निशा बचपन से ही अपने हर काम में फोकस्ड रही है. जब उसे खेलना होता था तो वो तब तक खेलती थी जब तक वो थक कर गिर ना पड़े और जब वो पढ़ने बैठती थी तो उसे कोई भी लालच दे दो, वो उठती नहीं थी. स्कूल टाइम में ही उसने ये सोच लिया था कि उसे क्या करना है और फिर उसने किसी की नहीं सुनी. कॉलेज में उसका फोकस सिर्फ अपनी स्टडीज़ पर था.
ऐसा नहीं था कि निशा को बाकी चीज़ों में इंटरेस्ट नहीं था, उसकी सोच बस दूसरों से अलग थी. उसका मानना था कि वो एक बार अपना गोल अचीव कर ले फिर उसके पास मौज मस्ती के लिए बहुत टाइम होगा. यही वजह थी कि उसने अपने कॉलेज टाइम में प्यार मोहब्बत को टाइम नहीं दिया.
हालांकि कहते हैं ना कि जवानी का वो कोई ऐसा पेड़ नहीं जिसे एक बार मोहब्बत की हवा ने जड़ तक ना हिलाया हो. पसंद तो सबकी होती है. कोई इज़हार कर देता है तो कोई उसे हमेशा एक राज़ की तरह दिल में दबाए रखता है. अपने करियर को सबसे ऊपर रखने वाली निशा को भी एक लड़का पसंद था और शायद वो लड़का भी निशा को पसंद करता था लेकिन दोनों ने हमेशा अपनी फीलिंग्स को छुपाये रखा.
लड़के का पता नहीं मगर निशा कभी कभी उसकी यादों की गलियों में एक बार घूम आया करती थी. उसने करीब 4 साल पहले सुना था कि उसकी शादी हो गयी और वो अपनी पत्नी के साथ अमेरिका सेटल हो चुका है. ये सुनने के बाद निशा को कुछ पल का अफ़सोस तो हुआ था ये सोच कर कि काश उसने लड़के से दिल की बात कह दी होती लेकिन फिर वो अपनी मौजूदा ज़िंदगी में लौट आई. उस दिन के बाद निशा के पास सिर्फ उस लड़के की यादें ही बची थीं.
कबीर ने कल पूरा दिन निशा को उस लव लेटर के लिए बहुत तंग किया. वो इस बात को भूल जाए इसलिए निशा ने शाम सबके साथ बाहर घूमने का प्लान बनाया. अगर आरव और विक्रम साथ चलते तो ये तय था कि ये फैमिली डिनर किसी बढ़िया रेस्टोरेंट में होता लेकिन दोनों ने जाने से मना कर दिया जिसके बाद सबको कबीर की बात मान कर स्ट्रीट फ़ूड का ऑप्शन चुनना पड़ा.
निशा लगभग 4 साल बाद इंडिया का स्ट्रीट फ़ूड ट्राई कर रही थी. वैसे तो अब वो बाहर के खाने से बहुत दूर रहती थी लेकिन आज सालों बाद फैमिली के साथ इस तरह स्ट्रीट फ़ूड खाना उसे अलग ही मजा दे रहा था. हालांकि रात होने तक ये मजा ही उसके लिए सजा बन गया.
रात को हल्की सी जलन से शुरू हुआ ये सिलसिला सुबह तक एक भयंकर पेट दर्द में बदल गया था. उसने रात भर वोमिटिंग की थी, डिहाइड्रेशन की वजह से वो चल भी नहीं पा रही थी. हर इंडियन फैमिली की तरह शर्मा परिवार ने भी सबसे पहले निशा पर घरेलू नुस्खे आजमाए. जब सारे घरेलू नुस्खे फेल हो गए तब माया निशा को डॉक्टर के पास ले गई.
