शाश्वत बहुत दुखी हो जाता है। उसकी महल की सच्चाई जानने की आख़िरी उम्मीद, यानी वह बूढ़ा नौकर छिन जाता है। जिसका अंतिम संस्कार वह खुद करता है। शाश्वत एक बार फिर मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं को देखता है, इस उम्मीद के साथ कि कहीं उसे उन चिताओं में कुछ ऐसा दिख जाएगा जो उसके बीते कल की पहेली सुलझा सके, पर ऐसा कुछ भी नहीं होता।
हमारा चंचल मन उम्मीद तलाशने की चाह में इतना व्यस्त हो जाता है कि यह समझ नहीं पाता कि किस्मत को बस में करने के लिए सबसे पहले धैर्य रखना ज़रूरी है, तभी किस्मत के सारे संकेत समझ में आने लगते हैं।
शाश्वत के मन में इस वक्त बहुत जल्दबाज़ी थी। उसे सब कुछ एक बार में सुलझाना था, लेकिन चीज़ें उसके सामने परत दर परत खुल रही थीं। शाश्वत उन सपनों, उन आवाज़ों और उन आँखों से मिलना और अपना राब्ता खत्म करना चाहता था, लेकिन हर बार एक नया मोड़ उसके सामने आकर खड़ा हो जाता।
शाश्वत इस उम्मीद में कि उसे कोई इशारा मिले, मणिकर्णिका घाट पर बैठा रहा। लेकिन तीन घंटे बैठे रहने के बाद भी उसे कोई इशारा नहीं मिला। शाश्वत खोया हुआ बस शून्य में देख रहा था—न कोई सवाल, न कोई बेचैनी। शाश्वत उस स्थिति में था, जहाँ उसे बहुत कुछ पूछना था, पर उसके पास जवाब देने वाला अब कोई नहीं था। इस कशमकश में ही उसकी माँ का फ़ोन आ गया।
शाश्वत का मन न होते हुए भी उसने फ़ोन उठाया।
माँ (चिंतित स्वर में): कैसा है बेटा? आज ऑफिस नहीं गया?
शाश्वत (दुख में): नहीं माँ, मन नहीं था, तो आज ब्रेक ले लिया।
माँ: अरे, क्या हुआ? तबीयत ठीक है?
शाश्वत: हाँ, बस थोड़ी थकान है।
माँ: शाश्वत, इंसान चाहे पूरी दुनिया से झूठ बोल ले, लेकिन माँ से कभी नहीं। अब सच-सच बता, क्या हुआ?
शाश्वत: कुछ नहीं माँ, बहुत होपलेस महसूस कर रहा हूँ।
माँ: देख, हम दुनिया में सब कुछ पैसे से खरीद सकते हैं, लेकिन उम्मीद हमें खुद ही जगानी पड़ती है। उम्मीद तक पहुँचने का रास्ता हमें खुद बनाना पड़ता है। तू ढूंढ, तुझे कुछ न कुछ अच्छा मिलेगा।
शाश्वत: ठीक कहती हो, माँ। अभी मैं थोड़ा आराम करना चाहता हूँ । आपसे फिर कनेक्ट करूंगा
शाश्वत ने अपनी माँ से कुछ कहा नहीं, लेकिन माँ से बात करके उसने ज़रूर राहत महसूस की। माँ डॉक्टर नहीं होतीं, फिर भी हर मर्ज़ की दवा होती हैं। माँ से बात करने के बाद शाश्वत अपने कमरे में आ गया, शावर लिया और फिर तैयार होकर काम में लग गया।
लोगों ने एक गलत धारणा बना ली है कि अगर दुःख या सदमे से निकलना है तो शराब पी लो। इतनी सी बात हममें से कोई आज तक नहीं समझ पाया कि किसी भी दुःख या सदमे में हो तो अपने काम और पैशन को गले लगाओ।
शाश्वत का पैशन रीडिंग था। वह हमेशा किसी भी प्रोजेक्ट को हाथ में लेने के बाद उससे जुड़ी कहानियाँ तलाशता था, इमोशन्स ढूंढता था और तब जाकर अपने एंटीक क्युरेशन के काम में दिमाग और दिल दोनों लगाता था। यही उसकी तरक्की की वजह भी थी, कि वह दिल से काम करता था, जो लोगों के दिलों को छू जाता था।
शाश्वत इस महल के बारे में भी रिसर्च कर रहा था, लेकिन उसे महल की केवल बेसिक हिस्टोरिकल डिटेल्स ही मिलीं, जैसे महल कितने एकड़ में फैला हुआ है, किस सदी में बना है, और किस राजा ने इसे बनवाया है। उसने जैसे ही राजा के नाम पर क्लिक किया, उसे महाराजा वर्मा की तस्वीर दिखी। नीचे चार पंक्तियों का विवरण था जिसमें उनकी बुद्धिमानी और शौर्य का ज़िक्र किया गया था।
शाश्वत को कुछ खास हाथ नहीं लगा, और उसकी आँखें भी भारी हो रही थीं। उसने लैपटॉप बंद किया और सो गया। पूरे दिन शाश्वत ने किसी से बात नहीं की, बस मैसेज का रिप्लाई देता रहा—I will get back to you tomorrow.
