साल था 2002, पहाड़ों पर ठंड ने दस्तक दे दी थी । हिमाचल की पहाड़ियों में बसा एक छोटा सा हिल स्टेशन ‘छैल’, जहां के जंगल, कोहरे की चादर ओढ़े पेड़ मानों खुद को किसी से यूँ छुपा रहे थे जैसे पेड़ वहां हैं ही नहीं। जो पर्यटक यहां शांति की तलाश में आए वो इस सन्नाटे के शोर में कहीं खो गए। भला ऐसा जंगल भी होता है जहां एक पंछी की चहचहाहट भी ना हो?
वहीं कुछ दूर नीचे इंसानों की एक बस्ती है जहां से रेल की पटरी इस पहाड़ के सीने को चीरती हुयी गुज़रती है। उस सिंगल पटरी पर अंग्रेजों के ज़माने में कभी रेल चला करती थी आज उस सुरंग के बाहर सिर्फ जंगली पौधों का घर है | कुछ स्थानीय किस्सों में उसे श्रापित सुरंग भी कहा गया है इसलिए यहां के लोगों ने हमेशा उस सुरंग से दूरी बनाए रखने का प्रयास किया।
छैल के बाहर एक छोटा सा बस स्टैंड बना है, जिसके आस पास इक्का दुक्का ही ज़रुरत की दुकानें हैं जहां सुबह ताज़े तेल में समोसे की पहली किश्त तली जाती है। पहाड़ों की जलेबी नुमा सड़क से होते हुए एक हिमाचल परिवहन की बस आ कर रुकती है, जिसमें एक साधारण सा दिखने वाला व्यक्ति समीर, उम्र तकरीबन 35 साल, बैठा था जिसने ठंड से बचने के लिए ऊनी, हाथ से बुने स्वेटर, मफ़लर और दस्ताने पहन रखे थे। एक लाल डायरी में कुछ पढ़ते पढ़ते मानो खो सा गया हो तभी कंडक्टर की आवाज आती है… “ओ साहब आ गया आपका छैल।”
समीर: ये छैल है? यहां तो कुछ भी नहीं है।
कंडक्टर ने कहा, “अरे बाबू, आज शुक्रवार है न, इसलिए ऐसा लग रहा है। छैल थोड़ा अंदर है, बस सिर्फ यहीं तक रुकती है, आगे कच्चा रास्ता है। आप किसी से पूछोगे तो बता देगा।”
समीर को कंडक्टर की ये बात समझ नहीं आई। फिर उसने ज़्यादा ध्यान न देते हुए अपने दस्ताने और डायरी को बैग में रख कर बस से उतर गया और वहीं एक छोटी सी समोसे की दुकान पर जा कर एक गरम समोसा और चाय की फर्माइश करने लगा। रात से कुछ खाया नहीं था उसने। दुकानदार से चाय लेते समय समीर ने उससे पूछा, यहां इतना सन्नाटा क्यूँ है? इतनी फेमस जगह पर कोई टूरिस्ट भी नहीं दिख रहा।
दुकानदार बस एक नज़र समीर को देखता है और कढ़ाई से समोसे बाहर निकालने लगता है। समीर को समझ नहीं आया कि ऐसा उसने क्या पूछ लिया जिसका जवाब ही नहीं दिया दुकानदार ने। इतने में वो अपनी घड़ी की तरफ देख कर बोला, सुबह के 9 बज रहे हैं और धूप का कोई अता पता ही नहीं है। पहाड़ों पर ठंड सच में बढ़ गई है।
दुकानदार ने अपनी बड़ी-सी थाल से एक समोसा प्लेट में रख कर समीर की तरफ बढ़ा दिया और बोला, “ये पहाड़ है साहब यहां दिन, रात और शाम इस घड़ी के हिसाब से नहीं बल्कि मौसम के हिसाब से होते हैं। नए मालूम पड़ते हो, कहाँ रुकना है छैल में?”
