दो शहरों के बीच के फ़ासले मोबाइल ने कम तो कर दिए, मगर भरोसा कितना ज़्यादा है ये अब भी तय होना बाक़ी था। माया और सौरभ के बीच की नज़दीकियाँ धीरे-धीरे बढ़ने लगी हैं। माया, सौरभ को अपनी ज़िन्दगी का सबसे अहम हिस्सा मानने लगी है। अपने काम के साथ साथ, सौरभ के लिए वक़्त निकालने शुरू कर रही है। कहने को तो सौरभ, माया की ज़िन्दगी का दूसरा प्यार है मगर माया इस बार सोच समझकर क़दम उठाना चाहती है। एक पुरानी कहावत है दूध का जला छास भी फूँक-फूँककर पीता है, मगर कोई तब क्या करे जब छास भी ख़राब निकले? खैर, माया ने जब से अपने journalistic career की शुरुआत की है, उसने हर महीने प्यार में हुए धोखा धड़ी के किस्से ज़्यादा देखे और सुने हैं। कई लड़कियों को तो उसने ख़ुद इंसाफ दिलाया है, उन पीड़िताओं के हक़ की आवाज़ भी बनी है। इस फ़रेबी दुनिया में सच्चा प्यार मिलना यानी रेगिस्तान में पानी मिलने जैसा है। माया को क़िस्मत के अलावा किसी पर भी भरोसा नहीं था। माया का मानना है कि जो चीज़ क़िस्मत में लिखी हैं वह मिलकर ही रहती है और जो नहीं लिखी है वह लाख मंदिर और दरगाह में माथा पीटने पर भी नहीं मिलती। वैसे ये सिर्फ़ माया का ही नहीं, बल्कि हर समझदार व्यक्ति का मानना है, पर जब-जब किसी की ज़िन्दगी में प्यार ने दस्तक दी है, उस इंसान की समझ में ताले ही पड़े हैं, अब देखना ये है कि माया की समझ कब उसे सौरभ के इरादों से सचेत कराती है। फिलहाल माया वर्कोहॉलिक बनी हुई थी, उसकी सौरभ से ज़्यादा बात नहीं हो पा रही थी। वह पूरी तरह से अपने करियर पर फ़ोकस कर रही है। माया कितना भी प्यार की चपेट में आने की कोशिश करे,  उसे उसका सपना वापस हक़ीक़त में ले ही आता है। माया अपने ऑफिस के लिए रेडी हो ही रही थी, की उसी उसके दरवाज़े की घंटी बजी. माया ने जाकर देखा तो उसके आई बाबा थे। माया ने दरवाज़ा खोलते साथ ही अपनी आई से पूछा…

माया (चाहकर) : मेरे लिए महाबलेश्वर से कुछ लेकर आई हो?

माया  पूछती है तो आई उसका सीधा हाथ आगे करती है और कहती है "चला आधी बसा आणि हा पूजेचा धागा बाँधा। इससे तुझे नज़र नहीं लगेगी"। आई की नज़र लगने वाली बात सुनकर माया ज़ोरों से हँसने लगती है और उन्हें विश्वास दिलाते हुए कहती है…

माया (marathi accent) –क्या आई, फिर से शुरू हो गई. अच्छी निय्यत वालों को नज़र नहीं लगती हैं...  ठीक है , तुम कहती हो तो बाँध दो। अब मैं चलती हूँ। आप लोगों से सीधे शाम को मिलूंगी। (एस एफ़ एक्स: आवाज़ दूर से आते हुए)

माया को आई चिल्लाते हुए कहती है, "आराम से जाना, (आवाज़ में फ़िक्र) आंधी की तरह है ये, पता नहीं कब और कैसे आएगा ठहराव इसकी ज़िन्दगी में"। माया की आई उसकी ज़िन्दगी में ठहराव चाहती और माया सिर्फ़ दौड़ लगाना और ख़ुद को जीताना।

हर बार की तरह इस बार भी माया जाते वक़्त दरवाज़ा खुला छोड़ देती है। जिसे देखकर, उसकी आई उठती और दरवाज़ा बंद करती है। उसी वक़्त आई की नज़र नीचे पड़े लाल धागे पर जाती है। वह उसे उठाती और अपने माथे पर लगाते हुए, माया के लिए प्रार्थना करती है कि उसके साथ सब कुछ अच्छा हो। अपनी मांगी दुआएँ एक बार को खाली चली भी जाए, माँ की दुआएँ कभी भी खाली नहीं जाती। माया जैसे ही अपने ऑफिस गई, उसे पता चला की उसके वीडियोज़ को 10 मिलियंस व्यूज़ मिल चुके हैं और अब उसका सोशल मीडिया अकाउंट monetise हो चुका है। अब माया को उसके हर कॉन्टेंट के अच्छे खासे पैसे मिलेंगे। अपनी लाइफ की इतनी बड़ी ख़ुशी देखने के बाद, माया की आँखें नम हो चुकी थी। वह ये खुशखबरी सबसे पहले अपने आई और बाबा को देना चाहती थी। पर उसने तब रहने दिया और सोचा की, घर लौटते वक़्त आज सबके लिए आइसक्रीम लेकर जायेगी और उसके बाद बताएगी। ये ख़बर सुनने के बाद सब लोग माया को बधाई देने लगे। उसी वक़्त माया ने चेक किया तो उसे पता चला कि उसके 10 मिलियंस व्यूज़, हिस्टोरिकल एग्ज़ीबिशन वाली पोस्ट पर आये हैं। उसने फ़ौरन सौरभ को कॉल किया और अपनी ख़ुशी ज़ाहिर की। सौरभ ने भी माया को कांग्रेचुलेट किया, फिर तुरंत ही कॉल कट कर दिया। माया को सौरभ की ये बात थोड़ी अजीब लगी। इससे पहले, सौरभ के रिएक्शन के बारे में कुछ सोच पाती, उसके शो का टाइम हो गया और माया ब्रेकिंग न्यूज़ के साथ अपने काम पर लग गई. दिनभर की भागा दौड़ी में माया के दिमाग़ से सौरभ का रिएक्शन मिस हो गया।

