स्क्रीन पर होने वाला डिसीजन सबकी धड़कनें बढ़ाता है। वहीं, सुरु और दिया भी आँखें बंद करके मन ही मन में भगवान का नाम लेती हैं। तभी एक ज़ोरदार आवाज़ होती है और तालियों के साथ सामने स्क्रीन पर दिख रहे प्लेयर को "नॉट आउट" घोषित कर दिया जाता है। यहाँ, दिया और सुरु जैसे ही यह डिसीजन सुनती हैं, अपनी आँखें खोलती हैं और एक-दूसरे को देखती हैं। दोनों बहुत शॉक्ड हैं, मगर दोनों के शॉक होने की वजह अलग-अलग है। कुछ ही सेकंड में दिया के चेहरे पर खुशी की लहर दिखती है, वहीं, सुरु के होश उड़ जाते हैं। दिया इस डिसीजन के कारण इस पारी को जीत जाती है, वहीं, सुरु इसके वजह से हार जाती है। दिया बेसुध होकर नाचने लगती है, जबकि सुरु की आँखों में एक दहशत दस्तक देती है। वह अपनी जगह पर बैठे-बैठे कांपने लगती है, वह इतने डर में है कि बड़बड़ाने लगती है और खुद से कहती है,
सुरु (बड़बड़ाते हुए खुद से): यह क्या हो गया यार! नहीं, नहीं, नहीं, नहीं...अब?? अब क्या करेगी तू, सुरु?? सब खत्म हो गया है! यह तेरा बेस्ट था... तू इतनी बड़ी गलती कैसे कर सकती है यार! नहीं, मगर इसमें मेरी गलती... नहीं, नहीं... गलती नहीं, किस्मत!
ऐसे सोचते हुए, सुरु की आँखों से आंसू बहने लगते हैं और वह खुद को कोसते हुए कहती है,
सुरु (खुद को कोसते हुए): हाँ! इसमें मेरी गलती नहीं है, यह सब किस्मत का खेल है और मेरी किस्मत तो सब जानते हैं। इस इतनी बड़ी दुनिया में, अमीरों के बीच मेरे नसीब में ही गरीबी लिखी थी, जिस वजह से आज मैं यहाँ आ फंस गई हूँ! अब क्या करूँ यार, कैसे निकलूँगी मैं इस मुसीबत से? 3 लाख रुपए! 3 लाख रुपए हार गई हूँ मैं! कैसे चुकाऊँगी मैं यह कीमत?
यहाँ, सुरु इतनी बड़ी मुसीबत में फंसी हुई है, वहीं दिया खुशी के कारण पागल होकर नाच रही है। जिसे देखकर, सुरु का खून खौलने लगता है और सोचती है,
सुरु (जैसे किसी की खुशी से जल रही हो): हाँ, हाँ, ले ले तू मजे दिया! तुझे तो बहुत एक्सपीरियंस है न इन सब चीज़ों का! तुझे पता था मैं इतनी बड़ी रकम सट्टे में लगाने जा रही हूँ, रोक नहीं सकती थी मुझे!
वह ऐसा सोच ही रही होती है कि तभी दिया उसके पास आकर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए उससे पूछती है, ओए, क्या हुआ तुझे? तेरी बैंड क्यों बजी हुई है? दिया के इस मजाक पर, उसका मन करता है कि वह उसका मुँह तोड़ दे! वह जैसे-तैसे खुद को संभालती है और अपने आगे-पीछे देखते हुए, दिया से कहती है,
सुरु (खीजते हुए): दिया, मुझे देर हो रही है! अब अगर मैं यहाँ रुकी, तो मम्मी मुझे जान से मार देंगी!