समीर उसकी तरफ देख कर कहता है -कोटी पहाड़ी के पास कोई अच्छा लॉज जानते हो तो बताओ।
कोटी पहाड़ी का नाम सुनकर दुकानदार समीर को ऐसे देखता है जैसे उसे किसी ने मौत का पता पूछ लिया हो। वो वापस अंदर जा कर बचे हुए समोसों की किश्त कढ़ाई में डालने लगा। फिर समीर की तरफ देखकर कहता है, “5 रुपये.. 3 का समोसा और दो की चाय।”
उस बाज़ार में कुछ तो सही नहीं था। हर इंसान जल्दी में था, बात तो दूर कोई किसी की तरफ देख भी नहीं रहा था। ये पहाड़ों पर आम तौर पर देखने को नहीं मिलता। 5 रुपए देने के बाद, समीर ने अपने बैग से एक नक्शा निकाला और अपनी मंजिल की तरफ चल पड़ा। कुछ दूर पैदल चल के उसे एक बोर्ड दिखा, जहां से एक पगडंडी ऊपर कोटी पहाड़ी के जंगल की तरफ जा रही थी और उस बोर्ड पर लिखा था- सूरज ढलने के बाद कोटी जंगल की तरफ जाना वर्जित है। सैलानियों से निवेदन है कि खराब मौसम में इस तरफ trekking या camping के लिए ना आयें।
समीर को बात समझ आ गई कि यही सही जगह है - यहां कहीं रुका जा सकता है। आसपास पूछताछ के बाद समीर को एक पुराना घर किराये पर भी मिल गया। एक बूढ़ा couple अपना बाहर वाला कमरा जिसकी खिड़की कोटी जंगल की तरफ खुलती है, समीर को किराये पर दे देते हैं इस शर्त पर कि सूरज ढलने के बाद वो खिड़की बंद रहनी चाहिए। समीर को वजह समझ नहीं आई। उसने सोचा कि क्या यहाँ कोई आदमखोर जानवर है? या फिर कोई ऐसी चीज़ जिससे लोग मुँह फेरकर रहने में सुरक्षित महसूस करते हैं?
खैर, समीर की दिलचस्पी इस रहस्य में इसलिए भी थी क्यूंकि वो इस केस को सुलझाने में अहम भूमिका निभा सकता है।
समीर एक डिटेक्टीव है जो छैल से गायब हो रहे पर्यटकों की तलाश में यहां आया है। कुछ देर आराम करने के बाद, वो अपनी डायरी खोलता है और चौंक जाता है। सबके गायब होने में एक बात common थी, हर बार जब ऐसा हुआ तो उस दिन शुक्रवार था। शुक्रवार के बाद से ही गायब tourists के परिवार वाले उनसे संपर्क नहीं कर पाए।
आज बस कंडक्टर ने भी समीर से कहा था कि आज शुक्रवार है इसलिए बाज़ार में सन्नाटा है, वो सोचने लगा कि आखिर ऐसा क्या है शुक्रवार में?
उसको बात समझ नहीं आयी और वो उस घर में अपना सामान रख किसी सुराग की तलाश में निकल पड़ा। बाहर उसने कुछ लोगों से बात करनी चाही और लोगों ने समीर से बात भी की लेकिन सिर्फ तभी तक जब तक उसने उनसे उन लापता लोगों के बारे में नहीं पूछा। शुक्रवार और लापता tourists पर सवाल सुनते ही लोगों के व्यवहार में अचानक बदलाव आ जाता और वो मुँह फेर कर चले जा रहे थे।
तभी समीर को एक उम्मीद की किरण नज़र आती है जब वो बाज़ार के पास एक आदमी से टकराता है।
समीर: जी क्या आप बता सकते हैं छैल में कुछ हुआ है क्या? समीर नाम है मेरा, आज ही यहां आया हूं। यहां के लोग तो बाहर वालों से ठीक से बात ही नहीं करते। बड़ी अजीब जगह है।
उस आदमी ने समीर की तरफ मुस्कुराकर देखा और कहा, ऐसा नहीं है समीर जी। बताइए क्या दिक्कत आ रही है आपको इस शहर में? मेरा नाम डॉक्टर रवि। मैं वो ऊपर कोटी जंगल की पहाड़ी पर ही अपनी पत्नी अंजलि और 10 साल के बेटे अथर्व के साथ रहता हूं | यहां का एकमात्र physician हूं इसलिए पूरे शहर में घूम घूम कर मरीजों से मिलने जाना पड़ता है क्यूंकि ऊपर पहाड़ी पर अक्सर लोग आना नहीं चाहते न।
समीर: क्यूँ? क्यूँ नहीं आना चाहते पहाड़ी पर? ऐसा क्या है?
