"मुंबई में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों में 500 से भी अधिक लोग मारे गए हैं। इन धमाकों में मुख्य रूप से मुंबई की लाइफलाइन लोकल ट्रेन्स को टारगेट किया गया था। अभी तक मिली जानकारी के मुताबिक सबसे बड़ा विस्फोट दादर की तरफ जाने वाली एक लोकल में मलाड स्टेशन पर हुआ है, जिसमें उसकी कई बोगियां पूरी तरह से तबाह हो गई और सैकड़ो लोग मारे गए हैं।" 

टीवी पर आ रही इस खबर को सुनते ही नारायण के घर में कोहराम मच गया।

राधिका का अब रो रोकर बुरा हाल हो रहा था, तो उधर चिंतामणि अपने पिता के बारे में पता करने की कोशिश कर रहा था, “नारायण आप्टे नाम है उनका, जी हम कांदीवली में रहते हैं और वो 8:40 की लोकल से दादर की ओर जा रहे थे। प्लीज हमें बताइए, क्या वो ठीक हैं और अभी किस हॉस्पिटल में हैं?”

चिंतामणि की इन बातों को सुनकर फोन की दूसरी तरफ मौजूद पुलिसवाला चुप था और फिर उसने एक लंबी सांस लेते हुए कहा, “8:40 वाली लोकल में विस्फोट इतना बड़ा था कि पूरी की पूरी ट्रेन और उसकी कई बोगियां तबाह हो गई हैं। अगर आपके पिता उसमें थे, तो फिर आप लोग जल्दी से मलाड स्टेशन आ जाइये।”

पुलिस वाले की इस बात को सुनकर चिंतामणि के हाथों से फोन छूटकर नीचे गिर पड़ा और ये देख राधिका की आँखों से भी आंसू बहने लगे। राधिका को रोते देख चिंतामणि ने उससे कहा, "आई आप मत रोइये, बाबा ठीक होंगे। अभी हमें जल्दी से मलाड स्टेशन चलना होगा।"

 

अपनी मां से इतना कहकर चिंतामणि उसे लेकर मलाड स्टेशन की तरफ निकल पड़ा। उधर मलाड स्टेशन पर भी पुलिस वाले ट्रेन की क्षतिग्रस्त बोगियों से लाशों को निकालने और घायलों को हॉस्पिटल भेजने में लगे थे। बोगियों की कंडीशन को देख इंस्पेक्टर सिद्धार्थ की उम्मीदें भी टूटने लगी थी, “हमें अभी तक इन बोगियों से एक भी जिंदा आदमी नहीं मिला है। पता नहीं कोई इसमें जिंदा बचा भी होगा या नहीं? आखिर आतंकियों ने इतना बड़ा ब्लास्ट किया कैसे होगा?”

रेस्क्यू ऑपरेशन के बीच इंस्पेक्टर सिद्धार्थ के दिमाग में कई तरह के सवाल आ रहे थे, जिन्हें पीछे छोड़ वो उस बोगी में मरे पड़े लोगों की काउंटिंग कर रहा था। काउंटिंग करते हुए सिद्धार्थ आगे बढ़ ही रहा था, तभी अचानक से किसी ने उसके पैर पकड़ लिए। ब्लास्ट में चारों तरफ बिखरी पड़ी लाशों के बीच अचानक ही किसी के पैर पकड़ने से सिद्धार्थ भीतर तक कांप गया।

"कौन है? कौन है वहां?" सिद्धार्थ ने इतना कहकर नीचे देखा, तो वो सीट के नीचे फसे किसी शख्स के हाथ थे। ये देख सिद्धार्थ ने तुरंत रेस्क्यू टीम को वहां बुलाया और उन लोगों ने उस शख्स को बाहर निकाला। मलबे के नीचे से उस शख्स को निकालते हुए सिद्धार्थ को ये अंदाजा हो गया था कि ये शख्स अभी भी जिंदा है और उसे बाहर से कोई गंभीर चोट भी दिखाई नहीं पड़ रही थी। ये देख सिद्धार्थ उसे तुरंत मलाड स्टेशन के प्लेटफार्म पर ही बनाये गए इमरजेंसी रूम की ओर ले गया।

 

