शाश्वत को सोलहवीं सदी की कविता ना जाने कहाँ से याद आती है, और वो उसे घाट पर बैठकर सुना देता है. बाद में परीता के आगे वो अपना लिखा शेर बोलता है, जिसे कहने के बाद शाश्वत को फिर उन दो आँखों का ख़याल आ जाता है, जो बारात की भीड़ में उसने देखी थी. थोड़ी देर लहरों को किनारों से टकराता देख शाश्वत, परीता से कहता हैं.  

शाश्वत: आप कह रहीं थी कि अस्सी घाट पर बैठकर दशाश्वमेध घाट की कहानी सुनाएंगी ।  

परीता : आप तैयार है सुनने के लिए। तो सुनिए…  

जैसे ही परीता ने कहानी सुनाने का सिलसिला शुरू किया, तभी वहाँ मूंगफली वाला आ गया और  बनारसी अंदाज़ में कहने लगा. “ये खाइए मूंगफली और अब कीजिये बात, आपको मजा आएगा।” 

परीता और शाश्वत ने मूंगफली ली जिसके बाद, परीता ने दशाश्वमेध घाट की कहानी बताना शुरू की...  

परीता : काशीखण्ड के अनुसार इस घाट का नाम पुराणों में रुद्रसर लिखा है, कहां जाता है यहाँ एक राजा हुआ करते थे. राजा दिवोदास जिनके राज में काशी एक शांत नगरी बन गई थी. एक दिन शिव जी के कहने पर, ब्रम्हा जी ने राजा की परीक्षा ली. ब्रम्हा जी, राजा दिवोदास से उनके दस घोड़े, जिन्हें अश्व भी कहां जाता है, उन्हें  मांग लिया। बिना किसी सवाल के उन्होनें, उन्हें अग्नि में डाल दिया, जिसकी प्रचंड अग्नि का धुंआ ने आसमान को गहरा नीला कर दिया. ये घटना इसी घाट पर हुई थी, जिसके बाद से इस घाट का नाम दशाश्वमेध घाट पड़ा.  

हालांकि इस घाट से जुड़ी और भी कई कहानियां हैं. इन्फेक्ट हमने अभी जो आपको कहानी कही, उसका आपने अभी एक ही सिरा सुना हैं, अगर आज सबकुछ बता दूँगी, तो आप कंफ्यूज़ हो जायेंगे.  

शाश्वत : आप मानती हैं इन सब बातों को ...  

परीता : आप नहीं मानते ?  

शाश्वत : पता नहीं।  

परीता : पता चल जाएगा, बनारस किसी को उलझाकर नहीं रखता. ये हमारे शहर की ख़ासियत  हैं.  

शाश्वत : फिलहाल वापस चला जाए ....  

शाम का एक अच्छा वक़्त बनारस के घाट पर बिताने के बाद, शाश्वत और परीता लौट रहे थे. लौटते वक़्त शाश्वत बेहतर महसूस कर रहा था, या ये कहा जाए कि वो ढल रहा था बनारस के रंग में. जहाँ उसके मन में सैकड़ों उलझनें तो थी, मगर उनसे निकलने का रास्ता भी उसे अब बनता दिखाई दे रहा था.  

शाश्वत जैसे ही होटल पहुंचा, वो घाट के बारे में ही सोचता रहा, तभी उसे याद आया, महल का नक्शा तो उसने अभी पूरा देखा नहीं हैं. वो सोने से पहले अगली सुबह की टू-डू लिस्ट लिखने लगा... जिसमें परीता के साथ साईट विज़िट भी थी, लौटकर बॉस को मेल करना था, माँ को विडियो कॉल करना था, और उस बूढ़े नौकर के बारे में पता करना था. जिसने उसके सामने, उसके बीते हुए कल का ज़िक्र किया था.  

शाश्वत ने लिस्ट बनाई और सो गया. आज बहुत दिनों बाद उसे सुकून की नींद आई थी, ना सपनें , ना उनमें सुनाई देती आवाजें , आज उसे कुछ परेशान नहीं कर रहा था. परीता का घुमने जाने का सजेशन सही साबित हुआ.  

अगली सुबह, शाश्वत अपने रूटीन के हिसाब से उठा उसने फ़ोन पर व्हाट्स एप ओपन किया, माँ को गुड मोर्निंग टेक्स्ट ड्रॉप किया और फिर स्टेटस पर क्लिक किया। अचानक उसे निहारिका के नाम के आगे सर्किल बना दिखा. शाश्वत ने उसे ओपन किया, तो उसे दिखाई दी पेंटिंग बनती हुई निहारिका की तस्वीर। जिसमें उसकी उंगलियाँ रंगी थी लाल, पीले, नीलें रंगों से, एक दो रंग उसके माथे पर भी लगे थे, कितनी बेफिक्र लगने लगीं थी.  

