शाश्वत परीता के साथ, बाइक पर ही महल के लिए निकल जाता है. जहाँ उसे प्रिया की बांसुरी मिलती है. शाश्वत को बांसुरी के साथ, गहरा जुड़ाव महसूस होता है। जब वो बांसुरी लेकर महल से निकलता है तभी एक बूढ़ी औरत से उसका सामना होता है. उस औरत की बात को अनसुना कर शाश्वत, परीता के साथ बनारस आ जाता है, जहाँ उसे पता चलता है की बूढ़ा नौकर उसके बारे में पूछ रहा था.
शाश्वत को ऑफिस के लिए देरी हो रहीं होती है, इसलिए वो तुरंत अपने रूम में रेडी होने के लिए जाता है.
हमेशा की तरह शाश्वत के लिए कार तैयार खड़ी होती है, शाश्वत उसमें बैठता है और ऑफिस के लिए निकलता है. ऑफिस पहुंचते ही शाश्वत पहला काम अपने बॉस को वी सी करने का करता है. जिसमें वो अपने प्रोजेक्ट की बेसिक अपडेट देता है और अपने पहले प्लान ऑफ़ एक्शन के बारे में बताता है. 10 मिनट की वीडियो कॉल के बाद. शाश्वत, परीता और दूसरे टीम मेंबर्स रूद्र को उनके केबिन में ज्वाइन करतें हैं.
रूद्र : आई होप, आप लोगों ने महल के स्ट्रक्चर को स्टडी कर लिया होगा. सो व्हाट इज़ दी प्लान ऑफ़ एक्शन ?
शाश्वत : फर्स्ट थिंग्स फर्स्ट, महल में सबसे पहले ज़रुरत सफाई की है. वहाँ पुरानी कुछ एंटिक चीज़े है, जिन्हें हम मरम्मत करके मास्टर पीस की तरह यूज़ कर सकते है. वो पीसेस में जंग और धूल दोनों लग चुका है.
रूद्र : परीता, डायरेक्शन सही है ?
परीता: येस, अ लिटिल चेंज इज़ रिक्वायर्ड, देट कैन बी डन वाईल रिकंस्ट्रक्शन.
रूद्र : व्हाट अबाउट दी डिजाईन, शाश्वत जी ?
शाश्वत : आई हैव शेयर्ड देट इन मेल।
रूद्र : ओके विल गो थ्रू इट. वेल शाश्वत जी आपको कल सुबह 10 लोग मिल जायेंगे, महल की धूल साफ़ करने के लिए. एज़ डिस्कस्ड अर्लियर, परीता विल असिस्ट यू . गियर अप टीम. वी आर इंटरिंग इन्टू एक्शन मोड.
इस मीटिंग के बाद सब लोग एक्साइटेड हो गए. काम जब अपनी पसंद का हो तो प्रोडक्टिविटी डबल हो जाती है और काम में जब कोई अपना मनपसंद हो तो मेंटल पीस स्टेबल हो जाती है. इस बात का सीधा मतलब, शाश्वत और परीता से है.
शाश्वत के ना उम्मीदी से भरें खाली मन को परीता अपनी उम्मीद भरी बातों से भर रही थी. सच कहते है किसी के द्वारा कहें गए शब्द मर्ज़ भी होते है और मरहम भी. परीता द्वारा कहें गए शब्द शाश्वत के लिए मरहम बन रहे थे. सालों से शाश्वत के मन में दबे सवालों के जवाबों को ढूंढने का परीता एक प्रतिबिम्ब बन रहीं थी. शाश्वत का, एक अनजान शहर में खालीपन अब भरने लगा था, मगर शाश्वत ने कभी परीता के ख़यालों पर ज़ोर नहीं दिया, या ये कहां जाए की प्रिया के ख़याल, उसके सपने, उसकी आँखें, शाश्वत के ज़हन में किसी और का ख़याल घर करने ही नहीं देती थी .
हालांकि परीता, शाश्वत के लिए घर ही बन रहीं थी , जिसके साथ वो कम्फर्टेबल रहता था। शायद इसीलिए शाश्वत ने परीता को अपने सपनों के बारे में बताया, जो आजतक उसने अपनी माँ को भी नहीं बताया था. शाश्वत और परीता ने एक दूसरे से कुछ कहा नहीं था पर उनके बीच जो अनकहा था वो महसूस किया जा सकता था. प्यार का ये फूल खिलकर गुलदस्ता होगा या गुलिस्ताँ, ये इस वक़्त कह पाना मुश्किल है.
रूद्र के केबिन से सब निकल चुके थे, पर परीता अभी भी रूद्र के केबिन में ही थी, जहाँ उसने रूद्र को महल में हुई घटना के बारे में बताना शुरू किया.
