पर भी मुस्कान आ जाती है। उसे लगता है, न जाने क्या हो रहा है घर पर। वह जैसे ही लिविंग रूम में जाने लगती है, कि तभी अपने कदमों को रोक लेती है और दो कदम पीछे होकर सोचती है,​

​​देविका: अरे यार ! यह शिवम यहाँ क्यों आया है? इसे कितना समझाया था मैंने कि यहाँ न आए। मैं संभाल लूंगी! यह मेरे घर वाले भी न! पता नहीं ऐसे कैसे इस बेवकूफ इंसान को पसंद कर सकते हैं।​

​​तब देविका की माँ जोर से हँसते हुए, शिवम से कहती हैं, बेटा, तू जब घर के अंदर बिना कुछ कहे आ रहा था, तो मुझे लगा न जाने कौन अंजान आदमी है जो ऐसे ही मेरे घर घुसा चला आ रहा है। और तभी...मैंने झाड़ू उठा ली थी...वह तो तू पलट कर मुझे नहीं देखता, तो मैंने तो आज तुझे झाड़ू से ही कूट देना था!​

​​ऐसा कहकर वह और जोर से हंसने लगती हैं। तब रूम के बाहर खड़ी देविका पर्दा हटाकर अंदर झांकती है और वह यह देखकर हैरान हो जाती है कि शिवम ने अपना पूरा हुलिया बदल लिया है। उसने अपने बालों को कटवाकर छोटा करवा लिया है। अब उसके गले में कोई चेन नहीं है। वह फॉर्मल कपड़े पहनकर उसके घर पर आया है। यह देखकर, देविका अपना माथा पकड़ते हुए अपने कमरे में जाती है और खुद से कहती है,​

​​देविका (जैसे माथा पकड़ लिया हो): हे भगवान! यह तो बिल्कुल पागल लग रहा है! इसको कौन आइडिया देता है यह सब!​

​​ऐसे सोचते हुए, देविका दोबारा से अपने सामने देखने लगती है कि तभी उसे कुछ याद आता है और उसका मुँह खुला का खुला रह जाता है। वह खुद से कहती है,​

​​देविका: ओह नो ! अब समझी यह सब क्यों हुआ! ओह नहीं नहीं...यार, यह तो शायद मेरी बात को सीरियस ले रहा है।...अब कहीं यह ऐसी वैसी कोई बात नहीं कर दे मेरे घरवालों के सामने...उन्हें तो कुछ पता ही नहीं है।​

​​ऐसे सोचते ही, देविका झट से दोबारा लिविंग रूम की तरफ दौड़ती है। मगर इस बार वह अंदर जाती है। यहाँ अभी भी वही हंसी-मजाक चल रहा है। देविका को देखते ही, शिवम के चेहरे का रंग बदलने लगता है। वह शर्माते हुए उसकी तरफ देखता है। देविका भी उसे इशारे में कहती है कि वह बहुत अच्छा लग रहा है। देविका के इशारे को देखते ही, शिवम का कॉन्फिडेंस बढ़ जाता है और वह जैसे ही उसके घर वालों से कहता है कि उसे उन सबसे कुछ सीरियस बात करनी है, कि तभी देविका उसे इशारा करके ऐसा करने से मना करती है। शिवम की नज़र देविका पर नहीं जाती। वह बस उसके घरवालों की अटेंशन पाने के लिए सबके सामने जाकर खड़ा हो जाता है और उन सबसे कहता है, देखिए, आप सब मेरे पड़ोसी या देविका का परिवार ही नहीं, आप मेरा भी परिवार हैं। मैं खुद को आप सबसे कभी अलग नहीं माना। इसलिए जब भी मन किया, जो भी परेशानी हुई, सबसे पहले मैं इस परिवार के बीच आ खड़ा हुआ। आज मेरे सामने एक ऐसी ही मुश्किल आ खड़ी हुई है, जिसके समाधान के लिए मैं आप सबके सामने आया हूँ।​

​​वहीँ जैसे-जैसे शिवम अपनी बात कहता जाता है, देविका के हाथ-पैर ठंडे होते जाते हैं। वह उसे रोकने की बहुत कोशिश करती है, मगर शिवम का सारा ध्यान बाकी सदस्यों पर है। वह अपनी बात को जैसे ही पूरी करने लगता है कि तभी वह बीच में कहती है,​

​​देविका: क्या बकवास है शिवम! तुम ऐसे सीरियस अच्छे नहीं लगते। हम सबको तुम्हें वैसे ही देखना अच्छा लगता है जैसे तुम हो। चलो छोड़ो यह सब, मुझे यह बताओ मेरे आने से पहले सब किस बात पर हंस रहे थे।​

​​देविका का इतने सीरियस टॉपिक पर यूं बीच में बोलना उसके पापा को पसंद नहीं आता! वह तब देविका से कहते हैं, बेटा, यह बहुत गलत बात है। उसे मन की बात कह लेने दो। वैसे भी हम जानते हैं, वह हंसमुख है, कभी सीरियस नहीं होता, मगर अगर अभी वह सीरियस है तो कोई बात तो होंगी न बच्चे! ऐसे कहकर, उसके पापा वहां कमरे में सबको शांत करवाते हुए कहते हैं, अब यहाँ कोई कुछ नहीं कहेगा! जो बोलना है, बस शिवम ही बोलेगा! हाँ! बेटा, बोलो, क्या बात है?​

​​देविका के पापा की बात सुनकर, शिवम मुस्कुराते हुए उनका धन्यवाद करता है। और तब वह अपनी पूरी बात रखता है। उसकी बात सुनते ही, वहां कमरे में बैठा हर कोई एकदम शांत हो जाता है, किसी के चेहरे पर कोई भाव नहीं आते। वहीं, शिवम की बात सुनते ही, देविका वहां से दनदनाते हुए बाहर चली जाती है।​

​​आखिर ऐसा क्या कहता है शिवम कि हर कोई स्तब्ध रह जाता है! क्या उसने मानव के रिश्ते की बात को सबके सामने करके चौंका दिया है, या फिर अपने मन की बात कही है जिससे सब सकते में आ गए हैं? आखिर ऐसा क्या कहा है शिवम ने जिसे सुनकर देविका वहां से उठकर चली जाती है?

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

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