आर्यन ने खुद को मुश्किल में फंसा पाया। एक तरफ़ प्रज्ञा का अचानक से उसके और करीब आते जाना और दूसरी तरफ़ काव्या से जुड़ा हुआ उसका झूठ। सब कुछ अजीब ढंग से उलझता जा रहा था, और उसे समझ नहीं आ रहा था कि इस situation से बाहर कैसे निकले। वो अपनी कुर्सी पर बैठा यही सब सोच रहा था, तब तक प्रज्ञा ने अपने काम पर ध्यान देना शुरू कर दिया था।
प्रज्ञा ने अपना लैपटॉप खोला और आर्यन की ओर देखते हुए मुस्कराई,
प्रज्ञा: “तो फिर हम इस प्रोजेक्ट पर क्या काम करने वाले हैं?”
आर्यन ने नजरें घुमा लीं। उसे प्रज्ञा के साथ काम करने का कोई मन नहीं था, लेकिन बॉस के कहने की वजह से वो चाहकर भी इंकार नहीं कर सकता था। वो गहरी सोच में डूबा हुआ था कि कैसे काव्या से सारा सच कहे और इस मुसीबत से खुद को बाहर निकाले।
आर्यन को काव्या हमेशा सच्चाई पर जोर देने वाली लड़की लगी थी, लेकिन उसने उससे झूठ बोला था, और अब ये बोझ बढ़ता जा रहा था।
उसने चिड़चिड़े मन से प्रज्ञा से बोला,
आर्यन: “अभी कुछ ज्यादा नहीं, प्रेजेंटेशन पर ही काम करना है बस।”
प्रज्ञा ने आर्यन के मूड को भांप लिया था। उसने आर्यन को comfortable करने की कोशिश करते हुए कहा,
प्रज्ञा: “आर्यन, मैं जानती हूँ कि तुम मुझसे दूर रहना चाहते हो। लेकिन ये प्रोजेक्ट मेरी भी अब responsibility है, और मुझे उम्मीद है कि हम इसे साथ मिलकर ठीक से कर सकते हैं।”
आर्यन को लगने लगा था कि जैसे उसे किस्मत जानबूझकर एक ऐसे मोड़ पर ला खड़ा कर रही है, जहां उसके फैसले हर तरफ से उलझे हुए हैं। उसने खुद को control करते हुए कहा,
आर्यन: “हाँ, प्रोजेक्ट पर काम करना है, यही सबसे ज़रूरी है।”
फिर आर्यन ने धीरे धीरे प्रज्ञा को प्रोजेक्ट की डिटेल्स बताना शुरू किया। बीच बीच में कुछ बातचीत भी हुई। प्रज्ञा ने आर्यन से अचानक काव्या के बारे में सवाल करते हुए पूछा,
प्रज्ञा: “वैसे काव्या के साथ तुम्हारा सब सही चल रहा है? अब तो तुम्हें कोई annoy नहीं करता होगा जितना तुम्हे मेरे साथ feel होता था।”
आर्यन ने प्रज्ञा का अचानक काव्या के बारे में पूछना पसंद नही आया। उसने कहा,
आर्यन: “i think अभी हमें पर्सनल बातें नहीं करनी चाहिए। ये एक professional space है।”
प्रज्ञा ने तुरंत सॉरी बोला। जिसे सुनने के बाद आर्यन शांत हो गया था। प्रज्ञा के मुंह से ये शब्द उसने पहले कभी नही सुने थे, जो उसने हाल के दिनों में सुन लिए थे।
आर्यन के दिमाग में हर पल काव्या को ले कर ही thought आ रहे थे।
उधर, हॉस्पिटल में, काव्या अपनी बहन चंचल और मॉम के साथ आईसीयू के बाहर बैठी थी। तीनों शांत बैठे थे। काव्या की मॉम की हालत काफ़ी खराब लग रही थी। रो रो कर उनकी आंखें सूज चुकी थीं।
तभी काव्या ने मॉम का हाथ पकड़ा और कहा,
काव्या: “आपने कुछ खाया नहीं है, कुछ खाने को लाऊं?”
