शर्मा परिवार की हालत इस समय किसी गरीब की रसोई की तरह हो चुकी है जहाँ कभी आटा होता है तो नमक नहीं, नमक होता है तो तेल नहीं तेल है तो दाल नहीं और सब है तो चुल्हा जलाने के लिए सिलेंडर नहीं. शर्मा परिवार में भी एक मुसीबत टलती है तो दूसरी सामने आ जाती थी. हालांकि ये कहानी तो हम सबके घर की है. ज़िंदगी इसी का नाम है. 

फिलहाल हम चलते हैं शर्मा परिवार की ओर जहां आज कई राज़ खुलने वाले हैं. आरव आज अपने किसी काम से बैंक गया था जहां उसे उसका सालों पुराना दोस्त शेखर मिल गया. शेखर ने हाल ही में इस बैंक में मैनेजर की पोस्ट सम्भाली है. आरव उससे मिल कर बहुत खुश है. थोड़ी देर बातचीत करने के बाद शेखर उससे पूछता है, “यार, पापा ठीक हैं ना?”

आरव समझ नहीं पाता कि शेखर ने पापा के बारे में ऐसे अचानक क्यों पूछा.

आरव: “हां, एकदम भले चंगे हैं.”

शेखर ने कहा, “यार आरव तू तो अपने पापा के बहुत क्लोज़ रहा है फिर तुझे उनके चेहरे को देख कर कैसे पता नहीं लगा कि कुछ ठीक नहीं है? या फिर तू मुझसे ही छुपाने की कोशिश कर रहा है?”

शेखर ने अपनी बात ऐसे कही जैसे वो सीधे कहना चाहता हो तुझसे ये उम्मीद नहीं थी.

आरव: “भाई तू क्या कह रहा है मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा. पापा तो एकदम ठीक हैं.”

शेखर बोला, “ऊपर से शायद होंगे मगर अंदर से वो बिलकुल ठीक नहीं लग रहे थे.”

आरव: “तू कब मिला उनसे?”  

शेखर ने बताया, “कल ही तो आये थे बैंक, उन्हें नहीं पता था कि मैं यहाँ नया मैनेजर अपॉइंट हुआ हूँ. वो किसी काम से आये थे लेकिन जैसे ही उन्हें मेरे बारे में पता चला वो मुझसे मिल कर बिना कुछ काम कराये लौट गए.”

आरव को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या जवाब दे. उसे बुरा लग रहा था ये सोच कर कि वो अपने सपने के पीछे इतना अंधा हो गया है कि उसे अपने पिता के चेहरे पर उनकी मायूसी भी नहीं दिख रही. 

आरव: “शेखर यार क्या इस बारे में कुछ पता लगाया जा सकता है?”

आरव ने उससे रिक्वेस्ट की.

शेखर ने कहा, “यार वैसे तो ये रूल्स के खिलाफ है लेकिन यहाँ मेरे दोस्त के परिवार की बात है तो मैं तुझे थोड़ा बहुत बता सकता हूँ.”

शेखर ने बताया कि विक्रम के जाने के बाद उसने इस बैंक के पुराने मैनेजर से उनके बारे में बात की. मैनेजर ने बाताया कि विक्रम शर्मा उनके बैंक के बहुत पुराने और लॉयल कस्टमर रहे हैं लेकिन पिछले साल शायद उन्हें बहुत बड़ा लॉस हुआ जिसके बाद उन्होंने इस बैंक से 50 करोड़ का लोन लिया है. शेखर की बात सुनते ही आरव पर मानों बेहोशी छा गयी. शेखर ने उसे थोड़ी हिम्मत दी और फिर आरव घर की तरफ निकल गया. वो जब घर पहुंचा तो घर में दादा दादी के सिवा और कोई नहीं था. 

