एक प्रेमी ने अपनी मनपसंद लड़की को प्रेम पत्र दिया, लड़की ने सामने से कहा, “तुम कितने भी पत्र दे दो मैं तुम्हारा प्रस्ताव ना मानूंगी.”
इस पर प्रेमी का जवाब था, “प्रिय, मैं प्रेमी हूँ मैं आज से ज्यादा तुम्हारे कल की ख़ुशी की परवाह करता हूँ. जब तुम्हारी उम्र के साथ तुम्हारी सुन्दरता और जवानी ढल रही होगी, तब मेरा ये ख़त पढ़ोगी तो मेरे लफ्ज़ तुम्हें एक बार फिर से जवान कर देंगे. उस समय तुम्हारे चेहरे पर जो ख़ुशी और मुस्कराहट होगी वही मेरी मेहनत का फल होगा. एक प्रेम पत्र का सबसे बड़ा काम यही होता है, यादों को समेटे रखना.”
आप भी सोच रहे होंगे शर्मा परिवार परेशानियों से जूझ रहा है और इधर प्यार मोहब्बत की क्लास शुरू कर दी गयी है. तो थोड़ा रुकिए जनाब, सब समझ आ जाएगा.
फिलहाल हम बढ़ते हैं माया की ओर जो करियर और फैमिली के बीच फंसी है और समझ नहीं पा रही कि किसे छोड़े और किसके साथ रहे. रेजिग्नेशन लेटर टाइप हो चुका है. एचआर-बॉस सब सीसी-बीसी में जगह बना चुके हैं. बस एक क्लिक की देरी है, जिसके बाद माया वर्किंग वूमन से फुल टाइम हाउस वाईफ बन जाएगी. लेकिन…
आप सिर्फ मन बनाते हैं, फैसले किस्मत लेती है. यहाँ भी माया के लिए किस्मत का फैसला कुछ और था, जिसका फरमान लेकर निशा को आना था. जिस वक्त माया क्या करूं क्या ना करूं की सिचुएशन में फंसी थी ठीक उसी वक्त निशा की एंट्री हुई.
निशा: “भाभी बेब…”
उसे कुछ चाहिए था लेकिन माया को रात के करीब बारह बजे लैपटॉप के आगे बैठा देख वो बोलते बोलते रुक गयी. पहले तो निशा ने यही समझा कि माया अपने ऑफिस वर्क में बिज़ी है मगर उसे देख कर जब उसने स्क्रीन को डाउन किया तो निशा समझ गयी वो कुछ छुपा रही है.
निशा: “अब हमसे भी पर्दा करोगी डार्लिंग?”
निशा ने माया को छेड़ते हुए कहा. इस बीच उसने माया के चेहरे की उलझन को भी पढ़ लिया था.
निशा: “तू ठीक नहीं लग रही बेब, बता क्या हुआ?”
निशा के इस सवाल ने माया के लिए वैसा ही काम किया जैसे डूबते के लिए कोई नाव करती है.
माया: “कुछ ठीक नहीं है यार. बहुत उलझी हुई हूँ.”
निशा: “तू बात बता हम अभी सुलझा देते हैं.”
निशा के इतना कहते ही माया ने अपनी हर प्रॉब्लम के बारे में एक एक कर बता दिया.
कुछ देर सोचने का नाटक करने के बाद निशा ने जवाब दिया,
निशा: “तब तो मुझे भी मम्मी को खुश करने के लिए सब छोड़ छाड़, अपनी सारी पढ़ाई और मेहनत को एक बॉक्स में बंद कर कहीं दूर फेंक आना चाहिए.”
माया: “क्या बोल रही है तू यार?”
माया ने हैरानी से पूछा.