रवि: बीमार के लिए उन पगडंडियों पर चढ़ कर उतना ऊपर आना थोड़ा मुश्किल हो जाता होगा समीर जी।
तभी समीर की नज़र डॉक्टर रवि के थैले पर पड़ी, जिसमें कोई भारी सी चीज़ मालूम पड़ रही थी। रवि ने समीर की नज़रों का पीछा किया और समझ गया कि वो क्या देख रहा है।
रवि: कुछ दिनों से सूरज नहीं निकला है यहां, इसलिए सोलर सिस्टम से चार्ज होने वाली बैट्री चार्ज नहीं हो पायी। इसे नीचे बिजली से चार्ज कर के शाम को लौटते समय वापस ले जाऊँगा ।
समीर: अच्छा.. वैसे डॉक्टर साहब मुझे लगता है कि इस शहर में बहुत से राज़ छुपे हुए हैं जिनके बारे में कोई बात नहीं करना चाहता।
रवि: आप तो कर रहे हैं और अगर आप कर रहे हैं, तो ज़ाहिर है आपने भी किसी से कुछ सुना ही होगा। तो इसका मतलब ये है कि लोग बात तो कर रहे हैं।
रवि की बात से समीर irritate होने लगा।
समीर: देखिए मैं सीधे मुद्दे की बात करूंगा इस शहर से बहुत से टूरिस्ट गायब हो रहे हैं। उनके परिजनों का कहना है कि यहां की स्थानीय पुलिस के पास इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है कि वो टूरिस्ट यहां कभी आए भी थे; ना किसी होटल या लॉज के पास कोई रिकॉर्ड है। आखिर मामला क्या है? हाँ, जानता हूँ की आप कहेंगे कि मुझे पुलिस स्टेशन जाना चाहिए ये सब जानने के लिए, लेकिन मुझे पहले इस शहर के लोगों से बात करनी है।
डॉक्टर रवि ने शांति से समीर की बात सुनी और फिर कहा, टूरिस्ट तो आते हैं यहां और वापस भी जाते हैं। आपको उनके गायब होने की खबर किसने दी?
समीर खुद को शांत रखते हुए डॉक्टर रवि से बात घुमाते हुए कहता है…'' डॉक्टर साहब शुक्रवार, ये शुक्रवार को ऐसा क्या होता है इस शहर में? उसी दिन लोग गायब हो रहे हैं। उस दिन का कोई रिकॉर्ड कहीं नहीं है। एक टूरिस्ट प्लेस पर शुक्रवार को भीड़ भी नहीं दिख रही। ‘’
डॉक्टर रवि समीर के कंधे पर हाथ रख कर बोले, देखिए समीर जी आप जो सुनते हैं उसपर भरोसा ना करें बल्कि यहां रह के देखें कि सच क्या है क्यूंकि यकीन सिर्फ आँखों देखी बात पर करना चाहिए। बाकी सब अफ़वाह है। आज मैं ज़रा जल्दी में हूं, कल आईए आप हमारे हिल हाउस पे, चाय पीते-पीते बात करते हैं।
इतना कह कर डॉक्टर रवि वहाँ से चले जाते हैं। समीर अपने किराये के घर में वापस आता है। उसके पास इस घर की एक चाबी है जिसके छल्ले पर लिखा था शांति निवास। समीर अंदर जाता है और आज की पूरी कहानी रोज़ की तरह अपनी डायरी मे लिखने लग जाता है।
शाम होने ही वाली थी और समीर को ये देखना था कि उसकी खिड़की से आखिर ऐसा क्या दिखता है जिसे देखना मना है। वो धीरे से खिड़की खोलता है और अचानक से तेज़ हवा उस खिड़की को बंद कर देती है। समीर दोबारा खिड़की खोलकर अपने दोनों हाथों से उसे पकड़ कर बाहर झांकता है। आसपास एकदम सन्नाटा था और किसी भी जानवर या खास कर के किसी कुत्ते के भौंकने की आवाज़ तक बंद हो चुकी थी। इतना सन्नाटा की ठंडी हवाओं की आवाज़ में भी कोई फुसफुसाहट सी घुली महसूस हो रही थी, जैसे वो भी किसी की मौजूदगी के खौफ में हो। समीर देखता है कि सामने वो बोर्ड है जो उसने सुबह देखा था। वहाँ से वो पगडंडी