​​मानव जीत की कही हर बात मान जाता है, मगर जैसे ही वह जीत से पूछता है कि इस मारपीट में उन्होंने उसकी दुकान के बारे में क्यों कहा, यह सुनते ही जीत के पसीने छूटने लगते हैं। वह समझ ही नहीं पाता कि वह क्या कहे। उसका कुछ न कहना मानव को डरा देता है। मानव उससे बार-बार वही सवाल करता है। तब जीत जो कहता है, वह मानव के होश उड़ा देता है। जीत मानव से कहता है,​

​​जीत (घबराते हुए): यार मानव! वह, एक्चुअली देख, मैंने तुझे जो कुछ भी बताया है, वह सब एकदम सही है और सच है। बस एक बात और है, जो मुझे सच में अब तुझे बताने की हिम्मत नहीं हो रही थी। मगर तेरी कसम, मैंने सोचा था कि मैं सब ठीक करने के बाद तुझे सब कुछ बता दूँगा!​

​​जीत अपनी बात कहता है, मगर वह अभी भी पूरी बात नहीं कहता। तब मानव उससे पूछता है,​

​​मानव (झल्लाते हुए): जीत, इस वक्त मुझे सिर्फ इतना जानना है कि उन्होंने मेरी दुकान के बारे में क्यों कहा! इसके अलावा मुझे अभी तेरी किसी बात में कोई इंटरेस्ट नहीं है।​

​​जीत (कंपकंपाती आवाज़ में): यार, मैंने एहसास भाई को जो पैसे और वह गोल्ड का सामान लेने के बदले यह कहा था कि अगर मैं इसे नहीं चुका पाया, तो वह इस दुकान पर कब्जा कर सकते हैं।​

​​यह सुनते ही, मानव का खून खौल जाता है और वह खींच कर जीत के मुँह पर एक तमाचा जड़ देता है और उससे कहता है,​

​​मानव (बहुत गुस्से में): तुझे पता है, तू क्या कह रहा है! यह सब तुझे मजाक लग रहा है जीत! शास्त्री जी मेरे माई-बाप हैं। अगर आज मैं अपनी माँ से उनके लिए लड़ा हूँ, अपनी बहन के भविष्य को ताक पर रखकर उनकी जान बचाई है, तो सिर्फ इसलिए क्योंकि आज मैं और मेरा परिवार जो कुछ भी हैं, उनकी वजह से हैं। इसलिए मैंने राजू भाई से अपनी औकात से ज़्यादा पैसे लिए, ताकि बस किसी भी तरह मैं उस देवता जैसे इंसान को बचा सकूँ! इन सब में भी मैंने अपनी दुकान को आड़े नहीं आने दिया, क्योंकि यह मेरे बाप-दादाओं की मेहनत और पूंजी है। तूने!! तूने अपनी ऐश-ओ-आराम के चक्कर में इतना बड़ा कदम उठा लिया! नहीं, मैं यह नहीं होने दूँगा! यह सब तूने किया है और तू ही भुगतेगा! इसमें मैं तेरा साथ कभी नहीं दे सकता।​

​​जीत यह सुनते ही, मानव के आगे हाथ जोड़ कर कहता है,​

​​जीत (हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाते हुए): यार दोस्त, मेरी बात पर भरोसा कर! मैंने जब यह सब किया, तब सब कुछ ठीक चल रहा था। मुझे नहीं पता था कि शास्त्री जी के साथ ऐसा कुछ होगा और सब बिगड़ जाएगा। वरना, मैं ऐसा कभी नहीं करता, मानव! प्लीज़ मेरी बात का विश्वास कर!​

​​मानव जीत की आँखों से निकलते हुए आंसू देखता है, मगर वह इस समय कुछ भी कहने और सोचने की स्थिति में नहीं है। वह उस समय जीत को वहाँ से तुरंत जाने के लिए कहता है। वहीं दूसरी तरफ, जीत भी बहुत शर्मिंदा है। वह मानव के कहने पर वहाँ से जाता है। उसके जाते ही, मानव किसी गहरी सोच में चला जाता है।​

​​यहाँ, देविका के घर पर उसकी शादी की बात चल रही है। देविका अपने कमरे से सुनती है कि उसके घरवाले मानव के साथ उसका रिश्ता करने के लिए तैयार हैं, बस फॉर्मलिटी के लिए उन लोगों से मिलना चाहते हैं। तब देविका के दिमाग में एक आइडिया आता है और वह मन ही मन सोचती है,​

