शाश्वत के हाथ एक डायरी आती है, जिसका काग़ज़ बिलकुल उस काग़ज़ से मेल खाता है, जिसमें अमर का नाम लिखा हुआ होता है. शाश्वत, परीता से कहता है कि वो ऐसी जगह का पता लगाये जहाँ पुराने आर्टिकल्स लिखे मिलें.
महल में हुए दिनभर के काम ने शाश्वत को शरीर से तो थका ही दिया था , साथ साथ डायरी के रहस्य ने शाश्वत के मन में अड़चन पैदा कर दी थी. कभी कभी हमारे सामने सच होता है और हम उसे अनदेखा भी कर देते है. शाश्वत के सामने वो डायरी थी जिसे वो ले तो आया था पर पढ़ नहीं पा रहा था. दिनभर की शारीरिक और मानसिक कश्मकश के बाद शाश्वत आज बिना फ्रेश ऐन अप हुए ही सो गया. अचानक उसे कॉल आया।
शाश्वत नींद भरी आँखों से जब फोन स्क्रीन पर देखता है, तो उसे स्क्रीन पर प्रिया नाम दिखता है। वो ज़ोर से अपनी आँखें मीचता है, उँगलियों से आँखों को मलता है तब उसे स्पष्ट दिखाई देता है और नाम प्रिया नहीं परीता है. शाश्वत फ़ोन उठाता है ।
शाश्वत : परीता, इस वक़्त… क्या हुआ सब ठीक है?
परीता : हाँ … मैं ठीक हूँ… घूमने चलोगे ?
शाश्वत : इस वक़्त..
परीता : हाँ, हमने सोचा तुम्हारे साथ अस्सी घाट जाया जाए.
शाश्वत : घरवाले कुछ नहीं कहेंगे।
परीता : उन्हें बता कौन रहा है?
शाश्वत : तो एस्ट्रोलॉजर परीता, मनमौजी भी है.
परीता : हम क्या है क्या नहीं, आप क्या इन्हीं बातों की फेर में रहेंगे ?
शाश्वत : चलिए फिर, आपके शहर को आपके साथ , आधी रात में घूमते है।
परीता : टाईम देखिए रात के 3:45 बज रहे है, हम आपके पास स्कूटी लेकर अगले 15 मिनट में पहुँच जाएँगे, आप तैयार रहिएगा.
परीता की बातों में इतनी मासूमियत थी की शाश्वत उसे ना नहीं कह पाया. वैसे मर्द अपनी पसंदीदा औरत के लिए नींद की बलि दे, देता है. शाश्वत ने भी बिना कुछ सोचे अपनी नींद न्योछावर कर दी परीता पर. जैसा की परीता ने कहा, अपने कहें के मुताबिक़… परीता, शाश्वत को लेने 4 बजे तक पहुंच गई. शाश्वत ने परीता को देखा तो एक पल को रुक गया. ओवरसाइज़्ड टी शर्ट, लूज़ पैंट्स, हाफ क्लच्ड हेयर में चलती फिरती पांडा लग रही थी. और ये बात शाश्वत ने उसे देखते साथ बोली
शाश्वत : तुम क्यूट लग रही हो।
परीता : थैंक्स,अब चलें ।
शाश्वत : चलो ।
शाश्वत, परीता के साथ अपनी आँखों में बनारस को बसा रहा था, तभी परीता ने कहा,
परीता : ये है इश्क़ ए बनारस, जिसे दुनिया के तमाम लोग हैशटैग में यूज़ करते है, लेकिन हम बनारसियाँ लोग इस इश्क़ को जीते है.
शाश्वत: अब तो हम भी जीने लगे है।
बनारस की भोर में परीता और शाश्वत दोनों बातचीत करते …पहुँच गये अस्सी घाट….जहां 4:45 से ही चहलक़दमी शुरू हो गई. अस्सी की हलचल देखने के बाद शाश्वत ने परीता से पूछा
शाश्वत : मैं जब आया था तब यहाँ इतनी हलचल नहीं थी ।
परीता : क्योंकि वो अस्सी नहीं था, अस्सी से 1.5 km की दूरी शिवाला घाट।
शाश्वत: अच्छा ?
शाश्वत आगे कुछ बोलने ही वाला था कि वैसे ही शंख की आवाज़ और ढोल जयकारा के साथ सुनाई देने लगा था. जिसे सुनकर शाश्वत की आँखें ख़ुद ब ख़ुद बंद हो गई . अस्सी घर की आरती, उगता सूरज और कानों में जाती घंटियों की आवाज़, शाश्वत को फिर से जोड़ रही थी उसके अंतर्मन से. परीता ने जब शाश्वत की आँखें बंद देखी तो उसे उसकी स्पिरिचुअल जर्नी में डिस्टर्ब नहीं करना चाहती थी, इसलिए शाश्वत की आँखें खुलने का इंतज़ार करती रही. जैसे ही शाश्वत ने आँखें खोली परीता बोली
परीता: फीलिंग बेटर?