दिया इस पर जैसे ही उससे कुछ कहने लगती है, कि सुरु अपनी जगह से खड़े होकर भीड़ के बीच निकल जाती है। दिया उसे जाते हुए देखती है और मुँह बनाते हुए अपनी टेबल पर बैठने लगती है, कि उसका एक दोस्त उसका हाथ पकड़ कर उसे फ्लोर पर ले जाता है और दिया एक बार फिर से अपने जीतने की खुशी में नाचने लगती है। दूसरी तरफ, मानव के जाते ही, शास्त्री जी मधु से कहते हैं, मधु, यह बच्चा बहुत कुछ कर चुका है हमारे लिए! अब हमारी बारी है कि यह मेरी वजह से जितनी भी मुसीबतों में फंसा है, इसे उससे बाहर निकाला जाए। मधु इस बात पर हाँ करते हुए, शास्त्री जी से पूछती हैं, आप बिल्कुल सही कह रहे हैं जी! मगर हम अभी आखिर कर ही क्या सकते हैं! आप तो जानते ही हैं, अभी हमारे हालात किस तरह के हैं।
शास्त्री जी, मधु की बात को समझते हुए, उनसे उनके पास आकर बैठने को कहते हैं। मधु के पास आते ही वह उन्हें मानव के बारे में बताते हुए कहते हैं, उसने जो भी पैसा हम पर खर्च किया है, उसे चुकाने के लिए बस एक ही रास्ता है कि वह जल्दी से स्वस्थ होकर दोबारा से गाना गाना शुरू करें, ताकि वह धीरे-धीरे ही सही, मानव के एहसानों को उतार सके। उनके ऐसा कहते ही, मधु का मुँह बन जाता है और वह थोड़ा घबराती हैं, मगर शास्त्री जी से कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाती। तब शास्त्री जी उन्हें अपने मन की बात कहने के लिए कहते हैं, जिस पर बहुत ही शांत स्वभाव से वह कहती हैं, शास्त्री जी! मैं आपकी बात काट नहीं रही, बल्कि मैं थोड़ा डरी हुई हूँ! जिस हिसाब से डॉक्टर ने आपकी कंडीशन बताई थी, वह कोई बहुत अच्छी नहीं थी। इसलिए ही तो उन्होंने आपको ज़्यादा से ज़्यादा आराम करने की सलाह दी है। बल्कि उन्होंने तो कहा है कि आप जितना ज़्यादा आराम करेंगे, आप उतनी जल्दी ठीक होंगे!
शास्त्री जी इस बात को ध्यान से सुनते हैं और कहते हैं, हाँ, यह बात मैं जानता हूँ, मधु! मगर मेरे पास अभी आराम करने का समय नहीं है। मैं बहुत ध्यान रखकर रियाज़ करूँगा। मुझे जल्द से जल्द जागरण में दोबारा लौटना ही होगा! शास्त्री जी की इस बात का मधु के पास कोई जवाब नहीं होता! इसलिए वह हाँ में सिर हिलाकर जैसे ही वहाँ से जाने लगती हैं, कि तभी वह मधु से पूछते हैं, मधु! यह सुरु कब तक आने वाली है? यह सुनते ही, मधु का माथा चढ़ जाता है और वह उनसे पूछती हैं, आपको कैसे पता है कि सुरु कहीं गई है? इस पर शास्त्री जी, मधु से कहते हैं, वह शारीरिक रूप से थोड़ा कमजोर हुए हैं, दिमाग अभी भी उनका पहले जैसा ही है। वह उनसे कहते हैं, मधु, जब तुम सुरु को अकेले जाने से मना कर रही थी, तब मुझे तुम्हारे चेहरे के हाव-भाव से पता चल गया था कि आखिर माँ-बेटी में चल क्या रहा है और तुमने बहुत सावधानी से मानव के साथ सुरु को भेज दिया।
यह सुनकर, मधु सर झुकाए हाँ में सिर हिलाती हैं, जिसे देखकर शास्त्री जी उनसे कहते हैं, मधु तुमने बहुत अच्छा काम किया, मगर अब उन्हें लगता है कि सुरु को बुलवा लेना चाहिए! यहाँ, सुरु के घर से निकल कर, मानव के चेहरे पर संतुष्टि के भाव आते हैं। वह अपने दिमाग में कुछ कैलकुलेशन करता हुआ गलियों से निकलता है, कि तभी कुछ लोग उसका नाम पूछते हैं, क्या आप वही मानव हैं, जो पुरानी गली में टेंट की दुकान चलाते हैं?