​​देविका (थोड़ा खुश होते हुए): मानव! (pause) शिवम जैसी अड़चनें हर लड़की की ज़िंदगी में आती हैं, मगर मानव हर किसी की लाइफ में नहीं होता! तुम्हें मेरी किस्मत में भगवान ने लिखा है और मैं किसी भी कीमत पर किसी और को तुम्हारे और मेरे बीच नहीं आने दूँगी! मेरे घर वाले तुमसे और तुम्हारी फैमिली से मिलने का प्लान बना रहे हैं। मैं इस समय क्या महसूस कर रही हूँ, तुम्हें बता नहीं सकती। बस, न जाने क्यों, मुझे ऐसा लग रहा है जैसे उन लोगों से पहले हम दोनों को मिल लेना चाहिए! पता नहीं, तुम्हें मैं याद भी हूँ कि नहीं? मुझे तो तुम बहुत अच्छी तरह से याद हो! कितनी छोटी सी उम्र में तुमने सबकुछ संभाल लिया था। मैं तो तब से ही तुम्हारी फैन हूँ!​

​​मन ही मन में ऐसा कहते हुए, देविका करोल बाग़ जाने का फैसला लेती है।​

​​यहाँ, सुरु सट्टेबाज़ी में 3 लाख रुपए हारने के बाद बेसुध होकर अपने घर की तरफ लौटती है। वह जिन गलियों से वापस आ रही होती है, वहीं जीत भी उन्हीं गलियों में, मानव के साथ हुई बातचीत को लेकर परेशान घूम रहा होता है। तभी उसकी नज़र सुरु पर पड़ती है, जो अपनी ही सोच में गुम एक गली से दूसरी गली की तरफ जा रही होती है। जीत, सुरु के पास वही बैग देखकर हैरान हो जाता है, जो उसने उसे पहले भी ले जाते हुए देखा था। वह आज फिर से अकेली इन्हीं गलियों में घूम रही है। यह बात उसे बार-बार हैरान कर देती है, मगर इस बार वह खुद इतनी बड़ी मुसीबत में फंसा है कि वह इस बात को इग्नोर कर देता है और उसके देखते ही देखते, सुरु वहां से निकल जाती है।​

​​इन्हीं सब बातों से घिरी हुई, सुरु आखिरकार अपने घर के पास पहुँचती है। अंदर जाने की उसकी हिम्मत नहीं होती। मोहल्ले में आते-जाते लोग उसे बाहर खड़े हुए देखते हैं। कुछ लोग बातें करते हैं तो कुछ उससे पूछते हैं कि सब ठीक तो है। वह अपनी चप्पल टूटने का बहाना करके बाहर खड़ी रहती है। उसकी जब अंदर जाने की हिम्मत नहीं होती, तभी कहीं दूर से खेलता हुआ आदि आता है और पीछे से अपनी दीदी की पीठ पर एक हाथ मारता है।​

​​सुरु बहुत घबराई हुई है। आदि जैसे ही ऐसा करता है, वह बिना कुछ समझे अक्रामक हो जाती है और पलट कर आदि को खींचकर एक जोरदार थप्पड़ मार देती है। उसके ऐसा करने से आदि बहुत जोर से रोता है। तभी सुरु को होश आता है कि उसने उसके भाई को बहुत जोर से मार दिया है। वह उसे चुप करवाती है, मगर वह चुप नहीं होता और जोर से रोने लगता है।​

​​तभी अंदर से सुरु की माँ बाहर आती है और वह आदि और सुरु को घर के बाहर खड़ा हुआ देखकर पूछती है, अरे, क्या हुआ तुम दोनों बाहर क्यों खड़े हो? और आदि इतनी जोर से क्यों रो रहा है?​

