ज़िंदगी में कुछ दिन होते हैं जो आपकी पूरी कहानी बदल सकते हैं और ये बात तब तक समझ नहीं आती जब तक वह दिन आपकी ज़िंदगी में आ ना जाए।
कॉलेज लाइफ का पहला हफ्ता-नए चेहरे, नए सपने और हर तरफ़ एक अनजानी सी इक्साइट्मन्ट . संकेत मल्होत्रा के लिए भी ये दिन बस एक और पड़ाव था, उसे ये नहीं पता था कि ये दिन उसकी ज़िंदगी का सबसे यादगार दिन बनने वाला है।
संकेत मल्होत्रा। उसका कान्फिडन्स भी उसकी हाइट जैसा ही ऊंचा था! हमेशा सबसे पहले अपनी बात कहने वाला और सबका ध्यान खींचने में माहिर। क्लासरूम में घुसते ही उसकी नज़र चारों तरफ़ घूमी। वह हमेशा सबको स्कैन करता था—ये उसकी आदत थी। अलग-अलग लोगों को observe करना और उन पर अपनी एक अनैलिसिस बना लेना, उसे अच्छा लगता था! हालांकि, जब ये अनैलिसिस ग़लत होती थी, तो उसे बहुत गिल्ट भी होता था। . इस-इस बार, उसकी नज़र एक जगह टिक गई। वह चेहरा और उस चहरे का अट्रैक्शन।
वो लड़की।
संकेत ने देखा कि वह सबसे अलग थी। एक कोने की सीट पर बैठी, अपनी नोटबुक में खोई हुई। बाकियों से कोई बात नहीं, कोई हलचल नहीं। उसकी उंगलियाँ बड़ी तेजी से कुछ लिख रही थीं, जैसे हर लफ्ज़ उसके लिए मायने रखता हो।
उसकी आँखें काली थीं, बहुत गहरी। चेहरे पर एक ऐसी सादगी जैसी उसने शायद ही पहले कभी देखी हो। संकेत की नज़र उससे हट ही नहीं रही थी। उसने मन ही मन सोच, "कौन है ये?"
संकेत मल्होत्रा, जो हर मौके पर बात करने का कोई ना कोई बहाना ढूँढ लेता था, आज ख़ामोश था। . उसने मन ही मन ठान लिया कि वह इस लड़की के बारे में ज़रूर पता करेगा।
और तभी क्लास में प्रोफेसर की एंट्री हो गई।
"ओके, स्टूडेंट्स। यह ओरीएन्टेशन क्लास है। मेरा नाम प्रोफेसर मेहता है, और मैं चाहता हूँ कि आप सब एक-दूसरे को जानें। इस क्लास में हमें तीन साल एक साथ बिताने हैं, तो क्यों ना शुरुआत आज ही कर लें।"
संकेत को प्रोफेसर की बातों में कोई इंटेरेस्ट नहीं था। उसकी नजरें बार-बार उस कोने में जा रही थीं।
जैसे-जैसे एक-एक करके स्टूडेंट्स खड़े होकर अपना इन्ट्रोडक्शन दे रहे थे, वैसे-वैसे संकेत के दिल कि धड़कन बढ़ती जा रही थी। उसे इंतज़ार था, तो बस वह एक नाम सुनने का।
और फिर, आखिरकार, वह पल आ गया।
श्रेया :
"हेलो, मैं श्रेया वर्मा। मैंने यहाँ इकोनॉमिक्स में एडमिशन लिया है।"
श्रेया वर्मा। नाम उतना ही कॉमन था जितना उसका इन्ट्रोडक्शन। उसकी आवाज़... उसकी आवाज़ में एक अजीब-सी खनक थी। वह आवाज़ ऐसी थी जो सीधी दिल में उतर जाए।
श्रेया ने अपना इन्ट्रो दिया और फिर बिना किसी झिझक के बैठ गई। बाक़ी सब स्टूडेंट्स की तरह उसने प्रोफेसर के सामने ख़ुद को प्रूव करने की कोशिश नहीं की।
क्लास ख़त्म होते ही, सब स्टूडेंट्स तेजी से बाहर निकलने लगे। संकेत धीरे-धीरे अपनी सीट से उठा। उसकी नज़र अब भी श्रेया पर थी।
वो देख रहा था कि श्रेया ने अपना बैग उठाया और क्लास से बाहर निकलने लगी।
संकेत के मन में एक हलचल थी। उसने चाहा कि वह उससे बात करे, पर फिर रुक गया।
संकेत :
"पहला ही दिन है... अभी जल्दी क्या है?"
