आपको पता है तूफ़ान की क्या ख़ास बात है? वो ये की इसके पहले और इसके बाद सन्नाटा पसर जाता है। शर्मा परिवार में भी कुछ देर का सन्नाटा पसर गया था। दादा जी के जन्मदिन का हंगामा शांत हो चुका है. सब लोग वापस अपनी अपनी जिंदगी में लौट आये हैं. हर कोई एक दूसरे के रवैये से परेशान है. दरअसल, समस्या वहां नहीं होती जहां लोग दूसरों की परवाह किए बिना फैसले ले लेते हैं, समस्या तो वहां शुरू होती है जहां करना भी अपने मन का हो और सामने वाले की परवाह भी हो. शर्मा परिवार इस समय ऐसी ही समस्या का दोतरफा सामना कर रहा था.
विचारों की एक लड़ाई बाप बेटे के बीच है तो वहीं दूसरी लड़ाई मां बेटी के बीच. चारों को एक दूसरे की परवाह तो है लेकिन अपने फैसले से समझौता किसी को नहीं करना.
बहुत दिनों तक सोचने के बाद आज अराव ने मन बना लिया है कि वो अपने पापा को बता ही देगा कि आखिर वह क्यों नहीं अपने फैमिली बिजनेस में इंटरेस्ट दिखा रहा.
आरव के जॉब और विक्रम के ऑफिस से वापस लौटने के बाद शाम का समय ही ऐसा होता था जब पूरा परिवार एक साथ चाय पीने बैठता. बातें भले ही कम होती हैं लेकिन सब एक साथ बैठ कर कबीर की हरकतों पर हँसते हुए अपनी दिन भर की थकान से थोड़ी राहत पा लेते हैं.
आज आरव जब घर लौटा तो उसने देखा उसके पापा अलग ही मूड में हैं. दूसरी हैरान करने वाली बात ये थी कि आज वह अकेले ही बैठे थे, घर का कोई दूसरा मेंबर उनके साथ नहीं बैठा था. दरअसल, थोड़ी ही देर पहले निशा ने कुछ ऐसा बम फोड़ा था जिससे शर्मा परिवार एक बार फिर से थरथरा गया था. इस धमाके का सबसे ज्यादा असर अनीता जी पर हुआ था. अनीता एक बार फिर से अपनी बेटी पर भरोसा करने की कोशिश कर रही थी लेकिन इस बार भी उनके हाथ मायूसी ही लगी.
वो निशा की बात पूरी होने से पहले ही रोते हुए वहां से चली गयीं, फिर एक के बाद एक सब इस मामले को शांत कराने उनके पीछे चल दिए.
इधर विक्रम वहीं बैठे रहे. बढ़ती उम्र का असर अब उनके काम पर दिखने लगा है. वो चाहते हैं कि आरव जल्दी से उनका बिजनेस सम्भाल ले जिससे कि वो इस जिम्मेदारी से जल्दी फ्री हो सकें. वो नहीं चाहते कि उनके त्याग और बलिदान की नींव पर खड़ा किया ये बिजनेस ठप्प पड़ जाए. इसलिए उन्होंने आज ये ठान लिया है की वह आरव से अपने फैसले पर हां की मुहर लगवा कर ही मानेंगे.
आरव: “क्या बात है आज आप अकेले बैठे हैं?”
आरव सोफे पर बैठते हुए बोला.
विक्रम: “बाक़ी सब निशा और तुम्हारी माँ के बीच समझौता कराने में लगे हुए हैं.”
विक्रम ने दीवार पर टंगी फैमिली फोटो पर नजरें गड़ाए हुए जवाब दिया.
आरव: “ऐसा क्या हो गया?”
नैरेटर: आरव आगे भी कुछ बोलता उससे पहले ही उसके पापा बोल पड़े.
विक्रम: “उन्हें छोड़ो, तुम पहले मेरी बात ध्यान से सुनो. तुमने बहुत टाइम ले लिया, अब मैं तुम्हारी एक नहीं सुनने वाला. तुम इसी वीक से बिजनेस ज्वाइन कर रहे हो. ये फ़ाइनल है.”
पापा की इस बात ने आरव को एक साथ हैरान और परेशान कर दिया. वो आज अपने मन की बात पापा को कहने वाला था लेकिन इधर तो उन्होंने ने ही धमाका कर दिया. उसने सोच लिया था कि अगर वो आज नहीं बोला तो उसका सपना सच होने से पहले ही टूट कर बिखर जाएगा.
आरव: “आपने मेरी पहले भी कहां सुनी है पापा. मैं ही आपकी सुनता आया हूं. आप अपने आगे कभी किसी की नहीं सुनते मगर आज मैं आपको बताना चाहता हूं कि इस बार मैं आपकी बात नहीं मानने वाला. मेरे भी कुछ सपने हैं, मैं भी अपने दम पर कुछ बड़ा करना चाहता हूँ. पापा मैंने फैसला कर लिया है कि मैं अपना टेक स्टार्टअप शुरू करूंगा और वो भी इसी महीने से.”