वो अपने कमरे में जा कर एक गहरी सोच में डूब गया. वो बार बार यही सोचे जा रहा था कि उसके पापा ने उससे इतनी बड़ी बात कैसे छुपायी. एक तरफ वो उसे बिजनेस की पूरी जिम्मेदारी देने की बात करते हैं और दूसरी तरफ उसे इतना लायक भी नहीं सझते कि अपनी प्रॉब्लम शेयर कर सकें. आरव को ये बात बहुत ज्यादा डिस्टर्ब कर रही थी. 

इसी बीच माया भी आज कबीर की देख भाल के लिए घर जल्दी लौट आई है. आज अनीता किसी फंग्शन में गयी हैं और उनके ना रहने पर कबीर की शरारतें कुछ ज्यादा ही बढ़ जाती हैं. माया आरव को सोता हुआ देख उसे ये सोच कर नहीं जगाती कि स्ट्रेस की वजह से वो कितने दिनों से अच्छे से सो नहीं पाया. कबीर खाना खाने के बाद माया से ज़िद करता है कि वो दादी के रूम में चल कर उसके साथ खेले. उसे उनका रूम बहुत पसंद है क्योंकि वो बहुत बड़ा है. कबीर ज्यादा वक्त वहीं बिताता है. माया उनके रूम में नहीं जाना चाहती मगर कबीर की ज़िद के आगे उसकी एक नहीं चलती. 

कबीर पूरी फैमिली की एल्बम देखने की ज़िद करता है. माया के बार बार मना करने पर भी वो नहीं मानता. सन्दूक पर ताला लगा देख माया को लगता है कि कबीर उसे खोलने की ज़िद छोड़ देगा लेकिन कबीर को पता है दादी इसकी चाबी कहाँ रखती है. अनिता अक्सर कबीर को इसी सन्दूक से पुरानी एलबम्स निकाल कर दिखाती थी. कबीर की ज़िद पर माया को संदूक खोलना ही पड़ता है.

कबीर उस सन्दूक से सालों पुरानी एलबम्स निकालता है और माया के साथ तस्वीरें देखने लगता है. वो तस्वीरों में दिखने वाले सभी चेहरों के बारे में जानना चाहता है. माया भी उसे सबके बारे में बताने लगती है. इसी बीच माया की नज़र एक तस्वीर पर पड़ती है. ये अनीता के स्कूल के दिनों की तस्वीर है. उसके साथ एक और लड़की की तस्वीर है. माया जब पूरी एल्बम देखती है तो उसे पता चलता है कि इस एल्बम की ज्यादातर तस्वीरों में वो लड़की उनके साथ है. उस लड़की का चेहरा भी अनीता से काफी मिलता है. ऐसा लगता है जैसे दोनों बहने हैं. लेकिन उसने इस घर में कभी भी इस लड़की का नाम नहीं सुना. 

तस्वीरें देखते देखते कबीर सो चुका है लेकिन माया की नींद उड़ गयी है. जाने क्यों अब उसके मन में इस लड़की के बारे में जानने की चाह उठ रही है. मानो उसकी तस्वीर माया से कुछ कहना चाह रही हो. उस लड़की के बारे में सोचते हुए माया की नजर उस संदूक पर गयी जिसमें ये एल्बम रखी हुई थी. उसने सोचा कि हो ना हो इस संदूक में उस लड़की के बारे में जरूर कुछ मिलेगा. 

माया ने एक बार घड़ी की तरफ देखा. अनीता के लौटने में अभी समय था. उसने हिम्मत कर के अपनी सास का सालों पुराना संदूक खोला. संदूक में बहुत खोजने के बाद उसे एक डायरी और कुछ चिट्ठियां मिलीं. माया ने धीरे से कमरे का दरवाजा बंद किया और उस डायरी को पढने बैठ गयी.

