हम जब कोई काम शुरू करते हैं और वो सक्सेसफुल हो जाता है तो हम उसे जीवन का बड़ा दिन मानते हैं लेकिन असल में उससे भी बड़ा दिन वो होता है जिस दिन हम उस काम को शुरू करने का फैसला लेते हैं. किसी भी गोल ले लिए पहला कदम उठाना सबसे मुश्किल होता है.
जैसे शर्मा परिवार के लिए आज का दिन बहुत बड़ा है. आज तय होगा कि इनके बिजनेस का आने वाला कल कैसा हो सकता है. रात भर सिर्फ बॉस दादी और कबीर को छोड़ और कोई भी ठीक से सो नहीं पाया है. बॉस दादी जल्दी किसी बात की टेंशन नहीं लेतीं, कूल रहती हैं, हां लेकिन जब उन्हें टेंशन हो जाये तो पूरी फैमिली टेंशन में आ जाती है.
सुबह हो चुकी है. विक्रम आज जल्दी वाक पर चले गए थे इसीलिए घर भी जल्दी लौट आये हैं. दरवाजे पर भगत की दस्तक हो गयी है. भजन सालों से इस घर में दूध पहुंचाता है. बड़े दिनों बाद आज विक्रम दूध ले रहे हैं. उन्हें देख भगत काफी खुश होता है और पिछले दिनों उनकी बिगड़ी सेहत पर चिंता जताते हुए उन्हें अपने हिसाब से कई नुस्खे बताता है. विक्रम उसके मजे लेते हुए हंस देते हैं.
भगत जिस भी दरवाजे पर जाता है वहां लोग कितनी भी टेंशन में क्यों ना हों एक बार मुस्कुराने पर मजबूर ज़रूर हो जाते हैं. वो उन चुने हुए लोगों में से है जिन्हें लगता है कि उनके पास हर समस्या का सटीक समाधान है. यही वजह है कि जबसे उसका काम उसके बेटों ने सम्भाला है तब से उसे ज्यादा घरों में दूध देने नहीं भेजते क्योंकि उन्हें पता है कि जो काम 2 घंटे में होगा उसमें भगत को 5 घंटे लगने ही लगने हैं. पहले तो वो जिस दरवाजे पर चला जाए वहां उनकी 20 मिनट की गप्प पक्की होती थी. खुद विक्रम ही उससे कितनी बातें करते थे. मगर अब तो किसी के पास इतना समय भी नहीं.
भगत से बातें करते हुए विक्रम ये भूल ही गए कि आज उनके सिर पर कितनी बड़ी टेंशन है. जैसे ही उन्हें याद आया कि आज वोटिंग का दिन है वो कुछ सोच कर भगत से पूछ बैठे
विक्रम: “यार भगत तुम तो अपने धंधे में बड़े पुराने हो, क्या तुमने कभी इसे ऑनलाइन ले जाने का नहीं सोचा?”
भगत: “ऊ कौन जगह है बिक्रम बाबू? हम तो कभी नहीं गए.”
विक्रम: “अरे ऑनलाइन कोई जगह नहीं, इसका मतलब है मोबाईल पर ऑर्डर आये और तुम वहां तक सामान पहुंचा दो. तुम्हारे बच्चे नहीं कहते क्या ऑनलाइन बिजनेस शुरू करने के लिए?”
भगत: “ऊ ससुरा सबका क्या मजाल है जो हमको हुकुम दे. ऊ सबको अभी भी काम करने का अकिल नहीं है. एक बार शुरू किया था. एक जगह से ऑर्डर आया 20 किलो पनीर का. ये सब ना कोई एडवांस लिया ना हमसे बात किया और 40 किलो दूध फाड़ कर 20 किलो पनीर बना दिया, जब डिलीवरी देने एडरेस पर पहुंचा तो ऊ लोग लेने से मना कर दिया. बोला हम ऑर्डर ही नहीं किए. अब हम लोग तो ज्यादा दूध का ब्यापार करते हैं. इतने पनीर का क्या करते भला. बहुत कहे लेकिन नहीं लिया 20 किलो पनीर बर्बाद गया. उसका टीस आज भी कलेजा में उठता है बिक्रम बाबू. उस दिन हम बहुत गरियाये अपना बेटा सबको और बोले खबरदार जो फोना-फोनी पर विशवास कर के ऑर्डर लिया तो. तबसे कान पकड़ लिए हैं. अब बताइए कोई किसी के एक बार कहने पर कैसे विश्वास कर के सामान भेज देगा? कहीं पैसा नहीं दिया, या सामान छीन लिया, या ऑर्डर केंसिल कर दिया तो क्या करेंगे.”
भगत अपनी परेशानी बता रहा था लेकिन विक्रम इसे आरव के आइडिया से जोड़ रहे थे. वो भगत से और बात करते मगर इससे पहले अनीता आ पहुंची. अनिता इस बात पर गुस्सा गयी कि अंदर सभी चाय की वेट कर रहे हैं और यहाँ विक्रम भगत से गप्पें लड़ाने में बीज़ी हो गए.
