नारायण की कुंडली को देखकर ज्योतिषाचार्य के बदले हाव भाव काफी कुछ कह रहे थे और ये नारायण भी महसूस कर रहा था। अपनी आंखों के सामने मौत को देखकर लौटे नारायण की आंखें फिर से खौफ से भर आई थी और उसने डरते हुए पूछा, “गुरुजी, क्या हुआ? मेरी कुंडली में आपने ऐसा क्या देख लिया जो आप इतने घबरा गए? क्या इसमें मेरे लिए कोई खतरे का संदेश छिपा है गुरुजी?”

नारायण की बातों से उसकी घबराहट साफ पता चल रही थी और ये देखकर गुरुजी ने उससे कहा, “नारायण, चिंता की बात तो है। मुझे तूम्हारी कुंडली ऊपर से देखने पर तो बिल्कुल सही दिखाई पड़ रही है, लेकिन जब मैं इसमें किसी दोष को खोजता हूँ, तो मुझे वो भी मिल रहा है। यानी तूम्हारी कुंडली में भाग्य की रेखा को दोष की रेखा काट रही है, और मैंने ऐसा आज तक किसी की भी कुंडली में नहीं देखा है।”

अपने ज्योतिषाचार्य गुरु की बातों को सुन रहा नारायण भी ये अच्छी तरह से जानता था कि किसी की भी कुंडली में भाग्य की रेखाएं और दोष की रेखाएं एक दूसरे के समानांतर तो चलती हैं, लेकिन वो एक दूसरे को काट नहीं सकती। इसलिए गुरु की बातों को सुनकर उसकी चिंता और भी बढ़ने लगी।

नारायण तुरंत ही गुरु के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और उसने अपने भर्राए हुए गले से उनसे कहा, “गुरुजी, आपने अपने इस शिष्य को किस्मत की सारी रेखाओं के बारे में बताकर दुनिया के सामने भेज तो दिया, लेकिन ये अब उन्हीं सितारों के बीच खो गया है। आपने मेरी कुंडली में मौजूद विसंगतियों को तो खोज लिया, अब आप मुझे इन्हें दूर करने का रास्ता भी बताइए।”

नारायण की बातों को सुनकर उसके गुरु ने सामने रखी अलमारी से एक किताब लाने को कहा और वो उसमें नारायण के सवालों का जवाब ढूंढ़ने लगे। "नारायण मुझे लगता है, तुम्हारी कुंडली की विसंगतियों के बारे में हमें इतनी आसानी से पता नहीं चलने वाला। जाओ मेरी अलमारी से ज्योतिष से जुड़ी सारी किताबें लेकर आओ।" अपने गुरु की बातों को सुन नारायण तुरंत सारी किताबें ले आया और उसके गुरु, उन किताबों में नारायण के सवालों का जवाब ढूंढने लगे।

 

एक तरफ नारायण अपने सवालों का जवाब जानने के लिए बेचैन हो रहा था, तो उधर दूसरी तरफ मलाड रेलवे स्टेशन पर ट्रेन की बोगी से सारे बॉडीज को निकलवाने के बाद सिद्धार्थ भी टेंशन में था। तभी उसके थाने के हवलदार ने उसकी तरफ चाय बढ़ाते हुए उससे कहा, “क्या करोगे साहब, हमने तो लोगों को बचाने की पूरी कोशिश की और बाकी बोगियों से कुछ लोग जिंदा भी निकले हैं। लेकिन, ट्रेन की ये बोगी तो पूरी तबाह हो गई है।”

ये कहते हुए हवलदार का इशारा उस बोगी की तरफ था, जिससे इंस्पेक्टर सिद्धार्थ को नारायण जिंदा मिला था। हवलदार के ये सब कहते ही सिद्धार्थ की आँखों के सामने भी नारायण का चेहरा घूम गया। 

"वो शख्स जिंदा तो बचा गया, ये मुझे समझ भी आता है। लेकिन, उसके शरीर पर चोट के कोई निशान क्यों नहीं थे.? मुझे डॉक्टर से बात करनी होगी।" हवलदार से इतना कहते हुए सिद्धार्थ तुरंत चाय का ग्लास फेंककर इमरजेंसी रूम की ओर दौड़ गया।

 

"डॉक्टर.. आपको वो आदमी तो याद होगा, जिसके शरीर पर चोट का कोई निशान नहीं था। क्या इस धमाके में और भी कोई ऐसा जिंदा शख्स मिला है, जिसकी बॉडी पर चोट का निशान ना हो? और क्या इतने बड़े धमाके के बाद इस तरह बिना खरोंच के बाहर आना संभव है.?" सिद्धार्थ ने आग के गोलों की तरह अपने सवाल डॉक्टर के ऊपर दाग दिए।

सिद्धार्थ को यूँ सवाल करते देख डॉक्टर ने उससे कहा, “नहीं सिद्धार्थ, ऐसा मुझे और कोई भी नहीं मिला। रही बिना चोट के निकलने की बात, तो इसे मैं 100 प्रतिशत चमत्कार मानता हूं। वरना, ऐसे धमाके से बिना किसी खरोच के बाहर आना पॉसिबल ही नहीं है, खास तौर पर उस बोगी से, जिसमें विस्फोटक रखे हुए थे।”