निशा: “... और क्या बोलूं? तुझे याद है जब पहली बार भाई ने मुझे तुझसे मिलवाया था? जानती है तब मुझे तेरी एक ही बात सबसे ज्यादा पसंद आई थी, तू फियरलेस थी, क्या करूं क्या ना करूं वाली सिचुएशन में उलझना जानती ही नहीं थी. आज तू मम्मी के तानों की वजह से अपना करियर बर्बाद करने जा रही है? तू तो बहू है, मगर मैं तो उनकी अपनी बेटी हूँ ना, फिर भी उन्होंने कभी मुझे सपोर्ट नहीं किया. उन्हें खुश करने में लगी रहती तो अभी तक मेरे बच्चे शादी करने लायक हो गए होते और मैं अपनी फैमिली को खुश करने के लिए दिन भर किचन में उलझी रहती. तू तो मुझसे मच बेटर है बेब. तू घर सम्भालती है, कबीर का ध्यान रखती, और उसके बाद भी इज़ीली ऑफिस का वर्क लोड भी हेंडल कर लेती है, इसके बाद भी तेरी मैरिड लाइफ ऑसम चल रही है. अब बता क्या तू अपना करियर सिर्फ इस लिए बर्बाद कर लेगी क्योंकि तेरी सास तुझे ताने मारती है? क्या तेरा बॉस तुझे कभी नहीं डांटता? इग्नोर कर बेब और अपनी लाइफ मस्त जी, जो मन सो कर. एक ही मन्त्र का जाप कर इग्नोरम परम सुखम. बाकी तेरा अपना फैसला सबसे ज़रूरी है, जो तुझे ठीक लगे वो कर.”
माया को आज निशा में वही पुरानी दोस्त दिख रही थी जिसने इस घर में अपनी जगह बनाने के लिए आरव के बाद उसकी सबसे ज्यादा मदद की थी. आज उसे ऐसा ही महसूस हो रहा था जैसे हनुमान जी को तब हुआ था जब जामवंत ने उन्हें उनकी शक्तियां याद दिलायी थीं. माया ने अब ठान लिया था कि वो अब किसी की परवाह किए बिना अपना हर रोल शिद्दत से निभाएगी, और ज्यादा कोशिश करेगी और मेहनत करेगी. उसने बिना कुछ कहे निशा को ज़ोर से गले लगा लिया था. उसी वक्त आरव भी इंटर हुआ. उसने दोनों को गले मिलते देखा तो कुछ पलों के लिए अपनी सारी टेंशन भूल कर मुस्कुरा उठा.
आज संडे है, आम दिनों के मुकाबले आज सभी थोड़ा रिलैक्स्ड महसूस कर रहे हैं. निशा की बातों का जादू माया पर ऐसा चढ़ा कि वो रात में चैन की नींद सोयी और सुबह जल्दी उठ भी गयी. आज वो सभी के लिए स्पेशल नाश्ता तैयार कर रही है. इधर कबीर भी हमेशा की तरह छुट्टी वाले दिन काफी जल्दी उठ गया है. वो अपने दादू के साथ स्टोर रूम साफ़ करवा रहा है. जितना भी पुराना सामान निकल रहा है वो सबके बारे में अपने दादा से पूछ रहा है.
तभी उसकी नज़र एक प्यारे से बॉक्स पर पड़ती है. वो अपने दादा जी से पूछता है ये बॉक्स किसका है. वो बताते हैं कि उन्होंने ने ही ये बॉक्स निशा को गिफ्ट किया था. हर बात को जानने की चाह रखने वाला कबीर अपनी बुआ के बॉक्स की छानबीन में जुट जाता है. फैंसी चूड़ियों, हेयर बैंड और कुछ छोटे छोटे खिलौनों के बीच कबीर को एक लेटर मिलता है. कबीर को उस लेटर पर हाथ से बनायी गयी फूल पत्तियों ने अट्रैक्ट किया. दादी ने कबीर को नाश्ते के लिए दो बार आवाज़ लगा दी थी, उसे पता था अगर वो अभी भी नहीं गया तो उसे पक्का डांट पड़ेगी. दूसरी तरफ उसे लेटर ओपन करने की भी जल्दबाजी थी. वो लेटर के साथ ही नाश्ता करने पहुंच गया.