माया ने निशा का दर्द देखते हुए घर के सबसे नजदीक वाले एक क्लिनिक में ही जाना सही समझा. ये सक्सेना क्लिनिक था, सुबह के नौ ही बजे थे जिस वजह से ना तो यहाँ ज्यादा स्टाफ दिख रहा था ना ज्यादा मरीज. माया ने रिसेप्शन पर ऊंघ रही लड़की को जगा कर डॉक्टर के बारे में पूछा. उसे पता चला कि डॉक्टर 10 बजे तक आते हैं जिसके बाद उसने लड़की से डॉक्टर का नंबर लेकर उन्हें कॉल किया और जल्दी आने की रिक्वेस्ट की.
डॉक्टर ने तुरंत ही अपने असिस्टेंट से बात कर निशा को एडमिट करने के लिए कहा और बताया कि वो दस मिनट में पहुंच रहे हैं. निशा दर्द से बेचैन थी, माया भी उसे देख परेशान होने लगी, उसने सोचा कि वो आरव या पापा को बुला ले और निशा को किसी दूसरे हॉस्पिटल में ले जाए. लेकिन तभी डॉक्टर आ गए. उन्होंने निशा की डिटेल्स लेते हुए चेकअप शुरू किया. निशा के चेहरे पर नजर पड़ते ही कुछ देर के लिए डॉक्टर के हाथ रुक गए लेकिन उन्होंने खुद को सम्भाला और चेकअप कंटिन्यू रखा.
लगभग बेहोशी की हालत में भी निशा बार बार यही कह रही थी
निशा: “इंजेक्शन नहीं.”
डॉक्टर ने जल्दी से निशा को ड्रिप लगाई और इंजेक्शन तैयार करने लगे. माया ने एक बार इंजेक्शन के लिए लगातार मना कर रही निशा को देखा फिर उसने डॉक्टर के हाथ में भरे हुए इंजेक्शन को देखा.
वो धीरे से डॉक्टर के पास गयी और बोली
माया: “डॉक्टर, क्या इंजेक्शन लगाना ज़रूरी है?”
डॉक्टर ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “जानता हूँ उसे इंजेक्शन से बहुत डर लगता है. लेकिन ये जरूरी है, लगाना पड़ेगा, घबराइए नहीं उसे पता नहीं चलेगा, जैसे ड्रिप लगाने पर उसे पता नहीं चला.”
माया इस सोच में पड़ गयी कि आखिर डॉक्टर को कैसे पता कि निशा को इंजेक्शन लगवाना पसंद नहीं.
माया ने कुछ सोच कर डॉक्टर से फिर पूछा
माया: “आपका नाम पुष्पक राज शर्मा है?”
माया के इस सवाल पर डॉक्टर को खूब ज़ोर से हंसी आई लेकिन उन्होंने हॉस्पिटल का लिहाज करते हुए अपनी हंसी दबा ली और मुस्कराहट से काम चलाते हुए ना में सिर हिलाया.
डॉक्टर निशा के इलाज में जुट गए. उन्होंने सच में इतने आराम से इंजेक्शन लगाया कि निशा को पता तक नहीं चला. धीरे धीरे निशा को आराम आने लगा. घर से सबके लगातार कॉल आ रहे थे. आरव और विक्रम तक भी खबर पहुंच गयी थी वो दोनों क्लिनिक आने के लिए बोल रहे थे लेकिन माया ने ये कह कर मना कर दिया कि सब ठीक है. हम कुछ देर में घर चले जायेंगे.
डॉक्टर का इलाज असरदार था, लगभग पांच घंटे में के बाद निशा इतनी ठीक हो चुकी थी कि घर जा सके. उसे दर्द नहीं हो रहा था और वो पहले से काफी बेहतर महसूस कर रही थी. थोड़ी वीकनेस थी, जिसे ठीक होने में अभी टाइम लगने वाला था. निशा को माया ने थोड़ा सहारा देकर उठाया. माया बिल पे कर चुकी थी, दोनों क्लिनिक से निकले और कार में बैठ कर घर रवाना हो गए. घर आकर सब निशा को ठीक देख राहत महसूस कर रहे थे.
डॉक्टर की तारीफ करते हुए माया को इंजेक्शन वाली बात अचानक से याद आई. उसने झट से निशा से पूछा
माया: “यार तूने उस डॉक्टर को देखा जिसने तेरा इलाज किया?”