बड़े शर्मा जी के लिए आरव की ये बातें एक ऐसे भूकंप की तरह थीं जिसने उनके अरमानों की नींव को पूरी तरह से हिला दिया था. विक्रम ने आरव को ये समझाने की पूरी कोशिश की कि वो जल्दबाजी में कोई फैसला ना ले मगर आरव आज मानाने वाला नहीं था.
पापा के बार बार एक ही बात दोहराने पर आरव चिढ़ गया. उसने पापा से कहा-
आरव: “पापा आप बार बार कहते रहते हैं कि आपने इस बिजनेस को अपना सबकुछ दिया. इसमें भला मेरी क्या गलती है कि आपने अपने लिए कोई सपना नहीं देखा. अगर आपने इस बिजनेस में अपनी जिंदगी लगा दी तो मेरे भी तो अपने एम्बिशन्स हैं. मैं आपकी शान के लिए अपने सपने नहीं कुर्बान कर सकता.”
इससे पहले विक्रम के अरमानों की नींव सिर्फ हिली ही थी लेकिन आरव की इन आखिरी बातों ने उनके अरमानों की इमारत को तहस नहस कर दिया. विक्रम इसके आगे कुछ नहीं बोले.
आरव नहीं जानता था कि विक्रम ने किन हालातों में कंपनी की बागडोर सम्भाली थी. विक्रम एक बार फिर से अपने बीते कल की गहराइयों में खो गया. अपने बेटे के सामने वो कमज़ोर ना दिखने लगे इसलिए उसने अपने आंसू तक छुपा लिए. एक बार फिर से उस अपने की यादें ताजा हो गईं जिसकी वजह से विक्रम को अपना सबसे अनमोल सपना छोड़ना पड़ा था.
एक तरफ पिता बेटे की बातें सुन कर दुखी था तो दूसरी तरफ बेटी की बातों ने एक बार फिर से माँ का मन दुखा दिया था. तीन साल पहले अचानक से घर छोड़ने के फैसले की वजह से अनीता आज तक निशा को माफ़ नहीं कर पायी थी. उसके लौटने के बाद अनीता ने सोचा था कि शायद उसका मन बदल गया है, वो अब अपनी नयी जिंदगी शुरू करने के लिए तैयार है. जिसके बाद अनीता खुश थी मगर उसकी एक दिन भी ना टिक पायी.
निशा ने आज सबको बता दिया था कि वो शादी करने के लिए नहीं लौटी. फिलहाल उसका घर बसाने का इरादा नहीं है बल्कि उसका कुछ और ही मकसद है. दरअसल उसे इंडिया में अपना आर्ट बिजनेस शुरू करना है. उसने सबको बताया कि वो अपने एक फॉरेनर फ्रेंड की मदद से यहाँ अपना आर्ट बिजनेस शुरू करना चाहती है, इसी वजह से वो इंडिया लौटी है.
अनीता के लिए परिवार, संस्कार और परम्पराएं सबसे ऊपर हैं. उन्होंने बेटी की बातों से ये अनुमान लगा लिया है कि वह विदेश में किसी गोर लड़के के साथ रहती थी और अब उसी से शादी भी करने वाली है. ये बात अनीता की बर्दाश्त से बाहर थी. निशा ने बार बार उन्हें समझाया कि जैसा वो सोच रही हैं वैसा कुछ भी नहीं है. बाकी सब ने भी उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन वो किसी की सुनने को तैयार नहीं हैं. राघव जी भी आज अनीता को समझा नहीं पाए थे. निशा अपनी माँ के इस बिहेवियर से पूरी तरह चिढ़ चुकी थी.
वो बार बार खुद से यही सवाल कर रही थी कि क्या उसने दुबारा घर लौट कर गलती कर दी? उसके मन में हमेशा से ये शिकायत थी कि उसकी माँ ने कभी भी उसका साथ नहीं दिया. शिकायतें इन दोनों माँ बेटी के रिश्ते की बुनियाद में दीमक की तरह घर कर चुकी थीं, जिससे ये रिश्ता धीरे धीरे खोखला होता जा रहा था. यही वजह थी कि आज दोनों एक दूसरे को सुनने के लिए तैयार नहीं थीं.
राघव जी जब अनीता को समझाने की नाकाम कोशिश कर के वापस लौटते हैं तो देखते हैं कि उनका बेटा ऐसे बैठा है जैसे उसकी पूरी हिम्मत टूट चुकी हो. वो विक्रम के पास बैठते हैं और उससे पूरी बात जानने की कोशिश करते हैं. विक्रम अपने और आरव के बीच हुई बातचीत के बारे में बताते हैं, जिसके बाद राघव अपने बेटे को समझाने की कोशिश करते हैं.
रघुपति: “बेटा क्यों इतनी टेंशन ले रहा है. तुझे तो याद है ना जब मैं एक प्रिन्सिपल था तो मेरी सैलरी कितनी थी? उस सैलरी में भी हमारा परिवार कितना खुश था. आज अगर आरव खुद से कुछ करना चाहता है तो करने दे. तुझसे नहीं हो रहा तो बंद कर दे बिजनेस, तू अपने फायदे के लिए किसी और की जिंदगी की कमान अपने हाथों में नहीं ले सकता.”
