एक मशीन की तरह रिश्तों को भी समय समय पर सर्विसिंग की ज़रुरत होती है. रिश्तों की सर्विसिंग के लिए सबसे ज़रूरी हैं शिकायतें. ये शिकायतें ना हों तो हम जान ही नहीं पाएंगे कि अपने सबसे खास लोगों के प्यार में हम कहाँ कमी कर रहे हैं.
आज शर्मा परिवार में ऐसी ही मीठी शिकायतों की ज़रुरत है जो एक दूसरे के अंदर भरी हर कड़वाहट को निकाल कर रिश्तों को और मजबूत बनाए.
माया के मन में भी आरव को लेकर ऐसी ही शिकायतें भरी पड़ी हैं. माया पुराने दिनों को याद कर रही है जब आरव चाहे कितना भी थका हो, घर लौटने के बाद उससे बात करना नहीं भूलता था. कई बार माया अपने ऑफिस के किस्से सुनाते सुनाते रात के 2 बजा दिया करती थी लेकिन आरव कभी नहीं कहता था कि उसे सोना है या जल्दी ऑफिस जाना है. पिछले कुछ समय से आरव अपने नए बिजनेस की भागदौड़ और पारिवारिक उथल पुथल में ऐसा उलझा है कि माया को बिलकुल समय नहीं दे पा रहा.
पिछले दो दिनों से माया और आरव के बीच एक मिनट भी बात नहीं हुई है लेकिन आज माया बर्दाश्त नहीं कर पा रही है. वो अपने आंसुओं को रोक नहीं पा रही है. आरव रूम में आया तो उसने देखा कि माया अभी तक जाग रही है. उसने उसे रोते हुए भी देख लिया.
आरव: “अब तुम्हें क्या हुआ? क्यों रो रही हो?”
आरव ने ये बात ऐसे कही जैसे माया का रोना कोई मायने ही नहीं रखता.
माया: “हुआ ये है कि, तुम बदल गए हो. पहले मेरी उदासी तक तुमसे देखी नहीं जाती थी और आज मेरा रोना भी तुम्हारे लिए नार्मल हो गया है.”
आरव: “माया तुम ओवर रिएक्ट कर रही हो. तुम्हें भी पता है मैं इनदिनों कितना परेशान हूँ. इसमें रोने जैसा कुछ नहीं.”
आरव अभी भी अपनी गलती मानने को तैयार नहीं था.
माया: “यही तो दिक्कत है आरव, पहले तुम्हें हम दोनों की परेशानियां दिखती थीं लेकिन अब तुम बस अपनी परेशानी देख रहे हो. मैं तुमसे ये नहीं मांग रही कि मुझे कहीं घुमाने ले जाओ, या मुझे शोपिंग कराओ. मैं तुमसे बस पहले की तरह तुम्हारा साथ मांग रही हूँ.”
आरव: “वो तो हम अभी भी हैं ना!”
माया: “नहीं आरव मुझे ये साथ नहीं चाहिए. मुझे मेरा वो आरव चाहिए जो दुनिया से परेशान होने पर अपनी माया को खोजता था. उसके पास बैठ कर डिस्कस करता था कि उसे क्या करना चाहिए. मुझे मेरा वो आरव चाहिए जो अपनी माया से बात करने में कभी सोचता नहीं था. तुम अब मुझसे कितनी बातें कर रहे हो? पिछले दो दिन में हमने एक दूसरे से कितनी बात की है? तुम्हारे पास सिर्फ दो ही बाते हैं तुम्हारा बिजनेस आइडिया और ये फैमिली. इस बीच तुमने मुझे पूरी तरह से भुला दिया है आरव. मुझे भी हमारी फैमिली की परवाह है. मैं भी चाहती हूँ कि हम सब एक साथ खुश रहें मगर मुझे तो लगता है जैसे तुम मुझे इस फैमिली का हिस्सा ही नहीं मानते.” माया के आंसू और तेज बहने लगते हैं.”