शायद उसने ख़ुद को तसल्ली दी, या शायद वह थोड़ा नर्वस था।
संकेत क्लास के बाहर आया। उसने देखा, श्रेया लाइब्रेरी की तरफ़ बढ़ रही थी।
लाइब्रेरी में भी वही नजारा था। श्रेया अपनी किताबों में डूबी हुई थी। संकेत ने दूर से देखा और फिर से उसे समझने की कोशिश करने लगा। . तभी उसने नोटिस किया कि श्रेया अकेली नहीं है... लाइब्रेरी की उस टेबल पर उसके साथ कोई और भी है... कोई लड़का।
अब चाहे इंसान कुछ भी कर ले, ऐसी सिचूऐशन में सबसे पहले मन में वर्स्ट-केस सिनेरीओ ही आता है। संकेत को लगा कि श्रेया का पहले से ही कोई बॉयफ्रेंड है और दोनों ने साथ में और वक़्त बिताने के लिए एक ही कॉलेज में अड्मिशन लिया होगा! संकेत और उसकी लोगों को "स्कैन" और "अब्ज़र्व" करने की आदत! हाह!
संकेत के दिमाग़ ने उसे ये विश्वास दिला दिया कि श्रेया के साथ बैठा लड़का उसका बॉयफ्रेंड ही है। अब तो जैसे संकेत की हालत ऐसी हो गई जैसे किसी बच्चे से उसका फेवरेट खिलौना सिर्फ़ दिखाकर छीन लिया गया हो। . संकेत फिर संकेत के दिमाग़ ने काम करना शुरू किया।
वो लाइब्रेरी के एक शेल्फ के पीछे जाकर छुप गया और उन दोनों की बातें सुनने की कोशिश करने लगा। जिस तरह से दोनों एक दूसरे कि फॅमिलीस के बारे में बात कर रहे थे, उससे तो लगता था कि दोनों की बहुत पुरानी जान पहचान है।
उन दोनों के हाव भाव एकदम नॉर्मल लग रहे थे, पर संकेत के लिए ये मोमेंट नॉर्मल नहीं था। उसकी आँखें और कान पूरी तरह अलर्ट हो गए थे।
श्रेया ने धीरे से लड़के से कहा,
"पिछली बार जब तुम्हारी माँ आई थीं, तो वह कितनी खुश लग रही थीं। उन्होंने मुझे बताया कि तुम्हारा छोटा भाई अब बोर्डिंग स्कूल चला गया है।"
लड़का :
"हाँ, माँ थोड़ी टेंशन में थीं, . अब वह ठीक हैं। वैसे तुम्हारे पापा कैसे हैं? पिछली बार तुमने बताया था कि उनकी तबीयत थोड़ी खराब थी।"
संकेत ने ये बातचीत सुनी, तो उसके कान खड़े हो गए। लहजे और शब्दों से तो ऐसा लग रहा था, जैसे दोनों एक-दूसरे को सालों से जानते हों। हर सवाल, हर जवाब ऐसा था, जैसे दोनों के परिवार एक ही दुनिया का हिस्सा हों। संकेत के दिमाग़ में एक के बाद एक थ्योरी बनने लगी।
संकेत :
"पक्का बचपन के दोस्त हैं... शायद स्कूल के दिनों से। ये है कौन?"
अब संकेत की इक्साइट्मन्ट उसे अंदर ही अंदर खाए जा रही थी। उसने थोड़ा और करीब जाने की कोशिश की। लाइब्रेरी के उस हिस्से में अब बस वही तीन लोग थे—श्रेया, वह लड़का और संकेत, जो चुपचाप शेल्फ के पीछे छुपा हुआ था।
लड़का :
"और तुम्हारी माँ? वो तो अब भी तुम्हारे खाने-पीने को लेकर चिंता करती हैं ना?"
श्रेया :
"हाँ, वही तो। हर सुबह हेल्थ ड्रिंक्स कि कोई नई रेसपी लेकर बैठ जाती हैं, और उसका अजीब टैस्ट मुझे झेलना पड़ता है।"
ये हंसी संकेत के लिए किसी पहेली से कम नहीं थी।
वो अपने मन में नए-नए सवालों को जगह देने लगा। "क्या ये दोस्ती से ज़्यादा कुछ है? क्या वह लड़का सच में उसके परिवार का हिस्सा है? या फिर..."
