आर्यन प्रज्ञा को गोद में ले कर घर के अंदर की तरफ़ बढ़ रहा था। घर के अंदर गेस्ट हॉल में काव्या शैलजा के साथ बैठी हुई थी।
शैलजा ने इतनी व्हिस्की पी ली थी कि उसकी आंखें बंद हो रही थी। वही काव्या को भी बहुत तेज नींद आने लगी थी। मर्दों के खिलाफ शैलजा का भाषण सुनते सुनते उसके सिर की नसें तन गई थीं। उसने सोचा कि अब उसे घर निकलना चाहिए। उसके दिमाग़ में आर्यन से मिलने के ख्याल आ रहे थे। इतनी बारिश में उसे आर्यन के साथ भी टाइम स्पेंड करना था। पर उसे नहीं पता था कि आर्यन उससे कुछ ही दूरी पर प्रज्ञा के साथ enter करने वाला था।
जैसे आर्यन प्रज्ञा को ले कर घर के अंदर आने वाला था। प्रज्ञा ने उसे रोकते हुए कहा,
प्रज्ञा: “सुनो, आगे वाले गेट से नहीं, मुझे पीछे वाले गेट से ऊपर फ्लोर पर ले चलो। मुझे लगता है, मम्मा तुम्हे देख कर खुश नही होंगी और मैं नहीं चाहती कि तुम मम्मा के मुंह से कोई भी कड़वी बात सुनो।”
आर्यन प्रज्ञा की बात सुनकर हैरान था कि प्रज्ञा किस तरह दूसरों के बारे में सोचने वाली, समझदार लड़की बन चुकी थी। उसने वैसा ही किया, वो प्रज्ञा को पीछे वाले दरवाजे से अंदर ले जाने लगा।
काव्या ने शैलजा को जगाते हुए कहा,
काव्या: “मैम! मैम!”
शैलजा थोड़ा सा होश में आई और बच्चों की तरह रोने लगी।
शैलजा: “मत जाओ प्लीज़! मेरे को गोदी में ले लो! I am good girl!”
शैलजा को इस हालत में देख कर काव्या को कुछ समझ नहीं आया कि वो क्या करे। शैलजा ने काव्या का हाथ पकड़ लिया था। काव्या चाह कर भी वहां से जा नहीं पा रही थी।
उधर आर्यन ने प्रज्ञा को उसके कमरे में लेटा दिया था। जैसे ही आर्यन वहां से जाने लगा, प्रज्ञा ने आर्यन को रोकते हुए कहा,
प्रज्ञा: “आर्यन! प्लीज थोड़ी देर यहीं रुक जाओ। मुझे घबराहट हो रही है।”
आर्यन अभी तक प्रज्ञा की हर बात को इसलिए मान रहा था क्योंकि वो rude नहीं होना चाह रहा था। पर यहां रुकने वाली प्रज्ञा की बात को आर्यन नहीं मान सकता था।
उसने प्रज्ञा को कहा,
आर्यन: “नहीं मुझे घर जाना है। मैं यहां नहीं रुक सकता हूं।”
ये बोलते हुए आर्यन कमरे से बाहर निकलने लगा। तभी काव्या का कॉल उसके पास आया। उसको समझ नहीं आया कि वो काव्या का कॉल अभी कैसे उठाए? फिर कुछ देर सोचने के बाद आर्यन ने कॉल उठाया। काव्या ने आर्यन से वही सवाल कर लिया था जिसका उसे डर था।
काव्या ने आर्यन से पूछा,
काव्या: “कहां हो तुम आर्यन?”