राघव तो अपने बेटे का मन हल्का करना चाहते थे लेकिन उन्हें क्या पता था कि उनका खुद का मन भारी हो जाएगा.
भले ही विक्रम ने आरव की बात सुनने के बाद एक शब्द ना कहा हो लेकिन यहाँ पिता की बातें सुन वह गुस्सा हो गया और खुद को रोक नहीं पाया. वो बोला
विक्रम: “पिता जी आप आज भी उसी पुराने ज़माने में जी रहे हैं. आज के ज़माने में हम सब एक रेस का हिस्सा हैं जो आखिरी सांस तक चलेगी. हम यहाँ थक कर बैठ नहीं सकते. आप तो जानते हैं ना मैंने ये बिजनेस किन हालातों में सम्भाला था….”
चंद पलों की ख़ामोशी के बाद विक्रम अपने बीते कल से एक ख़ास शख्स को याद करते हुए बोला-
विक्रम: “आपने उसके भरोसे पर अपना सबकुछ इस बिजनेस में लगा दिया था और उसने क्या किया? धोखा दे गया. मगर मैं धोखा देने वालों में से नहीं हूँ. उस समय भी विक्रम शर्मा इस परिवार के लिए अकेला ही हालातों से लड़ा और आगे भी जब तक जान है अकेला ही लड़ता रहेगा.”
इतना कह कर विक्रम वहां से चला गया. उसकी एक एक बात राघव जी के सीने में तीर की तरह चुभीं लेकिन सबसे ज्यादा दुःख उन्हें इस बात का हुआ कि वो लाख कोशिशों के बावजूद आज के ज़माने के मुताबिक नहीं ढल पाए. वो हमेशा से चाहते थे कि वो आने वाली पीढ़ियों के मुताबिक अपनी सोच बदलें. आरव ने जब लव मैरिज करने की बात कही तो अनीता इसके सख्त खिलाफ हो गयीं. तब राघव जी ने ही बदलते जमाने के साथ सोच बदलने की बात करते हुए उन्हें मनाया था. कपड़ों से लेकर खान-पान तक उन्होंने सब कुछ अपने बच्चों के मुताबिक बदल दिया मगर आज उनका बेटा ही उन्हें पुराने ज़माने का बता रहा है. वो समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर कैसे वो अपने बच्चों को यकीन दिलाएं कि उनकी सोच पुरानी नहीं है.
परिवार में एक दूसरे के लिए बढ़ते मतभेद ने हमेशा बेफिक्र रहने वाली बॉस दादी को भी टेंशन में डाल दिया था. आज पूरे घर में इतना सन्नाटा था कि कबीर की मस्तियां भी इसे तोड़ नहीं पा रही थीं. वो एक एक कर के सभी के कमरों में जा रहा था लेकिन किसी ने भी उसके साथ बात करने या खेलने में इंटरेस्ट नहीं दिखाया. आज एक साथ हो कर भी हर कोई अपने हिस्से की तन्हाई जी रहा था.
सबके पास कहने को तो बहुत कुछ था मगर बोल कोई कुछ नहीं रहा था. आज शायद पहली बार ऐसा हुआ था कि घर में सब मौजूद तो थे लेकिन एक साथ बैठ कर खाना नहीं खाया. आज घर के खाने में खुशियों की मिठास नहीं बल्कि आंसुओं का नमक था. हर कोई अपनी जगह खुद को ठीक बता रहा था लेकिन अपनी गलतियों पर किसी का ध्यान नहीं था.
आरव को अपने पापा की चुप्पी खल रही थी. उसने जब अपनी बात पूरी की उसके बाद विक्रम ने कुछ नहीं कहा. ये ख़ामोशी आरव को अंदर ही अंदर खाए जा रही थी. उसे पता था कि उसके और विक्रम के बीच काफी समय से कुछ ठीक नहीं चल रहा और ऊपर से आज जो हुआ उसने आग में पेट्रोल का काम किया है. आरव को अपना सपना भी पूरा करना है और उसे ये डर भी है कि कहीं उसके पापा हमेशा के लिए उससे रिश्ता ना तोड़ लें.
कहते हैं किसी भी प्रॉब्लम का सबसे बड़ा सोल्यूशन है वक्त, वक्त अपने साथ बड़ी बड़ी दुःख परेशानियों को बहा ले जाता है. अब देखना ये है कि आने वाला वक्त शर्मा परिवार में फैली इन परेशानियों को दूर कर पाता है या नहीं.
आरव के फैसले के बाद विक्रम का अगला कदम क्या होगा? क्या वो अपनी कंपनी किसी और के हाथों में सौंप देंगे?
क्या अनीता अपनी बेटी के फैसले को समझ पाएगी?
क्या निशा एक बार फिर से अपनी माँ के साथ अपने रिश्ते को सही करने की कोशिश करेगी?
जानेंगे अगले चैप्टर में!
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