भावुक और गुस्सैल ये दो किस्म के लोग सब कुछ कह देते हैं. इन्हें इस बात की परवाह नहीं रहती कि उनकी कही बातों का आगे चल कर क्या असर होगा लेकिन अपनी अकड़ में रहने वाले हमेशा बातों को दबा लेते हैं. ज्यादातर पापा लोग ऐसी ही अकड़ में रहते हैं. बच्चों के बड़े हो जाने के बाद भी उन्हें लगता है मैं सब कर लूंगा, मैं किसी को परेशान नहीं करूंगा. 

उम्र बढ़ने के साथ साथ उनकी यही आदतें उनके लिए हेल्थ इशुज़ खड़ी करती हैं. अब अपने विक्रम जी को ही देख लीजिये. उनका बेटा बड़ा हो चुका है, बेटी विदेश में नौकरी कर खुद को काबिल साबित कर चुकी है मगर फिर भी उन्हें आज भी सब कुछ अकेले ही करना है. पिछले दिनों शर्मा परिवार में जो भी हुआ वो सब बातें विक्रम के दिमाग में ऐसे उछल कूद मचाने लगीं कि उनका बीपी रॉकेट की रफ़्तार से ऊपर चढ़ गया. 

माया-आरव और निशा-अनिता का मिलन देख शर्मा परिवार अभी मुस्कुराने ही वाला था कि इतने में एक और मुसीबत दरवाजे पर दस्तक दे गयी. फैक्ट्री से आये एक फोन ने घर में हडकंप मचा दिया. पता चला कि फैक्टी का दौरा करने गए विक्रम साहब अचानक से बेहोश हो कर गिर पड़े हैं. जल्दी जल्दी उन्हें हॉस्पिटल पहुंचाया गया. निशा ने जल्दी से माया और अराव को कॉल कर हॉस्पिटल पहुँचने के लिए कहा. 

निशा माँ को लेकर सबसे पहले हॉस्पिटल पहुंची. सबकी धडकनें बढ़ी हुई थीं लेकिन हॉस्पिटल पहुंच के पता चला कि फ़िलहाल ये ज्यादा सीरियस मामला नहीं था. अचानक बीपी बढ़ने की वजह से वो बेहोश हो गए थे. डॉक्टर ने ये भी चेतावनी दी कि इन्हें कम टेंशन लेनी चाहिए और सेहत का ध्यान देना चाहिए. नहीं तो कब हार्ट अटैक आ जाये कहा नहीं जा सकता. हालांकि फ़िलहाल वो ठीक थे. सभी टेस्ट्स के रिजल्ट आने के बाद वो कल तक घर जा सकते हैं. 

कुछ देर में विक्रम को होश आ गया. निशा उनके पास बैठी थी. बाकी लोग बाहर थे. निशा उन्हें देख अपनी भीगी आँखों के साथ मुस्कुराई और उनके हाथों पर अपना सिर रख दिया. 

विक्रम: “तू कबसे रोने लगी निशा, मैं ठीक हूँ एकदम.”

निशा की आँखों से निकल रहे गर्म आंसू उनके हाथों को छूते हुए नीचे जा रहे थे. वो महसूस कर पा रहे थे कि निशा कितनी बुरी तरह रो रही है. 

निशा: “क्या यार पापा, क्या हालत बना ली है अपनी. किस बात की चिंता है आपको. लोन की, बिजनेस की? सब सॉर्ट आउट कर लेंगे यार. आप से बढ़कर कुछ भी नहीं है हमारे लिए. भाई भी वही करेगा जो आप कहोगे. आप बॉस हो यार बॉस की तरह ही रहो ना. ये बोहोश होना, ये हॉस्पिटल, ये बेड ये सब आम लोगों के लिए है, आप तो मेरे सुपर हीरो यार.”

निशा इतना रो रही थी कि उससे ठीक से बोला नहीं जा रहा था. उसकी बातें सुन विक्रम भी रो पड़े थे.

विक्रम: “कभी कभी सुपरहीरो भी बुरी सिचुएशन में फंस जाते हैं बेटा. इतना तो बनता है. बॉडी ही है कितना झेलेगी.”

निशा: “मुझे नहीं पता आप अब से मेरे हिसाब से चलोगे. देखती हूँ आपको कैसे कुछ हो जाता है.”

विक्रम: “अच्छा, ठीक है जैसा बोलेगी मैं करूँगा मगर तू पहले चुप हो जा. तू तो मेरा ब्रेव बच्चा है ना, रोने का डिपार्टमेंट आरव के पास रहने दे. याद है ना कैसे बात बात पर रो देता था.”

विक्रम ने माहौल को हल्का करने की कोशिश की. 

निशा: “हां और फिर मम्मी से मैं डांट खाती थी, मेरे राजा बेटा को रुला दिया.”

विक्रम: “मेरी रानी बेटी तो तू ही है ना.”

निशा विक्रम की बात पर मुस्कुरा देती है. इसके साथ ही बाकि सब भी अंदर आ जाते हैं. 

माया: “लो जी, हम बाहर टेंशन ले लेकर कमज़ोर हुए जा रहे हैं और यहाँ बाप बेटी गप्पे शप्पे मार रहे हैं.”