कई बार होता है कि इंसान अपने दिमाग में एक फैसला फिट कर चुका होता है, फिर वो सही गलत नहीं देखता, उसे ज़रुरत होती है तो बस कुछ ऐसे लोगों की जो उसके जैसा सोचते हों. फ़िलहाल विक्रम के साथ ऐसा ही हो रहा था. उनहोंने मान लिया था कि बिजनेस के लिए पुराना तरीका ही सही है, अब वो बस भगत जैसे लोगों से सलाह ले रहे थे जो ठीक उन्हीं की तरह सोचते हों. भगत ही नहीं इसके साथ साथ विक्रम ने अब्बास मेहंदी, गुलमोहर, देवकी प्रसाद जैसे अपने कई दोस्तों को बहाने से ऑनलाइन बिजनेस पर राय देने के लिए कहा. उनकी एज ग्रुप के ज्यादातर दोस्तों ने ऑनलाइन बिजनेस को बेकार बताया और जिन्होंने इसका सपोर्ट किया विक्रम की उनसे बहस हो गयी. कुल मिला कर विक्रम आरव के फेवर में वोट नहीं करने वाले, ये बात तय है.
सभी नाश्ता कर रहे थे, इसी बीच आरव ने कहा
आरव: “शाम को जिसको जो काम है सब पोस्पोन कर दो, शार्प 7 पीएम हम सब इसी हॉल में मिलेंगे. फैमिली के लिए आज का दिन बहुत ख़ास है और मुझे पूरी उम्मीद है आज के दिन कोई लेट नहीं होगा.”
किसी ने कोई जवाब नहीं दिया बस हां में अपना सिर हिलाया और फिर से नाश्ता करने में जुट गए. माया कबीर को स्कूल लेकर जा रही थी और कबीर चिल्लाए जा रहा था
कबीर: “मुझे भी वोट डालना है’,
माया: “शाम को वोटिंग होगी, पहले स्कूल से आजा फिर वोट डालना.”
एक एक कर के सब चले गए. आरव को भी कुछ लोगों से मिलने जाना था लेकिन वो जल्दी घर लौट आएगा. दादा जी अपनी आराम कुर्सी पर बैठे सोच रहे हैं कि ये सब उनकी वजह से हो रहा है. उन्होंने अगर बिजनेस सम्भाल लिया होता तो रामानुज अपने हॉकी खेलने का सपना पूरा कर सकता था, विक्रम सिंगर बन सकता था. शायद आज आरव भी अपना खुद का बिजनेस करने के लिए आज़ाद होता.
स्कूल के बाकी टीचर्स भी उन पर हँसते थे. वो कहते थे लोग बिजनेस को पाने के लिए दुनिया से लड़ जाते हैं और ये इतने समझदार हैं कि बिजनेस को लात मार कर पढ़ाने चले आये. पढ़ाने से किसी का क्या ही संवार लेंगे लेकिन बिजनेस करते तो कम से कम ऐश की जिंदगी तो जीते.
दादा जी को कभी इन बातों से फर्क नहीं पड़ा. वो जैसे थे खुश थे. जबतक रामानुज ज़िंदा थे तब तक दादा जी ने कंपनी के एकाउंट से कभी एक चवन्नी तक नहीं निकाली थी. आज वो बस इसलिए दुखी थे कि उनके एक छोटे से सपने ने पूरे परिवार के लिए हमेशा मुसीबत ही खड़ी की है.
आरव घर वापस आ गया था. उसने लौटते हुए ये सोचा की एक बार और कोशिश कर के दादा जी को अपनी साइड किया जाए. आरव को बचपन में अगर कुछ चाहिए होता था तो वो चुप चाप उनके रूम में जाता और उनके पैरों के पास बैठ पैर दबाने लगता. दादा जी समझ जाते कि पक्का ये कोई नयी डिमांड लेकर आया है.
आज भी जब आरव उनके रूम में पहुंचा तो वो सोये हुए थे. बॉस दादी भी वहां नहीं थीं. वो जा कर उनके पैरों के पास बैठ गया और पैर दबाने लगा. थोड़ी देर में दादा जी की नींद खुल गयी. उनहोंने बिना पीछे मुड़े ही साफ कर दिया कि तेरी दाल नहीं गलने वाली. ना तो आरव अब बच्चा है और ना उसकी डिमांड ऐसी है जिसे सिर्फ दादा जी के कहने पर पूरा कर दिया जाए.
