शाश्वत और परीता में नज़दीकियाँ थोड़ी थोड़ी बढ़ने लगती हैं. इन बढ़ती नज़दीकियों को बूढ़ा नौकर देख लेता हैं. इस बात से बेख़बर शाश्वत,अपने हेक्टिक येट पीसफुल डे को सोचता हुआ, सीधे अपने रूम चला जाता हैं. रूम पहुँचते ही वो रिलैक्स होता है, फ्रेश होकर उसी होटल में, जहाँ वो रुका हैं वहाँ के रेस्टॉर में आता है. वहां वो अपना कम्फर्ट फ़ूड डाल खिचड़ी और बटरमिल्क ऑर्डर करता हैं. दूसरे ही पल अपने  फ़ोन में इंस्टाग्राम ओपन करके परीता की प्रोफाइल स्टॉक करने लगता है.  

परीता की प्रोफाइल में उसकी हाइलाइट्स देखता है. जहाँ से, शाश्वत परीता की पास्ट लाइफ कैसी है , ये जानने की कोशिश करता हैं. परीता की प्रोफाइल में उसे परीता के काम किये प्रोजेक्ट्स की फोटोज़ दिखती हैं. पहाड़ वाली जगहों की कुछ तस्वीरें मिलती हैं. जिससे ये साफ़ दिखाई देता है कि उसमें इतना ठहराव इसलिए आया है, क्योंकि वो अनजान शहरों में अकेले घूमी है.  

इस सोशल मीडिया के ज़माने में जहाँ सबकुछ, किसी के जन्म  से लेकर, किसी की मौत तक के बारे में अपडेट किया जाता है, वहाँ परीता की प्रोफाइल में कुछ अधूरापन था. शाश्वत ने इस बात पर ज़्यादा ध्यान ना देते हुए , परीता की स्टोरी देखी , जिसमें उसने आज की लॉन्ग ड्राइव की शॉर्ट विडिओ डाल राखी थी. वो भी एक बहुत ही पोपुलर कोट  के साथ साथ जो की था “मुसाफिर को मंजिल मिले ना मिले, कहीं ना कहीं से रास्ता हसीं ज़रूर हो ही जाता हैं ”.  

शाश्वत ने जब परीता की ये स्टोरी देखी तो समझ गया की परीता अपने दिल की बात जल्द ज़ाहिर करने वालों में से नहीं हैं. वो गुलाब है, जो ख़िला तो है पर झिझक होने के कारण पूरी तरह से अपनी खुबसूरती दिखा नहीं पाया है. जिसकी पंखुड़ियों को परत दर परत खोलना अभी बाकी हैं. शाश्वत परीता की प्रोफाइल देख ही रहा था, तभी होटल स्टाफ उसका खाना लेकर आया. ये वहीँ होटल स्टाफ था , जिसने शाश्वत को अपनी बाइक दी थी. उस स्टाफ ने जब शाश्वत की टेबल पर खाना लाकर रखा तो शाश्वत को देखकर बोला -  “अरे भईया आप ? आज यहाँ ?”

शाश्वत : हाँ आज रूम में अकेले खाने का मन नहीं था।

 “अच्छा किये भईया, वैसे भी अकेले खाने से खाना तन भी नहीं लगता.” उस लड़के ने कहा।  

शाश्वत : आपके यहाँ सबसे अच्छा क्या मिलता हैं ?  

भईया आपको क्या खाना हैं, आप बताइयेगा बन जाएगा। उस लड़के ने बड़ी उत्सुकता से कहा।  

शाश्वत : ज़रूर.    

स्टाफ, शाश्वत  को खाना सर्व करता हैं, उससे दो बातें करता हैं और वहाँ से चला जाता है. शाश्वत, उस स्टाफ को जाता देख सोचता है कि आखिर उसका रिश्ता ही क्या है उससे. शाश्वत तो उस स्टाफ से पहले कभी मिला नहीं फिर भी उसके साथ अपनापन लगता है. दरअसल ये हम भारतवासियों की पहचान ही है कि हम लोगों को अपना बहुत जल्दी बना लेते हैं. ये जितनी हमारी खूबी है उतनी ही एक बहुत बड़ी ख़ामी भी, जिसका खामियाज़ा हमें पूरे के पूरे 200 सालों तक भरना पड़ा.  

