हॉल में जैसे ही सायरन बजता है, वहां बैठा हर कोई बुरी तरह से डर जाता है। वहीं, इस आवाज़ से सुरु के होश उड़ जाते हैं। वह कांपते हुए मन ही मन सोचती है,
सुरु (कांपते हुए मन से): ओह शिट! यह क्या है... कहीं पुलिस तो नहीं आ गई? हे भगवान, अब मैं क्या करूंगी? मेरे घर वाले मुझे जान से मार देंगे। उनकी चारों तरफ बदनामी हो जाएगी। नहीं यार! मेरे पापा ने बहुत मेहनत से इज्जत कमाई है, मैं उनका नाम ऐसे नहीं खराब कर सकती! क्या करूँ, भाग जाऊं यहाँ से?
ऐसा सोचते हुए, सुरु अपने चारों तरफ नज़र दौड़ाती है और देखती है कि वहाँ पूरे हॉल में हलचल हो रही है। ऐसा लगता है जैसे हर कोई इस समय यहाँ से निकलना चाहता है, मगर यहाँ से जाने का एक ही रास्ता है, जिससे इतने लोगों का इतने कम टाइम में निकलना बहुत मुश्किल लगता है। वह दिया को बहुत धीरे से छूते हुए, लगभग फुसफुसाते हुए उससे कुछ कहती है। दिया चेहरा बनाते हुए उसे देखती है और सुरु से थोड़ा तेज़ बोलने के लिए कहती है। सुरु इतनी घबराई हुई है कि उसके मुँह से न तो शब्द निकल रहे हैं, न ही आवाज़। जिसे देखकर, दिया उससे जैसे ही कुछ कहने लगती है, कि तभी एक बार फिर से माइक पर उसी शख्स की आवाज़ आती है, जो थोड़ी देर पहले वहाँ हर किसी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रहा था।
वह शख्स सबसे कहता है, देखिए, अभी यह जो सब आपने महसूस किया, यह इस गेम का हिस्सा है। आप सभी जानते हैं यहाँ आज इस सट्टेबाज़ी के बाज़ार में रिस्क बहुत हाई है, ऐसे में कोई भी अनहोनी घटना हो सकती है। बस हम आपको इसके लिए ही तैयार कर रहे थे। उसके ऐसा कहने पर, हर किसी के चेहरे पर सवाल नज़र आने लगते हैं। तब वह शख्स सिचुएशन को हल्का करते हुए कहता है, मेरा मतलब है, यह सायरन जो आपने अभी सुना, यह बस एक इशारा था, आप सबको अलर्ट करने के लिए। अगर हमें किसी भी तरह की कोई संदिग्ध गतिविधि महसूस होगी, तो हम आपके लिए इसी तरह का सायरन देंगे, ताकि आप समय रहते अपने लिए जाने का रास्ता तलाश लें।
उसके ऐसा कहते ही सबकी जान में जान आती है। तब वह शख्स अपनी बात पूरी करता है और पीछे स्क्रीन पर क्रिकेट की शुरुआत होती है। क्रिकेट शुरू होते ही, कुछ और लोग का भी आना शुरू होता है। यहाँ मानव के दिमाग में होने वाले जागरण को लेकर लगातार गणित चल रही है। साथ ही यह भी कि वह शास्त्री जी की जगह आखिर किसे गाने के लिए कहेगा। ऐसा सोचता हुआ, मानव शास्त्री जी के घर जाता है। मानव को देखते ही, सुरु की माँ मधु उससे पूछती है, बेटा, सुरु को ठीक से छोड़ दिया था न तुमने!