​​आदि लगातार अपनी बहन को घूरता है। तब माँ समझ जाती है कि ज़रूर आदि और सुरु में झगड़ा हुआ है। वह आदि को अपनी तरफ खींचते हुए, सुरु से कहती है, कब बड़ी होगी तुम सुरु! पता है न, यह तुमसे कितना छोटा है! क्या हुआ? मारा है क्या तुमने इसे? माँ के ऐसा कहने पर, सुरु नहीं में सिर हिलाती है, जबकि आदि हाँ में सिर हिलाते हुए कहता है, पता नहीं इन्हें क्या हो गया है मम्मी, जब देखो चिढ़ी हुई रहती है। ऐसा कहते हुए वह अपने गाल पर हाथ रखता है और फिर से जोर से रोने लगता है। उसका इतनी जोर से रोना सुनकर, माँ उसे डांट देती है और कहती है, हाँ, जैसे तू बहुत शरीफ है। अब तेरी आवाज़ आई तो हड्डियाँ तोड़ दूँगी मैं तेरी। पापा अंदर आराम कर रहे हैं। चलो तुम दोनों अंदर, तुमसे मैं बात करती हूं।​  

​​माँ ऐसा कहकर दोनों को अंदर ले जाती है। कि तभी अचानक ही माँ को याद आता है कि सुरु तो अपनी सहेली के यहाँ प्रोजेक्ट बनाने के लिए गई थी! और उसे मानव के साथ ही आना चाहिए था। तब वह उसे पीछे से आवाज़ लगाकर रोकती है।​

​​सुरु (घबराते हुए): हाँ मम्मी!​

​​बेटा, तुम तो दिया के घर गई थीं न किसी प्रोजेक्ट को करने? हो गया वो? सुरु के चेहरे का रंग उड़ जाता है। वह अपनी माँ से नज़रें नहीं मिला पाती और इधर-उधर देखते हुए कहती है,​

​​सुरु(घबराते हुए): हाँ...हाँ मम्मी...बहुत अच्छा प्रोजेक्ट बना लिया है हमने!​

​​माँ उसका बैग देखते हुए उससे कहती है, अच्छा, दिखा मुझे क्या बनाया है तुम लोगों ने बेकार की चीज़ों से! माँ के बैग मांगने पर, सुरु के होश उड़ जाते हैं और वह बिना पलकें झपकाए अपनी माँ को देखती है। तब माँ उसके कंधे से बैग लेते हुए उससे कहती हैं, अरे, दिखा न क्या बनाया है तुम लोगों ने!​

​​सुरु के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है। उसे इस समय कुछ नहीं सूझ रहा है कि उसे क्या कहना चाहिए! तभी उसकी माँ उस बैग को लेकर जैसे ही बैग खोलती है, वह उसमें एक पाँच सौ का मुड़ा हुआ नोट देखती है और उसे निकाल कर सुरु को दिखाते हुए पूछती है, यह! यह क्या है सुरु? पाँच सौ रुपये...तेरे पास कहाँ से आए? इस समय जैसे सुरु को कोई साँप सूंघ गया हो। वह अपनी आँखें फाड़ कर अपनी माँ की तरफ देखती है, तभी आदि वहाँ आता है और बहुत जोर से चिल्लाते हुए कहता है, दीदी के बैग में पाँच सौ रुपये?​

​​यहाँ, अपनी दुकान में बुरी तरह से टेंशन में बैठा हुआ मानव, समझ ही नहीं पा रहा है कि जीत ने उसके साथ इतना बड़ा धोखा आखिर क्यों किया! वह बैठे-बैठे बड़बड़ाते हुए खुद से कहता है,​

​​मानव(खुद से निराश होते हुए): जीत! तू तो मेरे बचपन का दोस्त है यार! तू हम लोगों की क्लास जानता है। तुझे मैंने हमेशा मना किया कि इस दिखावे की जिंदगी में कुछ नहीं रखा है! मगर आज यही जिंदगी तेरे साथ मुझे भी ले डूबेगी! तुझे यह सब करना था तो खुद के दम पर करता न यार! मेरे पास जिंदगी ने कम मुसीबतें थोड़ी न दी हैं कि मैं तेरी इस हरकत का बोझ भी ले लूं! एक्स्ट्रा पैसा मिले, इसलिए इस दुकान के साथ दो पार्ट-टाइम जॉब कर रहा था ताकि राजू भाई का पैसा समय पर चुका सकूं। एक पार्ट-टाइम तो दूसरी की तलाश में लग गया। जागरण का काम आज है कल नहीं! उसके भरोसे मैं यह पैसा नहीं चुका पाऊँगा। ऊपर से तूने मुझे बेवजह फंसा दिया। अब एक हफ्ते में तेरा क़र्ज़ कैसे चुकाऊँगा यार! मैं यह सब कैसे करूँ? क्या करूँ? मुझे समझ नहीं आ रहा है। काश भगवान मुझे इस बार इस मुसीबत से निकाल लें ताकि मैं बस किसी तरह इस कर्ज़ से मुक्त हो पाऊं।​