माया ने दोनों पर मीठा सा ताना मारते हुए कहा.

विक्रम: “तू भी आ जा गप्पें मार ले.”

माया: “नहीं मुझे बहुत काम है. आपके लिए फ्रूट्स काटने हैं, आपके लिए जूस लेकर आना है. भई मैं कोई बेटी थोड़े ना हूँ जो दो आंसू बहाए और राजदुलारी बन गयीं. हम तो मजदूर बहुएं हैं….. ससुर साहब जा रहे मजदूरी करने.”

माया ने अपनी फ़िल्मी अदाएं दिखाते हुए अपनी बात कही, जिसके बाद सब हंस पड़े. 

विक्रम: “अब तू मार खाएगी.” 

माया: “आप बस हर बार कहते हो, कभी मारते नहीं. पापा ने तो कभी मारा नहीं. यहाँ आई तो सोचा आपसे मार खाने का शौक पूरा हो जायेगा मगर आप बस बोलते हैं. आप ठीक हो जाओ तो इस बार सच में आप से मार खाऊँगी.”

माया हाथों में फ्रूट्स की प्लेट लिए विक्रम के बेड के नजदीक बैठ गयी. विक्रम ने उसकी आँखों में आंसू देखे तो समझ गया ये बाहर से रो कर आई है और यहाँ ऐसे दिखा रही जैसे सब नार्मल है. पहले माया और विक्रम खूब बातें करते थे. माया को कभी ये नहीं लगा कि वो अपने पापा से अलग हुई है. दूसरी तरफ निशा के जाने के बाद माया ने विक्रम को उसकी कमी कभी महसूस नहीं होने दी थी. 

विक्रम हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हो कर घर लौट आये हैं. उनके आते ही कबीर के सवाल शुरू हो चुके हैं. उसे सब जनना है कि उन्हें क्या हुआ था, डॉक्टर ने उन्हें क्या बताया, क्या वो फिर से हॉस्पिटल जायेंगे अगर हां तो क्या उसे भी अपने साथ ले जायेंगे? धीरे धीरे परिवार के सभी लोग विक्रम के पास चले आते हैं. आरव एक कोने में खड़ा उन्हें देखते देखते रो पड़ता है. वो अपने पिता की इस हालत का जिम्मेदार खुद को मान रहा है. 

विक्रम उसे अपने पास बुला कर समझाते हैं कि उसकी कोई गलती नहीं. विक्रम उसे कहते हैं कि वो भी कभी ये नहीं चाहते कि वो अपने बच्चों के सपनों के बीच आयें. लेकिन कई बार ऐसी सिचुएशन आ जाती है जब सपनों को छोड़ना पड़ता है. विक्रम सबको इस बिजनेस का इतिहास बताते हैं. 

राघव जी के दादा आजादी से पहले से कपड़ों का काम करते आ रहे थे. वो सर पर कपड़ों का मोटा गट्ठर ढो के गाँव गाँव जाते और उसे बेचते. वो जितनी मेहनत करते थे उतना फायदा उन्हें कभी नहीं हुआ. उनके पास सपने देखने का हुनर था. गरीबी में भी वो सोचा करते थे कि अगर यही कपड़ा हम खुद बना कर बेचें तो कितना मुनाफा होगा. उन्होंने खूब मेहनत की और कपडे का एक छोटा सा कारखाना शुरू किया. उनके बाद ये जिम्मेदारी राघव जी के पिता ने सम्भाली और इस फैक्ट्री को और बड़ा बनाया. देश की आज़ादी के बाद कारोबार के और भी कई रास्ते खुले जिससे इस पुरानी कंपनी को बहुत फायदा हुआ. 

वो इसे और बढ़ा पाते उससे पहले ही वो चल बसे. जिसके बाद राघव जी की जगह उनके भाई रामानुज ने इसे एक फैक्ट्री से बड़े बिजनेस में बदल दिया. उन्होंने अपना सबकुछ इस बिजनेस में झोंक दिया. कार एक्सीडेंट में उनकी मौत के बाद कुछ साल तक बिज़नस की रफ्तार धीमी रही. राघव जी एक प्रिंसिपल की नौकरी में खुश थे लेकिन उन्हें बार बार ये अफ़सोस होता था कि जिस बिजनेस को ऊपर उठाने में उनके परिवार ने जान झोंक दी, वो भला उसे कैसे छोड़ सकते हैं. उनके भाई ने इसके लिए हॉकी छोड़ी कभी घर नहीं बसाया. उन्हें लगने लगा कि अगर उन्होंन इस बिजनेस ko नहीं बचाया तो रामानुज की आत्मा उन्हें कभी माफ़ नहीं करेगी. 

