साये की ताकत भी कम की जा सकती है अगर उसे शिकार करने से रोक लिया जाए। साये को रोकना मतलब खून की नदियाँ बहाना। जिस छैल को बचाने के लिए समीर ने अपनी जान तक दांव पर लगा दी थी, आज उसका ये फैसला कहीं उस शहर को तहस नहस ना कर दे। समीर के लिए ये फैसला बड़ा था पर उसके पास और कोई चारा नहीं था। एक और बात थी जिसपर उस ने उस समय ध्यान नहीं दिया - अगर समीर को नक्शा मिल ही जाए तो फिर उस किताब के आसपास ही क्यों बल्कि उस किताब तक भी तो पहुंचा जा सकता है? अक्सर समीर के दिमाग में  इतने सवाल होते हैं कि वो उस समय जरूरी सवाल पूछना ही भूल जाता है। जब वो घर आकर एकाग्रता से सोचता है तब उसे समझ आता है कि उसने ये सवाल उस बूढ़े आदमी से क्यों नहीं पूछा? खैर, आज और कल का दिन समीर के लिए बहुत अहम है क्योंकि आज का दिन ये तय करेगा कि कल क्या होगा और कल का दिन ये तय करेगा कि आगे क्या होगा।

जब किसी काम का अंजाम ना पता हो तो उसे करने में एक अजीब सा डर लगता है। समीर भी वो डर  महसूस कर रहा था। ये सुबह समीर से काटे नहीं कट रही थी। उसे बस दोपहर का इंतज़ार है जब वो समोसे की दुकान से तहखाने की चाबी उठा कर उस शापित घर के तहखाने से नक्शा निकाल सके। समीर से सब्र नहीं हुआ और इसी वक़्त वो घर बंद कर के निकल गया। उसको आज बाहर की हवा मेंं कुछ तो गलत लग रहा थ - जैसे कोई अनहोनी होने वाली हो। समीर उन गलियों से होता हुआ उस बस स्टैंड तक पहुंचता है और देखता है वहाँ भीड़ लगी है। जैसे ही वो समोसे की दुकान तक जाता है तो वो जो देखता है उसके पैरों तले जमीन खिसक जाने के लिए काफी था। वो समोसे वाले का शरीर सफेद कपड़े  मेंं लिपटा दुकान के बाहर रखा था। आसपास लोग आपस मेंं बातें कर रहे थे कि किसी जंगली भेड़िये ने कल रात घर जाते समय उस पर हमला किया और उसकी जान ले ली। समीर को समझ नहीं आ रहा था कि ये हो क्या रहा है? क्या साये को इस बात की भनक लग गई है कि वो उस नक्शे को खोज रहा है? कहीं उसने डॉक्टर रवि के साथ तो कुछ ऐसा नहीं कर दिया? दूसरी तरफ समीर ये सोचता है कि जंगली भेड़िये वाली बात भी सही हो सकती है क्योंकि उसपर भी भेड़िये ने एक बार हमला किया था। वो इसी सोच में  उस बाजार की तंग गलियों में घूम ही रहा होता है कि अचानक से कोई उसकी बांह पकड़ कर एक दुकान के अंदर खींच लेता है। ये एक सुनार की दुकान है। दुकान छोटी है पर यहाँ सोने से बनी कुछ अतरंगी चीजें टंगी हुई थी। दुकानदार समीर को बताता है कि साबुन पर लिए निशान की मदद से उसने ये चाबी बनाई है और डॉक्टर रवि ने उसे देने को कहा है। समीर उस सुनार की तरफ हैरानी से देख रहा होता है तभी सुनार समीर को बताता है कि डॉक्टर रवि के साथ जब समीर कल समोसे खा रहा था तब वो सुनार भी वहीं पीछे बैठ कर समोसे खा रहा था। जब समीर कल वापस उस बस स्टैंड पर आया तब समोसे वाले ने उसे बैटरी वाली बात बताई। में  तभी सुनार ने उसे एक बैटरी नुमा केस दिया जिसके अंदर वो बड़ी चाबी आ गई। समीर ने उसे एक थैले में भर कर वहाँ से निकलते वक़्त सुनार से पूछा कि क्या डॉक्टर रवि ने कुछ और भी देने को कहा था? सुनार ने बताया कि वो कई हफ्तों से इस पंच धातु की चाबी को बना रहा है। उसे डॉक्टर रवि ने सिर्फ इतना कहा है कि जब समीर आए तो कहना कि अगला कदम वो शांति से उठाए। ये कह कर सुनार ने अपनी दुकान का दरवाज़ा बंद कर दिया। समीर वहीं खड़ा सोचता रहा कि ज़रूर डॉक्टर रवि की इस बात के पीछे कोई बात छुपी होगी। वो उस बात को अपने दिमाग मेंं दोहराने लगा।

