शाश्वत के बनारस आने के बाद से कुछ ना कुछ हो रहा था। अब उसने अमर को मणिकर्णिका घाट पर जलती चिंताओं के बीच देखता हैं, जिसके बाद शाश्वत परीता को कॉल करके अस्सी घाट मिलने बुलाता हैं. अगले 15 मिनट में परीता शाश्वत से मिलने अस्सी घाट पहुँचती हैं, और फिर शुरू होता है परीता के सवालों का सिलसिला...  

परीता : कैसा लगा आपको मणिकर्णिका घाट?  

शाश्वत : मुझको मैं मिल गया.  

परीता : जब हम अपनी लाइफ की कंफ्यूसिंग स्टेज पर होते हैं , तब मणिकर्णिका घाट चलें आते हैं. जो सवाल बहुत परेशान करते हैं, उनके जवाब या तो सीधे मिल जाते हैं, या उन जवाब तक पहुँचने का रास्ता मिल जाता है.

शाश्वत : आपके तो एस्ट्रोलोजर हैं, आपको तो सब चीज़ का पता होगा.  

परीता : सिवाय कर्म के! हम किसी के कर्म का पता नहीं कर सकते. पता हैं हमारे साथ इस ज़िन्दगी में जो कुछ भी अच्छा बुरा हो रहा हैं, वो हमारे पिछले जनम के कर्मों का ही फल हैं. एक बार धार्मिक कामों में की गई गलतियां सुधारी जा सकती हैं, लेकिन अगर कर्म गलत हो गए, तो उन्हें  हर किसी को भोगना ही पड़ता हैं, फिर वो लंदन से आया शाश्वत हो या फिर बनारस की परीता.  

जैसे ही परीता की बात ख़त्म हुई शाश्वत उसे देखकर हंसा और फिर किनारों से टकराती गंगा की लहरों को देखने लगा. शाश्वत के सवालों के जवाब उसके सामने नहीं, उसके भीतर थे पर वो समझ नहीं पाया. हम सब आगे निकल जाते हैं लेकिन एक अदृश्य धागे से अपने पिछले जनम से बंधे हुए होते हैं. हमारी चेतना भूल जाती हैं हमारे कर्मों को , लेकिन हमारा अवचेतन सब कुछ याद रखता हैं. जो कभी हमें सपनें दिखाकर, तो कभी अंकों के ज़रीये हमें कुदरत से जोड़ने का काम करते रहते है. इन इशारों को समझने के लिए ज़रूरी है ध्यान करना, क्योंकि शाश्वत ध्यान करने का मन बना चुका था, तो उसने परीता से इसके बारे में पूछा.  

शाश्वत : अच्छा ये बताओ की बनारस में ऐसी कौन सी जगह है, जहाँ शांत मन से बैठा जा सकता है.  

परीता : सुबह 5 बजे अस्सी  आ जाओं, ठंडी हवा, गंगा की लहरों की हलकी-हलकी आवाजें, चिड़ियों की चहचहाहट इससे बेहतर कुछ और हो ही नहीं सकता.  

शाश्वत : इन सबका शोर मुझे परेशान नहीं करेगा?  

परीता : आप काम करने से पहले ही फैसला क्यों सुना देते हैं, पहले काम करिए तो.  

शाश्वत, परीता की बात सुनकर अस्सी घाट आने के लिए मान जाता हैं. वो घाट पर बैठे-बैठे अपने टाइम टेबल के बारे में सोचने लगता है. स्पिरिचुअल जर्नी जितनी आसान दिखती हैं, उतनी आसान होती थोड़ी हैं. सबसे ज़्यादा मुश्किलात तो खुद को समझाने में आती है। सुबह सुबह बिस्तर छोड़ने में आती है, पर ये सब आसान हो जाता है अगर खुद का मन हो तो. शाश्वत के पास वक़्त कम और काम ज़्यादा था. अब तक शाश्वत सिर्फ खुद का ही किरदार निभाते आया था, मगर इस बार उसे शाश्वत के साथ साथ अमर को भी जानना था, उसे भी समझना था. यानी एक वक़्त पर उसे दोहरी ज़िन्दगी जीनी थी.  