खैर इतिहास तो इतिहास है, पर बदला आज भी कुछ नहीं लोग, आज भी जान लुटाते हैं पर हां अब मिलावट होने लगी है, एहसासों में. इस दौर में क्या शाश्वत, परीता को मोहब्बत में एहसास दिला  पायेगा, ये तो खुद शाश्वत को भी नहीं पता था. शाश्वत बस इतना जानता था कि परीता उसकी ज़िन्दगी का अहम हिस्सा है, जिसे वो संभालकर रखना चाहता था. बचपन में ही अपने माँ बाप के डाइवोर्स के बाद शाश्वत इन्सिक्योर रहने लगा था . एक रीज़न ये भी था की शाश्वत अपने सबसे करीबी को एक झटके में दूर जाता देख चूका था, मगर क्या किया जाए दिल और दिमाग के बीच जब पहली जंग छिड़ती हैं, तो जीत हमेशा दिल की ही होती हैं.  

शाश्वत का मन उसे परीता के पास जाने से रोक रहा था, पर दिल चुम्बक की तरह खींचा जा रहा था. शाश्वत परीता की प्रोफाइल देख ही रहा था की तभी उसकी माँ का विडियो कॉल आया  

माँ: काम में इतना क्या बिज़ी हो गया हैं की माँ भी याद नहीं रहती।  

शाश्वत : कल से काम शुरू होने वाला है माँ, तो बस उसमे ही लगा हुआ था, तुम बताओ क्या कर रही हो ?  

माँ : तेरा कबर्ड क्लीन कर रहीं थी, और देख तो मुझे क्या मिला।  

शाश्वत : ये सिगरेट का पैकेट मेरा नहीं है माँ। 

माँ : तो तेरे किस दोस्त का है, जो ना तेरे घर आते और न तू जिनके घर जाता, कब से चल रहा है?  

शाश्वत : 5 साल  

माँ : तब तो और भी चीज़े ट्राई की होंगी ?  

शाश्वत : क्या माँ तुम भी।  

माँ : अगर तूने वहाँ भी इसे हाथ लगाया तो सोच लेना।  

शाश्वत : अब नहीं पीता हूँ माँ.  

शाश्वत अपनी माँ से दूसरी चीजों के बारे में बातें करने लगता है, वो बताता है, बनारस शहर से मिले अपनेपन के बारे में यहाँ के लोगों के बारे में. शाश्वत की माँ जब उसके मूंह से बनारस की तारीफ़ सुनती है, तो बेफिक्र रहती हैं. फिर पूछती है.  

माँ : कोई लड़की पसंद नहीं आई तुझे ?  

शाश्वत : क्या माँ फिर वहीँ ?  

माँ : मैं भी कब तक अकेले रहूँ।  

शाश्वत : अरे यार माँ, तुम भी ना।    

शाश्वत की माँ ने जब उससे लड़की के बारे में पूछा तो उसके ज़हन में परीता का ख़याल  आ गया.. ये पिक्चर जो शाश्वत और परीता के बीच चल रही थी, इसकी शुरुआत तब हुई जब शाश्वत अपनी बातें कह रहा था और परीता बिना कुछ बोले बस सुन रहीं थी. दिल  की बातें बोलने वालों को सुनने वाला ही तो चाहिए होता हैं, जो सही ग़लत सोचे बिना बस उन्हें बस सुनता जाए. शाश्वत परीता के ख़याल  से निकला और रियलिटी में वापस आया , तब फिर उसे अगले दिन के काम के बारे में याद आया. उसने तुरंत खाने का बिल पे किया और अपनी रूम की तरफ बढ़ता गया की तभी उसे होटल स्टाफ ने आवाज़ लगाई और कहां -”एक्सक्यूज़ मी सर, समवन इज़ वेटिंग फॉर यूँ आउटसाइड”  

शाश्वत ने स्टाफ की बात सुनकर, हाँ में सर हिलाया और बाहर निकल गया.  

वो जैसा ही बाहर निकला उसने देखा की वहीँ बूढ़ा नौकर उसका वेट कर रहा था. शाश्वत ने जैसे ही उसे देखा उसने इस बार उसको बाबा कहकर बुलाया -   

शाश्वत : बाबा... आप इतने दिन से कहां थे ?  

