बांसुरी को छूते ही शाश्वत को प्रिया और अमर की झलकियाँ दिखती है. जिसके बाद कुछ देर वो उसी ख़याल में होता है. थोड़ी देर बाद उसका ध्यान परीता के कॉल से टूटता है जहाँ परीता उसे कहती है.
परीता : कल के लिए रेडी?
शाश्वत : हाँ हूँ भी और नहीं भी।
परीता : ऐसा क्यों कह रहे हो ?
शाश्वत : जानती हो परीता, मैंने इससे भी ज्यादा ढ़ेर हो चुकी हिस्टोरिकल बिल्डिंग को रेनोवेट किया है और दुनिया के कोने कोने से एंटीक्स क्यूरेट किये है पर इस महल से मुझे कुछ लगाव सा हो रहा है. इन्फेक्ट मैंने जो पहले डिजाईन रूद्र सर को मेल की थी , वो डिजाइन बेस्ट लगी थी मुझको. बाद में यही डिजाईन जब मैंने देखी तो बहुत कॉमन लगने लगी, जिसके बाद मैं इस डिजाइन में चेंजेस करता गया और ये फिर से 16th सेंचुरी वाली डिजाइन बन गई. जानती हो मैंने नेट पर भी चेक किया कि कहीं जो डिजाइन मैंने बनाई है, वो किसी और कासल या पैलेस से तो मेल नहीं का रही है, पर वहाँ भी ऐसा कुछ शो नहीं हुआ.
परीता : आप कुछ ज़्यादा ही सोच रहे है शाश्वत. आपके सबकॉन्शियस माइंड में महल ने अपना घर बना लिया है, इसलिए आप इस तरह की बातें अपने दिमाग में लेकर आ रहे है. एक काम कीजिये फिलहाल आप सो जाइए, कल फ्रेश मुड से ऑफिस में मिलते है.
परीता को परिस्थितियाँ समझ तो आ ही रही थी , पर उसके पास भी ठोस सबूत ना होने के कारण, वो शाश्वत से कुछ कह नहीं रही थी. इसलिए उसने सुबह होने का इंतज़ार किया और खुद भी सो गई. अगले ही दिन शाश्वत अपने रूटीन के मुताबिक, अपनी माँ को बताता है की वो उसके आज के क्या प्लेन्स है, जिसे सुनकर शाश्वत की माँ उसे सबसे पहले मंदिर में माथा टेक के काम पर निकलने को कहतीं है, आदतन.. शाश्वत माँ की बातों को नज़र अंदाज़ करते हुए अपने कामों में लग जाता है... पाँच मिनट के बाद फ़ोन कट जाता है और शाश्वत रेडी होकर कमरे से बाहर निकल आता है. लिफ्ट ओक्युपाईड होने के कारण उसे सीढियों से जाना पड़ता है. जहाँ वो तेज़ी से नीचे उतरता है और एक पंडित जी से टकरा जाता है.
शाश्वत: सॉरी पंडित जी, आप ठीक है ?
आप नौजवानों के जीवन में धैर्य नाम का चीज़ है ही नहीं , जिसे देखो अफरा तफरी मचाने में लगा रहता है. पंडित जी ने जवाब दिया।
शाश्वत : मैं आपसे माफ़ी तो मांग रहा हूँ पंडित जी, बताइए अब और क्या करूँ ?
बाबू... तुम नहीं भी करना चाहोगे तो अब करना पड़ेगा... चलो हमारे साथ। पंडित जी ने शाश्वत को कहा।
शाश्वत : अरे मुझे काम पर जाना है, देरी हो रही है।
मुझे प्रभु की पूजा करने में देरी हो रही है, जिसका सामान तुमसे टकराते वक़्त ज़मीन में गिर गया, चलो मेरे साथ इस होटल के मंदिर कक्ष में , और माफ़ी मांगो प्रभु से अपने किये के लिए. पंडित जी थोड़ा झल्लाते हुए कहा।
शाश्वत: अरे यार... ये क्या लॉजिक है... गलती से हुआ ये बात तो प्रभु को भी मालूम है.
शाश्वत पंडित जी के साथ होटल के मंदिर कक्ष में पहुँचता है, शिव पार्वती की मूर्ति के सामने हाथ जोड़कर शीश झुकाता है. और पंडित से पूछता है -
शाश्वत : पंडित जी अगर आपकी इच्छा है, तो क्या मैं अब जा सकता हूँ ?
