सारनाथ आने के बाद ही शाश्वत को उसकी खोई हुई उम्मीद मिलती है। अपने सच तक कैसे पहुँचा जाए, इसका रास्ता शाश्वत ढूंढ रहा है। बूढ़ी औरत के बारे में पता करने के लिए उसे महल के आस-पास की जगह को टटोलना पड़ेगा, जिसके लिए उसे अकेले महल की ओर जाना पड़ेगा। शाश्वत यह तय करता है कि वह अगली सुबह ही महल की ओर अकेला निकल जाएगा।
शाश्वत रूम में आते ही डायरी के पन्ने पलटने लगता है। सदियों पुरानी उस डायरी के पन्ने कहीं-कहीं से चूहों ने कुतर दिए हैं, कहीं-कहीं कुछ हिस्सा फटा हुआ है, और हर पन्ने के शब्द धुंधले हो चुके हैं। शाश्वत पन्ने पलटता है, और जैसे ही आखिरी पन्ने पर पहुँचता है, उसे हल्की-हल्की लिखी एक लाइन दिखती है: "इस जन्म तो क्या, अगले हर जनम में मेरी रूह पहचान जाएगी तुम्हें।"
शाश्वत इसे पढ़ता है और अपने पास रखे उस कागज़ के टुकड़े को डायरी में जोड़कर देखता है। तब उसे समझ आता है कि यह डायरी जिसने भी लिखी है, वह अमर के लिए लिखी गई है। शाश्वत उस डायरी के पन्नों में क्या लिखा है, यह समझने की कोशिश करता ही है कि तभी उसके दोस्त हर्ष का फोन आ जाता है। और एक बार फिर उसका लिंक अपने बीते हुए कल से टूट जाता है।
हर्ष: "बनारस क्या गया, तू तो भूल ही गया।"
शाश्वत: "भूला नहीं हूँ, काम बढ़ गया है। ऊपर से बॉस, बीवी की तरह हर मिनट की रिपोर्ट मांगता है।"
हर्ष: "यहाँ भी ऐसा ही हाल है। तू वापस कब आ रहा है?"
शाश्वत: "जब यहाँ का काम खत्म हो। हर दिन का नया काम!"
हर्ष: "कोई मिली?"
शाश्वत: "नहीं।"
हर्ष: "दोस्त से झूठ बोल रहा है?"
शाश्वत: "परीता नाम है उसका।"
हर्ष: "क्या करती है?"
शाश्वत: "ऑफिस में ही है। वास्तु कंसल्टेंट और एस्ट्रोलॉजर। मुझे प्रोजेक्ट में असिस्ट कर रही है और बनारस घूम रही है।"
हर्ष: "ओह, तो तुम्हें दिल नहीं, सितारे मिले है।"
शाश्वत: "अभी दिल भी नहीं मिले हैं, बस दोस्ती हुई है। But yes, she is nice."
हर्ष: "तो बात बढ़ा, या यहाँ भी वही करेगा जो निहारिका के साथ किया।"
शाश्वत जैसे ही निहारिका का नाम सुनता है, वैसे ही उसके चेहरे के हाव-भाव बदलने लगते हैं। वह थोड़ा झेपते हुए पूछता है:
शाश्वत: "कैसी है वो?"
हर्ष: "उसी के बारे में बताने को फोन किया।"
शाश्वत: "क्या हुआ?"
हर्ष: "जिसके साथ उसका रोका फिक्स हुआ था, उसका पहले से ही किसी के साथ अफेयर था। जब यह बात सामने आई तो निहारिका ने कुछ रिएक्ट ही नहीं किया। उसके बाद से उसने किसी से बात भी नहीं की।"
शाश्वत (शॉकिंग रिएक्शन): "क्या बात कर रहा है?"
हर्ष: "May God Bless Her."
हर्ष ने जब निहारिका के बारे में बताया तो शाश्वत को ऐसा लगा जैसे उसके दिल पर किसी ने बड़ा पत्थर रख दिया हो। शाश्वत यह सोचने पर मजबूर हो गया कि आखिर निहारिका की लाख कोशिशों के बाद भी वह उससे प्यार करने की हिम्मत क्यों नहीं जुटा पाया। उसकी सोच में खलल डालते हुए उसका दोस्त बोला:
हर्ष: "तू जल्दी आ यार, फिर बैठेंगे। जब से तू गया है, इसस शहर में मन नहीं लगता। ऐसा लगता है किसी ने मेरी जान निकल ली लो."