अगले दिन शाश्वत उठा, तैयार हुआ और ऑफिस गया। वहाँ उसने काम की अपडेट्स लीं और अपने बॉस को लंदन में महल के काम की रिपोर्ट भेज दी। शाश्वत इस सदमे में कुल 15 दिन तक रहा। इन दिनों में न उसे दुनिया से मतलब रहा और न ही दुनिया में कोई खूबी दिखी।
शाश्वत अपने लैपटॉप पर काम कर ही रहा था कि रूद्र ने कोर टीम मेंबर्स की मीटिंग रखी और कहा:
रूद्र: "वेल टीम, एक गुड न्यूज़ है।"
परीता: "ग्रेट टू हियर दिस।"
रूद्र: "I am glad to share that Shashwat’s designs have been loved by our partners, and they are ready to invest in this project."
परीता: "This is huge, sir!"
रूद्र: "आप खुश नहीं हैं, शाश्वत?"
शाश्वत: "नहीं सर, ऐसा नहीं है। I am very happy."
रूद्र: "नो वंडर, आपके बॉस ने क्यों कहा कि I am sending my best mate with you."
शाश्वत यह सुनकर खुश था, लेकिन उसके थके मन ने उसकी खुशी जाहिर नहीं होने दी। वहीं दूसरी तरफ, परीता शाश्वत के बदले हुए हावभाव को नोटिस कर रही थी और उसके बोलने का इंतजार कर रही थी। लेकिन इन दिनों शाश्वत भी परीता से काम के अलावा ज्यादा बात नहीं कर पा रहा था।
शाश्वत की चुप्पी देखकर परीता ने उससे बात करने पर ज़ोर नहीं दिया, लेकिन बीच-बीच में उसे यह एहसास दिलाती रही कि वह अकेला नहीं है, उसके साथ कोई खड़ा है। पर इस वक्त शाश्वत को जिसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी, वह शख्स खुद शाश्वत ही था।
मीटिंग के बाद सब बाहर जाने लगे, तभी रूद्र ने शाश्वत को रुकने के लिए कहा।
रूद्र: "शाश्वत, आप यहीं रुकिए। कुछ बात करनी है।"
शाश्वत: "जी, बताइए।"
रूद्र: "किस उलझन में हो?"
शाश्वत ने जब रूद्र को यह कहते हुए सुना तो हैरान रह गया। इतने दिनों से उसकी परेशानी किसी को दिखी नहीं थी, और अब रूद्र का सीधा सवाल करना शाश्वत के लिए शॉकिंग था। शाश्वत ने सोचते हुए जवाब दिया:
शाश्वत: "नहीं सर, कुछ नहीं है।"
रूद्र: "ये बाल ऐसे ही सफेद नहीं हुए हैं, शाश्वत बाबू। हम भी उसी उम्र को पार करके आए हैं, जिस उम्र में अभी आप हैं।"
शाश्वत (सांस लेते हुए): "कुछ पुरानी उलझनें हैं, जो सुलझ नहीं रहीं।"
रूद्र: "I won't ask you personal questions, पर आपको एक जगह का सुझाव ज़रूर दे सकता हूँ, जहाँ हम जाते हैं, जब भी हमारा मन अशांत होता है।"
शाश्वत: "कौन सी जगह, सर?"