समीर(दोहराते हुए) - जब समीर आए तो उसे कहना कि अगला कदम वो शांति से उठाए.... जब समीर आए तो उसे कहना कि अगला कदम वो शांति से उठाए।

जब समीर आए तो उसे कहना कि अगला कदम वो शांति से उठाए।

शांति निवास! जहां समीर पहले दिन रुका था और जहां उस औरत ने उसे वो डायरी भी दी थी। एक मुखौटा वहाँ भी था। समीर समझ गया और शान्ति निवास की तरफ चल पड़ा। उसको एक बात धीरे धीरे समझ आ रही थी कि वहाँ लोग उस साये को वापस कैद करने की तैयारी मेंं थे और समीर से वहां बहुत से लोगों की उम्मीद है। वो जैसे ही शांति निवास पहुंचा उसने देखा उस दरवाज़े पर ताला लगा है। कोई घर पर नहीं है। उस ने आसपास देखा तो एक कोने मेंं काले कपड़े मेंं लिपटा वो मुखौटा पड़ा हुआ था। समीर उस मुखौटे को उठा कर उस थैले में रख लेता है और जैसे ही पलटता है उसे दिखती है अंजलि, डॉक्टर रवि की पत्नी।

अंजलि - जहां उम्मीद की कोई किरण नजर ना आए वहां चिराग बन कर आए हो। आप पर एक माँ का आशीर्वाद है, आपकी जिंदगी हमेशा रोशन रहेगी।

इससे पहले समीर कुछ बोल पाता अंजलि वहाँ से चली गई। समीर को अंजलि की आँखों में  वो दर्द साफ दिख रहा था पर जब वो बोल रही थी तब उसके चेहरे से ऐसा लग रहा था जैसे वो कोई कविता या मुहावरा बोल रही हो। समीर को ये बात तुरंत समझ आ गई कि अंजलि ने उसे वो लालटेन साथ ले जाने को कहा जिससे वो रोशनी होती है और रहस्यमयी चीजें साफ नजर आती है। वो घर गया और लालटेन उठा कर चल पड़ा वापस बस स्टैन्ड की ओर।

समीर अपना समान लिये बस मेंं बैठा और फिर से सोलन का टिकट लिया। वो उस पहाड़ी पर ही उतर गया। उस सूखी नदी के पत्थरों के बीच सामान उठाए चलता रहा। जैसे ही वो उस शापित घर के पास पहुँचा उसने नोट किया कि आज उस बूढ़े आदमी ने आवाज नहीं लगाई। समीर चारों तरफ देखता रहा और उसे वो बूढ़ा आदमी कहीं नज़र नहीं आया। समीर को अंदर से डर का एहसास हुआ कि कहीं उस समोसे वाले की तरह उस बूढ़े आदमी के साथ भी तो कुछ नहीं हो गया? तभी उसकी नजर दूर से आ रहे उस बूढ़े आदमी पर पड़ी। आज उसने काल कुर्ता और काली धोती पहनी थी। समीर ने देखा दोपहर का समय था फिर भी पहाड़ की छांव से उस घर पर सूरज की रोशनी नहीं पड़ रही थी। बूढ़ा आदमी समीर के हाथ में  वो लालटेन को हैरानी से देख रहा था क्योंकि उसे पता था अंदर गुप्प अंधेरे में  वो नक्शा सिर्फ इसी लालटेन की रोशनी में  दिख सकता है।  या फिर दूसरा उपाय था अंधेरे कमरे मेंं आग लगा देना जिसके लिए तेल का डब्बा और सलाई वो बूढ़ा आदमी साथ ले कर आया था। बूढ़े आदमी ने समीर से कहा, “तुम्हारी तैयारी देख कर मुझे समझ आ गया कि तुम्हारी नियत साफ है क्योंकि ये समान तुम्हें बिना इस विधि की जानकारी के कभी नहीं मिलता। ये विधि सिर्फ मेरे परिवार को पता है। एक और बात, अंदर चाहे जो भी हो तुम रुकना मत! उस नक्शे को ले कर यहां से निकल जाना।”

