दीवारों पर टंगी तस्वीरें किसी भी घर का इतिहास बताती हैं। इस छोटे से घर की दीवार पर भी एक बड़ी सी तस्वीर टंगी है जो उस चार पीढ़ियों वाली फैमिली का इतिहास बता रही है जिसके हर मेंबर के चेहरे पर मुखौटा चढ़ा हुआ है। वैसे तो लियोनार्डो दा विंची की वर्ल्ड फेमस मोनालीसा पेंटिंग को सबसे रहस्यमयी माना जाता है लेकिन ये फैमिली फ़ोटो उस पेंटिंग से भी ज़्यादा मिस्टीरियस है।

ये है शर्मा फैमिली की तस्वीर, जिसके बीचों बीच बड़ी सी कुर्सी पर बैठे नज़र आते हैं ऑलमोस्ट 85 साल के रघुपति उर्फ राघव शर्मा। जिनका रौब और रुतबा देख कोई नहीं कह सकता की इसके पीछे कितने रेग्रेट्स छुपे हुए हैं जो इनके अपने ही बनाए सिद्धांतों को तोड़ने का नतीजा हैं। बाईं ओर बैठी हैं इनकी अर्धांगिनी, बिलव्ड वाइफ 83 साल की सुमित्रा जी। शर्मा फैमिली का शरीर अगर रघुपति शर्मा हैं, तो आत्मा हैं सुमित्रा जी, जिनके पास हर समस्या का हाल तो नहीं मिलता लेकिन सुकून जरूर 24*7 फ्री मिलता है। रघुपति शर्मा के दाईं ओर 60 साल के उनके बेटे विक्रम शर्मा बैठे हैं, इनकी शांत आँखों को देख कोई नहीं कह सकता की ये तूफान के पहले वाली शांति है या गुज़र जाने के बाद वाली। विक्रम शर्मा के बगल में हैं उनकी बेटर हाफ 55 साल की अनीता। साधारण, सुशील लेकिन मन में कब कौन सी उथल पुथल शुरू हो जाए, ये बात तो समय भी नहीं जानता। पीछे खड़े हैं 35 साल के आरव शर्मा और 33 साल की उनकी वाइफी माया। शर्मा फैमिली की मॉडर्न जोड़ी। जिनके बीच प्यार भी है, तक्रार भी और हर पल किसी नये राज़ खुलने का इंतज़ार भी। रघुपति शर्मा के पैरों के पास ज़मीन पर उनकी पोती 30 साल की निशा अपने भतीजे 10 साल के कबीर के साथ बैठी मुस्कुरा रही है। ये मुस्कान कितनी देर तक बनी रहेगी ये खुद निशा भी नहीं जानती। हाँ, कबीर इन सब में सबसे खास है। कहते हैं की सबसे नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ियों से काफी अलग होती है विचारों में, आदतों में लेकिन कबीर शर्मा फैमिली की हर पीढ़ी के बीच का वो पुल है, जिसके बिना रिश्तों का सफर आसान नहीं होता।

आज पूरा परिवार राघव शर्मा जी के जन्मदिन की तैयारियों में जुटा हुआ है. राघव खुद भी इस दौड़ में पीछे नहीं हैं. एक तरफ जहाँ बाकी सब घर सजाने में लगे हैं वहीं, राघव खुद को तैयार करने में जुटे हुए हैं. उन्होंने शाम की पार्टी के लिए कपड़े सलेक्ट कर लिए हैं, माया से कल रात ही उन्होंने फेशियल करवा लिया था. सब कुछ तैयार है लेकिन उनका वो स्टाइलिश चश्मा नहीं मिल रहा जो उन्हें कबीर ने गिफ्ट किया था।

रघुपति: “मेरा एक भी सामान कभी सही जगह पर नहीं मिलता. कितनी बार कहा है अपने लिए एक अलग अलमारी बनवा लो लेकिन ये तो घर की बॉस हैं भाई, इन्होंने मेरी सुनी ही कब है?”

राघव जी कबसे चिल्ला रहे हैं लेकिन किसी को कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ रहा. एक तो सबके पास अपनी अपनी टेंशन है और दूसरा सब इनकी आदत को अच्छे से जानते हैं.

सुमित्रा: “क्या हुआ, क्यों चिल्ला चिल्ला कर घर सिर पर उठा रखा है? और ये कमरे का सत्यानाश क्यों कर दिया? घर में पहले ही इतने काम हैं, ऊपर से आपका फैलाया हुआ समेटें. अब तो सुधर जाईए शर्मा जी।”

इन दोनों की नोंक झोंक अभी घंटों चलने वाली है. चलिए तब तक हम कमरे से निकलकर हॉल की तरफ चलते हैं, जहां आज के दशरथ और राम यानि हमारे आरव और विक्रम की रोज़ की बहस चालू है।

विक्रम: “तुमने अगर मेरी बात नहीं मानी तो ये तुम्हारी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी गलती होगी आरव, बहुत पछताओगे.”