मॉम ने मना कर दिया और भगवान को याद करते हुए मंत्र पढ़ने लगीं। तभी डॉक्टर आए तो उन्होंने बताया कि situation अब कंट्रोल में है। डॉक्टर की बात सुनकर काव्या की मॉम के मुंह से ज़ोर से निकला,
काव्या की मॉम: “भगवान का लाख लाख शुक्र है! भगवान की बहुत मेहरबानी है।”
काव्या और चंचल भी काफ़ी खुश हो गई थी। पापा से मिलने के लिए जब वो मॉम के साथ अंदर जाने लगीं तो मॉम ने दोनों को रोकते हुए कहा,
काव्या की मॉम: “नहीं तुम लोग अभी यहीं रुको। मैं अकेले मिलूंगी”
काव्या और चंचल ने एक दूसरे को देखा और वो समझ गई थीं कि उनकी मां, पापा की इस हालत का जिम्मेदार उन्हें ही ठहराने वाली थीं।
तभी वहां पर फिर से पीयूष आया। जिसके चेहरे को देखते ही काव्या के दिमाग की नसें तन चुकी थीं। इसके पहले वो पीयूष को कुछ सुनाती, पीयूष ने हाथ जोड़ते हुए काव्या से कहा,
पीयूष: “प्लीज़! अभी ये जगह और टाइम सही नहीं है, किसी भी तरह की बहस करने के लिए। तुम्हारे पापा को भी शांत माहौल की जरूरत है। मुझे उम्मीद है ये बात उनकी बेटियां भी समझेंगी।”
पीयूष के मुंह से निकले हर शब्द को सुनकर काव्या का गुस्सा और बढ़ता जा रहा था। आखिर ये था कौन जो उनकी जिंदगी में आ कर उन्हे सलाह दे रहा था। पर जगह और समय को देखते हुए काव्या ने कुछ नहीं कहा। चंचल की आंखों में पीयूष के लिए गुस्सा था। उन दोनों की नज़रों से बचाने के लिए पीयूष को काव्या की मॉम ने icu के अंदर बुला लिया था। ये देख कर काव्या और चंचल को और बुरा लगा।
कुछ देर बाद डॉक्टर ने जब ये कहा कि patient को घर ले जा सकते हैं तो पीयूष अपनी गाड़ी से काव्या के पापा को साथ ले कर घर आ गया। काव्या और चंचल ने अपना अलग ऑटो कर लिया था।
जब वो घर पहुंचे तो मॉम ने उन्हें घूरते हुए देखा और पास आ कर कहा,
काव्या की मॉम: “कुछ भी ऐसी वैसी बकवास की तुम दोनों ने। तो देखना तुम, मुझसे बुरा फिर कोई नहीं होगा।”
काव्या और चंचल खुद इस वक्त कोई ऐसी बात नहीं करना चाहते थे जिससे उनके पापा के दिल को और ठेस पहुंचे। जैसे ही काव्या पापा के पास पहुंची। पापा ने प्यार से काव्या का हाथ पकड़ कर कहा,
(काव्या के पापा): “मैं चाहता हूं कुछ दिन तुम लोग यहीं रुक जाओ।”
कितने समय बाद काव्या को पापा की तरफ से थोड़ा प्यार मिला था। वरना तो काव्या बड़े होने के बाद पापा के प्यार को भूल चुकी थी। और अब जब उन्होंने यही मांगा था कि वो दोनों घर में कुछ दिन के लिए रुक जाएं। काव्या कैसे मना कर सकती थी। चंचल ने भी हामी भर दी थी।
पर इस बीच काव्या को आर्यन से दूर रहना पड़ेगा। पिछली रात के पल काव्या के दिमाग में याद आने लगे थे। उसे याद आया कि कैसे आर्यन उसको लेने शैलजा के घर तक आ गया था। पिछली रात के किस्सों को जब काव्या दोबारा याद कर रही थी तो उसे अचानक से लगा कि आर्यन का वहां आना उसके लिए बड़ा ही ताज्जुब था। तभी उसका दिमाग उन छोटी छोटी चीजों को याद करने लगा, जो उस वक्त उसके दिमाग़ में नही आई थी। जैसे सबसे अजीब बात उसे याद आई कि आर्यन मेन गेट के बाहर से नहीं, अंदर की तरफ आया था। और आते ही वो कैसे काव्या को देख कर चौंक गया था। अगर वो काव्या को लेने नहीं आया था तो इस तरह चौंक क्यों गया था?