शाश्वत : मच बेटर
परीता: जानते है शाश्वत जी, मॉर्निंग इज़ दी बेस्ट टाइम टू कनेक्ट आवरसेल्वस विथ दी सुप्रीम एनर्जी. इस समय जो भी ख़याल हमें परेशान कर रहे होते है वो सब धीरे धीरे थमने लगते है, जवाबों के साथ साथ उम्मीद के लिए भी जगह बनती है।
शाश्वत : तो क्या यहीं रीज़न है , जो आप मुझे यहाँ लानी चाहती थी?
परीता : आपको आज परेशान देखा तो सोचा क्यों ना आपको काशी से मिलाए।
शाश्वत : अच्छा ये बनारस और काशी में क्या अंतर है?
परीता : बस मन का अंतर है
शाश्वत : जैसे की ….
परीता: जैसे की जब अंतर्मन में भक्ति जागती है, तो वाराणसी काशी बन जाता है, और जब मस्ती जागती है तो वाराणसी बन जाता है बनारस.
शाश्वत, परीता को देखता रहा उसे गले लगने की सोचता रहा पर फिर ख़ुद को एक दायरे में लाकर ही रोक दिया. शाश्वत का आज उसे परीता में दिखने लगा था , पर बीते कल ने शाश्वत को इस सवाल में लाकर छोड़ दिया कि वो ग़लत कर रहा है. जिसकी वजह से शाश्वत अपनी खुद को किसी और का बनने ही नहीं दे पाया.
जहाँ अस्सी घाट का शोर बढ़ रहा था, जिसे देख शाश्वत ने कहां
शाश्वत: अब चला जाए, मैं थोड़ा सोना चाहता हूँ ।
परीता : चलो ।
रास्ते भर शाश्वत, परीता के ही बारे में सोच रहा था, पर फिर जैसे ही अपने होटल रूम पहुँचा वो सो गया. लगभग 11 बजे जब उसकी नींद खुली तो उसमें सभी के मैसेजेस पड़े हुए थे. उन मैसेजेस के बीच परीता का भी मैसेज था. जिसमे लिखा हुआ था
हम कुछ लेकर आ रहे है आपके लिए , ऑफिस में मिलते है. शाश्वत ने इस मैसेज का जवाब सिर्फ़ ओके में दिया और सोचने लगा कि आख़िर ऐसा क्या हो सकता है ? पर क्योंकि उसको देरी हो रही थी इसलिए उसने परीता के मैसेज में ज़ोर देना ज़रूरी नहीं समझा , और रेडी होकर अपने रूटीन के अकॉर्डिंग ऑफिस पहुँच गया. ऑफिस पहुँचने के बाद सबसे पहले कॉन्फ्रेंस रूम में रूद्र ने टीम मेंबर्स के साथ मीटिंग की
रुद्र: कन्ग्रैट्स फोक्स इस काम का फर्स्ट स्टेज सक्सेसफ़ुली पूरा हो चुका है. ह्वट डू वी हेव, नेक्स्ट इन द प्लेस?
शाश्वत : हमे महल के लिये सकल्पचर्स लाने की ज़रूरत है, जो इसमें एक्स्ट्रा फैक्टर डाले …. वो सकल्पचर्स हर डायरेक्शन में रखा जाएगा। इसलिए हमारी कोशिश है कि हम वैसी मूर्तियाँ लाए जो एक दूसरे से कहानी के माध्यम से जुड़ी हो।
परीता : ऐडिंग टू दिस , सर इस तरह के सकल्पचर्स हमें छत्तीसगढ़ के बस्तर में मिलेगा।
परीता की बात को कंटिन्यू करते हुए शाश्वत ने रुद्र से कहा,
शाश्वत : कैन आई गो टू बस्तर ?
रुद्र : लेट मी थिंक अबाउट इट , आई विल गेट बैक टू यू,सो टीम नेक्स्ट फेज़ के एक्शन का प्रेजेंटेशन आप आज शाम तक दे दीजिये।
रुद्र की बात में सब हामी भरते है और फिर अपने अपने डेस्क की ओर बढ़ते है . तभी परीता शाश्वत को बुलाती है
परीता: शाश्वत जी ये देखिए, आपने आर्टिकल्स के बारे में पता करने को कहां था, आपका काम हो गया. हमें हमारे प्रोजेक्ट के लिए आर्टिकल्स कहाँ से लाना उसका ज़रिया मिल गया.