रूद्र: "सारनाथ। आप एक काम कीजिए, कल हो आइए वहाँ। कल का ब्रेक हमारी तरफ से एक तोहफा है।"
शाश्वत: "थैंक यू, सर।"
शाश्वत शाम को जैसे ही दफ्तर से लौटता है, वह कपड़े बदलकर फिर से लैपटॉप लेकर बैठ जाता है। कुछ रिपोर्ट्स तैयार करता है ताकि अगले दिन का काम भारी न लगे। करीब दो घंटे रिपोर्ट्स बनाने के बाद, वह अपने कमरे में खाना ऑर्डर करता है, खाता है और सो जाता है। अगली सुबह वह तैयार होकर सारनाथ के लिए निकल जाता है।
इस बार उसके मन में कोई सवाल नहीं थे, शायद इसलिए क्योंकि उसे मालूम था कि उसके सवालों का जवाब देने वाला व्यक्ति अब इस दुनिया में नहीं है। शाश्वत ने पहली बार बनारस की सड़कों की तरफ ध्यान नहीं दिया। चुपचाप बस देखता रहा, किस ओर, यह पता नहीं।
वह ऑटो में था, तभी शाश्वत की माँ का फोन आया।
माँ: "आज भी डे ऑफ?"
शाश्वत: "नहीं माँ, मेरे बॉस ने आज खुद मुझे छुट्टी लेने को कहा।"
माँ: "फिर आज कहाँ जा रहा है तू?"
शाश्वत: "सारनाथ, माँ।"
माँ: "अकेले? आज परीता नहीं है तेरे साथ?"
शाश्वत: "नहीं माँ।"
माँ: "ठीक है, फिर तू जा और कमरे पर पहुँचकर मुझे फोन करना।"
शाश्वत सारनाथ पहुँच जाता है, जहाँ गौतम बुद्ध ने अपनी पहली शिक्षा दी थी। सारनाथ को ऋषिपतन भी कहा जाता है। शाश्वत को जो सबसे अच्छा लगा, वह थी सारनाथ की शांति।
शाश्वत, न चाहते हुए भी, एक पेड़ के नीचे बैठ गया। वहाँ बैठकर आस-पास का नज़ारा देखने लगा और सारनाथ की शांति अपने भीतर महसूस करने लगा। धीरे-धीरे उसके विचार बूढ़े नौकर की ओर मुड़ने लगे। थोड़ी देर बाद उसने आँखें बंद कर लीं और उसी जगह बैठा रहा।
शुरुआत में उसे बूढ़े नौकर का चेहरा दिखा, जिसे देख उसकी आँखें नम हो गईं। वह उस ख्याल से न जाने कितने और ख्यालों को जन्म दे रहा था कि तभी उसे एक छवि दिखाई दी। पहले तो वह छवि आई और तुरंत ओझल हो गई।
शाश्वत ने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। लेकिन जब दूसरी बार वही छवि उसके दिमाग में आई, तो उसने समझ लिया कि यह वही अम्मा है जिसने उससे कहा था कि वह उसके परिवार को श्राप से मुक्त करेगा।
शाश्वत की आँखें खुलीं और साथ ही उसकी उम्मीद भी जाग उठी। वह तब तक सारनाथ में अकेला घूमता रहा, जब तक उसके मन को तसल्ली नहीं मिल गई।
जाने का फैसला करते समय परीता का कॉल आया। (SFX: Call sound)
परीता: "क्या हुआ? इतने दिनों से देख रही हूँ, तुम ठीक हो?"
शाश्वत: "हाँ, बस कुछ दिन अकेले अपने साथ रहना चाहता था।"
परीता: "ठीक है। तुम्हें इसलिए कॉल किया था कि कुछ मास्टरपीस डिज़ाइंस मेल किए हैं। उन्हें देख लो, फिर इस पर रूद्र सर से बात करनी होगी।"
शाश्वत: "ओके।"
परीता से बात करने के बाद शाश्वत ऑटो लेता है और कमरे के लिए निकल जाता है। रास्ते में शाम के चहकते बनारस को देखता है और खुश हो जाता है।
कमरे पर पहुँचकर, शाश्वत मेल चेक करता है, डिज़ाइंस ओके करता है, और उस बूढ़ी औरत का पता लगाने की कोशिश करता है।
क्या शाश्वत को उस औरत का पता मिल पाएगा? क्या वह श्राप के बारे में जान पाएगा? हर अनसुलझे सवाल का जवाब मिलेगा,
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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