शाश्वत अस्सी घाट से शुरू करता है अपनी स्पिरिचुअल जर्नी. जहाँ उसे, शाही महोत्सव की झलकियां दिखती हैं. शाश्वत मैडिटेशन के बाद चाय पीने ठेले पर रुकता, जहाँ से वो परीता से फ़ोन करके कहता हैं. महल जाने को -    

शाश्वत अगले 20 मिनट में परीता के घर के सामने होता हैं. जहाँ परीता पहले से ही उसका इंतज़ार कर रही होती है. लूज़ टी शर्ट और लोअर में उसके अंदर छुपी बच्ची झलक रहीं थी, जो शाश्वत से कहना चाहती थी, मेरी नींद ख़राब क्यों की? पर शाश्वत के चेहरे पर सुकून देखकर, उसने कुछ नहीं कहा, फिर उसने पूछा,  

परीता: आपको गाड़ी कहाँ से मिली ?  

शाश्वत : चोरी कर ली। 

परीता :  क्या ?  

शाश्वत : होटल के वर्कर की है.  

परीता : ओह! ब्रो कोड  

शाश्वत : कह सकती हो ?  

परीता : इतनी सुबह सुबह महल जाने का ख़याल कैसे आ गया?  

शाश्वत : पता नहीं, मैं तो बाइक राइड करना चाहता था, पर अकेले घूमने का मन नहीं था.  

कोई अच्छा महसूस करने के लिए गानें सुनता है, कोई लिखता है, कोई पढ़ता है, कोई गुनगुनाता है, तो कोई सड़क नापता है. शाश्वत, सड़क नापने वालों में से था, जिसे अकेले राइड्स पर जाना अच्छा लगता था। जो उसके लिए एक्सपेंसिव थेरेपी से भी ज़्यादा एक्सपेंसिव थी, क्योंकि इस थेरेपी के लिए उसे वक़्त निकालना पड़ता था.   

शाश्वत और परीता महल के लिए निकल चुके थे. लाइफ में बनाए सडन प्लान्स हमेशा मेमोरेबल साबित हुए है. शाश्वत का बनाया ये सडन प्लान भी मेमोरेबल साबित होने वाला था.  शाश्वत बाइक चला ही रहा था कि तभी उसे कॉल आया. उसने गाड़ी साइड की और देखा तो स्क्रीन पर माँ का नाम फ़्लैश हो रहा था. शाश्वत ने कॉल उठाया और बोला -  

शाश्वत : हां माँ।  

माँ: कल रात में फ़ोन क्यों नहीं किया?  

शाश्वत : थक गया था माँ।  

माँ : अभी तेरा स्टेटस देखा, इतनी सुबह सुबह तू कैसे उठ गया ?  

शाश्वत ने जैसे ही कॉल कट किया, उसने व्हाट्सएप पर नोटिफिकेशन  देखा, उसमे निहारिका का नाम फ़्लैश हो रहा था. निहारिका ने शाश्वत के स्टेटस का रिप्लाई देते हुए लिखा था, डू विज़िट सारनाथ टेम्पल. निहारिका का मैसेज देखकर शाश्वत को अच्छा लगा, उसे इस बात का यक़ीन हो गया कि निहारिका और उसके बीच अगर कुछ ठीक नहीं हुआ है, तो कुछ बिगड़ा भी नहीं है.  

उसने भी जवाब में ओके भेज दिया और अपना महल तक का सफ़र जारी रखा. रास्ते में ना शाश्वत ने कुछ कहा और ना परीता ने. दोनों अपनी अपनी अंतर यात्रा भी कर रहे थे. जहाँ शाश्वत अमर की छवि के बारे में सोच रहा था और परीता अपनी पास्ट लव लाइफ के बारे में. पूरे राते दोनों ने एक दूसरे से कुछ नहीं कहा, जब तक महल नहीं आ गया. महल पहुँचते ही परीता ने कहा -  

परीता : रेडी फॉर दी एडवेंचर बडी। 

शाश्वत : येस, ऑफ़कोर्स । 

शाश्वत और परीता महल के अंदर जाते हैं. शाश्वत को कल तक जो महल डरावना और अजीब लगता था , आज उसी महल से शाश्वत को जुड़ा हुआ महसूस होने लगा था. जब मन में उमड़े सवालों को जवाब मिलने लगते है, तब खुद ब खुद हम मूव ऑन करने लगते हैं. शाश्वत भी आगे बढ़ रहा था, अमर की कहानी जानने के लिए. मगर अमर से पहले शाश्वत को प्रिया को समझना था, उसके बारे में जानना था. जिसकी शुरुआत आज वो महल से कर रहा था. शाश्वत फिर से महल का जायज़ा ले रहा था.  