परीता की बात सुनाकर, शाश्वत बहुत खुश हुआ उसे ऐसा लग रहा था कि, उसने एक तीर से दो निशाने कर लिए है. पर जब भी हमें लगता है की लाइफ में सॉर्टेड है, तभी लाइफ फिर से सबको कुछ उलझा देती है, ख़ैर . शाश्वत परीता से पूछता है
शाश्वत : बताओ परीता कहाँ है वो जगह.
परीता: झारखंड के पास एक गाँव है जहाँ महेंद्र नाम का व्यक्ति पुराने आर्टिकल्स को संभाल के रखे हुए है.
शाश्वत : अब इसके लिए रूद्र से बात करनी पड़ेगी।
परीता : ये हम पर छोड़ दो.
शाश्वत : दिस इज़ अ ग्रेट हेल्प एण्ड थैंक यू इज़ नॉट ईनफ.
परीता : तब फिर आप हमें काशी चाट भंडार की चाट खिला दीजियेगा.
शाश्वत : जब आप कहें .
परीता से मिली जानकारी को उसने लंदन में बैठे अपने बॉस के साथ रुद्र को मेल कर दिया, इस उम्मीद में की जवाब पॉजिटिव आएगा. शाश्वत जानता था की दोनों के पास हाँ बोलने के अलावा कोई और ऑप्शन नहीं था. किसी भी सिचुएशन में ख़ुद के लिए पॉजिटिव माइंडसेट रखना ज़रूरी है , ये बात शाश्वत बेहतर तरीके से समझ चुका था. आज का काम सैटल करने शाश्वत अपने होटल रूम के लिये निकल रहा था. उसे याद था कि रूम पहुँच कर उसे डायरी पढ़नी है. शाश्वत जैसे ही होटल पहुँचा वहाँ उसने भीड़ देखी तो पास गया. पास जाकर उसने जो देखा उसके होश उड़ गए. जिस शाश्वत के चेहरे में ख़ुशी थी वो एक दम से ग़म में बदल गई।
उस बूढ़े नौकर का एक्सीडेंट हो चुका था, उस बूढ़े नौकर ने जैसे शाश्वत को देखा तो कहां
“इस दुनिया में मेरा वक़्त ख़त्म हो चुका है, पर तुम उसे इंसाफ दिलाना…..”
इतना कहकर बूढ़े नौकर ने अपनी आँखें बंद कर लीं. शाश्वत की उम्मीद वो बूढ़ा नौकर था जिसकी वजह से वो अमर से वाक़िफ़ हो पाया था. बूढ़े नौकर का इस तरह शाश्वत को बीच भंवर में छोड़कर जाना सब कुछ ख़त्म कर चुका था, अब कुछ बाक़ी रह गया था तो सवाल , की क्या होगा अब कौन जोड़ेगा शाश्वत को उसके अतीत से ? क्या होगा इस कहानी का अंजाम अब ये कह पाना मुश्किल था. उस बूढ़े नौकर की बॉडी को एम्बुलेंस बुलाकर हॉस्पिटल भेजा गया. फिर वहाँ हॉस्पिटल स्टाफ के एक इंसान ने पूछा के लोगों से पूछा गया “क्या इनके परिवार से कोई है ?”
भीड़ से कोई आवाज़ नहीं आई, सवाल फिर से दोहराया गया
क्या इनके परिवार से कोई है, इस वाक्य को सुनकर शाश्वत आगे आया और बोला.
शाश्वत : जी मैं हूँ ।
उसने कहा कल आकर बॉडी को अंतिम संस्कार ले जाना शाश्वत ने हाँ में सर हिलाया, थोड़ी देर भीड़ छट गई, शाश्वत भी रूम में आ गया. शुन्य होकर बैठ गया. उसे अब कुछ समझ नहीं आ रहा था, बूढ़ा नौकर जिसे शाश्वत ने बाबा कहना शुरू किया था वो जा चुका था, ये बात सोचकर शाश्वत की आँखें नाम हो गई और वो बिना फ्रेश ही हुए ही सो गया. अगली सुबह वो हॉस्पिटल पहुँचा जहाँ से बूढ़े नौकर का पार्थिव शरीर लेकर मणिकर्णिका घाट पहुंच गया. क्या मणिकर्णिका घाट पर शाश्वत को उम्मीद मिल पाएगी ? या ये कहानी रह जाएगी अधूरी जानने के लिए पढ़ते रहिए।
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