​​तभी, मानव के फोन पर एक मैसेज आता है। जिसे देखकर उसके चेहरे पर सुकून के भाव आते हैं। वह अपनी दुकान में बने मंदिर की तरफ देखता है और ईश्वर का धन्यवाद करता है।​ ​मानव को उसके फोन पर एक नई जॉब के इंटरव्यू का मैसेज आया है, जिसके लिए वह कब से इंतजार कर रहा था। इसलिए वह झट से अपने घर की ओर जाता है।​

​​यहाँ, देविका के घरवाले खुशबू आंटी को फोन लगाकर दोनों परिवारों के मिलने की बात कहते हैं। खुशबू आंटी यह सुनकर बहुत खुश हो जाती हैं और भागी-भागी मानव के घर जाती हैं। उसके घर पर सिर्फ मीनू है। मीनू उन्हें देखकर दरवाज़ा नहीं खोलती और अंदर से पूछती है कि क्या काम है? खुशबू आंटी मीनू का स्वभाव जानती हैं, इसलिए उन्हें कुछ बुरा नहीं लगता। वह बस उसकी मम्मी के बारे में पूछती हैं, जिस पर वह उन्हें मना करते हुए अंदर जाने लगती हैं। तब वह उससे कहती हैं कि जैसे ही उसकी मम्मी आएं, तो तुरंत उसके घर भेज दें, कुछ बहुत ज़रूरी बात करनी है।​

​​मीनू जानती है वह देविका के घरवालों के लिए कुछ बात करने आईं हैं, जिसके लिए वह ज़रा भी खुश नहीं है। तब वह उनकी बात पर हाँ में सिर हिलाते हुए उनके मुँह पर दरवाज़ा बंद कर देती है।  रास्ते में उन्हें मानव की माँ कविता जाती हुई मिलती हैं। कविता उन्हें देखते ही अपने चेहरे पर एक मुस्कान लेकर आती हैं और उनसे कहती हैं कि वह उनके घर के पास क्या कर रही थीं।​

​​खुशबू आंटी उनसे कहती हैं कि वह बहुत खुश हैं और उन्हें यह बताने आई थीं कि देविका के घरवालों ने हाँ तो कर दी है, मगर अब वह उनसे मिलने के लिए आना चाहते हैं। वह बहुत खुश होकर यह बात बताते हुए कहती हैं कि उन्होंने उन्हें रविवार को आने के लिए कह दिया है। यह सुनकर कविता का माथा चढ़ जाता है और वह उनसे कहती हैं, यह तो बहुत अच्छी बात है बहन जी, मगर मुझे लगता है शायद मानव को किसी काम से बाहर जाना है। तो मैं चाहती थी वह थोड़ा और रुककर आएं।​

​​खुशबू आंटी यह सुनने के लिए तैयार नहीं थीं। वह उनसे कहती हैं कि रविवार में अभी दो दिन बाकी हैं। इस पर मानव की माँ कहती हैं कि उन्हें लगता है उन्हें अगले रविवार को मिलना चाहिए। इस पर कुछ सोचकर, खुशबू आंटी उनसे कहती हैं, कोई बात नहीं, वह संभाल लेंगी। इतना कहकर वह जैसे ही पलट कर जाने लगती हैं कि उनकी चीख निकल जाती है।​

​​ऐसा क्या हुआ खुशबू आंटी के साथ कि उनकी चीख निकल जाती है? क्या कोई अनहोनी घटना के चलते खुशबू आंटी इस कहानी से बाहर हो जाएँगी या वह किसी प्रकार के गली-मोहल्ले के झगड़ों का शिकार हो जाएंगी? क्या खुशबू आंटी की अपनी कोई ऐसी कहानी है जिसके बारे में किसी को नहीं पता था और वह उजागर होने वाली थी, या वह कुछ ऐसा देख लेती हैं जिसकी वह कल्पना भी नहीं कर सकती थीं! क्या था ऐसे में मानव की माँ का रिएक्शन?

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

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