ये सुनते ही आर्यन सकपकाया। अगर उसने काव्या को अभी सच बता दिया तो काव्या दिमाग में कई ऐसी कहानी बुन लेगी जिसे सुलझाना मुश्किल हो जायेगा। इसलिए उसने झूठ बोलते हुए कहा,
आर्यन: “मैं ज़रा किसी काम से अपने ऑफिस के दोस्त आया था। बस कुछ देर में घर पहुंचने ही वाला हूं।”
इतना बोलने के बाद ही कॉल अचानक कट गई थी। काव्या दरअसल आर्यन को अपनी मदद के लिए बुलाना चाहती थी। पर बात पूरी होने से पहले कॉल अपने आप कट गई। उसके बाद काव्या ने बहुत try किया पर कॉल नहीं लग रही थी। शायद बारिश की वजह से नेटवर्क नहीं आ रहे थे। फिर उसने कैब बुक करनी चालू की।
आर्यन ने भी अपनी तरफ़ से कॉल दोबारा लगाने की कोशिश की पर उसकी तरफ से भी यही दिक्कत हो रही थी। काव्या से झूठ बोल कर उसे अच्छा नहीं लग रहा था। पर उसके पास झूठ बोलने के अलावा कोई और चारा भी नहीं था।
आर्यन पीछे वाले गेट से निकलने की सोच रहा था पर वापिस आते समय वो पीछे वाले गेट का रास्ता भूल गया। और वो गलती से आगे वाले हिस्से की तरफ़ आ चुका था। काव्या भी हॉल से निकल कर बाहर के गेट की तरफ बढ़ रही थी।
दोनों लगभग एक ही रफ्तार से मल्होत्रा मैंशन के आगे वाले गेट की तरफ आ रहे थे। तेज़ बिजली कड़कने की वजह से काव्या सहम जा रही थी। वो जैसे ही भागती हुई गेट की तरफ बढ़ी अचानक से आर्यन से ही टकरा गई।
एक ज़ोर दार भिड़ंत के बाद जब काव्या ने आर्यन को अपने सामने देखा तो उसकी आंखें बड़ी की बड़ी रह गईं थी। आर्यन भी अचानक से काव्या को अपने सामने देख कर हक्का बक्का रह गया था।
काव्या ने हैरानी से आर्यन की ओर देख कर पूछा, “तुम यहां? तुमने तो कहा था तुम अपने ऑफिस दोस्त के यहां हो?”
आर्यन के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था। वो खुद हैरान था काव्या प्रज्ञा के घर में क्या कर रही थी? क्या वो आर्यन का पीछा करते करते यहां आ गई और कहीं वो कॉल भी आर्यन की सच्चाई जानने के लिए ही तो नहीं की थी?
आर्यन घबरा चुका था। उसे लगा जैसे उसकी चोरी पकड़ ली गई थी। और उसके पास इस गलतफहमी को दूर करने के लिए कोई भी explanation नहीं था। उसने काव्या के सामने सिर झुका लिया।
काव्या को ये देखकर अजीब सा लगा उसने पूछा,
काव्या: “क्या हुआ? ओह तो तुमने झूठ बोला था कि तुम दोस्त के यहां हो?”
इस पर आर्यन ने सिर हां में हिलाते हुए जवाब दिया।
आर्यन: “हां, पर पहले मेरी पूरी बात…”
इसके पहले आर्यन आगे कुछ कह पाता, उसने देखा काव्या के चेहरे पर एक बड़ी सी स्माइल थी। काव्या ने मुस्कुराते हुए कहा,
काव्या: “तो तुम मुझे यहां लेने आने वाले थे इसलिए तुमने झूठ बोला। पर तुमको कैसे पता चला, मैं यहां हूं?”
आर्यन सुन्न सा खड़ा रहा। क्या काव्या को पता नहीं था कि वो प्रज्ञा के घर में आई हुई थी? उसने काव्या से पूछा,
आर्यन: “तुम…तुम यहां क्या कर रही थी? किससे मिलने आई थी?”
तभी काव्या के पास उसकी कैब वाले का कॉल आया। जिसे देख कर काव्या ने आर्यन से बोला,
काव्या: “चलो! मैने घर जाने के लिए कैब बुक कर दी थी। उसी में जा कर बात करते हैं।”
काव्या और आर्यन कैब में बैठे। तब काव्या ने आर्यन की बात का जवाब दिया।
काव्या: “दरअसल ये मेरी क्लाइंट का घर है। Mrs शैलजा मल्होत्रा! काफ़ी बड़ी कंपनी है उनकी। और आज उन्होंने ही मुझे यहां मिलने के लिए बुलाया था। सॉरी मैं अभी थोड़ा ड्रंक भी हूं। तो मुझे समझ नहीं आ रहा है कि तुम अचानक यहां कैसे दिख गए? ये सोच कर हंसी आ रही है।“
आर्यन ने काव्या के सिर को अपने कंधे पर रखा और प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा। मन ही मन सोच रहा था, अगर शैलजा आंटी काव्या की क्लाइंट हैं तो क्या काव्या ये बात जानती होगी कि वो प्रज्ञा की मदर हैं। इस सवाल का जवाब जानने के आर्यन ने काव्या से पूछा,
आर्यन: “तुम शैलजा को जानती हो वो कौन हैं?”