आरव: “कैसी बातें कर रही हो माया? मैं जो कुछ भी सोच रहा हूँ वो तुम्हारे और कबीर के लिए ही तो सोच रहा हूँ.”
माया: “मुझे और कबीर को इस बीच में मत मिलाओ. कल को तुम ये कहना कि पापा जी से बहस भी तुमने हमारे लिए ही की. लेकिन सच ये है आरव की ये सब तुम बस अपने इगो के लिए कर रहे हो.”
आरव कुछ नहीं बोला. लग रहा था जैसे वो माया की इस बात से सहमत हो.
माया: “तुम जानते भी हो पिछले दिनों मैंने क्या क्या झेला है? अगर निशा सही वक्त पर मुझे ना सम्भालती तो मैं आज जॉब छोड़ चुकी होती.”
माया ने अपनी जॉब छोड़ने का डिसीजन लेने वाली बात आरव को बता दी.
आरव: “ये क्या कह रही हो, तुमने मुझसे बात क्यों नहीं की.”
माया: “मैंने कोशिश की थी लेकिन तुम्हारे पास अपनी ही इतनी परेशानियां थीं तो मैंने सोचा जब तुम थोड़े नार्मल हो जाओगे तो बताउंगी मगर तुम तो परेशान होने के साथ साथ मुझसे दूर भी हो गए.”
आरव को अब धीरे धीरे ये अहसास होने लगा था कि माया का कहना एकदम सही है.
एक ही छत के नीचे आज शिकायतों का डबल हेडर मैच चल रहा था. एक और तरफ माया और आरव थे तो दूसरी तरफ थी निशा और अनीता जी. निशा जबसे राहुल से मिल कर लौटी थी तबसे बहुत खुश थी. बातों बातों में दोनों के दिलों में दबा पुराना प्यार फिर से ताजा हो गया था. अभी वो सिर्फ अपने खुबसूरत सपनों में जी रही थी, उसने अभी सोचा भी नहीं था जब उनके इस रिश्ते की भनक अनीता जी को लगेगी तो क्या होगा.
इधर अनीता ने जबसे दोनों को एक साथ देखा था उनकी नींद उड़ गयी थी. सुबह वह सबके जागने से पहले ही निशा के रूम में पहुंच गयी. निशा सोयी हुई थी, उन्होंने उसे जगाया.
निशा: “मम्मी, क्या यार सोने दो ना.”
निशा इस तरह से नींद में थी कि उसने ये भी नहीं सोचा कि पिछले कई दिनों से उससे बात ना करने वाली माँ आज सुबह सुबह उसके कमरे में क्यों आई है.
अनीता: “मेरी नींदें उड़ा कर चैन से सोने की तो तुझे आदत पड़ गयी है. तुझे तब तक चैन कहाँ आता है जब तक तू मेरे लिए कोई नयी मुसीबत ना खड़ी कर दे.”
माँ के इतने लम्बे लेक्चर ने निशा को समझा दिया था कि बात कुछ ज्यादा ही सीरियस लग रही है.
निशा: “अब मैंने ऐसा क्या कर दिया मम्मी?”
अनीता: “पूरे शहर भर में परिवार की नाक कटवा कर पूछ रही है मैंने क्या किया! सब कोई बातें बनाएगा कि शर्मा खानदान की बेटी उस विधुर के साथ घूम रही थी.”
निशा: “व्हाट? विधुर? ये कौन है?”
निशा सोच में पड़ गयी कि वो तो किसी विधुर नाम के बन्दे को नहीं जानती.
अनीता: “अरे पागल वो डॉक्टर, कल मैंने तुझे अपनी आँखों से उसके साथ घुमते देखा.”