परीता : बॉस, आपसे एक बात कहनी थी।
रूद्र : यहीं ना की महल में कुछ गड़बड़ है?
परीता : हाँ, पर आपको कैसे पता।
रूद्र : हमने भी आवाजें सुनी थी।
परीता : पर आपको कैसे वो आवाजें सुनाई दे सकती है ?
रूद्र : हम किसी के भी बारे में सब कुछ कभी नहीं जान पाते परीता. आप चिंता मत करिए, शाश्वत की सेफ्टी का ख़याल हमें भी है। इसलिए हमने दो दिन बाद अपने घर में हवन कराने का फैसला किया है, ताकि काम में रुकावट ना आये.
परीता : मगर हवन तो महल में होना चाहिए ?
रूद्र : अभी सही समय नहीं आया है, और हाँ जब कोई ना हो आप हमें मामा कह सकती है।
परीता(हँसते हुए ) : येस बॉस!
रूद्र ने कभी ऑफिस में किसी को आज तक ये पता नहीं चलने दिया कि परीता दीक्षित कोई और नहीं बल्कि उनकी भांजी है. परीता की पुरानी कहानियां सुनने में बचपन से रूचि रहीं. परीता को खेलने कूदने की उम्र में भूत, प्रेत, आत्मा, कर्म इनसे जुडी बातें करना, फिर सवाल जवाब करना अच्छा लगता था.
बड़ी होते होते जब उसे पता चला की वो नेगटिव एनर्जिस से स्पिरिचुअल होकर लड़ सकती है, तो 13 साल की उम्र से उसने मैडिटेशन की आदत डालनी शुरू की. छुट्टियों में पौराणिक कथाएं पड़नी शुरू की, वहीँ से उसे ग्रहों और नक्षत्रों में रूचि बढ़ गयी, लेकिन ग्रहों से ज़्यादा प्रभाव कर्म का होता है , इस बात का अंदाज़ा उसे 22 साल की उम्र में लगा.
परीता, रूद्र की हवन वाली बात सुनकर बेफिक्र हो गई, और शाश्वत के पास वाली सीट पर जाकर बैठ गई। उसने लैपटॉप में वास्तु शास्त्र पर ब्लॉग लिखना शुरू ही किया , तभी शाश्वत ने उससे पूछा...
शाश्वत: सी दिस, महल के साउथ ईस्ट कॉर्नर वॉल में ये पीस कैसा लगेगा?
परीता : इट इज़ गुड बट सिंस, वी आर इंडियंस , हमारा दिशाओं को लेकर कंसर्न हमेशा रहता है.
शाश्वत : मैं समझा नहीं ?
परीता : साउथ ईस्ट कॉर्नर को ईशान कोण कहां जाता है, जो हमारे स्पिरिचुअल ग्रोथ और मेंटल पीस इन्हैंस करता है. यहाँ अगर हम इस मास्टर पीस की जगह, तांबे के लोटे में जल भर कर रखेंगे ,तो इससे दो बातें जस्टिफाईड होंगी.
शाश्वत : कौनसी कौनसी ?
परीता : पहला कोई वास्तु दोष नहीं पड़ेगा और दूसरा हमारा देसीपन बरकरार रहेगा. हमारे हिंदुस्तान के लगभग आधे से ज़्यादा घरों में इसे रखा जाता है. तो जब हिंदुस्तान के कोने कोने से लोग हमारे रिसोर्ट की ये ख़ासियत देखेंगे तब उन्हें घर जैसा फील होगा.
शाश्वत : ग्रेट ! मुझे लगता था कि मैं ही कनेक्शंस के कॅल्क्युलेशन्स करता हूँ, पर यहाँ तो आप मुझसे भी प्रो है।
परीता और शाश्वत दोनों हंस पड़े.. शाश्वत डिजाइंस बनाता चलाता गया, परीता उन्हें डायरेक्शन के साथ सुधारती चली गई. शाश्वत ने जब डिज़ाइन को कम्पलीट किया तो वो उसकी सोच से परे था. उस डिजाईन ने उस महल को बिलकुल वैसा ही बना दिया था जैसा वो सोलहवीं सदी में लगता था.
शाश्वत, फिर से सवालों में घिर रहा था. उसके मन में महल का पूरा रहस्य जानने की इच्छा जाग रही थी, पर काम के दबाव में शाश्वत इस रहस्य का पीछा नहीं कर पा रहा था. एक वक़्त पर एक ही काम किया जा सकता था और उस वक़्त शाश्वत ने अपना समय अपने काम को, सेल्फ ग्रोथ को और कंपनी की ग्रोथ को देना ज़रूरी समझा. जिम्मेदारियां किसी भी इंसान को उसके मन मुताबिक़ काम से दूर करने में हमेशा कामयाब रहीं है...