संकेत की हालत अब ऐसे थी जैसे कोई चोर रंगे हाथ पकड़ा जाने वाला हो। उसने जल्दी से किताब को वापस उठाया, अपने बैग में रखा और फिर से छुप गया।
इसके बाद संकेत को पकड़े जाने का डर सताने लगा, इसलिए वह उसने सोच की अभी यहाँ से चले जाने में ही भलाई है। अधूरी इनफार्मेशन के साथ ही संकेत वहाँ से निकाल आया। लेकिन, अधूरी जानकारी किसी ज़हर से कम नहीं है, क्यूंकी ऐसे में आपका मन आपको किसी भी दिशा में ले जा सकता है। आप कुछ भी सोचने लगते हैं, चाहे उसका सच्चाई से कोई लेना देना हो या न हो!
घर के रास्ते पर और घर आने के बाद भी संकेत इसी बारे में सोच रहा था। उसकी मम्मी ने उससे कॉलेज के बारे में पूछा तो उसने ठीक से जवाब नहीं दिया, वह अपने, आय मीन, श्रेया के ही खयालों में खोया हुआ था। जितनी देर उसने उन दोनों को एक साथ देखा था, उतनी देर में वह उनके एक दूसरे के बिहेवीयर के बारे में ही सोच रहा था और उसमें अपनी थ्योरी के लिए सबूत ढूँढने कि कोशिश कर रहा था, ताकि वह डिसाइड कर पाए कि वह लड़का श्रेया का बॉयफ्रेंड था या नहीं।
संकेत का दिमाग़ उसी सीन को बार-बार रिप्ले कर रहा था। उनकी हर बात, हर इशारा, हर हंसी... सब कुछ।
संकेत :
"उस लड़के का अकेले चले जाना... ये तो पक्का कुछ अजीब था। अगर वह उसका बॉयफ्रेंड होता, तो वह इतनी जल्दी क्यों चला जाता? दोनों साथ में जाते न! . उनकी बातें... वह कितने कंफर्टेबल लग रहे थे एक-दूसरे के साथ।"
कमरे में पहुँचकर संकेत ने अपना बैग एक तरफ़ रखा और बिस्तर पर गिर गया। उसकी आँखें छत की तरफ़ थीं, . उसका दिमाग़ कहीं और ही दौड़ रहा था।
संकेत :
"उनकी बॉडी लैंग्वेज... क्या उसमें कुछ ऐसा था जो रिलेशनशिप की तरफ़ इशारा कर रहा हो?"
संकेत :
"नहीं, यार। वह लड़का काफ़ी कैज़ुअल लग रहा था। ना कोई छुपी हुई नज़रें, ना कोई घबराहट और श्रेया भी... वह तो बिल्कुल रिलैक्स थी।"
पर फिर संकेत को वह पल याद आया जब उस लड़के ने श्रेया से उसकी मम्मी के बारे में बात की थी। ये कैसा दोस्त था जो फैमिली डीटेल्स में इतना इन्वॉल्व था?
संकेत :
"पुराने दोस्त हो सकते हैं... हाँ, यही होगा। कोई बचपन का दोस्त... या शायद कज़िन।"
जितना वह ख़ुद को समझाने की कोशिश करता, उतना ही उसके भीतर का शक बढ़ता जाता।
संकेत :
"लेकिन... अगर वह बॉयफ्रेंड ही निकला तो?"
संकेत ने करवट बदली और तकिये पर सिर टिकाया। वह ख़ुद से बहस कर रहा था। उसके पास कोई ठोस सबूत नहीं था, . उसका दिल मानने को तैयार नहीं था।
संकेत :
"उसे देखकर ऐसा क्यों लगा कि... कुछ अलग है? शायद वह मेरी तरफ़ कभी देखे भी नहीं और मैं यहाँ उसके बारे में इतना सोच रहा हूँ!"