हमेशा की तरह अपनी बातों का बेटे पर कोई असर ना होते देख विक्रम ने इस लाइन के साथ आरव के सामने हार ही मान लिया।

आरव: “बचपन में आपने ही एक बार कहा था ना पापा, दूसरों के थोपे सही फैसले से अच्छा है खुद का लिया गलत फैसला. अगर तुम गलत भी हुए तो तुम्हें पता होगा तुमने क्या गलती की है और तुम्हें उसे कैसे सही करना है.” 
आरव की इस बात का विक्रम के पास कोई जवाब नहीं था. उन्होंने आगे बहस करने से अच्छा चुप हो जाना सही समझा.

मतभेद से आगे मनभेद की तरफ बढ़ते बाप बेटे के रिश्ते से भी ज्यादा शोर है उस रिश्ते में जो इस समय घर के किचन में अनीता की खीर और माया के केक की बहस के बीच फंसा हुआ है.

अनीता: “मीठे में खीर ही सबसे अच्छी होती है. देवताओं को भी खीर पसंद आती है. अंग्रेजों की नक़ल करते करते लोग अपनी संस्कृति भूलते जा रहे हैं... अगर इतना ही अच्छा होता ये केक तो राम जी के लौटने पर खीर की जगह केक ही बना होता अयोध्या में.”

अनीता खीर में कड़छी और अपनी जुबान दोनों एक ही स्पीड से चला रही थी.

माया: “समय के साथ बदलना ही लाइफ का पहला रूल है मम्मी जी. ऐसा ना होता तो आज भी इंसान बंदर ही होता. अब जब इंसान बदलेगा तो परम्पराएं भी बदलेंगी ही. वैसे, राम जी के ज़माने में माइक्रोवेव होता तो शायद उनके रसोइये खीर की जगह केक ट्राई कर ही लेते.”

क्या आप लोग इस बहस के खत्म होने का इंतज़ार कर रहे हैं? बाप बेटे की बहस एक बार को ब्रेक ले सकती है मगर सास बहू की बहस… ये नींद में भी चालू रहती है. चलिए वापस चलते हैं राघव शर्मा जी के पास, जिनको अभी तक उनका चश्मा मिला नहीं है।

कबीर: “क्या हुआ बड़े दादू? आप बॉस दादी से क्यों लड़ रहे हैं?”

रघुपति: “क्या हुआ? तुम्हारी बॉस दादी मेरा एक भी सामान सही जगह पर नहीं रखती. तुमने जो चश्मा गिफ्ट किया था वो नहीं मिल रहा. जाने कहां रख दिया है.”

बड़े दादू की बात सुन कर कबीर ऐसे मुस्कुराया जैसे बच्चों की बात पर बड़े उन्हें नादान समझ मुस्कुराते हैं. कबीर बिना कुछ बोले वहां से चला गया और थोड़ी ही देर में चश्मा ला कर बड़े दादू के हाथ में दे दिया.

रघुपति: “अरे ये कहाँ से मिला?”

कबीर: “क्या दादू? आपने ही तो दिया था और कहा था मुझसे ये गुम हो जाएगा, तुम ही इसे सम्भाल कर रख दो.”

इतना कह कर कबीर खिलखिला कर हंसने लगा. वहीं सुमित्रा जी राघव शर्मा को ऐसे घूर रही थीं जैसे शेरनी अपने शिकार को घूरती है और उनके घूरते ही राघव जी नज़रें बचा कर कमरे में फैले सामान को अपनी जगह पर रखने की नाकाम कोशिश करने लगे.

सुमित्रा: “रहने दीजिये, फिर कमर का दर्द बढ़ गया तो चिल्ला चिल्ला कर सबको परेशान करेंगे. शारदा आएगी तो सब सही कर देगी.”

सबसे बड़े शर्मा जी ने पत्नी की इस दयालुता पर उनको दिल से थैंक यू कहा और कबीर के साथ शाम की पार्टी की तैयारियों में फिर से जुट गए. धीरे से शाम भी होने को आई।

कबीर की फरमाइश पर पूरा घर सज चुका है. आज के दिन अपने मन का खाने की आज़ादी मना रहे राघव जी की पसंद की सभी डिश तैयार हैं. परिवार के करीबी कुछ मेहमान भी इस छोटी सी पार्टी में शामिल हैं. सभी  सदस्यों की आपस में हुई तकरार की गर्मी में मेहमानों के आने से थोड़ी गिरावट आई है.

