जहां परीता और शाश्वत को एक साथ बांसुरी की धुन सुनाई आने लगी थी, वहीं महल से बाहर निकलते वक़्त प्रिया की आवाज़ भी। महल में जो परीता और शाश्वत ने महसूस किया, दोनों ही उसे नज़रंदाज़ करके वहाँ से बाहर निकल आते हैं. उस एहसास को बयां कर पाना मुश्किल ही था , मगर दोनों के चेहरे बता रहे थे कि उनके साथ कुछ तो भयंकर हुआ है. परीता इस घटना के बाद समझ चुकी थी कि महल में जो आत्मा वास कर रहीं है वो अतृप्त हैं, उसकी इच्छाएं अधूरी है. अब शाश्वत को जितनी क्यूरिऑसिटी थी उतनी ही क्यूरिऑसिटी परीता को भी होने लगी थी, पर परीता ने शाश्वत से इस बारे में बात ना करते हुए, रिनोवेशन की बात शुरू कर दी, जिससे की शाश्वत का ध्यान इस इंसिडेंट से हट जाए।  

परीता : बिफोर वी स्टार्ट, वी हैव टू मेक श्योर देट वी  चेक ईच कॉर्नर एंड डायरेक्शन ऑफ़ दिस साईट.

शाश्वत : येस एडिंग फर्दर इनटू योर पॉइंट, वी हैव टू डीसाइड वर्किंग टाइम फॉर एवरीवन। लुक मैंने फर्स्ट फेज़ प्लानिंग की प्रेजेंटेशन बनाई हैं। 

परीता : आई थिंक की हमें अभी इसे यहीं रोकना चाहिए, क्योंकि अभी विज़िट पूरा हुआ नहीं हैं. वी नीड टू विज़िट दिस प्लेस अगेन.  

परीता की बात सुनकर शाश्वत ने भी हामी भरी और दोनों अपने अपने लैपटॉप पर अपने बॉसेस को काम की अपडेट देने लगे. शाश्वत के बॉस ने उसे वी सी पर कनेक्ट करने के लिए कहां. टेक्नोलॉजी कितनी आगे बढ़ गई हैं पर अभी भी ऐसा लगता हैं कि कुछ सवालों के जवाब साइंस और टेक्नोलॉजी दोनों नहीं दे पायेंगे. जैसे किसी की अनकहीं बातें समझना, किसी के दिल में बसना, किसी से दूर होकर भी उसे अपनी दुनिया बनाना. टेक्नोलॉजी हमें कनेक्ट ज़रूर करती है, मगर कनेक्शन बिल्ड अप हमें खुद करना पड़ता हैं.  

शाश्वत ने इयरप्लग्स लगायें, विडियो लिंक जॉइन किया और फिर बॉस के साथ मीटिंग शुरू की, सारी प्लानिंग अपडेट देने के बाद, बॉस ने शाश्वत से कहां ...  

“प्लानिंग इस गोइंग क्वाईट वेल, बट शाश्वत वाली बात नहीं हैं.”

शाश्वत : आई ऍम ट्राइंग टू पुट दिस, बट फीलिंग स्टक राईट नाओ.  

“टेक अ डे ऑफ एंड एक्स्प्लोर दी लैंड ऑफ स्पिरिचुयालिटीज़।”  

बॉस ने जब डे ऑफ लेने को कहां, तो शाश्वत ने भी रिलैक्स्ड होकर अपने पैर फैला लिया. इतना सुकून तो प्रेमिका की बातों में भी नहीं मिलता, जितना की बॉस की छुट्टी ले लो ऐसा कहने पर मिलता हैं. शाश्वत को रिलैक्स देखकर परीता ने कुछ नहीं बोला, और अपना काम करने लगी. थोड़ी देर बाद परीता ने शाश्वत से पूछा… 

परीता : क्या कहां आपके बॉस ने ?  

शाश्वत : एक्स्प्लोर दी लैंड ऑफ़ स्पिरिचुअलिटीज़।  

परीता : क्या सोचा फिर ?  

शाश्वत : नो क्लू  

परीता : स्पिरिचुअल होने से पहले रियलिटी देखो।  

शाश्वत : देख तो रहा हूँ.. इतनी रियलिटी हैं कि दिन में सुनाई और दिखाई दे रही हैं.  

परीता : अगर ऐसा है तो आज आप मणिकर्णिका घाट हो आइये, वहाँ आपको सच्चाई जलती हुई भी दिखाई देगी.  

शाश्वत : मणिकर्णिका घाट?  