जैसे पंछी हो जाते हैं बेफिक्र, कैद से आज़ाद होने पर, ठीक वैसे ही. निहारिका को देखकर शाश्वत सोचने लगा कि वो अगर कुछ और मेरे ख़याल में रहती तो, खुद की खूबियाँ नहीं तलाश पाती. शाश्वत का होना उसके लिए एक बड़े पिंजरे जैसे ही था, जो बड़ा और ख़ूबसूरत तो था पर खुला हुआ नहीं. जहाँ उसे पंख फैलाने की जगह मिलती, पर उड़ने के लिए आसमान नहीं.  

शाश्वत, इमोशंस के मामले में कमज़ोर था, इसलिए सख़्ती से रहता था. वो नहीं चाहता था निहारिका की ज़िन्दगी उसके पीछे ख़राब हो. कुछ देर निहारिका की तस्वीर देखने के बाद, शाश्वत ऑफिस के रेडी होने लगा. आदतन रेडी होने के बाद वो लॉबी में आया, तो आज कार पहले से ही वहाँ खड़ी थी. कार को देखने के बाद उसे एक पल को अजीब लगा.  

दरअसल शाश्वत को आज वाकई उस बूढ़े नौकर से बात करनी थीं. वक़्त निकलने के बाद अपनी गलतियों का एहसास हो तो, सिर्फ पछतावा रह जाता हैं, जो इस वक़्त शाश्वत को हो रहा था. इस बात के बारे में ज़्यादा ना सोचते हुए, उसने सीधा कार का दरवाज़ा खोला और देखा की परीता पहले से ही उसमें बैठी हुई हैं।  

परीता : सरप्राइज!  

शाश्वत : गुड मोर्निंग, इंडीड अ प्रीटी सरप्राइज.  

शाश्वत ने गाड़ी का डोर लॉक किया, तभी परीता ने उसे बताया कि वो डायरेक्ट साईट विजिट पर ही निकल रहे हैं. शाश्वत भी इस बात से सहमत था. परीता ने, शाश्वत को बातों-बातों में अपनी ऑब्सेर्वशन्स बताई, जिसके मुताबिक़ उसे महल के एंट्रेंस में ग्रीनरी के लिए जगह ज्यादा चाहिए थी. शाश्वत ने कहा कि लौटने के बाद एक बार इंजीनियर के साथ मीटिंग रखी जायेगी. महल में काम शुरू होने से पहले, महल का कोना-कोना अपने ज़हन में बैठा लिया जाएगा.  

शाश्वत का फर्स्ट स्टेज टारगेट यही था कि वो इमारत को रेस्टोर से पहले उसे समझें. इसलिए उसे किसी प्रोजेक्ट की प्लानिंग स्टेज में वक़्त लगता था.  

एक शॉर्ट डिस्क्रिप्शन के बाद, शाश्वत और परीता ने अपने बॉस को रिपोर्ट दी। अब वो फ्री थे तो महल तक की जर्नी को एन्जॉय करने लगे,  तभी शाश्वत ने कहा,  

शाश्वत : कल के लिए थैंक यू, कल बहुत दिनों बाद अच्छी नींद आई.    

परीता : पर कल हमारे  साथ कुछ अजीब हुआ.

शाश्वत : क्या ?  

परीता : कल हमें  गंगा आरती के वक़्त बांसुरी की धुन सुनाई दी और जब आप अपना लिखा सुना रहें थे, तो एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे हमने किसी की आँखें देखी हो.

परीता की बातें सुनकर, शाश्वत दंग रह गया. एक ही टाइम पर दोनों को एक जैसा आभास कैसे हो सकता था? परीता तो जानती भी नहीं थी  शाश्वत को. दोनों की मुलाक़ात हाल ही में हुई थी. ये सब बातें सोचने के बाद. शाश्वत ने परीता से पूछा -

शाश्वत : क्या तुम्हें कल कोई सपना आया? कुछ दिखा?  

परीता : कुछ ख़ास तो याद नहीं पर शोर बहुत हो रहा था, लेकिन हमें सपना आया है ये आपको कैसे पता?  

शाश्वत ने कुछ नहीं कहा। ये गुत्थी सुलझने के वजाय शाश्वत के लिए और भी ज्यादा उलझती जा रहीं थी. शाश्वत अब जल्द से जल्द उस बूढ़े नौकर से मिलना चाहता था, पर उसके पास कोई रास्ता नहीं था उसे ढूँढने का. वो चुपचाप खिड़की से बाहर देखने लगा.  

थोड़ी ही देर बाद जैसे कार महल के पास पहुंची और परीता ने महल को दूर से देखा, तो उसने शाश्वत को तुरंत से कहां,  

परीता : आप ये रुद्राक्ष गले में डालिए, दिस विल कीप यू प्रोटेक्टेड.  