मानव: हाँ आंटी जी! मैं उसे उसके घर तक छोड़कर आया हूँ।
मानव जब ऐसा कह रहा होता है, तब उसकी आवाज़ अंदर कमरे तक जाती है और शास्त्री जी उसे सुनते ही आदि से पूछते हैं, मानव आया है क्या, आदि? आदि अपने पापा से कहता है, हाँ पापा! उनको अंदर बुलाना है क्या? आदि ऐसा कहता है कि मधु, मानव को अपने साथ घर के अंदर लेकर आती है। मानव को देखते ही, शास्त्री जी ठीक से बैठने की कोशिश करते हैं। मानव तेजी से उनकी तरफ आता है और उन्हें संभालता है। मानव के ऐसा करने पर, मधु बहुत भावुक हो जाती है और उससे कहती है, मानव, अगर तुम नहीं होते तो न जाने इन्हें उस जानलेवा हादसे से कौन बचाता! उनकी बात सुनकर, मानव उनसे कहता है,
मानव (जैसे किसी बड़े को एहसान जताने से रोक रहे हो सहजता से): अरे कैसी बातें कर रही हैं आप? मैंने आपको पहले भी कहा है, अंकल मेरे पापा की तरह हैं। अगर उनके साथ ऐसा कुछ होता, तो उन्हें ऐसे ही तो नहीं छोड़ सकता था न मैं।
इस पर शास्त्री जी बहुत प्यार से उसका हाथ पकड़ कर उससे कहते हैं, मेरे आदि और तुममें कभी कोई फर्क नहीं लगा मुझे, बेटा! बस अफसोस एक बात का है कि तुम सबकुछ जो मेरे लिए कर रहे हो, उससे तुम्हारे खुद के परिवार पर भी कितना असर पड़ रहा होगा। उनकी बात पर, मानव जैसे ही कुछ कहने लगता है कि तभी वह उसे रोकते हुए कहते हैं, मैं जानता हूँ कि तुम अब कहोगे कि तुमने सब कुछ अपने मन से किया! इसे सुनते ही, मानव के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।
तब शास्त्री जी अपनी बात पूरी करते हुए उसे कहते हैं, मगर बेटा, हम जानते हैं तुम्हारी एक बड़ी बहन है, जिसकी ज़िम्मेदारी पूरी तरह से तुम्हारे सिर पर है। जहाँ तक मुझे याद है, उसके शादी के लिए भी बात चल रही है। मानव हाँ में सिर हिलाता है। तब वह एक बार फिर से कहते हैं, जहाँ तक मैं समझ पा रहा हूँ, तुमने अभी तक की अपनी सारी पूंजी मेरे इलाज में लगा दी है और इसके अलावा तुमने कहीं और से पैसों का इंतजाम किया है, जिसे तुम्हें वापस करना होगा। यह एहसान हम कभी नहीं भूलेंगे, मानव! तब मानव उनका हाथ अपने हाथ में लेकर बहुत प्यार से दबाते हुए कहता है,
मानव (सहजता से इज्जत देते हुए): मैं आपकी भावनाओं को समझ रहा हूँ, अंकल! मगर आप सब बार-बार ऐसा कहकर मुझे शर्मिंदा मत कीजिए, प्लीज़!
ऐसा कहकर, मानव शांत हो जाता है। तभी वह उस बात को करता है जिसके लिए वह उनके पास आया था। वह उन्हें बताता है कि बहुत समय से उनके पास कोई अच्छी डील नहीं आई थी, मगर एक क्लाइंट ने उसके साथ डील की है, जिसमें वह जागरण और फैमिली फंक्शन दोनों साथ करवाना चाहते हैं। यह सुनकर, शास्त्री जी बहुत खुश होते हैं और वह तब मानव से कहते हैं, यह तो बहुत अच्छी बात है, बेटा! तो इसमें प्रॉब्लम क्या है?
इस पर वह उन्हें बताता है कि उसने उन लोगों के साथ डील तो कर ली है, मगर अब वह इस दुविधा में है कि वह भजन किससे करवाएगा! क्योंकि उन्होंने उसके साथ पूरा पैकेज लिया है, जिसमें टेंट के साथ बाकी की सारी चीज़ें भी शामिल हैं। वह उन्हें बताता है कि वह लोग कहीं से उसके बारे में सुनकर आए थे। यह सुनते ही, शास्त्री जी का चेहरा बन जाता है और वह सोच में डूब जाते हैं। फिर उनसे पूछते हैं, अब वह क्या करेगा? उनके ऐसा कहते ही, मानव उनसे कहता है कि उनके इस प्रोग्राम में थोड़ा टाइम है, तब तक उसे कुछ न कुछ सोचना ही होगा और इसी वजह से तो वह उनके पास आया है।
फंक्शन में टाइम है, ऐसा सुनते ही, शास्त्री जी झट से उससे कहते हैं, तब तो कोई प्रॉब्लम नहीं है! इस पर, मानव को लगता है कि शास्त्री जी के पास शायद कोई ऑप्शन है, इसलिए वह ऐसा कह रहे हैं। तब वह उनसे पूछता है,
मानव: मैं जानता था अंकल, मैं यहाँ आपके पास आऊँगा तो कोई न कोई रास्ता आप निकाल ही लेंगे।
उसके ऐसा कहने पर, शास्त्री जी मुस्कुरा कर उससे कहते हैं, यह हिम्मत मुझे तुमसे ही मिली है, बेटा! अब बिल्कुल चिंता मत करो, सब कुछ जल्दी ही ठीक हो जाएगा। उनके ऐसा कहने पर, मानव निश्चिंत हो जाता है और वहाँ से निकल जाता है। यहाँ, मीनू जैसे ही अपने घर पहुँचती है, उसकी माँ भी उसके पीछे आती है। वह उन्हें देखकर जैसे उन पर एक बार फिर से गुस्सा करते हुए कहती है, मम्मी, मैंने सब सुन लिया है!
