इंसान की सोच और हवा हमेशा एक दिशा में नहीं चलती, इनके रुख बदलते रहते हैं. इंसान अपने एक सपने के पीछे भागता रहता है लेकिन बीच रास्ते उसे कुछ ऐसा दिख जाता है कि मंजिल के करीब पहुंच कर भी वो अपना रास्ता बदल लेता है. जिंदगी में कई बार कठिन फैसले लेने पड़ते हैं.
आज शर्मा फैमिली का एक मेंबर भी अपनी जिंदगी का एक इम्पोर्टेन्ट फैसला लेने जा रहा है. भले ही उसने परिवार के हालात देख कर अपने सपने का पीछा करना छोड़ दूसरा रास्ता अपना लिया हो लेकिन अभी भी उसकी शर्तें हैं. तो चलिए जानते हैं कि शर्मा फैमिली को ये शर्तें मंज़ूर होंगी या नहीं.
पापा की बिगड़ी सेहत और दादा जी के आंसुओं ने आरव को सोचने पर मजबूर कर दिया है. पूरी रात सोचने के बाद आरव ने एक फैसला लिया है जिसका खुलासा आज वो नाश्ते से पहले कर देना चाहता है. वो आज सबसे पहले डायनिंग हॉल में पहुंच गया है. कबीर भी उसके साथ है. उसने कबीर के कान में कुछ कहा है और छोटा कबीर उछलता हुआ अपने खिलौनों के पिटारे से अपना प्लास्टिक का ड्रम निकाल लाया है.
कबीर के ड्रम की आवाज़ का मतलब यहाँ सब जानते हैं. जब किसी को इमरजेंसी मीटिंग बुलानी होती है तो वो कबीर के कान में एक कोड कहता है “इमरजेंसी” और कबीर सबके पास जा कर अपना ड्रम पीटते हुए सबको बुला लाता है. आज फिर से उसे ये काम सौंपा गया है. कबीर एक एक कर के सबके कमरों में जा रहा है और ड्रम बजाते हुए कह रहा है
कबीर: “पापा ने इमरजेंसी मीटिंग बुलाई है”.
निशा इस शोर से चिढ़ रही है उसे इतनी जल्दी उठने की आदत नहीं है. वो कबीर को नींद में ही डांट रही है लेकिन कबीर बाबा कहाँ मानने वाले हैं. हार कर निशा को अपनी नींद की कुर्बानी देनी ही पड़ती है.
अनीता और माया को जल्दी से नाश्ता बनाना है लेकिन कबीर उनकी भी एक नहीं सुनता. इधर विक्रम जी अब ठीक हैं और निशा की ज़िद पर उन्होनें मोर्निंग वाक शुरू कर दी है. वो अभी बस घर पहुंचे ही हैं कि कबीर के ड्रम का शोर उन्हें सुनाई पड़ गया है. उन्हें ये तो पता है कि आरव बिजनेस के सिलसिले में ही बात करने वाला है लेकिन वो श्योर नहीं हैं कि वो बिजनेस सम्भालने की हामी भरेगा या फिर अपने टेक बिजनेस की बात पर ही अड़ा रहेगा.
सभी लोग हॉल में पहुंच चुके हैं. आरव एक बार अपने पापा की तरफ देखता है और उनसे हाथ जोड़ कर पिछले दिनों हुई हर बात के लिए माफ़ी माँगता है. इसके बाद आरव बताता है कि वो फैमिली बिजनेस सम्भालने के लिए तैयार है. जिसे सुन कर पापा और दादा जी का दिल करता है कि वो उछल पड़ें लेकिन वो शांत रहते हैं. पापा को आरव की आदत का पता है, वो अगर उनकी किसी बात से एग्री करता है तो उसके साथ अपनी कुछ शर्तें भी रखता है.
विक्रम आरव से कहते हैं, क्या उसकी कुछ शर्तें भी हैं. जिस पर आरव ये सोच कर मुस्कुरा देता है कि उसके पापा उसे कितनी अच्छी तरह जानते हैं. वो हां में सिर हिलाता है जिसके बाद विक्रम एक लम्बी साँस लेकर उसे अपनी शर्तें बताने के लिए कहते हैं. इस बीच कबीर ने 2-3 बार बिना मतलब ही ड्रम बजाय. जिसके बाद बॉस दादी उसे अपने साथ कमरे में ले गयीं. वो जानती हैं कि इस माहौल में अगर एक और बार उसने ये गलती की तो डांट खा जायेगा और फिर पूरा दिन मुंह लटकाए फिरेगा.
आरव अपनी बात शुरू करते हुए कहता है
आरव: “मैं बिजनेस सम्भालता हूँ तो इसे लेकर मेरे अपने कुछ फैसले हैं. मुझे लगता है मेरा टेक का एक्सपीरियंस इस बिजनेस को और आगे तक ले जा सकता है. हम अभी सिर्फ फैब्रिक बना रहे हैं लेकिन मेरा मानना है कि अगर हम अपने बिजनेस में डिजाइनर कपड़ों को जोड़ लेते हैं तो ये बहुत आगे तक जायेगा. दूसरा ये कि हम इस बिजनेस को ऑफलाइन के साथ साथ ऑनलाइन भी ले जायेंगे और मेरा ज्यादा फोकस ऑनलाइन पर ही रहेगा.”