हम यहीं थे, आपको देख रहे थे. बूढ़े नौकर ने जवाब दिया ।    

शाश्वत : मगर मैंने आपको नहीं देखा  

कहाँ से देखते बेटा, आप तो मगन थे अपनी दुनिया में. बूढ़े नौकर ने कहा।    

शाश्वत : मैं कुछ समझा नहीं बाबा।  

उसने कहा “दो दिन पहले तुम्हारे हाँथ में बांसुरी देखी थी, तो सोचा पूछ लूँ की कैसा लगा, तुम्हें उस बांसुरी को हाथ में लेकर, जो सदियों से तुम्हारे इंतजार में थी ?”  

शाश्वत : सदियों पुरानी??  

हाँ पर जाने दो , तुम्हारी तो नयी कहानी शुरू हो रही हैं, तो अब पुरानी कहानी का क्या ? बूढ़े नौकर ने सीरीयस होकर कहा।  

शाश्वत : मैं किससे पूछूं, कौन हैं जो मुझे इसका जवाब दे सकता है. इस अनजान शहर में मई किसी को ढंग से जानता भी नहीं हूँ।  

“तुम खुद को तो अच्छे से जानते हो, खुद का अस्तित्व क्यों भूल रहे हो ? जहाँ तुम इतने बार दूसरों के साथ महल गए हो, कभी अकेले जाओ शायद तुम्हें फिर से कुछ मिल जाए. जो तुम्हें सच के करीब ले जाए. बेटा ज़िन्दगी दूसरा मौका इतनी आसानी से किसी को नहीं देती है. तुम्हें  दिया है तुम इसका इस्तेमाल करो, और हो सके तो खुद ही सवालों के जवाब ढूँढो.  बूढ़े नौकर ने जवाब दिया।”

शाश्वत का मन जो इस वक़्त परीता के बारे में सोच रहा था, उसे बूढ़े नौकर के शब्दों ने धूमिल कर दिया था. जिसके बाद शाश्वत के भीतर फिर से सवालों का तूफ़ान उठा , और वो कमरे में पहुंचने के बाद उस बांसुरी को देखने लगा. उस बांसुरी से शाश्वत को एक लगाव सा महसूस होने लगा. शाश्वत ने उस बांसुरी को अपने हाथों में उठाया और जैसे ही शाश्वत ने बांसुरी अपने होठों से लगाई, उसके दिमाग में एक दृश्य सामने आ गया. वो दृश्य जिसमे उसने खुद का और प्रिया का अक्स देखा. जहाँ वो डूबे हुए थे एक दूसरे में. ये दृश्य देखकर, शाश्वत ने अपनी आँखें खोली और दोबारा बंद करते हुए बांसुरी बजाने की कोशिश की. पहली बार जब शाश्वत ने फुक मारी तो हवा ही बाहर आ गई, दूसरी बार में हलकी सी धुन निकली, तीसरी बार में उससे वो धुन बजी जो प्रिया ने बजाई थी. वो एक बार को खुद भी आश्चर्य हो गया की, उसने इतना टफ इंस्ट्रूमेंट महज़ तीन बार में ही कैसे बजा लिया. वो फिर जुड़ने लगा प्रिया की रूह से.  उस बांसुरी से आ रही थी प्रिया के प्यार की धुन. जिसे वो उतारना चाहता था अपनी रूह में. वो कुछ देर बड़े प्यार से बांसुरी को देख रहा था. शाश्वत का सारा ध्यान उस बांसुरी में था. शाश्वत, तलाशना चाह रहा था उस छूअन को.. की तभी परीता का कॉल आया और शाश्वत का ध्यान एक बार फिर परीता पर  चला गया.  

हम किसी को भूल भी सकते है, इसका एहसास हमें तब होता है, जब कोई और हमारी  ज़िन्दगी में आता है. और हम खुदको उसके रंग में ही ढ़ालने लगते हैं. हमारी कोरी कैनवास जैसी ज़िन्दगी में वो भी रंग जुड़ने लगते है, जो इन्द्रधनुष में भी नहीं होते हैं.  

हम जब इश्क में होते है तो अपने हिसाब से चुनते है, अपने इश्क का रंग फिलहाल शाश्वत और परीता के इश्क का रंग हल्का गुलाबी था.  उस हल्की ठण्ड की तरह जो ऑक्टोबर के महीने में पड़ती हैं, जिसमे ठण्ड की शुरुआत होती हैं. अब देखना ये हैं की शाश्वत अपने आज के इश्क को जीने में व्यस्त होता है?  या जाता है उस एहसास के पीछे जो उसे बांसुरी को छूते हुए उसे हुआ? जानने के लिए पढ़ते रहिए।  

 

 

 

 

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