मोह का मिलन जहाँ वास्तविकता से होता हैं, वो हैं मणिकर्णिका घाट. जीवन की शैय्या पर बैठे जब मृत्यु, मणिकर्णिका घाट तक पहुँचती हैं तब जीवन को मोक्ष की प्राप्ति होती हैं. शाश्वत इस बात से अंजान था की जिस सत्य की खोज वो करना चाहता हैं, वो आकर ख़त्म होगी मणिकर्णिका घाट पर, जहाँ उसकी मुलाक़ात वहां के एक पंडित से होगी.  

कार, शाश्वत को उसके होटल तक छोड़ती हैं, अपने रिलैक्स्ड मूड से शाश्वत  रूम में एंटर करता हैं, रूम में लंच मंगवाता है और उसे खाकर थोड़ी देर रेस्ट करता हैं. शाम होते ही परीता के दिये सजेशन के अकोर्डिंग वो अपने होटल रूम से मणिकर्णिका घाट के लिए निकलता है। जैसे ही वो लॉबी के बाहर आता हैं, उसे वहीँ बूढ़ा नौकर मिलता हैं, जिसे देखकर शाश्वत रुक जाता हैं और पूछता हैं…

शाश्वत : आप सही थे, कोई मुझे पुकारता हैं.  

बूढ़ा नौकर ने उससे पूछा “अभी आप  कहाँ जा रहे हैं ?”

शाश्वत : मणिकर्णिका घाट । 

बूढ़ा नौकर मुसकुराते हुए कहा “सहीं राह पर हैं आप, जाइए आज आपकी वहाँ आप से ही मुलाक़ात होगी.”  

बूढ़े नौकर के साथ हुई बात आज शाश्वत को चुभ नहीं रही थी, आज वो मणिकर्णिका घाट के लिए निकलते वक़्त खुश था और शांत भी. सड़क पर आकर उसने फिर शेयरिंग ऑटो ली और पहुँच गया मणिकर्णिका घाट. शाश्वत के होश उड़ गए जब उसने मणिकर्णिका घाट का दृश्य देखा.  

कुछ वक़्त के लिए तो उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि आख़िर उसकी आँखों ने क्या देख लिया हैं. इस बात की परवाह किये बगैर शाश्वत घाट की सीढ़ियों पर आकर बैठ गया और वहां से जलती हुई लाशों को देखता रहा. उसी वक्त शाश्वत के पास एक पंडित जाकर बैठ गए, जो घाट की रेख-देख भी करते थे और मृत शरीर का विधिवत, अंतिम संस्कार भी कराते थे.  

बनारस घाटों का शहर तो हैं हीं, मगर इससे कई ज़्यादा बनारस अपनेपन का शहर हैं, जहाँ कोई अकेला रह ही नहीं सकता. तब तक, जब तक वो खुद ना चाहें. फिर शाश्वत कैसे अकेला रहता. पंडित जी शाश्वत के पास आये और उससे बोलें..  “कहाँ से आये हो?”

शाश्वत : लंदन से।

पंडित जी ने पूछा घुमने?  

शाश्वत : नहीं, काम से।  

“विश्वनाथ की इस नगरी में कोई भी , अपने आप नहीं आता उसे बुलाया जाता है.” पंडित जी ये बात शाश्वत को स्ट्राइक कर गई।  उन्होंने आगे कहा “बनारस में चीज़े दिखती नहीं, बल्कि स्पष्ट होती हैं.”  

शाश्वत, पंडित जी की बातें सुनकर सोच में पड़ जाता है।  उसे कहीं ना कहीं उस बूढ़े नौकर और पंडित जी बातें एक सी लग रही थी. कुछ हद तक वो समझने की कोशिश करता है पर फिर सामने जल रही चिताओं में सुलगती आग को गौर से देखने से लगता हैं. उसे देखने के बाद उसके सामने एक चेहरा बनता दिखाई देता है, वहीँ आँखें, वहीँ होठ वैसी  ही कद काठी जो हुबहू शाश्वत से मिल रही थी.  

शाश्वत ने जैसे ही खुद का अक्स बनते देखा , वो चौंक गया, उसकी आँखें खुली की खुली रह गई, वो देखता रहा उन चिताओं के बीच में खुद का अक्स. जिसमें वो एक राजा के भेस में था. एक पल को उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था, फिर भी शाश्वत अपनी उस छवि को पहचानने की कोशिश कर रहा था और खुद ही में बुदबुदाते हुए उसने अमर कहां। इतने में ही एक बाबा घाट पर चिल्लाकर कह रहे थे।      

प्रेम शिव, प्रकोप शिव..  