ऊपर की ओर जा रही थी और पहाड़ के कोने पर एक घर था, जहां से धुआं निकल रहा था, जैसे कोई खाना बना रहा हो। उसने सोचा कि जरूर ये डॉक्टर रवि का घर है। वो ये देख ही रहा होता है कि उसे एक आवाज़ सुनाई देती है। कोई उसका दरवाज़ा खटखटाता है। समीर तुरंत खिड़की बंद कर के दरवाज़ा खोलता है, तो देखता है वो बूढ़ी महिला खड़ी है जिन्होंने समीर को घर दिया था उनके हाथ में टिफ़िन था। बूढ़ी औरत बोली, “रात का खाना मैं तुम्हें दे दिया करूंगी, बस बाहर मत जाना। खाना खा के टिफिन बाहर दरवाजे पर रख देना, मैं ले जाऊँगी।”
कुछ देर बाद, समीर उस टिफिन से खाना खा ही रहा होता है कि अचानक बाहर उसे किसी के चीखने की आवाज सुनाई देती है, और वो वापस खिड़की खोलता है और वो जो देखता है उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं होता।
उस जंगल और पगडंडी के किनारे पर एक 10-12 साल का बच्चा था, जो ज़मीन से थोड़ा ऊपर उठा हुआ दिख रहा था और ऊपर की तरफ देख के चीख रहा था जैसे उसका शरीर किसी और आत्मा के अधीन हो।
समीर तेज़ी से अपने कमरे के बाहर निकलता है और दौड़ता हुआ उस पगडंडी की तरफ़ भागने लगता है और देखता है कि वो बच्चा धीरे धीरे पहाड़ के उस कोने की तरफ जा रहा था जहां डॉक्टर रवि का घर है, वो भी हवा में तैरता हुआ। बच्चे के पीछे एक नौजवान जो कि कोई tourist सा लग रहा था, अपने हाथ में torch लिए भाग रहा था, जैसे वो उस बच्चे को बचाना चाहता हो। ठंड में उस पहाड़ पर चांद की रोशनी में दिख रहा ये दृश्य समीर के रोंगटे खड़े कर देता है। वह थोड़ा और आगे बढ़ता है और अचानक से वो tourist, जो उस बच्चे का पीछा कर रहा था गिर जाता है और उसकी चीख उन वादियों में गूंज उठती है।
अचानक से समीर का शरीर ठंड और डर से अकड़ गया। वो भी उन पगडंडियों पर गिर गया, उसने बहुत कोशिश की उठने की पर ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उसे जकड़ रखा हो।
अगले दिन सुबह होती है और समीर खुद को एक पगडंडी पर गिरा हुआ पाता है। समीर को कुछ याद नहीं कि वो वहाँ कैसे आया?
उसकी जेब में वो चाबी थी, जिसपे लिखा था शांति निवास और वो नीचे उतर कर शांति निवास जाता है जहां बाहर ही उसका सामान रखा हुआ था। वो बूढ़ा couple उसे ऐसे देख रहा था जैसे वो कोई चोर हो।
समीर को पिछली सुबह इस शहर में उतर के खाए हुए समोसे के अलावा कुछ भी याद नहीं। सड़क किनारे बैग से अपनी डायरी खोलता है और उसकी आँखें हैरानी से बड़ी हो जाती हैं। वो देखता है कि बीते कल यानी शुक्रवार की तारीख का पन्ना खाली था। जैसे उसने कुछ लिखा ही नहीं।
समीर अपना समान समेटे वापस उसी बोर्ड के सामने खड़ा हो जाता है जहां पर लिखा था - सूरज ढलने के बाद कोटी जंगल की तरफ जाना वर्जित है। सैलानियों से निवेदन है कि खराब मौसम मे भी इस तरफ trekking या camping के लिए ना आयें।
क्या ये समीर का कोई बुरा सपना है या फिर एक भयानक सच? छैल में समीर के साथ पहले दिन जो कुछ हुआ, आखिर उसे क्यों नहीं याद रहा?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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