कबीर के सामने नाश्ता रखा है मगर वो खा नहीं रहा, उसका फोकस लेटर पर है. अभी वो हाथ की कारीगरी से सजे एनवेलप को ही देख के खुश हो रहा है.
माया: “कबीर जल्दी से नाश्ता कर ले” माया ने कबीर को डांट लगाई.
कबीर: “ह्म्म्म”
लेटर में खोया हुआ कबीर बस इतना ही बोल पाया.
माया: “कहां गुम है, और ये तेरे हाथ में क्या है?”
माया ने पूछा.
कबीर: “बुईईई का लेटर है.”
नाश्ता करते हुए फोन में खोयी निशा ने ये बात सुनते ही हैरानी से कबीर की तरफ देखा. उसका ध्यान उस लेटर पर गया और वो एक दम से चौंक गयी. ये लेटर उसके ही कॉलेज में पढने वाले लड़के ने उसे दिया था जिसे निशा ने बिना कोई जवाब दिए रख लिया था. उसने सामने वाले की फीलिंग्स की कदर करते हुए कभी उस लेटर को फेंका नहीं था. हालांकि अब वो उस लड़के और उसके दिए लेटर दोनों को भूल चुकी थी मगर कबीर आज एक बार फिर से उसकी पुरानी यादों को खोज लाया था.
कबीर: “बुईईई, मैं इसे पढूं?”
कबीर ने बड़ी मासूमियत से पूछा.
निशा: “कोई ज़रुरत नहीं, ला इधर दे.”
निशा ने कबीर को ऑंखें दिखाते हुए कहा. वो इस बात से डर रही थी अगर ये लेटर किसी ने पढ़ लिया तो उसे शर्मिन्दा होना पड़ेगा.
माया: “क्या हो गया पढ़ लेने दे उसे, किसका लेटर है जो तू इतना डर रही है.”
माया ने निशा की खिंचाई करते हुए कहा.
निशा: “बेब, मेरे एक दोस्त का है. कुछ ख़ास नहीं लिखा है.”
निशा जब तक अपनी बात पूरी करती तब तक कबीर ने लेटर खोल कर पढ़ना शुरू कर दिया था.
कबीर: “ये मेरे अरमान हैं, सिर्फ अल.. अल.."
कबीर पढ़ते पढ़ते अटक गया जिसे माया ने पूरा किया.
माया: “अलफ़ाज़?”
कबीर: “हाँ अफलाज़ अफलाज़ मत समझ लेना, तुम्हें कसम है हमारी, इसका जवाब जरूर देना”
ख़त की पहली ही शायरी सुनते हर किसी की हंसी छूट गयी. हंसने के बाद सब एक दूसरे का मुंह ताकने लगे. निशा सबसे आंखें चुरा रही थी. ये खैरियत थी कि अनीता जी इस समय किचन में थीं. कबीर ने पढ़ना जारी रखा.
कबीर: “अगर तुम चाँद जितनी सुन्दर हो तो मैं ग्रहण की तरह बदसूरत हूं. अगर तुम चन्दन जितनी खुशबूदार हो तो मैं बासी फूलों जैसा बदबूदार हूँ. छी बुई..
तुम दूध सामान गोरी हो तो मैं कोयले सा काला हूँ, तुम किसी देवी जैसी हो और मैं किसी दानव जैसा. हमारा कोई मेल नहीं लेकिन मेरा प्यार हमारी इस बेमेल जोड़ी को खूबसूरत और अनोखा बना देगा. तुम्हारे लिए मेरा प्यार समुद्र की तरह अंतहीन है. मैं तुम्हें एक छोटा सा गिफ्ट देना चाहता हूँ. वो गिफ्ट है मेरा दिल, तुम इसे हमेशा के लिए अपने पास रख लो निशा.”