"डॉक्टर, आप पहले इसे देखिए। मेरे हिसाब से इनकी सांसें अभी भी ठीक चल रही हैं और हम इसे बचा भी सकते हैं।" सिद्धार्थ की इन बातों को सुनकर डॉक्टर ने भी उस शख्स की जांच की, तो उनके चेहरे पर भी हैरानी के भाव उभर आये, “मुझे तो यकीन ही नहीं होता, इस ब्लास्ट के बीच में रहने के बाद भी ये सुरक्षित कैसे है। इंस्पेक्टर इसके शरीर पर चोट के एक भी निशान नहीं है और ये सिर्फ डर की वजह से बेहोश हुआ है।”

डॉक्टर की बातों को सुन इंस्पेक्टर सिद्धार्थ के मन में भी उम्मीद की किरणें जाग उठी, “जैसे ये जिंदा बचा है, हो सकता है और भी लोग ऐसे ही जिंदा बचे हों। रेस्क्यू टीम, अब हमें और भी जल्दी जल्दी हाथ चलाना होगा।”

डॉक्टर से इतना कहकर सिद्धार्थ और भी घायलों की खोज में जुट गया, तो उधर उस बेहोश पड़े शख्स को भी थोड़े ही देर में होश आने लगा। ये देख डॉक्टर ने उससे कहा, “आप धीरे धीरे अपनी आंखें खोलिए। अचानक हुए विस्फोट की वजह से आपको बहुत तेज झटका लगा और आप बेहोश हो गए। लेकिन, आप अभी बिल्कुल ठीक हैं। बताइए आपका नाम क्या है?”

डॉक्टर के सवालों को सुन वो शख्स उसका जवाब देता, उससे पहले ही उसकी नजर पूरी तरह से नष्ट हो चुकी ट्रेन की बोगी पर पड़ी और ये देख वो कांप गया। "डॉक्टर साहब मेरा नाम तो नारायण आप्टे है। वैसे इस बोगी के बाकी लोग कहाँ हैं?" 

ये देख डॉक्टर ने उसे एक दवा खाने के लिए दी और उससे कहा, “मिस्टर आप्टे, अभी तक इस पूरी बोगी से सिर्फ आप ही जिंदा बचकर बाहर आ सके हैं। मैं तो आश्चर्यचकित हूँ कि आखिर आपको एक भी खरोच कैसे नहीं आई?”

डॉक्टर की बातों को सुन नारायण की आंखों के सामने भी ब्लास्ट के समय का मंजर छा गया, जब अचानक ही उठी उस रोशनी ने हर चीज को अपनी आगोश में ले लिया था और उसकी तपिश को महसूस करते हुए नारायण भी बेहोश हो गया। लेकिन एक सवाल और भी था, जो उसे खाये जा रहा था, “मुझे आखिर हर जगह वो कैसी रोशनी दिखाई पड़ती है और सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि जब मेरी कुंडली में आज का दिन इतना अच्छा था, तो फिर मैं यहां कैसे फस गया। ये सारी घटनाएं तो मेरी कुंडली की भविष्यवाणी के ठीक विपरीत हैं।”

इन ख्यालों में खोए हुए नारायण को ये सवाल खाये जा रहे थे, तभी अचानक उसके कानों में अपनी पत्नी की रोती हुई आवाज सुनाई पड़ी, “भगवान का लाख लाख शुक्र है, जो आप ठीक हैं। आपको कहीं चोट तो नहीं लगी न?”

अपनी पत्नी राधिका की आवाज सुन, नारायण ने बस मुस्कुरा दिया। ये देख डॉक्टर ने राधिका और चिंतामणि को अंदर बुलाते हुए उनसे कहा, “देखिए ये बिल्कुल ठीक हैं और आप लोग इन्हें घर ले जा सकते हैं। बस एक बार इंस्पेक्टर सिद्धार्थ को आ जाने दीजिए, ताकि वो अपनी भी फॉर्मेलिटीज पूरी कर लें।”

 

डॉक्टर इतना कहकर वहाँ से चला गया, तभी चिंतामणि ने अपने पिता की तरफ देखते हुए कहा, “बाबा, आपने तो आई से कहा था कि आज का आपका दिन बेहद शुभ है और आप दिशाशूल देखकर ही दादर जाने के लिए निकले थे। फिर ये सब कैसे हो गया?”