निशा: “हां, तो उसका नाम विधुर नहीं राहुल है।”
राहुल को याद करते ही उसके चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी और इस मुकुराहत ने अनीता के गुस्से में वैसे ही काम किया जैसे आग भड़काने में पेट्रोल करता है.
अनीता: “गाय हो या बैल, है तो विधुर ही ना, और विधुर कोई नाम नहीं, विधुर उसे कहते हैं जिसकी पत्नी मर गयी हो.”
निशा: “सो व्हाट? उसने तो नहीं मारा ना अपनी पत्नी को, वो एक लॉयल बन्दा है. ये सब किस्मत के हाथ में होता है मम्मी. उसकी कोई उम्र नहीं है, जल्दी शादी नहीं की होती उसने, तो आज भी एलिजिबल बैचलर कहलाता.”
अनीता: “तू ने आज तक कोई ऐसा काम किया है जिसे मैं ख़ुशी से सबके बीच बता सकूं? इसके बाद भी मैंने तेरी सारी हरकतें माफ़ कीं मगर ये मुझे कभी मंज़ूर नहीं होगा.”
निशा: “मम्मी आपको कब मेरी कोई बात मंज़ूर हुई है. वैसे तो मैं बस अभी उसके बारे में सोच रही हूँ, मैंने फैसला किया भी नहीं. और कर लूंगी तो मुझे कोई रोक भी नहीं पायेगा. रही आपकी बात तो आपको मेरे हर डिसीजन में दिक्कत होती है. बचपन से अभी तक आप कभी भी मेरी साइड पर खड़ी नहीं रही हैं जबकि मैंने जो कुछ भी किया वो इस फैमिली का प्राउड बढाने के लिए किया.”
अनीता कुछ बोलती इससे पहले बॉस दादी की कमरे में एंट्री हो चुकी थी.
सुमित्रा: “मैं तंग आ गयी हूँ तुम दोनों माँ बेटी के झगड़ों से. अनिता तू एक नंबर की लडाकी है. तुझे सास ऐसी मिली जिसने तुझे कभी किसी बात के लिए टोका नहीं, ननद तेरी थी नहीं, बहू तेरी दुनिया के सामने बोलती नहीं थकती मगर तेरे आगे ज़ुबान नहीं खुलती उसकी. अब दिक्कत ये है कि तू लड़े किससे, तो तूने अपनी बेटी से ही लड़ना शुरू कर दिया.”
सुमित्रा जी को यूं ही नहीं बॉस दादी कहा जाता. वो ज्यादा नहीं बोलतीं मगर बोलतीं है तो सबके मुंह सिल जाते हैं.
अनीता: “माँ जी, आप नहीं जानती इसने क्या किया है.”
सुमित्रा: “ओ तू चुप हो जा अनीता, मैं सब जानती हूं. वो अपने सक्सेना जी के लड़के की बात कर रही है ना तू? क्या खराबी है लड़के में. इतना सुन्दर है, डॉक्टर है. बहुत शांत लड़का है और फैमिली भी तो उसकी कितनी अच्छी है.”
अनीता: “मगर माँ जी उसकी…”
सुमित्रा: “हां मैं जानती हूँ. तो उसमें उस बिचारे का क्या कसूर है. अपनी बेटी की उम्र देखी है? जा खोज ला उससे अच्छा लड़का..जहाँ निशा शादी के नाम से चिढ़ रही थी वहां अब उसे कोई पसंद आया है तो तू बीच में खड़ी हो जा. अनीता समाज को छोड़ कर कभी तो एक माँ की तरह सोच ले. आज घर में इतने कलेश हो रहे हैं, समाज का कौन ऐसा आया है जो हमारी परेशानियां सुलझा दे. ये परिवार आपस में ही बैठ कर सब फैसले लेता आ रहा है. हमने ना पहले किसी की परवाह की है ना अब करते हैं.”
अनीता बॉस दादी के आगे एकदम चुप हो गयी थी.