अनीता: 10 सितंबर 1983

मैं संगीता को लेकर अब बहुत डर गयी हूँ. वो अपने सपनों के लिए जितनी ऊँची उड़ान भरना चाहती है, उतने बड़े असमान के बारे में हम कभी सोच भी नहीं सकते. माँ ने मरने से पहले मुझे यही सिखाया है कि एक लड़की की सम्पत्ति उसके संस्कार होते हैं. उसके लिए अपने घर परिवार को खुश रखने के सिवा और कोई सपना नहीं होना चाहिए. संगीता इससे अलग सोचती है. आज वो बातों बातों में कह रही थी कि उसे बहुत पढ़ाई करनी है. किसी बड़े शहर में नौकरी करनी है. अपनी पसंद के लड़के से शादी करनी है. उसकी सोच से मुझे बहुत डर लगता है. मैं पिता जी को इस बारे में बता सकती हूँ मगर उसके बाद वो उसके साथ क्या करेंगे ये सोच कर ही डर लगता है. उसकी उम्र अभी छोटी है, ये बातें बाहर आते ही उसकी शादी कर दी जाएगी. मैं अपनी बहन के साथ ऐसा नहीं होने दे सकती. दूसरी तरफ उसके सपने मुझे मजबूर कर रहे हैं कि मैं उसे रोक लूं. मैं इस समस्या का हल समय पर छोडती हूँ. 

22 अक्टूबर 1983

दिवाली आने वाली है मगर हमारे घर में आज अंधेरा छाया हुआ है. संगीता ने आज पिता जी से ऊँची आवाज़ में बात की, लग रहा था जैसे उसे किसी का डर ही नहीं. उसने अपने सपनों के बारे में पिता जी को बता दिया. मैंने उसे बहुत समझाया मगर वो नहीं मानी. अब उसे कमरे में बंद कर दिया गया है मैं उसकी ऐसी हालत नहीं देख सकती. 

1 जनवरी 1984 

आज फर्स्ट जनवरी है, बच्चे पिकनिक मानाने जा रहे हैं. पिछले साल तक हम दोनों बहनें भी अपनी सहेलियों के साथ जाती थीं. हम लोग वहां खाना बनाते नाचते गाते और खूब मज़े करते थे मगर इस बार घर में सिर्फ कैलेंडर बदला है बाकी सब वैसा ही है जैसा अक्टूबर में शुरू हुआ था. मैं अब संगीता को इस हालत में और नहीं देख सकती. 

23 सितंबर 1984

आज बहन के प्यार के आगे माँ की सिखाई बातें कमज़ोर पड़ गयीं. पिता जी के ऑफिस जाने के बाद मैंने संगीता को इस पिंजरे से आज़ाद कर दिया. मुझे नहीं पता आगे क्या होगा लेकिन फ़िलहाल मैं अपनी बहन को इतना दुखी नहीं देख सकती थी. मैं पिता जी का गुस्सा भी सह लूंगी उनकी मार भी खा लूंगी. मगर मैं कभी ये नहीं सोचूंगी कि मैंने कोई गलती की है. शायद ये मेरी आखिरी बात हो जो मैं इस डायरी में लिख रही हूँ. 

इसके बाद के सभी पन्ने खली थे. बस आखिरी पन्ने पर लिखा हुआ था. 

अनीता: 12 मार्च 1990 

मैं मानती हूँ उस दिन मुझसे बहुत बड़ी गलती हुई, इतनी बड़ी की जिसकी कोई माफ़ी नहीं. कोई मुझे माफ़ करे ना करे मगर मैं खुद को इसके लिए माफ़ नहीं कर पाउंगी.

डायरी में लिखी ये आखिरी बात थी. माया के सामने मानों कोई फिल्म चल रही थी. अब वो यही सोच रही थी कि आखिर संगीता मौसी अब कहाँ है. उसे इसका जवाब चाहिए था, तभी उसने वहां पड़ी चिट्ठियों की तरफ देखा. उसने सबसे पहले लिखी चिट्ठी उठाई जो संगीता के घर छोड़ने के लगभग 6 महीने बाद की थी. लिखा था

अनीता: “दीदी मैं दिल्ली में हूँ. सब बढ़िया है. आप फ़िक्र मत करना. मैं अच्छे से पढ़ रही हूँ.”

