जिंदगी कई बार इंसान को ऐसे दोराहे पर ला कर खड़ा कर देती है जहाँ से किसी एक रास्ते को चुन पाना बहुत मुश्किल हो जाता है. माया भी आज उसी दोराहे पर खड़ी है. उसे आज एक ऐसा फैसला लेना है जो ये तय करेगा कि उसका आने वाला कल कैसा होगा. माया ने कभी ये नहीं सोचा था कि उसके सामने भी कभी ऐसा दिन आएगा जब उसे फैसले लेने के लिए इतना सोचना पड़ेगा. 

कहते हैं न कि आप भले ही कितनी बड़ी तोप हों लेकिन जब जिंदगी अपनी पर आती है तो बड़े बड़ों को घुटनों पर ला देती है. 

एक अमीर परिवार की इस इकलौती बेटी को जितने भी लोग जानते हैं उनके लिए ये यकीन करना मुश्किल होगा कि इसने बिना लड़े हथियार डाल दिए. बचपन से ही अपनी मनमर्जी करने वाली माया जो भी कह देती उसे काटने की हिम्मत किसी में नहीं होती थी. 

अपने उसूलों पर चलने वाली माया की जिंदगी में जब आरव की एंट्री हुई तो एकदम से सब बदल गया. जो माया कभी किसी को घास तक नहीं डालती थी वो आरव की हर बात मानने लगी. यहां तक कि उसने शादी के बाद ज्वाइंट फैमिली में रहने की बात तक मान ली. 

ये प्यार की खुमारी ही थी जिसने एक शेरनी को पिंजरे में बंद करवा दिया. आज यही शेरनी बात बात पर अपनी सास के ताने सुनती है लेकिन इसके बाद भी कुछ नहीं बोलती. हाय, ये इश्क जो ना कराए…

माया को आरव और अपने करियर दोनों से बहुत प्यार था. उसे पता था कि आरव उसे उड़ने से कभी नहीं रोकेगा लेकिन वो इस बात से अनजान रही कि जिस घर में वो जा रही है वहां कोई ऐसा है जिसे उड़ने वाली लड़कियां पसंद नहीं, फिर भले ही वो खुद उसकी बेटी क्यों ना हो. 

माया ने लम्बे समय तक परिवार और अपने काम के बीच बैलेंस बना कर रखने की पूरी कोशिश की लेकिन समय के साथ साथ उसका बैलेंस भी अब बिगड़ने लगा है. वो एक बहू के रूप में इस घर में आई थी लेकिन अब वो एक माँ भी है. अपने सपनों को पूरा करने की कोशिश में वो कई बार कबीर पर पूरा फोकस नहीं कर पाती जिस वजह से उसे अपनी सास के ताने सुनने पड़ते हैं. 

कहीं न कहीं अब उसे भी ये अहसास होने लगा है कि वह अपने काम की वजह से ना एक अच्छी पत्नी साबित हो पा रही है और ना एक अच्छी माँ. यही वजह है कि वो आज एक बड़ा फैसला लेने जा रही है . इस फैसले से पहले वो एक बार आरव से बात करना चाहती है. वो उसकी सलाह लेकर ही आगे बढ़ना चाहती है. 

रात सोने से पहले उसने सोच लिया था कि सुबह उठते ही वह आरव से इस बारे में बात कर लेगी. घर और ऑफिस के बीच बैलेंस बनाने के लिए माया ने सबसे पहले अपनी नींद का बलिदान दिया था. किसी ज़माने में माया को नींद सबसे ज्यादा प्यारी थी. एक बार वो अपनी किसी दोस्त की बर्थडे पार्टी से देर रात लौटी और फिर तीसरे दिन जा कर उठी. उसे नींद से जगाना मानों भूखे शेर को दावत पर बुलाने जैसा था. आज वही माया सुबह सुबह उठ जाती है. 

आज तो माया को और जल्दी उठना था जिससे कि आरव से बात हो सके लेकिन सुबह जब उसकी नींद खुली तो उसने देखा कि आरव पहले से ही जगा हुआ है. शायद वो रात भर सोया ही नहीं. 

फोन  स्क्रीन को स्क्रोल करते आरव को माया ने गुड मोर्निंग विश किया, जिसके जवाब में आरव ने धीमी आवाज़ में विश लौटा दी. माया समझ गयी कि उसके दिमाग में कुछ पक रहा है जिस वजह से वो रात भर सोया नहीं. नहीं तो आरव की गुड मोर्निंग विश कभी इतनी फीकी नहीं होती. 

माया: “ऑल ओके?”

माया ने आरव के नजदीक जाते हुए पूछा.

आरव: “नहीं यार कुछ ओके नहीं है. मैं समझ नहीं पा रहा कि क्या करूं.”

आरव ने अपनी बात ऐसे कही जैसे वो माया के जागने का ही इंतज़ार कर रहा हो. 

माया: “पापा वाली बात से परेशान हो?”

माया ने अपनी परेशानी को कुछ समय साइड में रखते हुए पूछा. 