इसी सोच विचार में 4 साल गुजर गए, फैक्ट्री का काम कुछ इमानदार कर्मचारियों के दम पर जैसे तैसे चलता रहा. धीरे धीरे बिजनेस लगातार घाटे में जाता रहा. राघव जी को चिंता होने लगी क्योंकि विक्रम के लिए इस बिजनेस से ज्यादा कुछ और जरूरी था और वो उस पर दबाव भी नहीं बना सकते थे. तभी उनके किसी अपने ने इस बिजनेस की जिम्मेदारी उठाने का फैसला किया. राघव जी की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा. उनहोंने बिना कुछ सोचे अपना सबकुछ बेचकर फिर से एक बार इस बिजनेस में लगा दिया मगर होनी को कुछ और ही मंज़ूर था. 

उनका वो अपना एक दिन सबसे नजरें चुरा कर इतनी दूर भाग गया कि दुबारा कभी नहीं लौटा. बिजनेस एक बार फिर से घाटे में जाने लगा लेकिन इस बार ये पहले की तरह आम बात नहीं थी. इस बार इस बिजनेस के डूबने का मतलब था शर्मा परिवार का सड़क पर आ जाना. राघव जी ने अपना सबकुछ इस बिजनेस में लगा दिया था. अब उनके पास कुछ नहीं बचा था. ऐसी सिचुएशन में विक्रम ने बिना किसी के कहे अपना सपना छोड़ इस बिजनेस का हाथ थामा और इस एक नयी और ऊँची पहचान दी. 

उनसे गलती यही हुई कि कोविड में उन्होंने अपने यहाँ काम करने वाले किसी भी मजदूर या कर्मचारी का चूल्हा नहीं बुझने दिया. 2 साल तक काम बंद पड़ा रहा मगर उनहोंने किसी की सैलरी नहीं रुकने दी. इसी घाटे को पूरा करने के लिए उन्हें बैंक से लोन लेना पडा.

इस बिजनेस का इतिहास और लोन के पीछे की सच्चाई जान कर हर किसी का मन कर रहा था कि वो विक्रम को सैल्यूट करे. आरव के पास कहने के लिए कुछ नहीं बचा था. 

कुछ देर बाद बॉस दादी कमरे में आती हैं जहाँ राघव जी अकेले बैठे हुए हैं. उनके चेहरे पर उदासी साफ़ झलक रही है. सुमित्रा जी उनके पास बैठती हैं. उन्हें हिम्मत देने की कोशिश करती है. दादा जी उन्हें बताते हैं कि बहुत सालों बाद उन्हें बहुत ज़ोर से डर लग रहा है. 

दादा जी की हालत उस किसान की तरह है जिसने बड़ी मेहनत से फसल उगाई है लेकिन बेमौसम मंडरा रहे बादलों को देख उसकी जान सूखी जा रही है. उन्होंने भी बड़े प्यार से इस परिवार को बांधे रखा है. एक तरफ जहाँ बच्चे अपने माँ बाप के साथ नहीं रहना चाहते वहां शर्मा परिवार की चार पीढियां एक छत के नीचे रहती हैं. ये बिजनेस और इस परिवार को बनाने में बहुत मेहनत लगी है लेकिन अब सिचुएशन ऐसी आ चुकी है कि कभी भी कुछ भी हो सकता है. 

उन्हें विक्रम के हेल्थ, बिजनेस के लिए उठाये गए लोन, आरव के फैसले और इस परिवार की एकता, सबकी चिंता है. हमेशा बिंदास रहने वाले दादा जी आज चिंताओं से घिर चुके हैं. सुमित्रा जी जानती हैं उनका डर बिलकुल जायज है. उन्हें भी पता है कि अगर ये बिजनेस ठप्प हुआ तो इस परिवार में ऐसी दरार आएगी जिसे दुबारा भरा नहीं जा सकेगा. 

आरव ने दादा दादी की बातें सुन ली हैं. उसके सामने अपने बीमार पिता का चेहरा और दादा जी की उदास आंखें घूम रही है. वो एक बार फिर से इस सोच में पड़ चुका है कि आखिर उसे क्या करना चाहिए. वो अपने परिवार के साथ खडा होकर इस बिजनेस को सम्भाले या फिर अपने सपनों की तलाश में अपना खुद का चुना हुआ रास्ता तय करे. वो अच्छे से जानता है कि अगर वो अपने चुने हुए रास्ते पर आगे बढ़ा तो सबका साथ छूट जाएगा. कबीर अब बड़ा हो चुका है, ये सवाल उसके दिमाग में हमेशा रहेगा कि आखिर क्यों हमें अपना घर और अपनों को छोड़ना पडा. क्या वो आगे चल कर एक परिवार की यूनिटी की वैल्यू समझ पाएगा?

आरव को ऐसे ढेरों सवाल परेशान कर रहे हैं जिनका जवाब सिर्फ उसी के पास है. जरूरत है तो बस फैसला लेने की. उसके लिए हुए फैसले से ही ये तय होगा कि इस परिवार का आने वाला कल कैसा होगा. अब आरव ही अपने परिवार और फैमिली बिजनेस को बचा सकता है. 

क्या आरव अपने परिवार को टूटने से बचाने के लिए अपने सपनों का बलिदान दे देगा? 

क्या दादा जी के आंसू और विक्रम की हालत आरव का मन बदल पायेंगे?

जानेंगे अगले चैप्टर में!

Continue to next

No reviews available for this chapter.