काव्या हंसती जा रही थी। उसने आर्यन का हाथ पकड़ा और कहा,
काव्या: “वो मल्होत्रा कंपनी की बहुत बड़ी मालकिन हैं। तुम भी जानते हो उन्हें? अरे हां! उन्होंने बताया था कि तुम्हारी कंपनी और उनकी कंपनी ने आपस में मेल मिलाप कर लिया है।”
मेल मिलाप बोलने के बाद काव्या ज़ोर ज़ोर से हंसने लगी। और उसने आर्यन से कहा,
काव्या; “तुमको पता है? mrs शैलजा आज मुझे क्या सिखा रही थीं?”
आर्यन का दिल धड़कने लगा था। उसने धीरे से पूछा,
आर्यन: “क्या?”
इस पर काव्या ने जवाब दिया।
काव्या: “Mrs. शैलजा ने मुझे सिखाया कि मैं कभी किसी आदमी पर भरोसा न करूं! तुम्हें क्या लगता है, मिस्टर आर्यन। क्या मैं तुम पर भरोसा कर सकती हूं? और क्या तुम मेरा भरोसा कभी नही तोड़ोगे?”
आर्यन के दिल में एक टीस सी उठ रही थी। उसका मन चाह रहा था कि वो काव्या को सारी बात जल्द से जल्द बता दे। क्योंकि बाद में काव्या को ये न लगे कि आर्यन ने उसको धोखा दिया।
पर वो इस वक्त सारी चीजें explain नहीं कर सकता था। उसने काव्या से बस इतना कहा,
आर्यन: “नहीं मैं तुम्हारा भरोसा कभी नही तोडूंगा। मैं हमेशा तुम्हें इसी तरह प्यार करूंगा।”
इस बात को सुनते ही काव्या कसकर आर्यन की बाहों से लिपट गई। उसने आर्यन से कहा,
काव्या: “इसलिए तुम मुझे यहां लेने आ गए। पर तुम्हे कैसे पता चला मेरी क्लाइंट यहां है?”
आर्यन को अब एक और झूठ मजबूरी में बोलना पड़ गया था। उसने कहा,
आर्यन: “मैंने पता लगा लिया था। शैलजा अब मेरी कंपनी से जुड़ चुकी हैं तो मुझे पता लगा था कि उन्होंने तुमको अपना एक प्रोजेक्ट दे रखा है।”
आर्यन को झूठ बोलने के बाद गिल्ट हो रहा था। पर वो कुछ नहीं कर सकता था। वो सुबह के इंतजार में था। जब अगली सुबह काव्या थोड़ी होश में होगी तो वो उसे प्रज्ञा वाली सारी बात बता देगा।
दोनों साथ में घर पहुंचे। तो चंचल काव्या वाले कमरे में सो चुकी थी। आर्यन, काव्या को गुड नाईट कहकर जब अपने रूम में जाने लगा तब काव्या आर्यन को रोककर बोली,
काव्या: “आज मैं तुम्हारे साथ तुम्हारे कमरे में सो जाऊं?”
ये सुनकर आर्यन के चेहरे का रंग खिल गया था। उसने काव्या का हाथ पकड़ा और बोला,
आर्यन: “बिल्कुल! तुम सो सकती हो। बशर्ते तुम्हे ज्यादा खर्राटे न आते हो!”