जी... एक मिनट ठहरो बाबू। पंडित जी ने टोका।
शाश्वत : जी कहिये।
“अपने लक्ष्य से भटकना मत, जिस चीज़ की तलाश में रहोगे वो स्वयं ही तुम्हारे सामने आएगी.”
शाश्वत पंडित जी की बातों में ध्यान नहीं देता और हाँ में सर हिलाकर, वहाँ से निकल जाता है. सीढियों से उतरते वक़्त ही उसे ऑफिस की कार दिख जाती है, वो फ़ौरन उसमे बैठता है और ऑफिस के लिए निकलता है, बीच में गाड़ी का ड्राईवर उसे पान देते हुए कहता है -
“लीजिये भईया पान खाइए , आज से काम शुरू होने वाला है ना, अब दही चीनी तो रखें नहीं है इसलिए हम आपको बनारस का पान खिला रहे है.”
शाश्वत: थैंक यू भईया... अब समझ आया भईया आप क्यों पान खाने को कह रहे थे, क्या गज़ब का स्वाद है।
अरे अभी तो ये पान का स्वाद है. अभी तो आपको बनारस के भांग का भौकाल देखना बाकी है। ड्राइवर ने कहा।
शाश्वत : तो कब दिखा रहें है भौकाल ?
“जिस दिन आप काम पर नहीं जायेंगे उस दिन क्योंकि भईया बनारस की भांग गधे को घोड़ा, और घोड़े को गधा बना देती है.. इतनी तेज़ चढ़ती है। “ ड्राइवर ने मज़े लेते हुए कहा।
इस बात पर दोनों हंसने लगते है और थोड़ी ही देर बाद ऑफिस आ जाता है, जहाँ पूरी टीम रेडी ही रहती है। महल के फर्स्ट प्लान ऑफ़ एक्शन के लिए रेडी थी. शाश्वत जैसे ही ऑफिस पहुंचा उसने सभी लेबर्स को दो दो के पेयर में बाट दिया.. इंजीनियर और साईट इंजीनियर को इंस्पेक्शन के लिए बोला. पास में खड़ी परीता को शाश्वत ने डायरेक्शन के अकोर्डिंग मास्टर पीसेस की डिजाइन ढूंढने का काम सौंपा.
वर्क डिस्ट्रीब्युशन के बाद सभी गाड़ियों में बैठ गए... शाश्वत और परीता को रूद्र ने एक ही कार में बैठने को कहां. इस बात से दोनों खुश थे पर ना शाश्वत ने कुछ कहां और ना ही परीता ने कुछ रिएक्ट किया, एक फॉर्मल स्माइल एक्सचेंज करके दोनों कार में बैठ गए. जहाँ एक तरफ शाश्वत मेल में अपने बॉस को अपडेट दे रहा था, वहीँ दूसरी तरफ परीता सकल्पचर्स की डिजाईन देख रही थी , की तभी उसने बस्तर आर्ट और स्कुल्प्चर्स की फोटोज़ देखी.
परीता, शाश्वत की टाइपिंग रुकने का ही वेट कर रही थी. जैसे ही शाश्वत ने अपना लैपटॉप बंद किया.. परीता ने उससे कहा,
परीता : ये देखिये.. ये बस्तर का बनावट, कितना खूबसूरत और बारीक़ काम है।
शाश्वत : अमेज़िंग, ऑर्डर करने का क्या प्रोसीजर है..
परीता : ये तो सिर्फ सम्प्लेस है, ये स्कल्प्चर हमें वहाँ खुद चलकर देखने होंगे।
शाश्वत : ओके, देन लेट्स हैव अ टॉक विद mr रूद्र टुमोरो
परीता : कॉपी देट।
कंस्ट्रक्शंस के टीम मेम्बर्स साईट में पहुँच चुके थे.. शाश्वत ने लेबर्स को दो दो की टीम्स में पहली बात दिया था.. और अब सभी वर्कर्स को एरिया समझाकर अलग डायरेक्शन में भेज दिया.. चार वर्कर्स को महल में रहकर .. महल के हर एक कमरों से धुल हटाने और सामन निकालने को कहां और बाकी बचें 6 लेबर्स को महल के सामने उगी घास को साफ़ करने को कहां. शाश्वत की बात सुनने और समझने के बाद सारे लेबर्स अपने अपने काम की तरफ चलें गए. शाश्वत को सबकुछ उसके कंट्रोल में ही रहता नज़र आ रहा था, की तभी एक लेबर ने जोर की आवाज़ लगाईं “शाश्वत भईया महल का उपरवाला दरवाज़ा खुल नहीं रहा है”.