शाश्वत: "वेरी रोमांटिक!!! चल अब में चलता हूँ, और हाँ माँ से जाकर मिलते रहना, कहती नहीं है पर उन्हें बहुत अकेला फ़ील होता है।"
शाश्वत का इस तरह चुप हो जाना उसके दोस्त को समझ आ गया था। इसलिए बात को आगे न बढ़ाते हुए हर्ष ने बात बदल दी। लड़कों का ब्रो कोड यह है कि उन्हें ज्यादा बोलने की ज़रूरत नहीं होती। वे एक-दूसरे की हालत देखकर ही समझ जाते हैं। उनका साथ बैठ जाना ही उनकी ज़िंदगी की तमाम मुश्किलें खत्म कर देता है।
निहारिका की बात सुनने के बाद शाश्वत बेचैन होने लगा। उसे निहारिका से बात करने का मन था, लेकिन फिर किस मुंह से करता? शाश्वत को कुछ समझ नहीं आ रहा था। इसलिए वह अपने कमरे की बालकनी में गया, एक सिगरेट जलाई और उसके बाद उसकी बेचैनी थोड़ी कम हुई।
बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा होता है: "धूम्रपान सेहत के लिए हानिकारक है।" अगर सिगरेट पीने वालों से यह पूछा जाए तो वे बचाव में कहते हैं: "फेफड़ों के लिए खराब है, मगर दिमाग के लिए सही है।" अब इसके बाद किसी के पास कहने को कुछ नहीं बचता।
शाश्वत हर कश के साथ अपनी बेचैनी कम कर रहा था। अपने हाथ में फोन लिए वह निहारिका की तस्वीर देख रहा था, पर फिर भी उससे बात करने की हिम्मत नहीं कर पाया।
लड़के उन लड़कियों को ठुकरा देते हैं जो उनके प्रति अपनी आत्मा और अपना देह, सब समर्पित कर देती हैं। लड़के ऐसी लड़कियों को कमजोर समझते हैं। लेकिन ऐसी लड़कियाँ असल में हिम्मती होती हैं, जो प्यार को अपनी तलवार बनाकर ज़माने के आगे खड़ी हो जाती हैं। निहारिका भी ऐसी ही लड़की थी, जिसे शाश्वत खो चुका था।
जैसे ही सिगरेट खत्म हुई, शाश्वत वापस अपने काम में लग गया—इस बार ऑफिस का काम। जितने इमोशन्स शाश्वत इंसानों के सामने छुपाता था, उससे कई ज्यादा इमोशन्स वह अपने काम में दिखाता था।
महल को एंटीक बनाने के लिए शाश्वत ने तय किया कि आर्टिकल्स तक पहुँचने से पहले वह किताबों तक पहुँचेगा।
अगले ही दिन शाश्वत जब ऑफिस पहुँचता है, तो सीधे रूद्र से मिलता है और कहता है:
शाश्वत: "Sir, I have an idea."
रूद्र: "Go on."
शाश्वत: "क्यों न हम हमारे महल में पुरानी कहानियों की किताबें रखें, जिनके पन्नों में पीलापन आ गया हो और जिनमें अब भी पुरानी मिट्टी की महक हो। क्यों न हम हमारे गेस्ट्स के लिए एक लाइब्रेरी भी बनाएं?"
रूद्र: "Not at all a bad idea। हमारा बनारस तो वैसे भी साहित्य से भरा हुआ है। सो, किताबें कहाँ से आएँगी?"
शाश्वत: "I will make the way for it."
शाश्वत, रूद्र से मीटिंग करके जैसे ही बाहर निकलता है, उसे परीता लैपटॉप में काम करती हुई दिखती है। वह परीता के पास जाता है और पूछता है:
शाश्वत: "हे, फ्री हो?"
परीता (खुशी से): "हाँ, बिल्कुल। बताइए, हाउ कैन आई हेल्प यू?"
शाश्वत: "बता सकती हो, बनारस में पुरानी किताबें कहाँ मिल सकती हैं?"
परीता: "यहाँ ओल्ड बुक स्टोर तो हैं, पर तुम्हें इसका क्या काम?"
शाश्वत: "यही तो मेरा काम है—पुरानी चीज़ों को उनकी सही जगह तक पहुँचाना।"
परीता: "समझी नहीं?"
शाश्वत: "क्या तुम मुझे वहाँ ले जा सकती हो?"
परीता: "हाँ, क्यों नहीं?"