बेटे के सवालों को सुन और उसके मन की शंका को देख नारायण भी चुप था। “चिंतामणि और राधिका, पहले से ही मेरे ज्योतिष के खिलाफ थे। अब मेरे सितारों ने भी ऐसा खेल रचा है, जो इनका मेरे ऊपर से बचा कुचा विश्वास भी खत्म हो जाएगा। हे भगवान, मैंने अपना आज का भविष्यफल देखने में कोई गलती नहीं की है, फिर भी मुझे ऐसा दिन क्यों देखना पड़ रहा है?”

नारायण के मन में ये सवाल चल रहे थे, तो उधर उसकी कंडीशन देख राधिका को भी इसका अंदाजा हो गया और उसने तुरंत अपने बेटे की तरफ देखते हुए कहा, "चिंतामणि अभी ये सब छोड़ो। जाओ और इंस्पेक्टर से मिल लो, हमें जल्द बाबा को लेकर घर जाना है।"

 

अपनी माँ की बातों को सुन चिंतामणि वहां से जाने लगा, पर तभी इंस्पेक्टर सिद्धार्थ अंदर आ गया। उसके चेहरे की मायूसी को देख डॉक्टर समझ गया था कि उसे और कोई भी जिंदा शख्स नहीं मिला। सिद्धार्थ ने अंदर आते ही नारायण की ओर देखते हुए उससे कहा, “देखिए, ट्रेन की इस बोगी में ही विस्फोटक रखा हुआ था, इसलिए विस्फोट का प्रभाव यहीं पर सबसे ज्यादा था। इस पूरी बोगी से हमें बस आप ही सही सलामत मिले हैं, तो प्लीज हमें बताइए कि क्या विस्फोट से पहले आपने किसी संदिग्ध को देखा था?”

इंस्पेक्टर के सवालों को सुनकर नारायण ने अपने दिमाग पर जोर डालने की कोशिश की, लेकिन उसे बम ब्लास्ट से पहले चमकी उस रहस्यमयी रोशनी के अलावा और कुछ भी संदिग्ध याद नहीं आ रहा था। थोड़ी देर तक इस बारे में सोचने के बाद नारायण ने इंस्पेक्टर से कहा, “नहीं, मैंने किसी भी संदिग्ध को नहीं देखा और ना ही मुझे ऐसे कोई संदिग्ध घटना याद आ रही है।”

नारायण की बातों को सुन इंस्पेक्टर ने डॉक्टर से कुछ बात की और इसके बाद वो नारायण से बोला, "डॉक्टर ने कहा है, अभी आपके ऊपर शॉक का इफ़ेक्ट है। इसलिए आप अभी घर जाइये, लेकिन बाद में जब हमें आपकी जरूरत होगी, आपको पुलिस स्टेशन आना होगा।"

 

नारायण से इतना कहकर और उसका एड्रेस लेकर इंस्पेक्टर सिद्धार्थ ने उसे घर भेज दिया। ऑटो में बैठकर नारायण जब अपने परिवार के साथ घर की ओर जाने लगा, तो उसे आज मुंबई की सड़कें बिल्कुल खाली नजर आ रही थी। कभी ना रुकने वाले मुंबई शहर को आज किसी की नजर लग गई थी और पूरा शहर इस वक्त अपने अपने घरों में दुबका हुआ था।

 

वीरान पड़ी सड़कों और हर तरफ पुलिस की गाड़ियों के बजते सायरन को देख रहा नारायण, अभी भी वहीं सोच रहा था, “जब मेरी कुंडली ने आज सफलता और समृद्धि का दिन दिखाया था और आज मुझे यश की प्राप्ति होनी थी, तो फिर मेरे साथ ऐसा कैसे हो गया? आखिर मेरा राशिफल गलत भविष्यवाणी कैसे कर सकता है?”

दिमाग में ये ख्याल आते ही नारायण ने ऑटों में ही अपना पंचांग खोल दिया। ये देख राधिका ने अपना सर पकड़ते हुए कहा, "पंडितजी इन सितारों के चक्कर में आज आप मरते-मरते बचे हैं और इसके बाद भी आप इन्हीं के पीछे पड़े हैं। अब आप ये सब छोड़कर कोई नया काम क्यों नहीं खोज लेते?"