शाश्वत अस्सी घाट से लौटते वक़्त, परीता के साथ आता हैं. परीता, शाश्वत को होटल छोड़कर अपने घर की ओर निकल जाती हैं. शाश्वत भी अपने रूम की ओर बढ़ता हैं. शाश्वत को भी सुबह जल्दी उठना होता है, तो वो अपनी माँ को विडियो कॉल ना करने बजाये सिर्फ “गुड नाईट माँ” लिखकर सो जाता हैं. शाश्वत बिस्तर में जाते ही आँखें बंद कर लेता हैं. आँखें बंद करते ही उसे बांसुरी की हलकी धुन सुनाई देती हैं, पर अब उसे वो धुन बेचैन नहीं करती, बल्कि अब शाश्वत इस धुन से अपना कनेक्शन ढूँढना चाहता हैं। धीरे-धीरे वो कब गहरी नींद सो जाता है, उसे पता भी नहीं चलता. अगली सुबह शाश्वत की नींद सीधे 4 बजे खुलती हैं, जिसके बाद उसे खुद भी नहीं समझ पाया कि उसे आखिरी बार उठाने के बाद इतना फ्रेश कब लगा.  

उठते साथ ही शाश्वत फ्रेश हुआ, शावर लिया और अगले 45 मिनट बाद लॉबी में आ गया. शाश्वत, अस्सी घाट जाने के लिए इतना उत्सुक था कि भूल ही गया सुबह 4:45 को उसे कोई ऑटो रिक्शा या कैब नहीं मिलेगी., पर ये शहर बनारस है, यहाँ अपनों के लिए जान लुटा दी जाती हैं. शाश्वत जैसे ही लॉबी में आया , उसे रिसेप्शन में बैठे एक लड़के ने देखकर पूछा. “भैया इतनी सुबह सुबह कहां जाइएगा ?”  

शाश्वत : अस्सी जाने का सोच रहें है गुरु...  

गुरु... शाश्वत ने जैसे ही ये शब्द बोला , वो खुद में मुस्कुराया और फिर समझ गया की बनारस का रंग चढ़ रहा हैं उस पर. अब ये कितना गहरा होगा, इस बात का अंदाजा सिर्फ वक़्त को था. बात जारी रखते हुए उस लड़के ने कहां- “अरे भैया, आप तो गज़ब कर दिये. इतना सवेरे आपको कुछ नहीं मिलेगा, एक काम कीजिए हमारी बाइक ले जाइए. “  

शाश्वत : तुम्हारा धन्यवाद यार... हम दो घंटे में लौट आयेंगे.  

लड़के ने कहां- अरे आप शाम को आइये कोई दिक्कत की बात नहीं. लाइए हम निकाल देते हैं बाइक(बाइक की आवाज़ )  लीजिये हमारी जान अब कुछ देर के लिए आपके पास हैं।    

मस्तमौला मनमौजी और मिलनसार हैं बनारस, वरना अंजान आदमी को कौन दे देता है, अपनी मेहनत से ख़रीदी हुई गाड़ी. शाश्वत ने उस लड़के को गले लगाया और निकल गया बाइक पर अस्सी घाट की ओर. बनारस की शाम जितनी हसीन है, बनारस की सुबह उतनी ही शांत... इतनी शांत की यहाँ की हवा में घुली मोहब्बत साफ़ साफ़ महसूस की जा सकती थी. रास्ते में दिखे मंदिरों के पट खुलते दिख रहे थे, कहीं चाय के ठेले लगने शुरू हो रहे थे. आधी नींद से जगा हुआ बनारस शाश्वत के मन में अपनी जगह बना रहा था. 15 मिनट के इस एकांत सफ़र के बाद शाश्वत अस्सी घाट पहुंचा. वो उसे वैसा ही दिख रहा था जैसे बीती शाम परीता ने उसे बताया था. शांत और सुंदर. शाश्वत ने अपने लिए जगह देखी.. और आराम से बैठ गया... कुछ देर बाद उसकी आँखें खुद बा खुद बंद हो गई.  

पहले तो उसके मन में तमाम बातें चल रही थी, जैसे की उसका यहाँ आना, रूद्र से मिलना, महल को देखने जाना, परीता से दोस्ती की शुरुआत करना और अंत में मणिकर्णिका में आकर खुद से मिलना. शुरू शुरू में शाश्वत की आँखें खुल जा रहीं थी पर जैसे ही उसे अमर का ख़याल और प्रिया की आँखों का अक्स दिखा, उसने फिर अपनी आँखें बंद की और अपना ध्यान केन्द्रित करने की कोशिश की.  