शाश्वत भी बिना कुछ सवाल किये रुद्राक्ष पहन लेता है. गाड़ी जैसे ही महल के सामने रूकती है और दोनों कार से उतरतें है. परीता समझ जाती हैं कि महल में अब भी कोई रहता है. परीता शाश्वत का हाथ पकड़ती है और कहती है कि जब तक मैं ना कहूँ तुम मेरा हाथ नहीं छोड़ना. शाश्वत कुछ भी नहीं कहता. परीता जैसे ही महल के अन्दर घुसती हैं वो शाश्वत से कहती है …

परीता : आप बांसुरी की धुन सुन सकते हैं ?  

शाश्वत : हाँ!

परीता : मतलब हमारा शक सहीं निकला, हमारा कल का सपना इस महल से जुड़ा हुआ था.  

शाश्वत : मतलब ?  

परीता : मतलब बाद में समझाती हूँ, अभी हमारा हाथ पकड़े चलों।

परीता और शाश्वत पहले नीचे के फ्लोर को देखते हैं, जहाँ आधी चीज़े जली हुई होती हैं. ये सब देखकर परीता को समझ आने लगता हैं कि  यहाँ जो भी कुछ हुआ था वो काफी भयानक था। उस वक़्त ये विचार वो खुद तक ही रखना सही समझती है इसलिए कुछ बोलती नहीं, बस शाश्वत का हाथ पकड़े रहती है. थोड़ी देर के बाद दोनों ऊपरवाले कमरे का जायेज़ा लेने जाते हैं.  

ये वही कमरा था जहाँ शाश्वत को खिड़की पर दो लोग बैठे दिखतें है. उस खिड़की में शाश्वत और परीता को एक साथ परछाई भी दिखी थी.. शाश्वत, परीता के हाथ से अपना हाथ छुड़वाना चाहता था, पर परीता ने उसका हाथ जोर से पकड़ रखा था। वो फुसफुसातें हुए बोली  

परीता : वो परछाइयां हमें भी दिख रही हैं, आप उन्हें फेस कीजिये हम तभी उनसे लड़ पायेंगे.

परीता की बात पर भरोसा करते हुए, शाश्वत ने परीता का हाथ जोर से पकड़ा लिया. परीता थोड़ी ही दूर बढ़ी थी फिर शाश्वत को वापस लौट जाने का इशारा किया। दोनों शाम होने से पहले महल से बाहर निकल आये कि तभी दोनों को पीछे से एक आवाज़ आई - “रुक जाओ अमर, मत जाओ”  

परीता और शाश्वत ने एक दूसरे को देखा. परीता ने शाश्वत को पीछे ना मुड़ने की सलाह दी, और दोनों तेज़ी से चलकर कार में बैठ गए. कुछ वक़्त तक दोनों ने एक दूसरे से कुछ नहीं कहां, खामोशी में उनके दिल की तेज धड़कने साफ सुनाई दे रही थी कि तभी ड्राइवर ने बोला  

“शाश्वत बाबू आपका फ़ोन नहीं लग रहा था, रूद्र भैया ने कहा है कि वो आप दोनों से कल ही मिलेंगे, तो आपको वापस होटल छोड़ दूँ ?”

शाश्वत हाँ में जवाब देता है। परीता कार की विंडो से बाहर ही देख रही थी कि तभी शाश्वत ने उससे पूछा,  

शाश्वत : आपको कैसे पता की वो आवाजें मुझे भी सुनाई दे रहीं हैं?

परीता : जैसे-जैसे महल पास आ रहा था, आपके चेहरे पर घबराहट बढ़ रहीं थी, इसलिए हमने आपको महल पहुँचने से पहले रुद्राक्ष की माला दी थी ।  जैसे ही हम महल पहुंचे, तो जिस तरह से आपके कान खड़े हुए बांसुरी की धुन सुनने के बाद, मुझे क्लियर हो गया की आप भी उस धुन को सुन सकते हैं. खैर अच्छी बात ये है कि हमारा कोई नुकसान नहीं हुआ।  

परीता की बात सुनकर, शाश्वत को यकीन हो गया कि वो इस उलझन में अकेला नहीं हैं, पर अब उसे जवाब जानने की और भी जल्दी है कि आख़िर क्यों परीता को भी वहीँ सब चीज़े नज़र आ रहीं हैं, जो उसे आ रहीं थी. शाश्वत का सब्र अब चरम सीमा पर पहुँच चुका था फिर भी उसे ठोस जवाब नहीं मिले थे.  

क्या परीता उसके सवालों का जवाब दे पाएगी? क्या वो उसे उसके बीते कल से मिलाएगी ? या रह जायेगी शाश्वत की प्रिय से मुलाक़ात अधूरी? जानने के लिए पढ़ते रहिए। 

 

 

 

 

 

 

 

   

 

 

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