शाश्वत काम में इतना मगन हो चुका था कि उसे पता ही नहीं चला कब सब लोग ऑफिस से निकलने लगे थे. उसका लैपटॉप से ध्यान तब हटा जब परीता ने आवाज़ लगाई.
परीता : कहाँ तक पहुंचा काम ?
शाश्वत : बस कल के काम की लिस्ट बना रहा हूँ, हमें पहले फेज़ में क्या क्या लेकर जाना है।
परीता : सो व्हाट्स देर इन दी लिस्ट ।
शाश्वत : नथिंग मच, लेबर्स, एंटीक पीसेस रखने के थर्मोकोल और बड़े बड़े बॉक्सेस, सेफ्टी किट, बड़े बड़े प्लास्टिक डस्टबिन्स , ताकि हम अपना कचरा ख़ुद ही साफ़ करें और उसे डिस्पोज़ करें।
परीता : ग्रेट वर्कोहोलिक!
शाश्वत : टायर्ड आफ्टर अ लॉन्ग टाइम।
परीता : तो ड्राइव पर चलें ?
शाश्वत : मैं भी यहीं कहने वाला था, लेट मी मेल दिस आईटनरी टू रूद्र सर.
शाश्वत : लेट्स गो
शाश्वत और परीता, परीता की कार में अपनी दूसरी लॉन्ग ड्राइव पर निकलते है. जहाँ शाश्वत परीता से कहता है कि वो ड्राइव करेगा और परीता मान जाती है. शाश्वत ने अब तक ड्राइविंग सीट पर अपनी माँ को छोड़कर और किसी को नहीं बिठाया था. परीता पहली लड़की थी. शाश्वत को पहली बार किसी के होने से खुद को पूरा महसूस होने लगा था. इस लॉन्ग ड्राइव से शाश्वत को परीता का साथ और भी अच्छा लगने लगा. शाश्वत को अपने अंदर जज़्बातों के बदलाव अच्छें लग रहे थे. इस लॉन्ग ड्राइव में परीता ने शाश्वत को अपनी पसंद के कुछ गाने सुनाये... कुछ बचपन के किस्से सुनाएं ... कुछ अपने सपनों से मिलवाया और कुछ अपने अतीत के बारे में बताया. शाश्वत सबकुछ बड़े ध्यान से सुन रहा था. शाश्वत, परीता के बातों में इतना इन्वोल्व था की, उन्हें पता ही नहीं की अब वो बनारस से आगे निकल गए. शाश्वत ने जैसे ही रास्तों पर गौर किया और बढ़ता अँधेरा देखा तो गाड़ी सड़क किनारे रोक दी।
परीता : क्या हुआ सब ठीक है ?
शाश्वत : हम शहर पीछे छोड़ आये है, इसलिए मैंने गाड़ी रोक दी।
परीता : हमें रास्ता मालूम है, हम भटकेंगे नहीं।
शाश्वत : जानता हूँ
शाश्वत की ये बात सुनकर परीता थोड़ा मुस्कुराई और शाश्वत को देखने लगी. शाश्वत गाड़ी से बाहर देख रहा था, जैसे ही उसने परीता को देखा, परीता ने नज़रे चुरा ली. इश्क़ जब शुरूआती दिनों में होता है तब सबसे ज़्यादा दो लोगों की आँखें बातें किया करती है… शाश्वत और परीता कुछ देर ख़ामोशी से बस एक दूसरे की ख़ामोशी सुनते है, जहाँ उनके पास कहने को बहुत कुछ रहता है , फिर भी चुप रहते है. शाश्वत थोड़ी देर बाद कार घुमा लेता है. शाश्वत और परीता हल्की फुलकी बातें करते वापस बनारस आ जाते है, जहाँ गाड़ी सीधे शाश्वत के होटल के सामने रूकती है. शाश्वत जैसे ही बैग लेने के लिए पीछे मुड़ता है , वो परीता के और करीब आ जाता है. परीता भी थोड़ी असहज हो जाती है. शाश्वत जैसे ही इस क्लोज़नेस को फील करता है, वो भी तुरंत पीछे हटता है और कार से बाहर निकलता है, तभी परीता भी कार से बाहर आती है, और ड्राइविंग सीट पर बैठते हुए कहती है की ....
परीता : कल मिलते है, गुड नाईट
शाश्वत भी हाँ में सर हिलाता है, परीता और शाश्वत को इस तरह बातें करते बूढ़ा नौकर देखता है पर कुछ कहता नहीं. क्या परीता और शाश्वत की बढ़ती नजदीकियां भुला देंगी प्रिया का अक्स ? या फिर पहुंचेगा शाश्वत प्रिया के सच तक ? ये राज़ भी खुलेगा जल्द ही पढ़ते रहिए।
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