आरव: “पापा की बात से तो हमेशा परेशान रहता हूँ मगर आज अपनी कही बातों से परेशान हूँ. मैंने कल पापा को बहुत गलत तरीके से बोल दिया. उनको मेरी बातें इतनी चुभ गयीं कि उन्होंने आगे से कोई जवाब ही नहीं दिया. उनकी वही चुप्पी मुझे चुभ रही है.”

बहुत टाइम बाद माया ने उस आरव को देखा था जिसके लिए अपने पापा की ख़ुशी सबसे ऊपर हुआ करती थी. 

माया को याद है जब वो दोनों कोलेज में थे और घर से दूर रहते थे. उन्हीं दिनों एक बार आरव को ये मैसेज मिला कि उसके पापा की तबियत नहीं ठीक तो वो कई रातें सोया नहीं था. उसे चैन तब मिला जब पापा ने उसे घर आने की परमिशन दी. जब से आरव की जॉब लगी और उसने बिजनेस ना सम्भालने का फैसला किया तभी से दोनों बाप बेटे के बीच एक दीवार सी खड़ी हो गयी, जो समय के साथ साथ और मजबूत होती गयी. 

आरव की आंखें भीग चुकी थीं, माया ने उसे गले लगाया और समझाने लगी

माया: “आरव, मैं ना ये कहूंगी कि जो पापा कह रहे वो सही है और ना मैं ये कहूंगी कि तुम सही कर रहे हो. मुझसे पूछोगे तो मैं ये फैसला तुम पर छोडूंगी. मैंने कॉलेज टाइम से अभी तक तुम्हें हार्ड से हार्ड प्रॉब्लम का सिंपल सोल्यूशन खोजते देखा है. एग्ज़ाम टाइम में तुमने स्टूडेंट्स की स्ट्राइक रुकवा कर सबकी स्टडी शुरू करवाई थी. वो तुम थे जिसने दादू के साथ मिलकर मम्मी जी को हमारी शादी के लिए मनाया, निशा जैसी लड़की अगर किसी का कहना मानती है तो वो है उसका भाई आरव क्योंकि उसे पता है आराव कैसे भी कर के उसे मना ही लेगा. मुझे तुम पर पूरा भरोसा है तुम इसका भी सोल्यूशन निकाल लोगे. अपने मन का काम भी करोगे और पापा को भी मना लोगे.”

आरव जानता था माया जो कह रही है वो पॉसिबल नहीं है. ना पापा अपनी ज़िद छोड़ेंगे और ना वो अपने सपनों को टूटने देगा लेकिन फिर भी माया की बातों ने उसे हिम्मत दी थी. माया को दिल की बात बता कर वो बहुत अच्छा महसूस कर रहा था. उसने माया के माथे पर किस किया और नहाने चला गया.

माया के चेहरे पर एक भारी सी मुस्कराहट थी, एक तरफ उसे ख़ुशी थी कि उसकी बातों ने आरव पर कुछ तो असर दिखाया था और वहीं उसे इस बात का अफ़सोस था कि वह अपनी बात नहीं कह पायी. वह आरव की परेशानी और नहीं बढ़ाना चाहती थी. उसने सोच लिया था कि अपनी इस प्रॉब्लम से वह अकेले ही निपट लेगी. 

एक तरफ उसने ये भी सोचा कि निशा से सलाह ली जाए लेकिन उसने ये आइडिया भी ड्राप कर दिया. उसने सोचा निशा जब से लौटी है वो खुद बहुत परेशान है, ऐसे में वो अपनी परेशानी बता कर उसे और भी ज्यादा तकलीफ नहीं देना चाहेगी. 

कबीर उठ कर धीरे से माँ की गोद में छुप गया था. माया ने देखा की वो उससे चिपक कर लेटा है. अपनी प्यारी सी आवाज़ में उसने कहा

कबीर: “गुड मोर्निंग मम्मा.”

माया: “गुड मोर्निंग मेरा बच्चा.” 

कबीर: “पापा को क्या हुआ? वो रात में भी जाग रहे थे.”

कबीर के मासूम सवाल शुरू हो चुके थे . माया जानती थी कि उसके सवाल एक बार शुरू हुए तो फिर रुकने का नाम नहीं लेंगे.

माया: “कुछ नहीं, बस वर्क लोड है. अब जल्दी से उठो, स्कूल के लिए तैयार भी होना है.”

कबीर: “मम्मा मैं सोच रहा था, आज स्कूल से लीव लेकर मैं पापा का वर्क लोड थोड़ा कम कर देता हूँ.”

माया: “नहीं प्रभू, पापा का वर्क लोड कम हो ना हो, मेरा जरूर बढ़ जाएगा. तो उठिए और जाइये फ्रेश होने.”

कबीर: “मम्मा क्या आपको इस मासूम से चेहरे पर ज़रा भी तरस नहीं आता?”

कबीर ने भोली सूरत बनाते हुए कहा. 

माया: “तू बेड से उठता है या बुलाऊँ दादी को?”