शाश्वत ने दोबारा जब आँखें बंद की तो, उसके 10 मिनट बाद ही उसे तक्षशिला का वो दृश्य दिखा, जहां उसने पहली बार प्रिया को देखा था. यानी की तक्षशिला के राजमहल का वो आँगन , जहाँ सारे इंस्ट्रूमेंट्स रखे हुए थे।  जिसमें बांसुरी भी शाश्वत को दिखाई दे रही थी... वो पूरा दृश्य देखना चाह रहा था, पर सब कुछ धूमिल था.. प्रिय उसे दिख रही थी पर उसके चेहरे में अचानक से धुआं आ गयी था, जिसके बाद वो चली गई. शाश्वत आँख बंद किये बस सोलहवीं सदी के उस दृश्य को देख रहा था , जिसे उसने खुद जिया था. शाश्वत ने अपनी आखें बंद ही रखी जिसके बाद उसे खिड़की पर बैठे प्रेमी दिखें. इस बार भी वहीँ हुआ वो उन दोनों का चेहरा नहीं देख पाया। शाश्वत को ये यकीन हो गया कि अगर उसको ये गुत्थी सुलझानी हैं तो महल में फिर से जाना होगा.  

सालों बाद आज शाश्वत का मन ये सारे दृश्य देखकर घबराया नहीं, बल्कि उनसे जुड़ना शुरू हुआ. गंगा की लहरों की आवाज़, चिड़ियों की चहकने की आवाज़ और सूरज की नारंगी किरणे, जब शाश्वत को महसूस हो रही थी, तब उसने अपनी आँखों को खोला और सामने गंगा का सौम्य रूप देखकर सुकून की हंसी हंसा. शाश्वत ने जैसे ही अपने आस पास देखा तो कुछ लोग वॉकिंग, कुछ लोग योग, तो कुछ लोग लाफ्टर योग में बिज़ी थें. शाश्वत अस्सी घाट का ये नज़ारा देखकर खुश था, उसने फ़ौरन अपना फ़ोन निकाला, अस्सी की तस्वीर खिंची और माँ को व्हाट्स एप पर सेंड की। माँ के टेक्स्ट में डबल टिक आया तो माँ ने फ़ौरन शाश्वत को विडियो कॉल किया और पूछा -  

माँ: ये सूरज आज किस साइड से निकला है ?  

शाश्वत : जहाँ से हर रोज़ निकलता हैं।  

माँ : वैसे ये बदलाव किसलिए ?  

शाश्वत : खुद के लिए माँ और किसके लिए।  

माँ से बात करने के बाद शाश्वत फिर बाइक पर  होटल के लिए लौटने को निकला की, तभी उसे चाय पत्ती और अदरक की खुशबू आई. जिसके बाद वो खुद को चाय पीने से रोक नहीं पाया. हैरानी तो उसको तब हुई, जब उसने एक ठेले में सुबह 6;30 बजे  झमाझम भीड़ लगी हुई देखी. शाश्वत पहले झिझका, फिर उसी भीड़ का हिस्सा बन गया और पहली बार पी उसने देसी तरीके की  ठेले वाली चाय.  

शाश्वत अपने मी टाइम मोमेंट को कैप्चर करना चाहता था. सो झट से उसने अपनी पॉकेट से फ़ोन निकाला और कुल्हड़ की फोटो खिंची. शाश्वत ने उस फोटो को अपने व्हाट्सएप स्टेटस पर लगाया और नीचे कैप्शन में लिखा, बनारस का भौकाल.  

शाश्वत ने पहली बार देसी लड़के सा महसूस किया, ये एहसास उसे अच्छा लग रहा था. अपनी ये ख़ुशी बाटने के लिए उसने बिना सोचे परीता को फ़ोन लगा दिया.  

शाश्वत : हे, गुड मोर्निंग।  

परीता: इतनी सुबह सुबह, सब ठीक तो हैं ना ?  

शाश्वत : हाँ सब ठीक है।  

परीता : फिर ?  

शाश्वत : फिर क्या ?मैंने सोचा की आपसे पूछ लूँ अगर आप उठ गई हैं तो अस्सी आइये, घूम कर आते हैं  

परीता : कहाँ जायेंगे ?  

शाश्वत : महल चलें ?  

परीता : इतनी सुबह, अभी तो सिर्फ 7 बजे हैं।  

शाश्वत : आपका पूरा शहर जाग गया हैं, अपना लाइव लोकेशन भेजो, आई ऍम कमिंग टू पिचक यू अप.  

जैसे ही कॉल कटता हैं शाश्वत, परीता के भेजे लाइव लोकेशन को फॉलो करता हैं, क्या इस बार महल में अन्दर जाते वक़्त शाश्वत और परीता को कुछ नया  एहसास होगा , या फिर आएगा एक नया मोड़? जानने के लिए पढ़ते रहिए। 

   

 

 

 

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