दंड शिव , प्रचंड शिव,  

मोह शिव, मोक्ष शिव  

आदि शिव, अनंत शिव  

शिव शिव शिव शिव  

शिवमई संसार हैं  

धर्म, कर्म, प्राण, प्रण  

शिव ही के तो सार है  

विष भी वें, वरदान भी ,  

राम के हनुमान भी  

कौन कितना  ज्ञानी है  

शिव सा ना कोई दानी हैं  

ये देव निरंकार है  

स्वयं ही ओंकार हैं  

साधक हैं, उपासक हैं  

क्रोध में विनाशक हैं  

दृष्टि इनकी व्याप्त हैं  

शुन्य में ही प्राप्त हैं....  

बाबा का कथन सुनकर, शाश्वत का ध्यान टूटता हैं और उसके दिमाग में अमर की छवि के साथ साथ उसका नाम भी छप जाता हैं। उसे मणिकर्णिका घाट में बैठें बैठें आभास होता है, की अब चिंता का नहीं चिंतन का समय है. शाश्वत को पंडित जी की कही वो बात याद आती है, जहाँ वो कहते हैं कि विश्वनाथ की नगरी में उनकी इच्छा के बिना कोई नहीं आता. शाश्वत फ़ौरन ही परीता को कॉल करता हैं। 

परीता : हे, ऑल गुड ?  

शाश्वत : बेटर, आप अस्सी  घाट आ सकतीं  हैं ?  

परीता : अभी ?  

शाश्वत : हाँ अभी  

परीता : ओके !

शाश्वत, फ़ौरन मणिकर्णिका घाट से निकलकर अस्सी घाट की ओर जाता है. इतने दिनों से जो गुत्थी उलझी हुई थी आज उसकी पहली गांठ खुलती नज़र आ रहीं थी. लंदन से बनारस आने का शाश्वत का मोटिव उसे अब समझ आने लगा था. हालांकि कुछ साफ़ साफ़ था नहीं , मगर इतना धुंधला भी नहीं था कि शाश्वत के मन में नए सवाल खड़े करता.  

शाश्वत अस्सी घाट पहुंचकर परीता का वेट करने लगता हैं. जैसे ही परीता आती हैं, वो उससे कहता हैं,  

शाश्वत : यू नीड टू गाइड मी ।  

परीता : हाँ मगर उससे पहले बताओं भी की हुआ क्या है ?

शाश्वत, परीता को अपने साथ हुई घटना के बारे में बताता हैं. परीता चुपचाप उसे सुनती रहती हैं. परीता के लिए भी ये सब नया है , पर क्योंकि वो अस्ट्रोलोजर हैं तो उसे ये पता है की परिस्थिति अगर बिगड़ी तो वो संभलेगी कैसे। इसलिए वो शाश्वत को कुछ नहीं बोलती है. बस उसकी बातें सुनती रहती हैं और उसकी बात ख़त्म  होने के बाद कहती हैं,  

परीता :  आप बहुत हिम्मती हैं शाश्वत, और ये बात हम आपको देखते हीं समझ गए थे, लेकिन अभी भी आपको विवेक से काम लेने की ज़रूरत है. आप चिंता मत कीजिये आपके इस फेज़ में आपको हमसे जो सपोर्ट चाहिए होगा, वो हम आपको देने के लिए तैयार हैं.  

शाश्वत : थैंक यू सो मच बडी, रूद्र सर ने गलत नहीं कहा था, यू आर अ सेवियर.  

परीता से बात करने के बाद शाश्वत पहले से बेहतर महसूस करने लगता हैं. इस अनजान शहर में परीता उसकी पहली दोस्त बनी थी. परीता से बातें करने के बाद वो लोग अस्सी घाट पर ही बैठते हैं. आसपास से गुज़रती जिंदगियों को गौर से देखते हैं. बनारस के अस्सी घाट में उन्हें कही ज़िम्मेदारीयां दिखती हैं, कही बेफिक्री, कही प्यार, तो कहीं ज़िन्दगी का जश्न मनाते यार. 

इन सभी के बीच शाश्वत खुद को देखता है कि तभी उसे परीता एक सवाल करती हैं. शाश्वत और परीता के सवाल जवाब का सिलसिला कहाँ से शुरू होकर कहाँ ख़त्म होता हैं, जानने के लिए पढ़ते रहिए। 

 

 

 

 

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