जब कोई बाग़ किसी आंधी तूफ़ान में उजड़ता है तो, बाग़ के मालिक से ज्यादा दुःख उसके माली को होता है. माली ने ही उस बाग़ के एक एक पौधे को बच्चे की तरह सींचा होता है. उन्हें बड़े होते देखता है, फलते फूलते देखता है और फिर एक दिन एक आंधी सब तबाह कर जाती है. 

आज रघुपति शर्मा उसी बर्बाद हुए बाग़ के माली की तरह हो गए थे. उन्होंने हमेशा ही आरव और निशा को अच्छे संस्कार देने की कोशिश की थी. रघुपति से ज्यादा राघव पुकारे जाने पर खुश होने वाले दादा जी भले ही आज के ज़माने के हिसाब से ढलना चाहते हों लेकिन वो इतने भी मॉडर्न नहीं होना चाहते कि एक बेटे को अपने बाप से झगड़ता देख मज़े लेने लग जाएं. इन दिनों घर में चल रहे बाप बेटे के कलेश ने उन्हें इस सोच में डाल दिया है कि उन्होंने हमेशा इन बच्चों का साथ देकर गलत तो नहीं किया?

अनीता अभी तक फंग्शन से नहीं लौटी, सुमित्रा जी अपने कमरे में सो रही हैं. माया कबीर के साथ उसके स्कूल का कुछ सामान लेने गयी है. निशा इस समय अपनी जिंदगी के एक नए चेप्टर की शुरुआत में व्यस्त है. एक दूसरे से बहस करने के बाद विक्रम और आरव भी कुछ समय के लिए घर से बाहर चले गए हैं. 

इधर घर के हॉल में सिर्फ एक टेबल लैंप का उजाला है. दादा जी अकेले बैठे अपनी फैमिली फोटो को घूरते हुए बहुत कुछ सोच रहे हैं. उन्हें फैमली फोटो में आई दरारें और ज्यादा बढ़ती हुईं दिख रही हैं. उन्हें आरव और विक्रम की बातचीत से समझ आ गया है कि ये परिवार सिर्फ कलेश से ही नहीं बल्कि फाइनेंशियल प्रॉब्लम से भी जूझ रहा है. दादा जी की उदासी की असल वजह ये है कि ऐसे हालत में भी आरव अपने पापा के साथ नरमी से पेश नहीं आ रहा.

आरव घर लौट चुका है, वो दादा जी को अँधेरे में बैठे देख उनसे पूछता है

आरव: “दादू ऐसे अँधेरे में क्यों बैठे हैं? तबियत तो ठीक है ना.”

इसी के साथ वो हॉल की लाइट्स ऑन कर देता है. वो देखता है कि दादा जी की आँखों में आंसू हैं.

आरव: “दादू आप रो रहे हैं? क्या हुआ आपको, सब ठीक है ना?”

आरव दादा जी के पास बैठते हुए उनसे पूछता है. उसके सवाल पर दादा जी उसकी तरफ कुछ देर घूरते हैं.

रघुपति: “तू पूछ रहा है कि सब ठीक है? तुझे नहीं पता कि कुछ ठीक नहीं चल रहा है.”

आरव समझ जाता है कि दादा जी उसके और पापा के बीच बिगड़ रहे रिश्ते को लेकर परेशान है. वो कुछ नहीं बोलता.

रघुपति: “जानता है आरव, मैं हमेशा तेरे हर फैसले के साथ खड़ा रहा. यहाँ तक कि मैंने कभी शराब को हाथ नहीं लगाया फिर भी जब तू पहली बार ड्रिंक कर के घर आया तो वो मैं ही था जिसने तुझे सबसे बचाया. जानता हूँ तूने भी मेरी हर बात मानी, तू ने उस दिन के बाद कभी शराब को नहीं छुआ. मैंने हमेशा इस बात पर प्राउड फील किया कि मेरे बच्चे बाकी बच्चों के मुकाबले बहुत नेक हैं लेकिन तू ने मेरा मान तोड़ दिया यार.”