काव्या के मन में ये सवाल अचानक से आने लगे। हालांकि उसने इन सवालों को अपने ऊपर इतना हावी नहीं होने दिया जिससे वो परेशान हो जाए। पर उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे आर्यन काव्या से कुछ छुपा रहा था।
इसके लिए काव्या ने चंचल से पूछा,
काव्या: “तूने कल आर्यन को देखा था, न?”
चंचल ने सिर हिलाते हुए कहा,
चंचल: “हाँ, रात में घर पर ही था जब तक उसके पास किसी का कॉल नहीं आया था!”
ये सुनते ही काव्या ने पूछा,
काव्या: “किसका कॉल आया था?”
इस पर चंचल ने कहा,
चंचल: “पता नहीं, मैने पूछा नहीं। बातों से जितना लगा, वो यही था कि उसे किसी की हेल्प करने जाना था। किसी दोस्त की गाड़ी बारिश में फंस गई थी।”
काव्या को समझ नहीं आया कि आखिर ये बात आर्यन ने उस दौरान क्यों नहीं बताई। शायद उसे ये सब बताने का वक्त न मिला हो या बात कोई खास न लगी हो।
ये सोच कर काव्या ने बात को दिमाग से हटा दिया। अभी तो उसे अपने पापा की देखरेख करने की जरूरत थी।
पीयूष जो उनके घर में ही था। काव्या से बात करने जब उसके पास आया। काव्या ने गुस्से में घूरते हुए उसको देखा और फुसफुसा कर कहा,
काव्या: “दफा हो जाओ यहां से अभी। We can handle ourselves। हमें तुम्हारी जरूरत नहीं है।”
पीयूष ने स्माइल करते हुए कहा,
पीयूष: “ज़रूरत तो है। हॉस्पिटल का बिल जो मैने pay किया है। अब तक मैं तुम्हारी बदतमीजी, थप्पड़ सब सह ले रहा था क्योंकि तुम hurt थीं। पर तुम बार बार मुझे जलील करोगी तो मैं भी तुमको बताऊंगा कि मेरी एक्चुअली में क्या अहमियत है।”
पीयूष की बात सुनते ही काव्या का फटने का मन हुआ। पर उसे पापा की चिंता थी। ऊपर से काव्या को अंदाज़ा नहीं था कि हॉस्पिटल में डॉक्टर की फीस और बाक़ी खर्चे पीयूष ने ही दिए थे। पर उसे समझ नहीं आया। ऐसा था क्यों?
क्या घर की स्तिथि ऐसी आ गई थी कि पीयूष ने जिम्मेदारी ले ली थी। ये जानने के लिए काव्या अपनी मॉम के पास उनसे पूछने भी गई।
मॉम ने कहा,
काव्या की मॉम: “हां, तो क्या करें! तुम्हारे पापा अब रिटायर होने वाले हैं। कहां से आयेंगे पैसे? कोई बेटा होता तो इतना सोचना नहीं पड़ता। कहते हैं, आजकल की बेटियां भी कम नहीं होती। पर हमारे घर में तो वो भी नसीब नहीं हुआ। एक के पास जॉब है, पैसा है पर घर के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं। दूसरी से क्या उम्मीद लगाए, उसको तो दिल्ली की हवा ने बरबाद कर रखा है।”
मॉम के मुंह से फिर से यही ड्रामा भरी बातें सुन कर काव्या को ऐसा लगने लगा था कि उसने पूछा ही क्यों।
फिर भी उसने पीयूष के बारे में ये कहा,
काव्या: “तो आप किसी से भी पैसे ले लेंगी? आप मुझसे भी मांग सकती थी।”
ये बोलने के बाद काव्या की जुबान थोड़ी सी लड़खड़ाई थी। क्योंकि वो जानती थी अकेले वो घर की जिम्मेदारी नहीं ले सकती थी और न ही वो अभी ये जिम्मेदारी लेना चाहती थी।
ये बात सुनते ही मॉम ने तंज कसते हुए कहा,
काव्या की मॉम: “तूझसे? तुझ्से क्या मांगूं? जितना तू कमाती है, उतने में तो घर में मेड का और पानी का, बिजली का खर्चा निकल जाता है। और रही बात पीयूष की तो, हमने उससे नहीं मांगे। उसने खुद अपनी तरफ से हाथ आगे बढाया है। वो अपने किए का प्रायश्चित करना चाहता है तो हम कौन होते हैं रोकने वाले। करवा रहे हैं उनका प्रायश्चित! इसलिए तो तुमसे कहते हैं, शादी कर लो पीयूष से। कम से कम पैसों के लिए रोना नहीं पड़ेगा।”
काव्या के दिल और दिमाग़ मॉम की बात सुनकर दर्द करने लगे थे। वैसे उनके पास कुछ और रास्ता भी नही था। पर काव्या किसी भी हालत में पीयूष से एहसान नहीं लेना चाहती थी।
तभी काव्या की मॉम ने उससे एक सवाल पूछा,
काव्या की मॉम: “वैसे तेरा वो फ्लैटमेट कितना कमाता है?”