 

पत्नी की बातों को सुन रहा नारायण उसके खीझ को समझ रहा था। इसलिए उसने मुस्कुराकर अपनी पत्नी की ओर देखते हुए कहा, "भाग्यवान, इन सितारों की यही तो खास बात है कि ये इंसानों की तरह झूठ नहीं बोलते।"

 

नारायण की इस मुस्कुराहट को देख राधिका ने तो उससे कुछ नहीं कहा, लेकिन ये सब सुनकर चिंतामणि से रहा नहीं गया, "बाबा, अभी तो आपने देखा कि इन सितारों ने कितना बड़ा झूठ बोला, जो आप इतनी बड़ी मुसीबत में फंस गए। फिर आप ऐसा क्यों बोल रहे हैं?" चिंतामणि के इस सवाल का नारायण के पास कोई जवाब नहीं था, इसलिए वो चुपचाप अपने पंचांग को देखने लगा।

"मेरे सारे सितारे तो अभी भी वही इशारा कर रहे हैं, जो इन्होंने आज सुबह किया था, इसका मतलब मैंने अपना राशिफल देखने में कोई गलती तो नहीं की है। फिर मेरे साथ ऐसा कैसे हो सकता है?" ये सोचते हुए नारायण को अब कुछ भी समझ नहीं आ रहा था।

 

थोड़ी देर तक इस बारे में और सोचने के बाद भी जब नारायण को कुछ नहीं सूझा, तो उसे अब बस एक ही रास्ता दिखाई दिया, “मुझे उनके पास जाना ही होगा। आखिर ज्योतिषीय गणनाएं झूठ कैसे बोल सकती हैं?”

नारायण अभी ये सोच ही रहा था, तब तक उनका घर आ गया। लेकिन, नारायण उस ऑटो से नहीं उतरा और उसने पत्नी तथा बेटे को घर की ओर भेजते हुए उनसे कहा, “मुझे जब तक अपने सवालों का जवाब नहीं मिल जाता, तब तक मैं चैन से नहीं रह सकता। इसलिए मैं अपने गुरु, ज्योतिषाचार्य सदाशिव जी से मिलने जा रहा हूँ।”

नारायण के घरवाले भी जानते थे कि अपने सवालों का जवाब जाने बिना वो चैन से नहीं रहेगा, इसलिए उन्होंने भी उसे नहीं रोका। 

थोड़े ही देर में नारायण अपने गुरु के सामने खड़ा था, “प्रणाम गुरुदेव। आपका ये शिष्य ऐसे संकट में फंसा है, जिसकी आपने कल्पना भी नहीं की होगी।”

नारायण को यूँ घबराता देख ज्योतिषाचार्य सदाशिव ने उसे अंदर बुलाकर बैठाते हुए कहा, “आओ नारायण आओ। ऐसी क्या बात हो गई, जो तुम जैसा धैर्यवान पुरुष भी विचलित हो गया है?”

अपने गुरु के सवालों को सुन नारायण ने तुरंत अपनी कुंडली और पंचाग को उनके सामने खोल दिया और सितारों की तरफ इशारा करते हुए उनसे कहा, “गुरुजी, आज वो हुआ है, जो मैंने कभी नहीं देखा था। आज के मेरे सितारे मुझसे साफ झूठ बोल रहे हैं और ये झूठ मेरी जान भी ले सकता था। आप जानते हैं गुरुजी, ज्योतिष ही मेरी जिंदगी है, फिर ये सितारे मेरे साथ ऐसा खेल कैसे कर सकते हैं?”

इतना कहते हुए नारायण ने आज घटी सारी घटनाओं को उन्हें बता दिया। नारायण की बातों को सुन ज्योतिषाचार्य सदाशिव ने जब उसकी कुंडली और पंचाग को अपने हाथ में लेकर देखा, तो उनके हाथ से वो छूटकर नीचे गिर पड़ी और उनकी आँखें आश्चर्य से बड़ी हो गई। ये देख नारायण भी समझ गया था कि कुछ बहुत बड़ा अनर्थ होने वाला है।

 

आखिर ज्योतिषाचार्य सदाशिव ने ऐसा क्या देख लिया नारायण की कुंडली में, जो वो हो गए इतने चिंतित.? 

मुंबई को दहलाने वाले इस बम विस्फोट और नारायण को जोड़ता है किस्मत का कौन सा धागा.?

क्या नारायण की किस्मत दे रही थी उसे धोखा? 

इस पूरे खेल के पीछे किस्मत का हाथ है या फिर कोई और...?

जानने के लिए पढ़ते रहिए… 'स्टार्स ऑफ़ फेट'!

 

 

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