माया ने अनिता जी को बुलाने की धमकी दी तब जा कर कबीर ने बेड छोड़ा. उसे पता था दादी आ कर खूब सारा लेक्चर देंगी. उससे अच्छा स्कूल ही चला जाए. कबीर के जाने के बाद भी माया उसकी हरकतों और बातों को सोच कर हंसती रही. 

नाश्ते के टेबल पर कबीर ने माया से बताया कि दो दिन बाद उसके स्कूल में पेरेंट्स मीटिंग है. उसने इस बार माया को साथ चलने के लिए कहा. कबीर की शिकायत थी कि सभी फ्रेंड्स की मॉमस आती हैं मगर माया कभी भी उनके साथ नहीं जाती. माया ने भी हर बार की तरह जरूरी काम का बहाना बनाया और वादा किया कि नेक्स्ट मीटिंग वो पक्का चलेगी. 

इस पर एक बार फिर से उसे अपनी सास अनीता का ताना सुनना पड़ा. उन्होंने कहा

अनीता: “बेटा, सबकी माँ के लिए परिवार और उनके बच्चे ज़रूरी हैं इसलिए वो सब आती हैं मगर आपकी मम्मी के लिए परिवार से ज़रूरी है उनकी जॉब. कोई बात नहीं हर बार की तरह इस बार भी आपकी दादी आपके साथ चलेगी.”

माया को भले ही अनीता के तानों की आदत पड़ गयी थी लेकिन जब वो कबीर के सामने ऐसा कुछ बोलतीं हैं तो माया से बर्दाश्त नहीं होता. 

हालांकि गुस्सा हो कर भी वो कुछ कर नहीं सकती थी. हार कर उसे इसी गुस्से के साथ ऑफिस जाना पड़ा. माया जब कबीर को स्कूल छोड़ने जाती तो रास्ते भर दोनों खूब हँसते-बोलते लेकिन आज माया खामोश रही. कबीर बोलता रहा लेकिन माया कुछ ना बोल पायी. उसने उसे स्कूल छोड़ा और ऑफिस निकल गयी.

आज पूरा दिन ऑफिस में भी वह हर काम को टालती रही है. उसका आज कहीं मन नहीं लग रहा था. उसका पूरा दिन आज यही सोचने में निकल गया कि उसे क्या करना चाहिए. अंत में उसे समझ आ गया कि उसे परिवार और करियर में किसी एक को चुनना ही पड़ेगा. बात केवल परिवार की होती तो शायद वो करियर को चुनने की हिम्मत कर सकती थी लेकिन यहाँ बात आरव और कबीर की थी. वो चाहती थी कि एक अच्छी बहू बने या ना बने लेकिन वो एक अच्छी पत्नी और एक अच्छी माँ जरूर कहलाये. उसे पता था कि इसके लिए उसे करियर छोड़ना होगा.

वो घंटों कंप्यूटर स्क्रीन के आगे बैठी कुछ टाइप करती रही. वो बार बार लिख कर मिटा रही थी. घर लौटते ही उसके सामने फिर से वही दुनिया थी. जहाँ सास के ताने, परिवार की जिम्मेदारी और कबीर की मासूमियत थी. कबीर ने माया को दिन भर की सारी बातें बतायीं. कबीर के साथ कुछ समय बिताने के बाद माया ने बेमन से घर के काम निपटाए और आरव के घर लौटने का इंतज़ार करने लगी.

आरव जब काफी देर तक घर नहीं आया तब उसने फोन किया. आरव ने उसे बताया कि वो अपनी टेक कंपनी की फंडिंग के लिए किसी इंवेस्टर से मिलने गया है और उसे लौटने में काफी देर हो जाएगी. 

माया समझ गयी कि अब उसे खुद से ही फैसला लेना है. उसने अपना लैपटॉप खोला और ऑफिस में अधूरे रह गए रेजिग्नेशन लेटर को पूरा किया. वो बस एक क्लिक दूर थी अपनी जॉब को छोड़ने से लेकिन उसके लिए ये एक कदम ही सबसे ज्यादा भरी हो गया था. उसके सामने उसकी अभी तक की पूरी जिंदगी घूम रही थी. वो खुद से बार बार यही सवाल कर रही थी कि माया क्या तुम सच में ये करना चाहती हो?

माया को याद आ रहा था कि वो कितनी निडर हुआ करती थी, जब वो एक बार किसी काम को पूरा करने की ठान लेती थी तब किसी की नहीं सुनती थी. आज उसे इतना सोचना क्यों पड़ रहा है? यही सब सोचते हुए वो अपने रेजिग्नेशन लेटर को घूरे जा रही थी. 

क्या माया एक अच्छी माँ और अच्छी पत्नी बनने के लिए अपने करियर का बलिदान दे देगी? 

माया के इस फैसले का आरव और घर के बाकी मेम्बर्स पर क्या असर होगा? 

क्या आरव उसके फैसले को सही ठहराएगा? 

जानेंगे अगले चैप्टर में!  

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