इतना कह कर दादा जी फूट फूट कर रोने लगे. आरव ने कुछ बोलना चाहा मगर दादा जी ने उसे चुप करा दिया.

रघुपति: “नहीं तू कुछ नहीं बोलेगा अब, तुझे जितना बोलना था वो तूने विक्रम के सामने बोल लिया. तू उसे ताने देता है लेकिन क्या तू ये जानता है उसने इस फैमिली बिजनेस के लिए क्या कुर्बान किया है? उसके बलिदान के आगे हम सबका बलिदान फीका है मेरे बच्चे. हमने कभी भी इस बारे में बात नहीं की लेकिन आज मैं तुझे अपने परिवार के बारे में कुछ ऐसी बातें बताउंगा जिनके बारे में तू ने पहले कभी नहीं सुना होगा.”

आरव दादा जी के पास बैठा उन्हें चुपचाप सुनने लगा.

रघुपति: “हम दो भाई थे, मैं रघुपति शर्मा और वो रामानुज शर्मा. जैसा नाम वैसा ही नेचर था उसका. वो खुद को लक्ष्मण तो मुझे राम मानता था. पीढ़ियों से चले आ रहे इस टेक्सटाइल बिजनेस की जिम्मेदारी पिता जी के बाद अब मेरे कन्धों पर आने वाली थी लेकिन मैं पढ़ाना चाहता था. पैसे से मुझे कभी मोह नहीं था, मुझे बस अपना पैशन फ़ॉलो करना था लेकिन हम लोग तुम्हारी जनरेशन की तरह इतने फ्रैंक नहीं थे अपने परेंट्स से कि पिता से अपनी बात कहने और उनसे बहस करने की हिम्मत कर पाते. मैं रामानुज पर ये जिम्मेदारी डालने की हिम्मत नहीं कर सकता था क्योंकि वो उन दिनों हॉकी के लिए पागल था. वो हॉकी का गोल्डन पीरियड था. रामानुज कमाल था इस खेल में, स्टेट लेवल तक अपनी पहचान बना चुका था. उसी बीच पिता जी चल बसे. बिजनेस मुझे सम्भालना था और इधर बतौर टीचर मेरा सलेक्शन हो चुका था. जिस दिन का मुझे हमेशा से इंतज़ार था वो दिन मेरी ज़िंदगी का सबसे उलझा हुआ दिन साबित हो रहा था. मैं बिजनेस भी नहीं छोड़ सकता था क्योंकि उसी के सहारे परिवार भी चलाना था और लोन भी चुकाने थे.”

दादा जी का गला भर आया.

रघुपति: “रामानुज पहले से ही मेरी परेशानी जानता था और उसे पता था कि मैं उसे ये सब कभी नहीं बताऊंगा. वो उसी दिन मेरे पास आया और बोला, भैया आप ज्वाइन कर लो, बिजनेस मैं सम्भाल लूंगा.”

मैंने उसे बहुत समझाया कि बिजनेस कि चिंता मत कर बस अपने खेल पर ध्यान दे मगर वो नहीं माना. उसने मेरे लाख मना करने पर भी हॉकी को छोड़ दिया. उसने इसके लिए अपनी सारी मेहनत झोंक दी. बिजनेस को इतना ऊपर ले गया जितना पिता जी ने भी नहीं सोचा होगा. इधर मैंने शादी कर ली, तेरे पापा का जन्म हो गया. मैं अपने मन का काम करते हुए परिवार के साथ खुश रहने लगा. रामानुज बिजनेस को लेकर इतना पागल था कि महीनों घर से बाहर रहता था. दिन रात बस काम काम काम.”

आरव उनकी सभी बातें बड़े गौर से सुन रहा था. 