क्या करें, ऐसा ही होता है न? जब कोई नया चेहरा हमारी ज़िंदगी में दाखिल होता है, तो हमारे दिमाग़ में सवालों की आंधी चल पड़ती है।
संकेत :
"पर अगर वह सिर्फ़ दोस्त हैं, तो इसका मतलब है... शायद मेरे पास अब भी एक मौका है।"
इस एक ख़्याल ने संकेत के दिल में थोड़ी उम्मीद जगा दी।
उसने अपनी आँखें बंद कीं।
श्रेया की वही इमेज उसके मन में बार-बार उभरने लगी—क्लास में चुप चाप बैठी, प्रोफेसर की बातें ध्यान से सुनती हुई। उसकी काली, गहरी आँखें, जैसे हर शब्द को अपने भीतर समेट रही हों। आँखों में एक अजीब-सी शांति थी, . फिर भी उनमें कई कहानियाँ छुपी हुई लगती थीं।
उसके चेहरे पर वह हल्की मुस्कान, जो बिना किसी कोशिश के चेहरे पर खिल जाती थी। जैसे उसे किसी से कुछ साबित करने की ज़रूरत ही नहीं। वह अपने ही संसार में मग्न थी और यही उसे बाक़ी सब से अलग बनाता था।
श्रेया की हर बात में एक अलग-सा जादू था। उसकी उंगलियों का धीरे-धीरे पन्ने पलटना, उसके हाथों की वह नाज़ुक हरकतें... जैसे किताबें उसकी सबसे करीबी साथी हों।
संकेत ने महसूस किया कि उसने अब तक जितनी भी लड़कियाँ देखी थीं, उनमें से कोई भी श्रेया जैसी नहीं थी। वह सादगी और गंभीरता का एक अनोखा मेल थी।
उसके बाल... हल्की-सी हवा में पीछे झूलते हुए। उसकी कलाई पर बंधी वह पतली घड़ी, जो उसकी हर हरकत के साथ चमक रही थी। उसकी मुस्कान, जैसे किसी सुबह की पहली किरण... न तेज़, न फीकी। बस इतनी कि हर चीज़ को थोड़ा और खूबसूरत बना दे।
संकेत ने सोचा, "ऐसा क्यों लग रहा है कि मैं उसे बरसों से जानता हूँ?"
वो तो बस एक पल था, एक नज़र। पर उस एक नज़र में जैसे पूरा वक़्त ठहर गया था।
उसकी इमैजनैशन ने उसे एक अलग ही दुनिया में पहुँचा दिया। उसने ख़ुद को और श्रेया को एक साथ देखा—कॉलेज कैंपस में, एक बेंच पर बैठकर बातें करते हुए। वह उसे अपने बचपन की कहानियाँ सुना रही थी और संकेत, उसकी हर बात को जैसे ध्यान से सुन रहा था, जैसे वह कोई म्यूजिक बज रहा हो।
फिर, उसने ख़ुद को लाइब्रेरी में श्रेया के सामने बैठा पाया। उनकी आँखें अचानक मिलीं। कुछ पलों के लिए, दुनिया की सारी आवाज़ें जैसे कहीं खो गईं। केवल उनकी आँखें बोल रही थीं।
श्रेया ने हल्के से मुस्कराते हुए अपनी किताब बंद की और संकेत से कुछ कहा... पर उसकी आवाज़ संकेत के कानों तक नहीं पहुँची। वह तो बस उसकी मुस्कान में खो गया था।
ऐसा लग रहा था जैसे ये सब किसी सपने का हिस्सा हो। एक ऐसा सपना जिसे वह कभी टूटने नहीं देना चाहता था।
लेकिन... ये सपना ही तो था। हक़ीक़त में श्रेया ने उसे देखा भी नहीं था।
संकेत ने खुद से पूछा, "क्या वो कभी मुझे इस तरह देखेगी? क्या उसकी दुनिया में मेरे लिए कोई जगह होगी?"
वो जानता था कि ये खयाल एकतरफा था। लेकिन दिल कहाँ मानता है? दिल तो अपनी ही दुनिया बसा लेता है। और संकेत की दुनिया में, श्रेया अब एक अहम हिस्सा बन चुकी थी।
संकेत ने गहरी साँस ली। उसकी आँखें अब भी बंद थीं। उसने मन ही मन ठान लिया था कि ये कहानी बस यहाँ खत्म नहीं होगी।
शायद, किस्मत उसे फिर से श्रेया के करीब लाएगी। और शायद, वो दिन आएगा जब श्रेया भी उसकी ओर उसी नज़र से देखेगी।
लेकिन फिर उस लड़के के खयाल ने संकेत के सपनों को जैसे तोड़ दिया। अगर वो सच में उसका बॉयफ्रेंड ही हुआ तो? फिर क्या मेरी लव स्टोरी कॉलेज के पहले ही वीक में खत्म हो जाएगी? और इतनी जल्दी-जल्दी सब हुआ तो ये लव स्टोरी है भी या नहीं?
क्या संकेत अपनी इस अनकही को एक नए मोड़ पर ले जा पाएगा? क्या श्रेया कभी उसकी इन फीलिंग से वाकिफ़ होगी?
जानने के लिए पढ़िए अगला एपिसोड।
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