आज उसने महल की पुरानी जंग खाती खिड़कियों को ज़ोर देकर खोला. शाश्वत ने जैसे ही महल के नीचे वाले फ्लोर की खिड़कियाँ खोली। सूरज की किरणें राजभवन के कोने कोने में फैल गई और सदियों से जमे अँधेरे को ख़त्म करने लगी. शाश्वत ने मनो आज राजभवन में रोशनी को अपना घर बनाते देखा था। कोने कोने में इन किरणों को अपना हक जमाते देखा। ये देखकर वो सोचने लगा की ये आईडिया उसके दिमाग में पहले क्यों नहीं आया.  

हमारा दिमाग जब भी उलझनों से घिरा हुआ होता है, तो कॉमन सी चीज़ भी नहीं समझ पाता, शाश्वत के साथ भी यही हुआ।  उसकी उलझनें इतनी बढ़ गई थी , उसे इससे पहले ध्यान ही नहीं आया कि खिड़कियाँ भी खोली जा सकती हैं. राजभवन में फ़ैली रोशनी को देखने के बाद परीता ने महल की दीवारों को और छत को देखते हुए कहा -  

परीता : हमने आज तक इतनी ख़ूबसूरत नक्काशी नहीं देखी, अफ़सोस की हम इसे बदलने वाले हैं.  

शाश्वत : चेंज इज़ दी ओनली कांस्टेंट परीता  

परीता : सही कह रहे है आप  

शाश्वत : चलो आज देखते हैं महल को करीब से।  

शाश्वत और परीता, महल को दोबारा टटोलने लगते हैं. जहाँ उन्हें कुछ पुराने टूटे एंटीक पीसेस मिलते हैं , जंग लगे हुए बर्तन जिनका मोल अब कौड़ियों के दाम भी नहीं था, शाश्वत ने महल की ये हालत देखते हुए कहा-  

शाश्वत: हमें सबसे पहले इस महल की जमी धुल को साफ़ करना पड़ेगा , तभी हमारी टीम यहाँ अपने काम को बेहतर ढंग से कर पाएगी.  

परीता : इस महल के सभी डिरेक्शंस तो ठीक ही हैं, फिर यहाँ क्यों कुछ बहुत अधूरा सा लगता है.  

शाश्वत : ये सदियों पुराना महल है, आज इस महल में रोशनी आई हैं.  

शाश्वत और परीता दोनों महल के फर्स्ट फ्लोर पर जाने लगते है. उन्होंने ऊपर के कमरों को देखना शुरू किया. शाश्वत जैसे ही एक कमरे से दूसरे कमरे में जाता , उसे महल की बनावट बेहतर समझ आने लगती है. शाश्वत अपनी धुन में ही घूम रहा था, जब वो एक कमरे के बाहर आकर रुक जाता हैं और परीता को आवाज़ देकर बुलाता। परीता आती हैं और दोनों उस कमरें के अंदर एक साथ जाते हैं. शाश्वत जैसे ही उस कमरे में घुसता हैं उसे डर नहीं बल्कि अपनापन लगता हैं.  

जिस कमरे की खिड़की ने उसे बेचैन कर दिया था, आज वही खिड़की के पास वो टिककर  खड़ा शुन्य में देख रहा था, तभी परीता उसके पास सदियों पुराना कागज़ का टुकड़ा लेकर आई, जिसमें नीचे अमर लिखा हुआ था.  

शाश्वत उस टुकड़े को देखते ही साथ समझ गया कि ये उसका ही एक हिस्सा है जिसकी तलाश में वो हैं. शाश्वत उस टुकड़े को परीता से लेता है और अपनी मुठ्ठी में जकड़ लेता. परीता भी उसे वो टुकड़ा देकर आगे बढ़ जाती हैं. शाश्वत खिड़की से टिके हुए उस टुकड़े को हाथ में रखकर आँखें बंद कर लेता है और तभी उसे दो लोग अपने खयालों  में गले मिलते हुए दिखते है। शाश्वत मुस्कुराने लगता हैं. वो उन दो लोगों को ख़ामोशी से इन्वॉल्व  होते देखता है कि परीता आती है और शाश्वत का ध्यान उसकी बातों की ओर खींचती है -    

परीता : ये देखो मुझे क्या मिला.  