आरव ने उनसे ये पूछा भी कि आखिर उन्हें उनके आइडिया से दिक्कत क्या है? तब दादा जी ने बताया, ऐसा ही भरोसा वो पहले भी किसी पर कर चुके हैं और उसी भरोसे ने उनके परिवार को बड़ी मुसीबत में डाल दिया था. आरव इस बात पर गुस्सा हो जाता है कि दादा जी अपने पोते की बराबरी किसी ऐसे से कर रहे हैं जिसे वो जानता भी नहीं. दादा जी उसे समझाते हैं वो कोई अनजान नहीं था, उतना ही अपना था जितना की इस परिवार का हर मेंबर. आरव ने एक बार ज़िद भी की उनके बारे में बताने की मगर दादा जी ने यह कह कर टाल दिया कि समय आने पर वो सब बता देंगे. अभी बस मौजूदा प्रॉब्लम का सोल्यूशन खोजना चाहिए.
इधर माया भी आज ऑफिस में सही से काम नहीं कर पा रही. एक तरफ आरव उससे उम्मीद लगाये बैठा है कि आज कोई उसके साथ हो ना हो माया ज़रूर उसका साथ देगी. दूसरी तरफ वो फॅमिली के बारे में भी सोच रही है कि अगर सबने आरव के डिसीजन के खिलाफ वोट किया तब वो फैमिली के अगेंस्ट कैसे जा पाएगी. इसी उधेड़बुन्द के साथ वो ऑफिस का काम जैसे तैसे जल्दी निपटा रही है.
राहुल ने निशा को एक बार फिर से समझाया था कि वो आरव का साथ दे. लेकिन निशा भी फैमिली के खिलाफ जाने से डर रही है क्योंकि अभी अभी तो मम्मी के साथ उसके रिश्ते थोड़े सही हुए है. आगे उसे आर्ट गैलरी से लेकर राहुल से शादी तक हर किसी काम में फैमिली सपोर्ट की ज़रुरत है, ऐसे में वो भला कैसे फैमिली के अगेंस्ट जा सकती है. राहुल उसकी इस सोच पर हंसता है और उसे बताता है कि उस पर फिर से इंडियन फैमिलीज़ वाले नियम कानून का डर हावी हो रहा है, नहीं तो फैसला लेते समय उसने कब किसी की सुनी थी. निशा को राहुल की बात एक बार फिर से सोचने पर मजबूर कर देती है.
शाम के सात बज चुके हैं. हर कोई टाइम से पहुंच चुका है. सभी हॉल में बैठे हुए हैं. तभी कबीर की एंट्री होती है, उसने ढीला सा कुर्ता पहना हुआ है, ये आरव के बचपन का कुर्ता है. सब उसे देख हंसने लगते हैं और पूछते हैं कि उसने ये कुर्ता क्यों पहना है. तब वो बताता है कि जब दादू वोटिंग करने जाते हैं तो वो भी कुर्ता पहन कर ही जाते हैं इसीलिए उसने भी कुर्ता ही पहना है. इस टेंशन के माहौल में भी कबीर की वजह से कुछ देर के लिए सबके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है.
विक्रम कबीर को अपने पास बुलाते हैं उसे चुपके से एक चॉकलेट देते हुए उसके कान में कुछ कहते हैं. कुछ ही देर में वोटिंग शुरू हो गई. हॉल के बीचों बीच पड़े टेबल पर एक कांच का बाउल रखा हुआ है. साथ ही छोटी छोटी पर्चियां हैं. जिन पर सबको बारी बारी से यस या नो लिखना है. यस का मतलब होगा वोट आरव के फेवर में है और नो का मतलब उसके अगेंस्ट. नीचे सभी को अपने अपने साइन करने हैं. यहाँ आरव वोट नहीं डाल सकता. हर कोई एक एक चिट उठा लेटा है और लिखने लगता है. कबीर भी सबकी नक़ल कर चिट पर लिख देता है.
सबकी वोटिंग हो चुकी है. अब काउंटिंग की बारी है. पहली पर्ची अनीता जी की है, उन्होंने नो लिखा है. फिर माया की पर्ची निकली है जिस पर यस लिखा है. माया की पर्ची निकलने पर उसे दो नजरों ने बड़ी गौर से घूरा है. पहली आरव की नजर ने, उसके देखने में प्यार था क्योंकि उसने उसका भरोसा नहीं तोड़ा था और दूसरी नजर थी अनीता की, जो शायद कह रही थीं तुमसे ये उम्मीद नहीं थी. वहीं पापा और दादा जी की पर्ची पर नो लिखा था जो सब जानते थे. नो के फेवर में 3 वोट आ चुके थे अब फैसला बॉस दादी और निशा के वोट से होना था. कबीर का वोट नहीं माना जाएगा ये फैसला पहले ही हो चुका था.
निशा ने यस लिखते हुए अपने भाई का साथ दिया था. आरव लगभग मान चुका था कि उसकी हार पक्की है क्योंकि उसे लग रहा था शायद बॉस दादी दादा जी का साथ दें. लेकिन ये क्या, बॉस दादी ने गेम ही बदल दिया, उन्होंने लिखा है यस और ये मैच हो गया टाई.
टाई होने के बाद जीत का फैसला कैसे करेगा शर्मा परिवार?
क्या आरव की जीत का कोई दूसरा रास्ता निकल पायेगा?
जानेंगे अगले चैप्टर में!
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