ये सुनते ही काव्या ने आर्यन के गाल पर धीरे से चपत लगाई और उसकी बाहों में अपने हाथ डाल दिए थे।
आर्यन ने उसको अपनी गोदी में उठा लिया था, जैसे कुछ देर पहले प्रज्ञा को उठाया था। वो काव्या को अपने कमरे में ले आया। और दोनों ने पहली रात साथ में बिताई।
आर्यन के मन में बस यही ख्याल दौड़ रहा था कि सुबह होते ही उसे काव्या को सारा सच बताना था।
अगले दिन सुबह जैसे ही हुई। आर्यन ने उठ कर देखा तो उसने बेड का दूसरा हिस्सा जहां काव्या लेटी हुई थी, खाली पड़ा था। उसने तुरंत उठकर पूरे फ्लैट में चेक किया पर काव्या उसे कहीं नज़र नहीं आई।
सुबह सुबह काव्या आखिर कहां चली गई थी? चंचल भी काव्या के कमरे से गायब थी। आर्यन ने दोनों का नंबर लगाने की कोशिश की। पर किसी ने भी फोन नहीं उठाया।
एक अजीब सी बेचैनी उसके शरीर में होने लगी थी। वो जल्द से जल्द काव्या को प्रज्ञा के बारे में बता कर अपने दिल पर रखा भारी बोझ हटाना चाहता था।
आर्यन को भी ऑफिस के लिए निकलना था। तैयार होने के बीच में उसने कई बार काव्या का नंबर ट्राई किया। पर काव्या ने एक भी कॉल नहीं उठाया था।
आर्यन परेशान था कि कहीं काव्या को कल रात उसके बोले झूठ के बारे में कहीं और से पता तो नहीं चला और वो अचानक से गायब हो गई हो। पर चंचल भी फ्लैट पर नहीं थी। आर्यन को कुछ समझ नहीं आया। लेकिन जब वो कैब से अपने ऑफिस की तरफ़ जा रहा था तभी काव्या का कॉल उसके पास आया।
जल्दबाजी में आर्यन ने फोन उठाया।
आर्यन: “हेलो! कहां हो तुम काव्या? मैं तुम्हें कितनी देर से कॉल करने की कोशिश कर रहा हूं।”
आर्यन को महसूस हुआ जैसे काव्या हड़बड़ा सी रही थी। काव्या की आवाज़ में एक तरह की घबराहट थी जब उसने कहा,
काव्या: “एक्चुअली मैं हॉस्पिटल में हूं, आर्यन! पापा की अचानक तबियत खराब हो गई थी। और उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट करना पड़ा। घर पर सिर्फ मम्मा थीं, जिन्होंने घबराते हुए कॉल किया और मैं चंचल को ले कर हॉस्पिटल आ गई। सॉरी मैं तुम्हारा फोन नहीं उठा पाई। मुझे मौका ही नहीं मिला।”
आर्यन ने तुरंत पूछा,
आर्यन: “क्या हुआ अंकल को? तुम कहां हो अभी? मैं तुम्हारे पास आता हूं।”
काव्या ने मना करते हुए कहा,
काव्या: “नहीं नहीं तुम अभी यहां मत आओ। पापा को एक्चुअली heart attack आया था। अभी सब लोग तुमको यहां अचानक देखेंगे तो बेफालतू में बाद बिगड़ जाएगी। इसलिए प्लीज तुम अभी मत आओ।”
आर्यन काव्या की बात मान गया था पर उसके मन में अभी भी इच्छा थी कि वो काव्या से हॉस्पिटल में मिल ले। पर काव्या के कहने पर आर्यन अभी इच्छा को छोड़ते हुए ऑफिस की तरफ निकल गया।
आर्यन जब ऑफिस पहुंचा तो प्रज्ञा लंगड़ाते हुए इधर उधर move कर रही थी। आर्यन को देखते ही वो उसके पास आ कर बोली,
प्रज्ञा: “कल के लिए आई am सॉरी आर्यन! मैं कल अपने होश में नहीं थी। दर्द की वजह से कुछ भी बोले जा रही थी। थैंक यू तुम्हारी वजह से मैं कम से कम घर पहुंच पाई।”
आर्यन ने ज्यादा रिएक्ट नहीं किया। वो चुप चाप अपनी डेस्क पर बैठ गया था। तभी आर्यन के बॉस ने आ कर आर्यन को बोला,
(आर्यन के बॉस): “आज से प्रज्ञा तुम्हारे साथ प्रोजेक्ट में काम करेगी। And तुम्हारे साथ रहकर, she will get training and also will learn!”
ये सुनते ही आर्यन का मुंह बन गया था। वो चाह कर भी प्रज्ञा को अपने से दूर क्यों नहीं कर पा रहा था। वो जितना उससे दूर जाने की सोच रहा था, किस्मत उसे प्रज्ञा के इर्द गिर्द ही ला देती थी। उसका मन किया वो ज़ोर से चिल्लाए। पर तभी पीछे से प्रज्ञा ने आर्यन के पास बैठते हुए कहा,
प्रज्ञा: “Shall We Begin?”
क्या प्रज्ञा का आर्यन की जिंदगी में वापिस फिर आना किस्मत का खेल था या खुद प्रज्ञा का? क्या आर्यन अपने बोले गए झूठ के बारे में काव्या को बता पाएगा? क्या होगा जब काव्या को पता लगेगा कि प्रज्ञा और आर्यन वापिस एक साथ हो कर एक जगह काम कर रहे हैं?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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