निशा: “मुझमें इतनी हिम्मत कहाँ थी जो किसी को देख पाती. क्यों क्या हुआ?”
माया: “मैंने जब उससे इंजेक्शन के लिए पूछा तो वो बोला मुझे पता है इसे इंजेक्शन से डर लगता है. मैं तबसे सोच रही हूँ, भला कौन है तेरे इतना क्लोज जिसे तेरे इंजेक्शन से डर के बारे में भी पता है. मैंने तो उससे पूछा भी कि क्या आपका नाम पुष्पक राज शर्मा है, जिस पर वो हंसने लगा.”
माया की बात सुन कर निशा भी सोच में पड़ गयी कि आखिर ये कौन हो सकता है जो उसे इतनी अच्छी तरह जानता है.
माया: “अच्छा कोई बात नहीं कल फिर से जाना है ना चेक कराने तो देख लेना, अब आराम कर ले. कुछ चाहिए हो तो आवाज़ दे देना, मैं कबीर को खाना खिला के आती हूँ.”
माया के जाने के बाद निशा उस डॉक्टर के बारे में सोचने लगी. ना जाने क्यों उसे ये यकीन होने लगा कि ये डॉक्टर, राहुल ही है. उसके बारे में इतना सबकुछ घर वालों के अलावा राहुल ही जानता है.
राहुल, निशा को किस्मत से मिला वो दोस्त जो दोस्ती के रिश्ते से बहुत बढ़ कर था उसके लिए. ये वही लड़का है जिसे कभी निशा पसंद किया करती थी. दोनों ना एक क्लास से थे ना एक कॉलेज से. दोनों को किस्मत ने उस समय मिलाया जब निशा ने होस्टल के शोर से दूर जा कर किसी किराये के फ़्लैट में रह कर पढने का मन बनाया.
राहुल और निशा एक ही टाइम पर एक ही फ़्लैट देखने गए थे. निशा दर्जनों फ़्लैट देख चुकी थी तब जा कर उसे ये वाला फ़्लैट पसंद आया था लेकिन यहाँ राहुल की डील डन हो चुकी थी. तब निशा ने उसे अपनी मजबूरी बताई जिसके बाद राहुल ने ये कहते हुए फ़्लैट लेने से इनकार कर दिया कि निशा को इसकी ज्यादा ज़रुरत है, वो कहीं और देख लेगा. राहुल के बात करने का लहज़ा इतना अच्छा था कि उसकी सूरत निशा के दिल पर छप गयी.
किस्मत का खेल ये था कि उस बड़े से शहर में राहुल को भी उसी सेम बिल्डिंग में दूसरा फ़्लैट मिल गया. जब निशा राहुल से दुबारा टकराई तो दोनों को यकीन हो गया कि किस्मत उन्हें एक साथ लाना चाहती है. दोनों इतने अच्छे दोस्त बन गए कि एक दूसरे से अपने घर परिवार तक की बातें बताने लगे. हालांकि दोनों अपनी अपनी पढ़ाई को लेकर बहुत सीरियस थे इसीलिए इनके मिलने जुलने की एक लिमिट थी. दोनों अक्सर बाहर ही मिलते और एक दूसरे से हद में रह कर बात करते. इसी हद ने दोनों को कभी अपने अपने दिल की बात नहीं कहने दी. दोनों की आँखों में एक दुसरे के लिए प्यार दिखता था मगर ये प्यार कभी इज़हार बन कर उनकी ज़ुबान तक ना आ सका. और इस तरह एक बड़ी प्यारी सी लव स्टोरी का द एंड हो गया.
जिंदगी ने एक बार फिर से दोनों को आमने सामने ला खड़ा कर दिया था. निशा के हाथ पैर कांप रहे थे ये सोच कर कि वो कल कैसे राहुल का सामना करेगी. कहीं उसके लिए फिर से उसके दिल में फीलिंग्स जाग गयीं तो वो क्या करेगी? अब तो उसकी शादी भी हो चुकी है. अब कोई रास्ता नहीं. ये सब सोचते हुए निशा की दवाओं का असर उसे सपनों की दुनिया में ले गया और वो सो गयी.