मानव इस समय बहुत खुश है, उसे लगता है भगवान उसका साथ दे रहे हैं और इसलिए एक के बाद एक उसे अच्छी खबर सुनने को मिल रही है। उसे यहाँ भी लगता है कि उसके सामने खड़े वह लोग उससे जागरण के लिए बात करना चाहते हैं, इसलिए वह उनसे कहता है,
मानव: जी जी, मैं ही वह मानव हूँ! बताइए क्या काम था? या आप चाहे तो मेरी दुकान यहाँ पास में ही है, हम वहाँ जाकर बात कर सकते हैं।
मानव के ऐसा कहने पर, वह लोग यहाँ-वहाँ देखते हैं और उसे घेरकर मारना शुरू कर देते हैं। मानव खुद को बचाने की बहुत कोशिश करता है, मगर वह लोग नहीं रुकते। गली में मौजूद लोग इस तमाशे को देखते हैं। कुछ लोग वीडियो बनाने लगते हैं, तो कुछ लोग उनके बीच आने की कोशिश करते हैं। मानव उनसे पूछता है कि आखिर वह कौन हैं और उससे क्या चाहते हैं! मगर वह लोग उसे बस इतना ही कहते हैं कि वह जो कोई भी हैं, अपना पैसा और जो सामान उसने उनसे लिया है, वह उससे निकलवाकर रहेंगे! वह मानव के गले में देखते हैं, मगर उन्हें कोई चेन नहीं, न ही हाथों में कोई अंगूठी या कोई कमाल की घड़ी। तो तब उसकी जेब से पर्स निकालते हैं और उसमें रखे थोड़े से पैसों को निकालकर अपने पास रखते हुए कहते हैं, जब औकात नहीं होती तो दिखावे वाली जिंदगी नहीं जीनी चाहिए। तेरे पास सिर्फ एक हफ्ता है, हमारा माल और पैसा वापस नहीं किया, तो न तू रहेगा, न तेरी वह दुकान... समझ आया!
मानव आखिरी दम तक उनसे लड़ने की कोशिश करता है, मगर वह इतने सारे होते हैं कि वह उनसे जीत नहीं पाता और एक अनसुलझी पहेली के साथ वहाँ से अपनी दुकान की तरफ जाता है। चेहरे पर लगी चोटें, जगह-जगह से फटे उसके कपड़े, और हाथ-पैरों पर खून के निशान, वहाँ गली में मौजूद हर कोई यह सब देखता है और मानव को देखते हुए बात करता है, जब हैसियत नहीं होती तो लोग उधारी की जिंदगी जीते क्यों हैं भाई! (थोड़ा आवाज बदल कर) हाँ तो जब ऐसी जिंदगी जियोगे तो अंजाम भी तो ऐसा ही होगा न! मानव यह सब बातें सुनता हुआ धीरे-धीरे वहाँ से निकलता है। उसके दिल और दिमाग में बस एक ही बात चल रही है कि आखिर यह लोग थे कौन और वह कौन से पैसों और सामान की बात कर रहे थे? इस उधेड़बुन में चलता हुआ, मानव जैसे ही अपनी दुकान के पास पहुँचता है, आसपास के सभी लोग उसको देखते हुए उसकी दुकान के बाहर जमा होने लगते हैं। तभी वहीं पीछे से दुकान की तरफ आता हुआ जीत, जैसे ही इस भीड़ को देखता है, उसकी स्पीड बढ़ जाती है और वह झट से उस भीड़ को चीरता हुआ अंदर की तरफ आता है। वह मानव का यह हाल देखकर दंग रह जाता है। वह मानव से कुछ पूछे, इससे पहले वह वहाँ खड़ी सारी भीड़ को वहाँ से जाने के लिए कहता है।
जीत के कहने पर जैसे ही वहाँ से भीड़ जाती है, जीत झट से दुकान में रखा फर्स्ट एड बॉक्स निकाल कर उसकी चोट को साफ़ करके उस पर मरहम लगाते हुए उससे पूछता है कि उसका यह हाल कैसे हुआ! तब मानव उसे सबकुछ बताता है। मानव जैसे ही कहता है कि वह लोग उसके गले में चेन, हाथों में अंगूठी और घड़ी देख रहे थे, साथ में वह पैसों और कुछ माल की बात कर रहे थे, कि तभी मानव की नजर जीत के गले में पड़ी सोने की चेन पर जाती है। तब वह उसके हाथों में अंगूठी और महंगी घड़ी को देखकर पूछता है,
मानव (हैरान होकर): जीत! यह सब तूने कब लिया यार?
मानव जो जीत की बातें सुनकर हैरान था, वह अब उससे मुँह छुपाने की कोशिश करता है। तब मानव उससे दोबारा ऐसा पूछता है। जीत बहुत भावुक हो जाता है और उसकी आँखों से आंसू बहने लगते हैं। तब वह मानव से कहता है,
जीत: यार दोस्त! मुझे माफ कर दे यार! मुझसे बहुत बड़ी गलती हुई है!