शाश्वत : ये तो बहुत पुरानी बांसुरी हैं। 

परीता : हाँ पर मेरा कंसर्न ये नहीं है, इसे देखकर लग ही नहीं रहा है की ये सालों पुरानी हो सकती हैं।  

शाश्वत : क्यों नहीं हो सकती? पुरानी ही चीजों की कद्र ज़्यादा हैं.  

परीता : लो फिर इसे तुम ही संभालो, ये आज से तुम्हारी हुई.  

परीता ने जैसे ही बांसुरी शाश्वत को दी, एक पल के लिए शाश्वत को लगा की उसे उसका खोया हुआ हिस्सा मिल गया है. वो कुछ देर बांसुरी को देखता रहा, उसकी छुअन को पहचानने की कोशिश करता रहा.  

हम प्यार का एहसास भूल सकते हैं, लेकिन प्यार हमें नहीं भूलता, कभी भी नहीं भूलता. शाश्वत याद करने की कोशिश कर रहा था , उस बांसुरी में मिली खुशबू को, उस एहसास को जो उसमें  पहले से ही मौजूद था. शाश्वत अब तक समझ नहीं पाया था की जो छूअन उसे अपनी सी लग रही है, वो किसी और की नहीं बल्कि प्रिया की है.  

शाश्वत उस बाँसुर को अपने पास रख लेता है, साथ में अमर लिखे हुए उस टुकड़े को भी. शाश्वत और परीता महल को देखने के लिए आगे बढ़ते ही हैं की दोनों के फ़ोन में एक साथ रूद्र का मैसेज आता हैं.  

मीटिंग एट 12 PM नोटिफिकेशन देखकर शाश्वत को याद आता है कि वो यहाँ छुट्टियों पर नहीं बल्कि काम पर आया है. अगले ही मिनट शाश्वत और परीता महल से बाहर निकलने लगते हैं. शाश्वत इस बार भी जब बाहर निकलता है, तो उसे फिर वही पुकार सुनाई देती है जो कहतीं है - “मुझे पता था तुम ज़रूर आओगे अमर”. इस बार शाश्वत को इस पुकार ने परेशान नहीं किया. वो पीछे पलटा, कुछ पल देखा और मुस्कुराकर बाइक की ओर चल दिया.  

शाश्वत आज पहली बार महल से लौटते वक़्त खुश था, उसे कुछ सवालों के जवाब मिल रहे थे. वो जैसे ही बाहर आया उसने वहाँ एक औरत को खड़ा पाया, जो उससे कह रही थी-  “अब हमारे ख़ानदान पर लगा पाप उतर जाएगा, अब हम चैन से मर सकेंगे.”  

उस बूढ़ी औरत की बात, शाश्वत की समझ में नहीं आ रही थी, और ना उसने उनकी बातों पर गौर करना चाहा. शाश्वत और परिता शहर के लिए वापस निकल गए. शाश्वत , परिता को ड्रॉप करते हुए अपने होटल आया. जहाँ उस लड़के ने, जिसने बाइक दी थी, शाश्वत से पूछा..  “भईया कैसा लगा आपको, सुबह का बनारस “  

शाश्वत : गजब !

लड़का आगे अपनी बात जारी रखते हुए कहता है - अच्छा भईया आपको जब गाड़ी चाहिए होगी, तो आप हमें बता दीजिएगा, हम जुगाड़ कर देंगे. इस एरिया में हमारा भौकाल बहुत हैं.. अच्छा भईया एक बुज़ुर्ग आपके बारे में पूछ रहे थे. आपका फ़ोन नंबर था नहीं , इसलिए सोचे आप आयेंगे तो बताएँगे आपको.  

शाश्वत: उन्होंने और क्या कहां ?  

लड़के ने जवाब दिया “और तो कुछ नहीं कहा भईया.”  

शाश्वत जैसे वर्कर की बात सुनता है वो समझ जाता है कि बुज़ुर्ग कौन हो सकता हैं. उस बुज़ुर्ग का पता ना होने के कारण शाश्वत उस तक खुद नहीं पहुँच पाता। उसके मन में फिर एक सवाल आया की आख़िर वो बुज़ुर्ग क्या कहना चाहता था? आगे क्या होगा जानने के लिए पढ़ते रहिए। 

 

 

 

 

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