विक्रम: “लेकिन ऐसा क्यों? जब हमारे पास फैब्रिक के अच्छे क्लाइंट हैं फिर हमें डिजाइनर कपड़ों का पंगा लेने और ऑनलाइन जाने की ज़रुरत ही क्या है?”
विक्रम आरव के आइडिया पर थोड़ी चिंता जताते हैं.
आरव: “ज्यादा प्रॉफिट के लिए पापा. हम कपड़ा बनाते हैं, फिर अपने क्लाइंट को देते हैं वो डीलर को देकर सप्लाई करता है और वहां से कपड़ा दुकानों तक पहुंचता है, जहाँ से लोग इसे खरीदते हैं. नो डाउट हमारे कपडे की क्वालिटी बेस्ट है इसीलिए सालों से लोग हमारे ब्रांड पर ट्रस्ट करते हैं. अब अगर हम इसका फायेदा उठायें और लोगों तक अपने कपड़े को डिजाइनर क्लोथ में बदल कर ऑनलाइन ही उन तक पहुंचाने लगें तो सोचिये ये बिजनेस कितना बढेगा. मतलब हमें किसी भी मीडिएटर की ज़रुरत ही नहीं. हम सीधे ऑनलाइन अपना कपड़ा बेच सकते हैं.”
विक्रम: “मुझे नहीं लगता इससे कोई ज्यादा फायदा होने वाला है. और फिर डिजाइनर कपड़ों के लिए एक और प्लांट का खर्च हम अभी अफोर्ड नहीं कर सकते.”
विक्रम को आरव की बातें ज्यादा इम्प्रेस नहीं कर पा रही हैं.
आरव: “फंड मैं लेकर आऊंगा, इस फिल्ड में इन्वेस्ट करने वाले कई बड़े लोगों से मेरी सीधी बात है. और उसके बाद माया के कुछ अच्छे फ्रेंड्स हैं जो फैशन के फिल्ड में काफी एक्सपीरियंस ले चुके हैं.”
इस पर विक्रम कुछ देर सोचने के बाद कहते हैं कि वो डिजाइनिंग क्लोथ्स पर सोच सकते हैं लेकिन ऑनलाइन पर उन्हें भरोसा नहीं.
आरव अपनी बात जारी रखता है
आरव: “अच्छा पापा ये बताइए, आपने ये शूज़ कहाँ से लिए हैं? ऑनलाइन ही ना?”
विक्रम हां में सिर हिलाते हैं.
आरव: “दो साल पहले तक आप अपना हर सामान स्टोर से जा कर लाते थे लेकिन जब आपके फोन पर बार बार आपके ही ब्रांड का ऑनलाइन एड आने लगा तो आपने एक बार ट्राई करने का सोचा. जिसके बाद आपको ना सिर्फ डिस्काउंट मिला बल्कि क्वालिटी भी अच्छी मिली. जब आपकी जनरेशन ऑनलाइन पर इतना ट्रस्ट कर रही है तो सोचिये मॉडर्न लोग कितना ट्रस्ट करेंगे. घर का आधे से ज्यादा सामान ऑनलाइन आता है. ज़माना बदल रहा है. लोग अब ऑनलाइन सामन पर फुल ट्रस्ट करने लगे हैं.”
आरव के आइडिया पर सबकी अलग अलग सोच थी.
आरव: “वैसे भी मैं ये नहीं कह रहा कि हम अपना बिजनेस ऑफलाइन नहीं करेंगे. मेरा बस ये मानना है कि ऑनलाइन से हमें काफी फायदा हो सकता है.”
विक्रम के साथ साथ मॉडर्न ज़माने में खुद को ढालने की कोशिश करने वाले दादा जी भी आरव के इस आइडिया से ज्यादा इम्प्रेस नहीं दिख रहे थे. ये बात उनके चेहरे से साफ़ झलक रही थी. आरव लगातार उन दोनों को नोटिस कर रहा था. अपने आइडिया पर दोनों का कुछ ख़ास इंटरेस्ट ना देखते हुए आरव ने एक बार फिर से उन्हें समझाने की कोशिश शुरू की.
उसने उन्हें इस बिजनेस की हिस्ट्री का ही इग्ज़ैम्पल दिया. उसने कहा कि अगर दादा जी के दादा जी जो सर पर कपड़ों का बंडल रख पैदल ही गाँव गाँव जा कर कपड़ा बेचते थे, उन्होंने अगर अपनी सोच को ना बदला होता तो क्या वो उस कारखाने को शुरू कर पाते जिसके दम पर इतना बड़ा बिजनेस खड़ा हुआ है? आरव ने दादा जी के दादा जी से लेकर रामानुज तक का इग्ज़ैम्पल देते हुए उन्हें समझाने की कोशिश की कि टाइम के साथ बिजनेस में बदलाव और रिस्क दोनों ज़रूरी हो जाते हैं.