केक काटने का समय भी हो गया. दादा जी हाथों में छूरी लिए केक काटने को तैयार हैं और मेहमान उस केक को खाने के लिए बेताब हैं लेकिन ये इंतज़ार थोड़ा लंबा खिंचने वाला है. कोई है जिसकी मौजूदगी के बिना ये परिवार अधूरा है. अपनी निशा, वो तो यहाँ है ही नहीं।

जैसे ही राघव जी ने केक काटना शुरू किया ठीक उसी समय दरवाजे पर दस्तक हुई. उनके हाथ वहीं रुक गए. सबकी नजरें दरवाज़े की तरफ अटक गयीं. ये भला कौन मेहमान है जो इतनी लेट आया. तभी मेहमान की एंट्री हुई, जिसे देख हर किसी के चेहरे पर अलग अलग भाव थे. इस चंद पलों के मौन को कबीर के नन्हें क़दमों की आहट और उसकी मधुर आवाज ने तोड़ दिया.

बुईईई….चिल्लाते हुए कबीर दरवाज़े पर खड़ी निशा से लिपट गया। तीन साल पहले घर छोड़, अपने सपनों की तलाश में विदेश उड़ गयी निशा को यूं अचानक देख कर हर कोई हैरान था. वैसे तो निशा थोड़ा बहुत सबके टच में थी लेकिन उसने किसीको नहीं बताया था कि वो लौट रही है. उसके घर छोड़ कर जाने से सबसे ज्यादा गुस्सा उसकी माँ अनीता थी लेकिन आज सबसे ज्यादा ख़ुशी उसी के चेहरे पर थी.

अनीता ने मन ही मन खुद को समझाया, आज का डाउन हुआ शेयर कल को हाई चला जाए तो उसे लॉस नहीं कहते. कबीर के बाद उन्होंने ही आगे बढ़ कर निशा को गले लगाया. हालांकि निशा जानती थी मां का ये प्यार बस थोड़ी देर का है, सच्चाई सामने आते ही वो पहले से भी ज्यादा भड़कने वाली हैं. एक के बाद एक सभी लोग निशा से मिले.  

दादा जी ने केक काटा सबने उन्हें बधाई और गिफ्ट्स दिए. निशा को चुप चाप खड़ा देख दादा जी ने बच्चे की तरह शिकायत करते हुए कहा,

रघुपति: “इतने दिनों बाद आई है, ये नहीं हुआ कि जवान दादा के लिए कोई कूल सा गिफ्ट लेती चलूँ. खाली हाथ आते शर्म ना आई तुझे?”

निशा: “अले अले, आपने कैसे सोच लिया कि मैं अपने स्मार्ट, हैंडसम, कूल दादू के लिए कोई गिफ्ट नहीं लाऊंगी. ये लीजिये आपका गिफ्ट. स्मार्ट दादू के लिए स्मार्ट वाच.”

निशा का गिफ्ट देख कर राघव जी ख़ुशी से उछल पड़े.

रघुपति: “तू ही तो मेरी सबसे अच्छी पोती है.”

दादू को टोकते हुए कबीर ने कहा,

कबीर: “मगर दादू सुबह तो आपने कहा था मैं आपका सबसे अच्छा पोता हूँ.”

कबीर की बात पर सभी लोग हंस पड़े. लगभग सभी मेहमान जा चुके थे. अब फिर से शर्मा फैमिली की रिचुअल के हिसाब से फैमिली फोटो की बारी थी. सब लोग इकट्ठे हुए. सबके चेहरे पर मुस्कराहट तो थी लेकिन कबीर को छोड़ कर खुश कोई नहीं था. राघव, घर में मौजूद सभी लोगों को देख यही सोच रहे थे कि उनके लाख प्रयास के बावजूद वह आज की पीढ़ी जितने मॉडर्न क्यों नहीं हो पा रहे हैं? बॉस दादी अपने पूरे परिवार के रवैये को लेकर सोच में डूबी हैं. अनीता अपनी बहू, तो माया अपनी सास को लेकर परेशान है. निशा की परेशानी ये है कि वो अपने परिवार को कैसे बताये कि वह विदेश से वापस क्यों आई है? उसके इस नए फैसले पर उसकी माँ का क्या रिएक्शन होगा?

आरव नहीं चाहता की वो विक्रम की बात माने और फैमिली बिजनेस जॉइन करे और विक्रम अपने अतीत से किसी अपने की याद को फिर से बुलावा दे बैठे हैं. कोई ऐसा अपना जिसे ना वो कभी वापस लौटने के लिए आवाज़ दे पाए और ना उसे भूल पाए. फोटोग्राफर उधर चीज़ कहता है और इधर पूरा परिवार अपनी अभी की चिंताओं को अगले एपिसोड तक इग्नोर कर मुस्कुरा उठता है.

क्या आरव अपने पिता को बता पाएगा कि वो फैमिली बिजनेस क्यों नहीं सम्भालना चाहता? 

आखिर निशा के साथ ऐसा क्या हुआ होगा, जिसकी वजह से वह विदेश से फिर उसी घर में लौट आई जहाँ के कायदे कानून से उसे चिढ़ थी? 

पढ़िए अगले चैप्टर में!

 

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