ये सुनकर काव्या से रहा नही गया और उसने बोला,
काव्या: “come on मॉम! बंद करो ये सब! पैसों से सब कुछ नहीं होता।”
इतना कहकर काव्या अपने रूम में आ गई थी। जाने कितने टाइम बाद वो अपने रूम में वापस आई थी। उसने अपनी हर चीज को ध्यान से देखा। तभी एक डायरी में उसे कुछ letters मिले। जो कभी किस वक्त में काव्या ने पीयूष के लिए लिखे थे। पर ये सारे letters वो कभी पीयूष को दे नहीं पाई थी। आज जब उसने लेटर्स को थोड़ा थोड़ा ऊपर से पढ़ा तो उसे उल्टी आने लगी थी। उसने खुद से कहा, “stupid girl”.
उसने मन में सोचा कि प्यार में रहते हुए लड़कियां कितनी stupid हो जाती हैं, जबकि इस बार काव्या बिल्कुल भी stupid फील नहीं करना चाहती थी।
आर्यन की याद आते ही काव्या ने उसे कॉल मिला दिया। वो आर्यन को अपने घर पर कुछ दिन के लिए रहने के फैसले के बारे में भी बताना चाहती थी।
उसने आर्यन को कॉल किया। आर्यन उधर अभी भी ऑफिस में प्रज्ञा के साथ प्रोजेक्ट में लगा हुआ था।
कॉल देखते ही वो प्रज्ञा से दूर हट गया था। उसने कुछ दूर हटकर काव्या का कॉल उठाया।
फिर काव्या ने उसे घर की बातों के बारे में बताया। जिसको सुनकर आर्यन को बुरा लगा। उसने कहा,
आर्यन: “तो कितने दिन फिर वहां रुकने का प्लान है?”
इस पर काव्या ने कहा,
काव्या: “पता नहीं, पर शायद 4 - 5 दिन। क्यों तुम मुझे मिस करोगे?”
आर्यन ने मुस्कुराते हुए कहा,
आर्यन: “हां, बहुत ज्यादा। अब तुम्हारी गैर हाज़िरी में मुझे ही हमारे फ्लैट का ध्यान रखना होगा। वैसे मुझे तुमसे कुछ बात भी करनी थी।”
काव्या को लगा शायद आर्यन पीयूष की मौजूदगी को ले कर सवाल करने वाला था। उसने खुद ब खुद जवाब देते हुए कहा,
काव्या: “मुझे पता है, तुम क्या कहना चाहते हो, पर तुम चिंता मत करो। पीयूष की हरकतों से मै निपट लूंगी। तुम्हें इसके लिए परेशान होने की जरूरत नहीं।”
जैसे ही काव्या ने बात पूरी की। तभी आर्यन के यहां पीछे से प्रज्ञा की आवाज़ आई।
प्रज्ञा: “आर्यन देखना, ये डीटेल्स प्रेजेंटेशन में अच्छी लग रही हैं कि इन्हें हटाऊं?”
आर्यन प्रज्ञा के आते ही चौंक गया था। और तभी काव्या ने आर्यन से पूछा,
काव्या: “ये आवाज तो जानी पहचानी लग रही है। ये प्रज्ञा की आवाज़ है क्या?”
काव्या के मुंह से ये सुनते ही आर्यन के होश उड़ गए। आखिर जिस बात का उसे डर था वही होने लगा था।
कैसे करेगा आर्यन इस सिचुएशन का सामना? क्या काव्या प्रज्ञा वाली बात को जानकर भी आर्यन को माफ कर पाएगी? पीयूष से अपने परिवार और खुद को मुक्ति दिलाने के लिए काव्या कौन सा अगला कदम लेगी?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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