विक्रम के ऑनलाइन स्कैम के डर को दूर करने के लिए उन्हें समझाया कि वो उसके लिए एक पूरी आईटी टीम हायर करेगा जो हर समय हमारे अकाउंट्स पर नजर रखेगी और हमें किसी भी तरह के फ्रॉड या स्कैम से बचाएगी. इस मीटिंग का कोई हल ना निकलता देख एक एक कर के सभी अपने अपने काम में लौट रहे हैं.
बहुत कोशिशों के बाद आरव पापा और दादा जी को पूरी तरह कन्विंस नहीं कर पाता. दोनों ये फैसला लेते हैं कि जब हम इस बिजनेस को फैमिली बिजनेस कहते हैं तो इसमें होने वाले बदलाव के लिए भी पूरी फैमिली को डिसीजन लेना चाहिए. लास्ट में यही तय हुआ कि आज दिन भर सब आरव के आइडिया पर सोचेंगे और कल इस पर वोटिंग होगी. ये वोटिंग से ही डिसाइड होगा कि आरव के आइडिया को इस फॅमिली बिजनेस पर अप्लाई किया जाए या नहीं.
इस फैसले के बाद सब अपने अपने काम में लग जाते हैं. निशा भी इन दिनों अपनी आर्ट गैलरी की ओपनिंग को लेकर काफी बीज़ी है. उसे जल्द से जल्द इसकी ओपनिंग करनी है. घर के बाकी लोग ये फैसला नहीं ले पा रहे कि उन्हें बिजनेस के पुराने तरीकों के साथ ही आगे बढना चाहिए या फिर आरव के नए आइडियाज़ पर ट्रस्ट करना चाहिए.
आरव के मन में ये आने लगता है कि वो अपने फैमिली के लिए अपने सबसे बड़े सपने तक को छोड़ने को तैयार हो गया है फिर भी उस पर कोई यकीन नहीं कर रहा. वो देख रहा है कि परिवार में कोई भी उसके आइडियाज़ से पूरी तरह कन्विन्स्ड नहीं है. उसके अंदर एक खीज सी भर रही है सबको लेकर लेकिन वो खुद को शांत करता है और कल की वोटिंग तक का वेट करता है.
इधर निशा और राहुल की कहानी धीरे धीरे आगे बढ़ रही है. उनकी लगातार फोन पर बातें हो रही हैं और दोनों लगभग हर रोज़ मिल रहे हैं. आज निशा राहुल को अपनी आर्ट गैलरी दिखाने ले जा रही है. वो चाहती है राहुल उसके काम पर अपनी राय दे. इसी बीच वो राहुल को आज घर में जो हुआ उसके बारे में बताती है. राहुल उसकी बातें बहुत इंटरेस्ट लेकर सुन रहा है. वो पूछता है कि वो किसके फेवर में वोट करेगी.
इस पर निशा बताती है कि उसे आरव का आइडिया पसंद है लेकिन वो श्योर नहीं है कि आगे ये वर्क करेगा या नहीं. इस पर राहुल उसे पुश करता है कि वो आरव को फेवर करे. उसे आरव का आइडिया काफी पसंद आया है. राहुल का मानना है कि किसी भी बिजनेस में टाइम के साथ चेंज आना ही चाहिए.
वो शहर के सबसे मशहूर गोयल चाट का इग्ज़ैम्पल देता है कि ये दुकान शुरुआत में एक ठेले पर लगा करती थी. उनके स्वाद की वजह से उनका काम बढ़ने लगा जिसके बाद उनहोंने इस काम को बढाने के बारे में सोचा. उन्होंने पूरे शहर में अलग अलग जगह पर पांच ठेले लगवाए, उनके बाक़ी ठेले भी अच्छी कमाई दे रहे थे लेकिन उनकी मेहनत के हिसाब से प्रॉफिट नहीं आ रहा था. फिर इस काम की लगाम जब उनके बेटे के हाथ आई तो उसने सभी ठेले बंद कर, शहर के सबसे भीड़ भाड़ वाले इलाके में एक दूकान शुरू की और वहीं से अपना काम शुरू कर दिया. आज उनका चाट भंडार वर्ल्ड फेमस है.
राहुल कहता है कि अगर उन्होंने ये बदलाव नहीं किया होता तो शायद आज भी ठेला ही लगा रहे होते. निशा ने उसकी बातों को गौर से सुना और कुछ सोचने लगी.
इधर घर में भी सभी लोग इसी उलझन में उलझे हुए हैं कि वो किसे वोट करें. अनीता को बिजनेस की इतनी समझ नहीं है, उसके लिए तो मुश्किल है बेटे और बाप में से किसी एक की बात को वोट करना. माया भी फैमिली और अपने पति के बीच फंस गयी है. बॉस दादी के लिए भी इस पर एक फैसला लेना बहुत मुश्किल हो गया है.
कल की वोटिंग में किसकी जीत होगी?
क्या पूरी फैमिली एक साथ मिलकर आरव का साथ देगी या नहीं?
जानेंगे अगले चैप्टर में!
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