यह सुनते ही, माँ का पारा चढ़ जाता है। वह जानती है, अब उनके लिए मीनू से कुछ भी कहना बेकार होगा और तो और, उसको स्ट्रेस न हो, इसलिए वह उस पर गुस्सा भी नहीं करती और चुपचाप उसे देखती है। तब मीनू अपनी बात पूरी करते हुए उनसे कहती है, आपको जरा भी अंदाज़ा है कि आप क्या कर रही हैं? मतलब, न लड़के को पता है कि उसकी शादी की बात चल रही है और न ही लड़की के घरवाले बिना लड़का-लड़की को मिलवाए यह रिश्ता करना चाहते हैं। मगर मुझे तो लगता है बस सिर्फ आप ही हैं जिन्हें इस शादी की इतनी जल्दी है कि इस चक्कर में आप यह भी नहीं समझ पा रही हैं कि जब मानव को आपकी इस बात का पता चलेगा तो क्या होगा!
कविता इस बात पर मीनू को कोई जवाब नहीं देती। तब मीनू मन ही मन सोचती है, क्या मुझे मम्मी को सुरु के बारे में बता देना चाहिए! भाई उसे पसंद करता है, दोनों बचपन से साथ में हैं, एक-दूसरे को समझते हैं। पता नहीं यार, मम्मी को उस लड़की से क्या प्रॉब्लम है! क्या करू, बता दूं या रहने दूं! उसके मन में यह उधेड़बुन चल रही है कि तभी कविता अचानक ही उससे कहती है, बेटा, तुम जो कहना चाह रही हो, उसे बहुत अच्छे से समझती हूँ मैं, मगर शायद तुम मेरी मजबूरी नहीं समझ रही हो।
जिसपर मीनू तुरंत जवाब देते हुए कहती है, यह ज़बरदस्ती का रिश्ता है मम्मी! पता है ना ऐसे रिश्तों का क्या अंजाम होता है! चलो मान लेते हैं जैसा आप चाहती हैं, सब कुछ बिल्कुल वैसा होता है और मानव आज के बाद ऐसी कोई गलती नहीं करता जो आपको नहीं पसंद, मगर तब क्या, अगर उसे देविका पसंद नहीं आई? या इनका रिश्ता नहीं चल पाया? तो? तब क्या करेंगी आप? सोचा है आपने? यह बातें कविता को बहुत कड़वी लगती हैं, मगर वह इन बातों का घूंट पीकर बिना गुस्सा किए, उसे कहती है, तुम माँ नहीं हो बेटा! जब औलाद बिगड़ने लगती है न, तो माँ-बाप का जीना मुश्किल हो जाता है! तू भूल सकती है कि उसने तेरे साथ क्या किया और शायद तू अच्छी बहन भी है कि उसके किए के लिए उसे माफ कर दिया! मगर मेरे लिए तू और वह दोनों ही बराबर हैं! उसने तेरे बारे में न सोचकर किसी गैर के बारे में सोचा... मैं ऐसे कैसे माफ कर दूं उसे? तेरी शादी के सपने देख रही थी और उसने तो खाली हाथ भिखारी बना छोड़ा है मुझे! मैं नहीं जानती कि अब तेरे रिश्ते की बात कहाँ और कैसे करूँ?