अगली चिट्ठी में संगीता ने बताया था कि उसकी नौकरी लग गयी है. वो एक बीमा कंपनी में काम कर रही है और यहीं के एक कर्मचारी से उसे प्यार हो गया है. दोनों जल्द ही शादी कर लेंगे. 

अपनी अगली चिट्ठी में संगीता ने बताया था कि उसने उस शख्स से शादी कर के बहुत बड़ी गलती कर दी है. वो कहता है नौकरी छोड़ कर घर पर बैठो. वो ऑफिस के दूसरे कर्मचारियों से बात करता देख उसपर शक करता है. 

इसी तरह उसने अगली चिट्ठियों में बताया कि अब वो उसे बुरी तरह मारने लगा है. वो ताने देता है कि उसकी वजह से उसकी किसी अच्छे घर में शादी नहीं हो पायी. अगर वो कहीं और शादी करता तो उसे मोटा दहेज़ मिलता. बाकी चिट्ठियों से पता लगा कि उस शख्स के संगीता पर लगातार जुल्म बढ़ते रहे. इसके बाद की कोई चिट्ठी नहीं थी. माया ने बहुत खोजा मगर उसे कुछ नहीं मिला. 

सभी तार जोड़ने के बाद माया समझ पायी कि आखिर अनीता का लड़कियों को लेकर ऐसा नजरिया क्यों है. इस डायरी और इन चिट्ठियों ने माया की अनीता के प्रति सोच को काफी हद तक बदल दिया था. अब वो इस उलझन में थी कि वो इस बारे में अनीता से बात करे या ना करे. क्योंकि उसका ये कदम या तो सास बहू के इस रिश्ते को सुधार सकता था या पूरी तरह खत्म कर सकता था. 

इसी बीच आरव और विक्रम के बीच एक बार फिर से बहस शुरू हो चुकी है. आरव ने विक्रम को बता दिया है कि उसे उनके बैंक लोन के बारे में पता चल चुका है. वो कहता है

आरव: “एक तरफ आप चाहते मैं बिजनेस सम्भालूं और दूसरी तरफ आपने अभी तक इतनी बड़ी बात मुझसे छुपायी. पापा क्या आप मुझे इस लायक भी नहीं समझते कि मुझसे अपनी प्रॉब्लम शेयर करें?”

विक्रम: “नहीं, ऐसा होता तो तुम्हें इतनी बड़ी जिम्मेदारी देने की क्यों सोचता. मैं बस अपने बच्चों को परेशान नहीं करना चाहता. इसके बारे में मैंने किसी को नहीं बताया, तुम्हारी माँ को भी नहीं. लेकिन मैं इसे जल्दी सॉर्ट आउट कर दूंगा.”

आरव: “क्या आप बताएँगे कि कैसे करेंगे सॉर्ट आउट?”

आरव के इस सवाल का विक्रम के पास कोई जवाब नहीं है, वो वहां से उठ कर चला जाता है और आरव बस उन्हें जाता देखता रहता है. 

दूसरी तरफ निशा अपने परिवार पर आई इस नयी मुसीबत से अनजान अपने ही ख्यालों में गुम है. वो चेकअप कराने राहुल सक्सेना के क्लिनिक पहुंची है. राहुल अपने ऑफिस में है, वो निशा को देखते ही कुर्सी से उठ खडा होता है. दोनों एक दुसरे को ऐसे घूरते हैं जैसे बरसों पुराने साथी को एक दुसरे में खोज रहे हों. वक्त जैसे रुक सा गया है. दोनों में से कोई भी बोलने की पहल नहीं कर रहा. दोनों एक दूसरे को देखते हुए अपने पुराने दिनों को याद कर रहे हैं.  

क्या विक्रम अपने बिजनेस पर आई मुसीबत को टालने के लिए आरव की मदद लेगा? 

क्या निशा और राहुल एक दूसरे से अपने दिल की बात कह पाएंगे? 

जानेंगे अगले चैप्टर में!

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