कहीं ना कहीं मुझे इस बात का पछतावा था कि मेरी वजह से रामानुज ने अपना परिवार नहीं बसाया. हालांकि उसको इस बात का बिलकुल अफ़सोस नहीं था. मैंने फैसला कर लिया था कि अब उसकी शादी करवा के ही मानूंगा लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था. मेरा भाई एक कार एक्सीडेंट में….”

इससे आगे दादा जी बोल नहीं पाए उनके आंसुओं ने आगे की सारी कहानी बयान कर दी. 

रघुपति: “... और जिस बाप को तू कोसता है ना वो एक सिंगर बनना चाहता था. मगर हालात कुछ ऐसे बन गए कि उसे अपना सपना छोड़ इस बिजनेस को सम्भालना पडा. आज भी उसे देखता हूँ तो मुझे खुद पर गुस्सा आता है. वो जो कभी अपने गीतों से सबका दिल जीत लेता था उसे बिजनेस सम्भालने के बाद कभी गुनगुनाते हुए भी नहीं सुना. उसने कभी मुझसे शिकायत नहीं की. और तू लोन के लिए उससे गुस्सा हुआ था ना? तो एक बात जान ले एक पिता अपने बच्चों को सिर्फ खुशियाँ देना चाहता है, वो पूरी कोशिश करता है कि अपने बच्चों को किसी भी प्रॉब्लम से दूर रखे. उसने भी इसीलिए हम सबसे ये बात छुपायी. बाकि बिजनेस में घाटा नुक्सान आम बात है. वो आज उलझा है तो कल सब कुछ ठीक भी वही करेगा. तू भले उसका साथ ना दे मगर उससे कभी ऊँची आवाज़ में बात मत करना. वो मेरा बेटा है और मुझे हमशा से उस पर गर्व है.”

आरव के पास कहने को कुछ नहीं था. उसकी भीगी आंखें बता रही थीं कि उसे भी पापा से बहस करने और उन पर चिल्लाने का अफ़सोस है. इधर विक्रम बहुत देर से दरवाजे पर खड़े दोनों की बातें सुन रहे थे. पिता के उनके लिए इस अनदेखे प्यार ने उन्हें भी रोने पर मजबूर कर दिया. 

शाम होने तक माया और कबीर भी लौट आये थे. कबीर के हाथों में ढेर सारा सामान था. उसे स्कूल प्रोजेक्ट तैयार करना था जिसमे उसे फैमिली ट्री बनाना था. आज शर्मा परिवार में तूफ़ान के बाद वाला सन्नाटा छाया हुआ था. किसी को समझ नहीं आ रहा था कि बात कहाँ से शुरू करे. इसी बीच कबीर ने अपने स्कूल प्रोजेक्ट का जिक्र किया. 

कबीर: “बड़े दादू मुझे फैमिली ट्री बनाना है. क्या आप मेरी हेल्प करोगे?”

आरव को अपनी बातें सुनाने के बाद राघव जी भी काफी सुकून महसूस कर रहे थे. उन्हें यकीन था कि उनकी कही बातों का आरव पर असर जरूर होगा. 

रघुपति: “हां हां, क्यों नहीं हेल्प करेंगे. तो शुरू करिए अपने सवालों का सिलसिला. क्या जानना चाहते हैं आप.”

दादा जी ने अमिताभ बच्चन की आवाज़ में अपनी बात कही. जिस पर सभी के चेहरों पर मुस्कराहट आ गयी और कबीर खिलखिला कर हंस पड़ा.

कबीर: “मुझे अपनी पूरी फैमिली के बारे में जानना है…सबके बारे में.”