शाश्वत ने जैसे ही ये सुना , भागता चढ़ा ऊपर और जाकर देखा तो शॉकेड रह गया , क्योंकि दो दिन पहले ही उसने अपने हाथों से ये दरवाज़ा खोला था. शाश्वत कोशिश करता रहा की किसी तरह उससे ये दरवाज़ा खुल जाए , पर वो दरवाज़ा टस से मस नहीं हुआ. शाश्वत के साथ दोनों लेबर्स ने भी अपना जोर लगाया पर बात वहाँ भी नहीं, तभी परीता ने शाश्वत को कहां चलो एक बार और ट्राई करते है.. शाश्वत ने हामी भरी.. जिसके बाद परीता और शाश्वत दोनों ने मिलकर जोर लगाया और दरवाज़ा खुल गया.
शाश्वत : यू आर अ वंडर वुमन
परीता : थैंक यू
पास में खड़ा लेबर तुरंत अंदर गया, जिसके बाद शाश्वत और परीता भी अलग अलग डायरेक्शन में चल दिये, ताकि महल के एक एक कॉर्नर की फोटो ले सकें।
जिससे उन्हें सकल्पचर्स प्लेस करने में आसानी हो .सब अलग अलग दिशाओं में बांट कार अपने अपने कामों में लग चुके थे.... काम में सुबह से शाम कैसे हो गई पता ही नहीं चला. सारे लेबर्स ने धूल के साथ साथ पुराने एंटीक्स को एक जगह लाकर इकट्ठा कर दिया. शाश्वत उन सभी सामानों को देखने लगा और आख़िर में उसकी नज़र एक डायरी पर पड़ी, जो आधी तो ख़राब हो चुकी थी , लेकिन उसके कुछ पन्ने सहीं सलामत थे. शाश्वत ने उस डायरी को उठाया और खोला.. जैसे ही उसने डायरी का पहला पन्ना देखा , उसे वो पन्ना मिलता जुलता लगा उस कागज़ के टुकड़े से, जो उसको दो दिन पहले मिला था , जब वो पारित के साथ आया था. उसने डायरी परीता को दिखाया और कहा,
शाश्वत : परीता, इस डायरी के पन्ने बिलकुल उस कागज़ से मैच करते है।
परीता : इक्सेक्ट्लि
शाश्वत : आप मेरी एक हेल्प कर सकती है ?
परीता : जी, बताइए
शाश्वत : आप मुझे उस जगह का नाम पता करके बता सकती है , जहाँ ऐसे पुराने आर्टिकल्स मिलते हो..
परीता : लेट मी रिसर्च अबाउट इट, गिव मी सम टाइम एण्ड आई विल गेट बैक तो यू।
शाश्वत : थैंक्स, मैं अभी के लिए डायरी अपने पास रखता हूँ.. शायद कोई क्लू कोई मिल जाए.
शाश्वत की बात सुनकर परीता भी हाँ में सर हिला देती है और पूरी टीम शाम होते ही, शहर लौट आती है. ऑफिस पहुंचने के बाद सारे एंटीक्स को ऑफिस के थर्ड फ्लोर में पहुंचा दिया जाता है. थोड़ी देर बाद सब ऑफिस में अपनी अपनी जगह पर बैठते है , पर शाश्वत बाहर ही कार से टिककर उस डायरी को देखता है की , तभी उसके कानों में पंडित जी कहीं बात गूंजती है की .. “अपने लक्ष्य से पीछे मत हटना, तुम्हारे पास तुम्हारी चीज़े खुद बा खुद चलकर आएँगी.”
शाश्वत इस डायरी के मिलने को डायरेक्ट कनेक्ट करता है पंडित जी की कहीं बात से? क्या शाश्वत डायरी में लिखी बात समझ पायेगा और जोड़ पायेगा अपने आज के तार अपने बीते हुए कल से? जानने के लिए पढ़ते रहिए।
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