एक तरफ जहाँ निशा गहरी नींद में अपने आने वाले कल के सपने बुन रही थी वहीं दूसरी तरफ शर्मा परिवार के सामने एक आंधी उनकी खुशियां उजाड़ने को तैयार थी. निशा और सुमित्रा जी को छोड़ बाकी सब डायनिंग हॉल में मौजूद थे. आरव बार बार माया की तरफ देख रहा था, जैसे कि सवाल कर रहा हो कि “सबको बता दूं?” माया उसे इशारे में ये बता रही थी कि जैसा तुम सही समझो. हालांकि माया जानती थी ki आरव जो बताने वाला है वो इस परिवार के लिए किसी भूचाल से कम नहीं होगा लेकिन वो फिर भी आरव को रोक नहीं सकती थी.
आरव: “पापा मैं आप सबसे कुछ कहना चाहता हूँ.”
वैसे तो विक्रम को उस दिन की बहस के बाद आरव से कोई उम्मीद नहीं थी लेकिन अब उसे ये ज़रूर लगा था कि शायद आरव अपनी भूल पर शर्मिन्दा है और उसने अपना फैसला बदल दिया है.
विक्रम: “ह्म्म्म, बोलो.”
आरव: “पापा मुझे फंडिंग मिल गयी है और बहुत जल्दी मैं अपनी टेक कंपनी शुरू करने जा रहा हूँ.”
आरव की ये अनाउन्स्मेन्ट किसी धमाके से कम नहीं थी. विक्रम को लगा उनके साथ एक बार फिर से किसी ने धोखा किया है लेकिन उन्हें ये भी पता था कि अब गुस्से से बात नहीं बनेगी.
विक्रम: “मैं जानता हूँ तुम फैसला कर चुके हो लेकिन आरव एक बार और सोच लो. ये बिजनेस बड़े अरमानों से खडा किया हुआ है. इसके लिए क्या क्या कुर्बानियां देनी पड़ी हैं तुम सोच भी नहीं सकते. इस बिजनेस को ही नहीं, इस फैमिली को भी तुम्हारी ज़रुरत है.”
आरव: “पापा मैं फैमिली को छोड़ कर कहीं नहीं जा रहा बस मैं अपने मन का काम….”
विक्रम ने आरव की बात पूरी नहीं होने दी. वो ज़ोर से चिल्लाया
विक्रम: “जो अपने परिवार की मेहनत की कदर नहीं कर सकता उससे मुझे अब कोई उम्मीद नहीं है. मुझे आज तक धोखे के सिवा और मिला ही क्या है. तुम अभी बहुत कुछ नहीं जानते. जिस दिन जान जाओगे उस दिन तुम्हारे हाथ में सिर्फ पछतावा रहेगा.”
आज आरव भी रुकने वाला नहीं था. “पापा आपको हमेशा से ये गलतफहमी है कि सिर्फ आपने ही मेहनत की है. हर किसी को हक़ है अपने मन की करने का... मैं भी मेहनत ही कर रहा हूँ अपने सपनों के लिए.” आज से पहले दोनों में ऐसी तीखी बहस कभी नहीं हुई थी.
विक्रम कुछ बोलना चाह रहे थे लेकिन उसी समय उन्होंने सामने सुमित्रा जी को खड़ा पाया. पापा को एक दम से चुप होते देख आरव ने भी नज़र घुमाई. सुमित्रा जी कुछ बोली नहीं लेकिन उनकी आँखों की मायूसी सब कुछ बोल रही थी.
इतने सालों से शर्मा परिवार की जड़ों को मजबूती से पकड़े रखने वाली बॉस दादी सुमित्रा जी क्या अपने परिवार को एक रखने में कामयाब हो पाएंगी?
क्या आरव अपने पिता की बात मानेगा?
जानेंगे अगले चैप्टर में!
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