रघुपति: “तो सुनिए, वैसे तो हर परिवार का इतिहास इतना बड़ा होता है कि बताते बताते कई दिन बीत जाएं, मगर मैं तुम्हें सिर्फ अपनी फैमिली के बारे में बताता हूँ. सुक्खन शर्मा मेरे पापा के ग्रेट ग्रेट ग्रांड फादर थे. उनके चार बेटे और एक बेटी. जिनमे सबसे बड़े थे मेरे पापा के ग्रेट ग्रैंड फादर राम बिहारी शर्मा. उनके 3 बेटे और चार बेटियां. जिनमें दूसरे नंबर के बेटे थे मेरे पापा के ग्रेंड फादर तुलसी राम शर्मा. जिनके दो बेटे और एक बेटी थीं. उनके छोटे बेटे यानी मेरे ग्रेंड फादर का नाम था विमल शर्मा. उनके इकलौते बेटे थे मेरे पिता जी निर्मल शर्मा. उनके दो बेटे मैं रघुपति यानी राघव शर्मा और मेरा भाई रामानुज…”

इतना कहते हुए एक बार फिर से दादा जी का गला भर आया. आरव ने उन्हें एक बार देखा और आंखें झपका कर उन्हें हिम्मत दी. दादा जी ने भी खुद को सम्भाला और आगे बताने लगे.

रघुपति: मैं रघुपति शर्मा, जिसके दो बेटे..”

यहाँ दादा जी आगे बोलते उससे पहले ही सभी की नजरें उन पर जम गयीं. खास कर विक्रम की, वो ये सुन कर नाराज़ नहीं बल्कि हैरान हुआ. 

कबीर: “... मगर बड़े दादू, दादू तो अकेले हैं ना फिर आपने दो बेटे क्यों कहा?.”

कबीर ने हमेशा की तरह उनकी बात नोट करते हुए सवाल कर दिया.

रघुपति: “मैं तो चेक कर रहा था कि तुम मेरी बात को समझ पाए हो या नहीं. आपने सही पकड़ा है. आपको इनाम में मिलेगी दो चॉकलेट.”

दादा जी ने बात को बदलने के लिए एक बार फिर से अमिताभ बच्चन की आवाज़ निकलने की कोशिश की. 

कबीर: “येईईईई येयेये… मुझे दो चॉकलेट का इनाम मिलेगा.”

कबीर कुर्सी से उठ कर नाचने लगा जिससे सब उसे देख कर ज़ोर से हंस पड़े. कबीर के इस स्कूल प्रोजेक्ट के बहाने कुछ देर के लिए ही सही मगर शर्मा परिवार के चेहरे की हंसी लौट आई थी. 

दूसरी तरफ निशा और राहुल की मुलाक़ात हो गयी है. निशा को पता चल चुका है कि दो साल पहले उसकी पत्नी की मौत हो गयी. जिसके बाद वो इंडिया लौट आया और अब अपना क्लिनिक चलाता है. उसे राहुल के बारे में और भी बहुत कुछ पोजिटिव पता चला है जिस वजह से उसके दिल में उसके लिए फिर से जगह बन गयी है. दोनों शाम को बाहर घूमने भी गए और उसी दौरान फंग्शन से लौट रही अनीता ने उन्हें देख लिया. 

अनीता राहुल और उसके परिवार को अच्छे से जानती है और उसे ये भी पता है कि राहुल की पत्नी अब इस दुनिया में नहीं है. उसने  निशा और राहुल को हंस हंस कर बातें करते देखा, जिसके बाद उसके मन में ये डर बैठ गया है कि कहीं निशा उसे पसंद करने लगी तो लोग कैसी कैसी बातें करेंगे. 

इधर कबीर के साथ भले ही दादा जी खूब हँसे हों लेकिन उसके कुछ सवालों ने उन्हें सोच में डाल दिया है. खास कर जब उन्होंने कहा कि उनके दो बेटे हैं. 

क्या सच में रघुपति शर्मा के दो बेटे हैं, अगर हां तो दूसरा बेटा कहाँ है? 

क्या अनीता को निशा और राहुल का साथ मंजूर होगा? 

जानेंगे अगले चैप्टर में!

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