मानव को यह तो समझ आ जाता है कि वह लोग जीत के कारण उसके साथ ऐसा कर के गए हैं, मगर वह मानव को क्यों ढूँढ रहे थे और तो और वह उसकी दुकान के बारे में क्यों कह रहे थे! तब जीत मानव को जो बताता है, उससे मानव के पैरों तले ज़मीन निकल जाती है। जीत मानव से कहता है,
जीत (थोड़ा गिल्टी): यार, सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था, तुझे तो पता है हमारे पास कितनी डील्स थीं। मेरे घर वालों ने मेरे लिए एक लड़की को पसंद किया था। बस, जब भी उससे मिलने जाता था, तो थोड़ा बुरा लगता था, इसलिए मुझे किसी ने एहसान भाई के बारे में बताया, तो उनके पास मदद के लिए गया था। वह मुझे पैसा और यह चीज़ें देने को तैयार हो गए और बदले में जब उन्होंने मुझे मेरी आइडेंटिटी मांगी, तो मेरी पास तेरा आधार कार्ड रखा था।
यह सुनते ही, मानव मुँह बनाते हुए उससे कहता है,
मानव (चौंकते हुए): मगर वह तो खराब हो गया था न! तूने कहा खराब था, इसलिए उसे डिस्पोज़ कर दिया है और दूसरा बनने के लिए दिया है।
इस पर जीत हाँ में सिर हिलाते हुए कहता है,
जीत (गिल्टी): हाँ यार, मैंने सही कहा था, मैंने तेरे लिए नए आधार कार्ड की बात कर ली थी, मगर पुराना हटाना भूल गया था। इसलिए मैंने उन्हें तेरा आधार कार्ड दे दिया!
यह सुनते हुए, मानव का माथा चढ़ जाता है। वह तब उससे पूछता है कि उसने अपना सही नाम क्यों नहीं बताया? तब जीत उसे बताता है कि उसने ऐसा जानबूझ कर नहीं किया, बल्कि बाय चांस हुआ। मानव को जीत की बात पर भरोसा नहीं होता, मगर फिर भी वह खुद को कंट्रोल करते हुए कहता है,
मानव (थोड़ा गुस्से में): तो उस लड़की के साथ घूमने-फिरने के लिए, तूने किसी से पैसा लिया?
जीत (सफाई देते हुए): यार, किसी लड़की के लिए नहीं, बल्कि जिससे मेरी शादी होने वाली है, उस लड़की के लिए!
यह सुनकर, मानव को गुस्सा आता है और वह जीत से कहता है,
मानव (गुस्से में): तो मुझे यकीन है, जो पैसा तुमने मेरे नाम पर लिया है, उसके लिए तुमने यह भी सोचा होगा कि तुम वह पैसा कैसे चुकाने वाले हो?
यह सुनते ही, जीत शांत हो जाता है और फिर बहुत धीमी आवाज़ में मानव से कहता है कि जब उसने वह पैसा लिया था, तब उसके पास बहुत काम था, मगर जैसे ही शास्त्री जी के साथ हादसा हुआ, सब कुछ बदल गया। कितनी सारी डील्स कैंसल करनी पड़ी। उसका पूरा प्लान खराब हो गया। उसने सोचा भी नहीं था कि ऐसा कुछ होगा, वरना वह कभी ऐसा कुछ नहीं करता।
मानव उसकी बात पूरी होने का इंतजार करता है, मगर जीत अपनी बात कहकर शांत हो जाता है। तब मानव से रहा नहीं जाता और वह जीत से कहता है,
मानव (गुस्से से फटते हुए): जीत, यह बात इतनी छोटी नहीं है जितनी तुम्हें लग रही है। तुमने जो कहा, मैं वह सब मानने को तैयार हूँ, मगर मुझे बस इतना जानना है कि उन्होंने इन सबमें मेरी दुकान का नाम क्यों लिया?
यह सुनते ही, जीत के पसीने छूटने लगते हैं। जैसे उसने कुछ ऐसा सुन लिया हो, जिसे सुनने के लिए वह बिल्कुल भी तैयार नहीं था। उसका चेहरा देखकर, मानव डर जाता है। आखिर क्या है यह माजरा? क्या जीत ने इसमें कोई गड़बड़ की है या कोई और भी इस खेल में इनवॉल्व है? या फिर जीत के लिए यह खुद एक झटके वाली बात थी! क्या देगा जीत मानव के इस सवाल का जवाब?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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