इस पर मीनू उन पर नाराज़ होते हुए कहती है, मगर यह तो सिर्फ अपना स्वार्थ देखना हुआ न मम्मी! जब हमको ज़रूरत थी तब शास्त्री अंकल… मीनू इतना कहती ही है कि कविता उसकी बात काटते हुए, उससे कहती है, बेटा, मैं तुझसे बाद में बात करूंगी, अभी मुझे गीता आंटी के घर जाना है, बहुत ज़रूरी काम है, मैं भूल ही गई थी। इतना कहते ही, कविता वहाँ से निकल जाती है और मीनू दांत पीसते हुए सोचती है, मम्मी, अभी भी समय है, बंद कर दो यार यह सब!
वहाँ दूसरी तरफ, सुरु और दिया दिल थाम कर क्रिकेट देखते हुए बाज़ी लगाते हैं। यहाँ के रूल्स पहले के मुकाबले थोड़े अलग हैं, मगर यहाँ खेलने के लिए भी नॉलेज और किस्मत दोनों का होना ज़रूरी है। सुरु पहले की ही तरह यहाँ खेलती है। अब चूंकि यह एक बहुत लंबा गेम है, तो वह यहाँ बहुत देर तक नहीं रुक सकती, इसलिए वह दिया से कहती है,
सुरु: दिया! तुझे पता है यार, मुझे शाम से पहले जाना होगा!
इस पर दिया उससे कहती है, तू टेंशन मत ले, मैंने यहाँ यह बात पहले ही बता दी! तुझे उसी हिसाब से खेलना है। यह सुनते ही, सुरु को थोड़ी राहत महसूस होती है। जिस तरह से शेयर मार्केट में बोलियाँ लगती हैं, मार्केट ऊपर-नीचे जाता है, यहाँ का माहौल भी वही होता है। सुरु, जो शुरू में बहुत डरी हुई थी, मगर जैसे ही यह खेल आगे बढ़ता है, सुरु की हिम्मत बढ़ती जाती है और वह एक के बाद एक प्लेयर पर रिस्क लेते हुए बेटिंग करती है। अब सुरु का नॉलेज कहें या फिर उसकी किस्मत, कि समय उसका साथ देता है और वह हर बार जीतती जाती है। वहीं, दिया की किस्मत के भी सितारे आज टिमटिमा रहे हैं। ये दोनों ही सहेलियाँ बेहद शानदार ढंग से इस बैटिंग को खेलती हैं और धीरे-धीरे वह वहाँ बैठे हर शख्स की नज़र में आ जाती हैं।
तभी सामने स्क्रीन पर कुछ ऐसा होता है, जिसे देखते ही एक साथ वहाँ बैठे लोगों के मुँह से एक सुर आवाज़ निकलती है। अपनी हर एक जीत पर बात करते हुए, दिया और सुरु आगे बढ़ ही रहे होते हैं कि यह आवाज़ उनका ध्यान खींचती है और वह तब यह दोनों जैसे ही स्क्रीन पर देखती हैं, तो इन दोनों का मुँह खुला का खुला रह जाता है। स्क्रीन पर जिस प्लेयर को दिखाया जा रहा है, वह आउट है या नॉट आउट, इस पर डिसीजन चल रहा होता है। सामने स्क्रीन पर स्कोर बोर्ड पर आने वाला रिजल्ट यहाँ इस हॉल में बैठे बहुत सारे लोगों की जिंदगियों पर असर डालने वाला है। वहाँ स्क्रीन पर डिसीजन लेने के लिए बढ़ता टाइम यहाँ बैठे हर शख्स के दिल की धड़कन को बढ़ाता है। वहीं, सुरु और दिया आँख बंद करके प्रे करते हैं, कि तभी स्क्रीन पर एक लाउड आवाज़ होती है और कुछ ऐसा होता है, जिसे देखते ही इन दोनों सहेलियों के होश उड़ जाते हैं।
सुरु स्कूल जाने की उम्र में जिस रिस्क को ले रही है, क्या यह उसे जिंदगी के वह सारे ऐशो-आराम दे पाएगा, जिसके यह सपने देख रही है? आखिर ऐसा क्या रिजल्ट आता है कि यह दोनों सहेलियाँ हैरान हो जाती हैं? क्या दोनों ने एक तरह की बैटिंग की थी, या यह दोनों अलग-अलग लोगों पर अलग सट्टा लगा रहे थे? आखिर जो भी हुआ, वह किसी के फेवर में हुआ या किसी को ले डूबा? क्या होगा इस खेल का अंजाम, जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
No reviews available for this chapter.