जब बिना किसी उम्मीद के कोई मददगार मिल जाए तो जिंदगी थोड़ी आसान लगने लग जाती है। समीर को बूढ़े आदमी का मिल जाना किसी वरदान से कम नहीं लग रहा था। बूढ़े आदमी ने समीर को एक काली चादर ओढ़ने को दी और थैला, मिट्टी का तेल सब बाहर रख उस लालटेन को जला कर अंदर ले गया। जैसे जैसे दोनों अंदर बढ़ते गए अंधेरा भी बढ़ता गया। सबसे पहले उस बूढ़े आदमी ने वो तहखाना खोला। ताला खुलते ही एक सन्नाटा सा महसूस हुआ। समीर और बूढ़ा आदमी नीचे गए। अंधेरा इतना ज्यादा था कि सुनहरी लालटेन भी बस एक से दो फुट तक ही असर कर रही थी। तभी समीर को वो संदूक दिखा जो मोटी लकड़ी का बना था। बूढ़े आदमी ने समीर के हाथ से वो मुखौटा ले कर उस संदूक पर लगाया और  कुछ नहीं हुआ। वो संदूक अभी भी बंद था। बूढ़ा आदमी लगातार कोई पौराणिक मंत्र धीरे धीरे जप रहा था तभी अचानक से उन पुरानी लकड़ियों से कुछ आवाज आयी और एक दम से वो संदूक खुल गया। संदूक खुलते ही इतनी तेज रोशनी हुई की पूरा कमरा उजाले से भर गया। बूढ़े आदमी ने उस नक्शे को जैसे ही उठाया एक शोर सा मच गया। कुछ काली परछाइयों ने उस बूढ़े आदमी को घेर लिया। उस बूढ़े आदमी ने जो काली चादर समीर को दी थी वो खींच ली और नक्शा समीर के हाथ में  दे कर जोर से चिल्लाया, “भाग”

समीर हाथ में  नक्शा लिए भाग कर उस तहखाने की सीढ़ियों पर चढ़ ही रहा था कि उसने देखा उस बूढ़े आदमी का सिर उल्टा है, उसके हाथ पैर की हड्डियां टूट चुकी हैं और वो हवा में  उठा है। उस संदूक ने उसे अपने अंदर खींच लिया और एक बार फिर वहां गहरा अंधेरा छा गया।  

समीर दौड़ता हुआ बाहर निकला और उस चाबी को तहखाने में ं फेंक उसने दरवाजा बंद कर दिया। समीर उस शापित घर से बाहर निकलता है अपना सामान लिए भागता हुआ उन पगडंडियों पर चढ़ता है। ऊपर पहुंच उस बस्ती तक जा कर एक बस में ं बैठता है। मौसम साफ है धूप निकली है दोपहर का समय है लेकिन समीर की धड़कने दौड़ रही हैं वो अंधेरा अपने आप मेंं किसी साये से कम नहीं था पर समीर अभी भी ये सोच रहा था कि उस बूढ़े आदमी ने अपने परिवार के लिए अपनी जान गवां दी। उसे पता था कि अंधेरा उसे खा जाएगा इसलिए वो काले कपड़े पहन कर आया था। समीर सहमा हुआ अपने समान से भरे थैले को अपनी  गोद में समेटे, बस मेंं बैठ गया।

कल शुक्रवार है। क्या समीर अपने मकसद मेंं कामयाब हो पाएगा? क्या समीर इस नक्शे से वो किताब ढूँढ पाएगा? क्या होगा जब साये को इस नक्शे की भनक होगी? 

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

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