जब माया अपने डेस्क पर बैठी अगले कॉन्टेंट की तैयारी कर रही थी, तो ऑफिस बॉय उसके सामने आ खड़ा हुआ। माया ने अपनी नज़रें जैसे ही ऊपर की, उसने देखा की, ऑफिस बॉय के एक हाथ में ट्यूलिप्स थे और दूसरे हाथ में पेस्ट्री के बॉक्स के साथ एक छोटा-सा नोट। उस पर लिखा था, माया की ख़ुशी में सबसे ज़्यादा खुश मोह है। माया ये टेक्स्ट देखकर समझ गई कि ये सब उसे मोहित यानी सौरभ ने भेजा है। माया ने तुरंत ऑफिस बॉय से पूछा कि उसे ये सब किसने दिया है। ऑफिस बॉय ने बताया कि रिसेप्शन पर एक लड़का छोड़कर गया। इस बात को सुनने के बाद, माया फ़ौरन अपनी सीट से उठी और सीढ़ियों से नीचे उतरी। वह रोड को देख ही रही थी कि उससे किसी ने कहा

सौरभ (प्यार से) –बहुत दूर तक नहीं देखना होता है, चाहने वाला हमेशा आपके आसपास ही खड़ा मिलता हैं।

माया ने आवाज़ सुनकर जैसे ही अपनी नज़रें घुमाई, उसे अपने ठीक सामने सौरभ खड़ा दिखा। उसकी आँखें चमक उठी, उसने बिना कुछ सोचे-समझे सौरभ को गले लगा लिया।

माया (चहककर) –मैं बता नहीं सकती, तुम्हें देखकर कितनी खुश हूँ!

सौरभ (ख़ुशी से) : Congratulations माया, this world is waiting for you!

माया (सवाल) –तुमने मुझे कॉल पर क्यों नहीं बताया तुम आने वाले हो?

सौरभ (नर्मी से) –क्योंकि अगर बता देता, तो तुम्हारी आँखों की ख़ुशी कैसे देख पाता?

माया (चहककर) –मतलब तुमने जान बूझ के मेरा कॉल कुछ कहे बिना ही काट दिया?

सौरभ (खुश होकर) –मिस जर्नलिस्ट, कभी-कभी किसी बात को छोड़ देना चाहिए... हर बात की तह तक जाना ज़रूरी नहीं होता।

सौरभ को देखने के बाद, माया ऑफिस से एक घंटे पहले ही निकल जाती है। जिसके बाद दोनों एक कैफ़े में जाकर बैठते हैं। कुछ देर दोनों एक दूसरे से कुछ नहीं कहते, सौरभ धीरे से अपनी दोनों हथेलियों के बीच माया की हथेलियाँ रखता है, माया की सांसें प्यार के इस छुअन से बढ़ने लगती है। माया कुछ कहने वाली होती है कि उसी वक़्त सौरभ उसके होठों पर अपनी ऊँगली रख देता है।

सौरभ (झिझकते हुए) –मैंने ये कहने की बहुत हिम्मत की है, पहले मुझे कहने दो।

माया (गंभीरता से) –क्या बात है मोहित?

सौरभ (झिझकते हुए) –पहले तुम्हें समझना, मेरे लिए बहुत मुश्किल हो रहा था। पर तुम्हारी नादानी के आगे मेरी सख्ती किसी काम की नहीं रही। अपनी पहली मोहब्बत में हार देखने के बाद, मुझको प्यार पर भरोसा ही नहीं रहा था।  तुम्हारे आने के बाद मैं अपने बीते कल से लड़ पाया। अपने आज को देख पाया। तुममें अपना आने वाला कल देख पाया। I love you माया, I love you very much!