ये लव लेटर जितना अनोखा था उससे भी ज्यादा मजेदार था कबीर के पढ़ने का तरीका. वैसे भी बाकी सब्जेक्ट्स के साथ साथ कबीर को हिंदी पढ़ना भी बहुत अच्छा लगता था.
निशा के लिए लिखा गया ये लव लेटर उसके पापा और दादा जी के सामने पढ़ा जा रहा था. किसी के लिए इसे सुनना आसान नहीं था, इसीलिए सब एक दूसरे से नजरें चुरा रहे थे लेकिन जिस तरह से ये लिखा गया था उसे सुन कर कोई भी अपनी हंसी नहीं रोक पा रहा था.
कबीर ने इस लेटर का एंड करते हुए ज़ोर से पढ़ा-
कबीर: “मुझे यकीन है तुम जल्दी ही इसका जवाब दोगी. तुम्हारा चाहने वाला पुष्पक राज शर्मा”
लड़के का नाम सुनते ही घर में हंसी का विस्फोट हुआ. तभी अनीता भी वहां आ गईं और ये सोच कर हंस दी कि चलो किसी शर्मा जी के ही बेटे ने ये लेटर लिखा था. निशा भी अपने पुष्पक को याद कर के हंस दी. पुष्पक एक पढ़ाकू लड़का था. उसकी पढ़ाई में रूकावट बनी निशा जिसे वो बहुत पसंद करने लगा था. जब उसने निशा को ये लेटर देते हुए अपने दिल की बात बताई तब निशा ने उसे प्यार से समझाया कि उसका फोकस बस पढ़ाई और अपने करियर पर है. वो उसके पीछे अपना टाइम ना खराब करे. पुष्पक ने भी इसे अपनी ‘ना हो सकी प्रेमिका’ का फरमान मान लिया और फिर से पढ़ाई में डूब गया. आज पुष्पक राज शर्मा एक बहुत बड़े कवि बन चुके हैं.
इस लव लेटर ने घर के गर्म माहौल को कुछ देर के लिए शांत कर दिया था. अब हर कोई निशा को छेड़ रहा था. कबीर ने भले ही लेटर पढ़ लिया मगर उसे कई वर्ड्स समझ नहीं आए, जिनका मतलब वो निशा से पूछ रहा था. ये सब देख सबको और ज्यादा हंसी आ रही थी. माया ने अब निशा को पुष्पक कह कर चिढ़ाना शुरू कर दिया था.
भले ही सबके लिए ये फन मूमेंट हो लेकिन आरव और विक्रम कुछ पल की हंसी ठिठोली के बाद फिर से अपने टेंशन वाले मूड में आ गए थे. पहले छुट्टी वाले दिन नाश्ते के बाद सब घंटों बैठ कर बातें करते थे लेकिन आज आरव और विक्रम तुरंत उठ कर अपने अपने कमरे में चले गए थे.
दादा जी सब नोटिस कर रहे थे. उन्हें इस बात की चिंता खाए जा रही थी आखिर उनके हँसते खेलते परिवार को किसकी नजर लग गयी है. पहले आरव और विक्रम एक दूसरे से बात करते थे, पूरे परिवार की सुनते थे, एक साथ फैसले लेते थे, फैमिली ट्रिप की प्लानिंग करते थे, कबीर के साथ खूब मस्ती करते थे लेकिन अब ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा. दादा जी इस बार से परेशान हैं कि उनका परिवार बिखर रहा है.
एक एक कर के सभी लोग डायनिंग हॉल से चले गए हैं लेकिन दादा जी अभी भी वहीं बैठे सामने दीवार पर लटकी फैमिली फोटो को गौर से देखे जा रहे हैं. उन्हें लग रहा है जैसे उनकी इस फैमिली फोटो में अपने आप दरार आ रही है.
क्या शर्मा परिवार का फैमिली ट्री हालातों की आंधी सह पायेगा?
जानेंगे अगले चैप्टर में!
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