सुमित्रा: “... और तू, तुझे लगता है कि तेरी माँ हमेशा तेरे खिलाफ रही है. ये आधा सच है, अभी आधा तुझे पता ही नहीं. जब तू इसे छोड़ कर विदेश चली गयी तो महीना भर चैन से ना सो पायी ना खाना खाया सही से. मैंने जब इसे बताया कि तू वहां अच्छे से सेट हो गयी है तब जा कर ये अपनी असल जिंदगी में लौटी. इसे पता होता था कि तू सबसे ज्यादा मुझे फोन करती है. ये चुपके से मेरे सिरहाने आ के बैठ जाती, कुछ नहीं बोलती और तब तक वहां से नहीं जाती जब तक मैं बता ना देती कि निशा ठीक है. तूने वहां जो जो किया ये अपनी किट्टी पार्टियों में सभी सहेलियों को बताती फिरती है. इसका फोन चेक कर ले, जो जो तस्वीरें तूने मुझे विदेश से भेजी हैं वो सब इसके फोन में हैं. मुझसे तस्वीरें लेकर सबको दिखाती फिरती थी कि ये देखो हमारी बेटी ने वहां घर लिया, यहाँ घूमने गयी, ये बिजनेस शुरू किया. तेरे लौटने पर हम सब खुश थे मगर तेरी माँ की ख़ुशी का अंदाजा शायद ही कोई लगा पाए. कल ये किसी फ़ंक्शन में नहीं गयी थी, तेरे ख़ुशी ख़ुशी लौटने की मन्नत मांगी थी वही पूरी करने गयी थी…”
बॉस दादी की बातें सुनने के बाद निशा अपनी माँ को ऐसे देख रही थी जैसे वो सालों बाद उसे मिली हो. माँ बेटी की आंखें जैसे बारिश की तरह बरस रही थीं.
सुमित्रा: “... और अनीता तू भी ये सुन ले ये वहां से जब फोन करती थी तो सबसे पहले यही पूछती थी माँ कैसी है. वो साड़ी जो तू सबको बताती है कि बहुत महँगी है ना वो इसी ने लेने को कहा था आरव से. तुम दोनों माँ बेटी कभी एक दूसरे से अलग थी ही नहीं, बस झूठ मूठ का पर्दा डाल रखा था. आज के बाद तुम दोनों को अगर मैंने लड़ते देख लिया तो समझ जाना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा. अब चलो अच्छे बच्चों की तरह गले मिलो.”
निशा उठी और उसने अपनी माँ को ज़ोर से गले लगा लिया. अनीता भी अपनी बेटी को सालों बाद इतना नजदीक पा कर बहुत खुश थी. दोनों फूट फूट कर रो पड़े. शर्मा परिवार को अभी ऐसे ही आंसुओं की ज़रुरत थी. बॉस दादी ने मिशन सक्सेसफुल होने पर खुद से ही खुद की पीठ थपथपा ली. जिसे देख अनीता और निशा हंस पड़े और उन्होंने दादी को भी अपने इस मिलन में शामिल कर लिया.
उधर आरव को अपनी गलती का अहसास हो चुका था. उसने माया से बार बार माफ़ी मांगी और वादा किया कि वो अब किसी भी सिचुएशन में उसे इग्नोर नहीं करेगा. आखिर में उसने माया को गले लगा लिया. दोनों कुछ देर और यूं ही एक दूसरे की बाँहों में रहते लेकिन उससे पहले ही कबीर आ गया. अब उसने भी दोनों को गले से लगा लिया. आज बहुत दिनों बाद परिवार ने ऐसी खुशियाँ देखी थीं.
क्या शर्मा परिवार की ये खुशियां ऐसी ही बनी रहेंगी?
क्या आरव अपने पिता विक्रम से माफ़ी मांग कर अपने फैमिली बिजनेस को सम्भालेगा?
जानेंगे अगले चैप्टर में!
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