जहाँ एक तरफ़ माया को सौरभ की बातें सुनकर ख़ुशी मिल रही थी वहीं दूसरी तरफ़ उसके मन में डर बैठा जा रहा था, वह भी इस बात का डर कि अगर उसका प्यार इस बार भी अधूरा रह गया, तो वह आगे क्या करेगी? इससे पहले की माया कुछ बोल पाती, सौरभ ने उससे कहा कि वह अपना जवाब, जब चाहे तब दे सकती है। ये बात सुनकर माया ने राहत की सांसें ली। उसी वक़्त सौरभ के फ़ोन पर एक कॉल आया, जिससे उसके चेहरे का सारा भाव ही बदल गया। माया ने जब पूछा तो उसने बताया की, कोलकाता से उसकी बहन श्रुति का फ़ोन था परिवार के कुछ लोग घर पर आकर, प्रॉपर्टी का तमाशा कर रहे है। सौरभ ने माया से कहा कि उसे इसी वक़्त ही निकलना पड़ेगा।

अपनी दूसरी चाल में कामयाब होने के बाद, अब सौरभ अपनी अगली चाल चलने वाला था। सौरभ को जब भी कोई बड़ी चाल चलनी होती, वह सीधे अपने घर कोलकाता जाता। इस बार भी उसने वही किया, नॉर्मल कंपनी के कॉल को अपनी बहन श्रुति का कॉल बता दिया और सीधे पुणे से ही कोलकाता के लिए निकल गया। माया उसे जाता देख अपने मन में यही  सोच रही थी कि सब ठीक हो। प्यार में इंसान अपने प्रेमी से  सर क़लम करवा देने पर भी उफ़ तक नहीं करता। माया की भी खुशियों का क़त्ल होने वाला था। वह बस हर हाल में अपने मोहित यानी सौरभ को खुश देखना चाहती थी। हालाँकि माया ने अभी तक सौरभ का प्रपोज़ल एक्सेप्ट नहीं किया है, मगर पूरी तरह से रिजेक्ट भी नहीं किया है।

सौरभ कुछ ही घंटो बाद, पुणे से निकलकर, कोलकाता पहुँच चुका था। वो जैसे ही अपने घर पहुँचता है ना चाहते हुए उसका दिल पिघलने लगता है। वह पुराने समय की झलकियाँ अपने आप उसके सामने आ जाती है जहाँ वह श्रुति की चोटियाँ बनाता। ठाकुमाँ से ज़िद करके अपने लिए मिष्टी दोई बनवाता। अपने बाबा के साथ पटचित्र बनाता और अपनी माँ की गोद में सिर रखकर सोता।

उस एक रात ने सौरभ के किरदार में ज़मीन आसमान का फ़र्क लाकर रख दिया था। हम सब दुनिया के आगे मुखौटा पहनकर रह सकते हैं, मगर अपने और अपनों के आगे बिलकुल भी नहीं। सौरभ आँगन में खड़ा एक टक अपने घर की दीवारों को निहार रहा था। उसी वक़्त श्रुति अपने कमरे से बाहर निकली। श्रुति अब तक ये मान चुकी थी कि दुनिया बदल जायेगी, मगर उसका भाई कभी नहीं बदलेगा। सौरभ ने श्रुति की आँखों की नाराज़गी पढ़ ली थी। उसने कुछ भी नहीं किया और पैर दबाते हुए, ऊपर अपने कमरे में चला गया।

अपने कमरे को खोलते ही उसे उस दर्द का एहसास हुआ, जो सालों से उसके दिल के अंदर है। उसने कभी बाहर आने नहीं दिया। शायद उस वक़्त वह चीखकर अपना दुःख किसी के साथ बाट लेता, तो आज उसे अपने ही किये का खामियाज़ा यूँ अकेले और छुप-छुपकर नहीं भुगतना पड़ता। सौरभ जैसे ही अपने कमरे में गया वह कुछ देर आँखें बंद करके लेट गया। जहाँ पुराने यादें उसके सामने एक ब्लैक एंड व्हाइट फ़िल्म की तरह चलने लगी। उसकी यादों में वह और श्रुति ज़ोर-ज़ोर से हंसते हुए भाग रहे थे। दौड़ते-दौड़ते श्रुति के पाँव लड़खड़ाते हैं और सौरभ उससे कहता है।

सौरभ (फ़िक्र में) : श्रुति संभलकर, गिर जाओगी ...

श्रुति (दुखी होकर) : मैं यहीं हूँ दादा, अपने पाँव पर खड़ी। पर शायद तुम डगमगा गए हो।

सौरभ: प्लीज़ श्रुति, फिर से शुरू मत हो।

श्रुति (गुस्से में) : तुमने इस घर को घर कम और होटल ज़्यादा समझा। मैं जानती तुम यहाँ क्यों आये हो.. किसी दिन तुम अपने फ़ायदे के लिए मुझे भी बेच दोगे!

सौरभ (गुस्से में) : अपनी हद मत भूलो श्रुति।

 

एक बार फिर से दोनों भाई बहन में बहस छिड़ जाती है। जिसे आगे ना बढ़ाते हुए, श्रुति अपने कमरे में चली जाती है और सौरभ चुप हो जाता है। क्या इस घर के बिगड़े हुए रिश्ते कभी सुधर पायेंगे? क्या सौरभ, श्रुति का बातों का सही मतलब समझ पायेगा? जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

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