बिना समय गवाए, शाश्वत और परीता ओल्ड बुक स्टोर के लिए निकल पड़ते हैं। अगले 20 मिनट में वे बुक स्टोर में पहुँचते हैं। पुराने किताबों से आती कहानी की खुशबू, बुक स्टोर में सजी हुई किताबें, और बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा हुआ एक वाक्य: "इस किताब घर में कहानियाँ बोलती हैं। अगर आप अपनी कहानी तक पहुँचना चाहते हैं, तो कृपया शांति बनाए रखें।"
एक पल के लिए शाश्वत को लगा कि यही वह जगह है जहाँ उसके सारे सवालों के जवाब मिल सकते हैं। लेकिन अपने पर्सनल लाइफ को साइड में रखते हुए, शाश्वत बुक स्टोर में काम कर रहे लड़के से पूछता है:
शाश्वत: "यहाँ कहानियों की किताबें कहाँ हैं?"
लड़का जवाब देता है: "भईया, आप नए हैं क्या? इस जगह में पुरानी किताबें ही मिलती हैं।"
कुछ भी कहो, बनारस के लोग जवाब बहुत अच्छा देते हैं। उस लड़के का जवाब सुनकर शाश्वत और परीता दोनों हँस पड़ते हैं। शाश्वत ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा:
शाश्वत: "अरे, मेरा मतलब है कि राजा-महाराजा की कहानियों की किताबें कहाँ हैं?"
लड़का कहता है: "अच्छा, मतलब आपको ऐतिहासिक किताबें चाहिए?"
शाश्वत: "जी।"
लड़के ने एक दिशा की ओर इशारा करते हुए कहा: "वो सेक्शन तो एकदम लास्ट में है।"
शाश्वत और परीता दोनों लास्ट सेक्शन में जाते हैं और इतिहास से जुड़ी राजाओं की कहानियाँ तलाशने लगते हैं। कुछ देर किताबों को टटोलने के बाद, परीता और शाश्वत की उँगलियाँ एक ही किताब पर आकर रुकती हैं, जिस पर नाम लिखा होता है: अधूरे इश्क़ की मुकम्मल दास्ताँ।
शाश्वत उस लेखक का नाम पढ़ता है। लेकिन नाम की जगह वहाँ "अंजान" लिखा होता है। इसे पढ़कर शाश्वत कहता है:
शाश्वत: "ये लेखकों को नाम छुपाने का कौन-सा शौक है, यह आज तक समझ नहीं आया।"
परीता: "तुम आम खाओ, गुठलियाँ क्यों गिन रहे हो।"
शाश्वत और परीता दोनों वहाँ से किताब लेकर निकल जाते हैं। रास्ते में शाश्वत किताब के पन्नों को छूता है और परीता से कहता है:
शाश्वत: "हमें महल के लिए किताबें अलग-अलग ओल्ड बुक स्टोर से लेनी होंगी।"
परीता: "महल में किताबें?"
शाश्वत: "हाँ, महल में तो कहानियाँ होती ही हैं।"
शाश्वत की बात सुनकर परीता इम्प्रेस हुई। किताब लेकर दोनों ऑफिस आ गए। ऑफिस पहुँचने के बाद, शाश्वत अपने बॉस से वीडियो कॉल पर कनेक्ट करता है और अपना आगे का प्लान बताता है। बॉस उस प्लान में हल्का बदलाव करके शाश्वत को तुरंत एक्शन लेने को कहता है।
बहुत दिनों के बाद, शाश्वत को अपने काम से पॉजिटिव वाइब्स मिली हैं। और शाश्वत इन वाइब्स को बनाए रखना चाहता है। वह अपने नेक्स्ट प्लान ऑफ एक्शन पर काम करने लग जाता है, जहाँ वह बस्तर के बारे में पढ़ने और वहाँ के कल्चर को समझने की कोशिश करता है।
शाश्वत का काम को लेकर जुनून बाकी सबसे अलग था। वह अपने काम का महारथी था, जिसे सिर्फ अपना टारगेट दिखता था। उसके आगे-पीछे कुछ और नहीं।
शाश्वत अपने लैपटॉप पर काम कर ही रहा था कि परीता ने उससे कहा:
परीता: "आज अस्सी चलें?"
शाश्वत: "अचानक?"
परीता: "हाँ, बहुत दिन हो गए। शेर और शायरी सुने।
शाश्वत : चलो फिर चला जाए, तुम मुझे 8 बजे पिक कर लेना.
क्या शाश्वत और परीता की ये शाम उनकी कहानी को आगे बढ़ाएगी? या शाश्वत घूमता रहेगा अपनी ही कहानी में जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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