सिद्धार्थ को जवाब देकर डॉक्टर अपने काम में लग गया, तो उधर सिद्धार्थ के मन में नारायण के ऊपर शक गहराते जा रहा था। "आप इसे चमत्कार कह सकते हैं डॉक्टर, लेकिन मेरे लिए तो अब नारायण ही सस्पेक्ट (suspect) नंबर 1 है। मैं आ रहा हूँ नारायण।" ये सोचकर सिद्धार्थ ने तुरंत नारायण के घर का एड्रेस निकलवाया और वहाँ जाने के लिए निकल गया।

 

उधर अपने गुरु के घर पर नारायण अपने सवालों का जवाब जानने का इंतजार कर रहा था, लेकिन अभी भी उसके गुरु किताबों के पन्ने ही पलट रहे थे। ये देख नारायण का धैर्य जवाब दे गया और उसने अपने गुरु से कहा, “गुरुजी, क्या हुआ.? आज ये सितारें मेरी इतनी परीक्षा क्यों ले रहे हैं.? क्या आपके पास भी मेरे सवालों का जवाब नहीं है.?”

अपने शिष्य की बेचैनी को देख रहे गुरु उसकी हालत को समझ रहे थे। इसलिए उन्होंने उस किताब के आखिरी पन्ने को पढ़ने के बाद उसे बंद करते हुए नारायण से कहा, "तुम्हारे किस्मत के सितारे सिर्फ तुमसे ही नहीं प्रभावित होते हैं, बल्कि इन्हें ब्रह्मांड में और भी बहुत सारी चीजें प्रभावित करती हैं नारायण।"

 

नारायण से इतना कहकर गुरुजी ने अपने पास रखे एक कागज पर कुछ घेरे बनाए और उनमें ग्रहों की स्थिति को लिखकर उसे नारायण की ओर बढाते हुए कहा, “नारायण, तुम्हारी कुंडली में जब से विसंगतियां आई हैं, तब से भाग्य के ये चक्र उल्टे घूमने लगे हैं। अपने आजतक के अनुभव के आधार पर मैं ये कह सकता हूँ कि ब्रह्मांडीय ऊर्जा में  कुछ न कुछ गड़बड़ी हुई है और ये सब उसी का परिणाम है।”

गुरुजी की बातों को सुन नारायण के चेहरे पर उम्मीद की किरणें बिखरने लगी और उसने बेहद ही उम्मीद के साथ अपने गुरुजी से कहा, “गुरुजी, अब जब आपने विसंगतियों को पकड़ लिया है, तो आप मुझे बताइए कि ये ठीक कैसे होगा। मुझे जल्द से जल्द इसे ठीक करना होगा गुरुजी, वरना कुछ अनर्थ हो जाएगा।”

नारायण की बातों को सुनने के बाद उसके गुरु के चेहरे से मुस्कुराहट गायब हो गई और उन्होंने अपनी आँखों को बंद कर लिया। "नारायण, मैंने तुम्हारी कुंडली की विसंगतियों को खोज तो लिया है, लेकिन मेरे पास इसे दूर करने का कोई तरीका नहीं है।" गुरुजी से इतना सुनते ही नारायण का भी चेहरा उतर गया और उसने उदास होते हुए कहा, "गुरुजी, आपने इन किताबों की सहायता से मेरी समस्या खोज ली, तो इनमें आपको उनका समाधान भी मिल ही जाएगा।"

 

नारायण इतना कहकर उम्मीद भरी निगाहों से उन किताबों की ओर देखने लगा, लेकिन उसके गुरु ने अगले ही पल उसकी उम्मीदों को चकनाचूर कर दिया, “नारायण, मुझे तुम्हारी समस्या का पता तो कब का चल गया था और मैं कब से इसका समाधान ही खोज रहा था। लेकिन, मुझे अफसोस के सिवा इन किताबों से कुछ भी हासिल नहीं हुआ।”

गुरुजी की बातों को सुनकर नारायण अब टूट सा गया था। "गुरुजी ज्योतिष ही मेरी जिंदगी है और अगर मैं अपने ही सितारों को ठीक से नहीं समझ पाया, तो मैं दूसरों की क्या सहायता करूँगा। मेरी कुडंली की विसंगति को दूर करने का कोई तो तरीका होगा न.?" 

नारायण को इस तरह से टूटकर सवाल करते देख उसके गुरु ने तुरंत अपनी आलमारी से एक कागज निकाला और उसे नारायण की ओर बढाते हुए कहा, "मैं तुम्हें और इन्हें, दोनों को परेशान नहीं करना चाहता था, लेकिन मेरे पास और कोई रास्ता नहीं बचा है। नारायण, अब तुम्हें अपने सवालों का जवाब जानने के लिए बनारस जाना होगा और वहां जाकर वृद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित रामनारायण से मिलना होगा।"

 

अपने गुरु से अपने सवालों का जवाब जानकार नारायण उस कागज के टुकड़े पर लिखे एड्रेस (address) को हैरानी के साथ देखने लगा, तभी उसके गुरु ने उससे आगे कहा, “90 साल की आयु में भी ये आज आँखों से आसमान के सितारों को पहचान सकते हैं और देश का बड़े से बड़ा शख्स भी अपनी कुंडली दिखाने के लिए इनके पास ही जाता है। हालांकि, अब ये भविष्य की रेखाएं नहीं देखते। लेकिन, ये मेरे भी गुरु थे, इसलिए तुम्हारी मदद जरूर करेंगे। तुम वहां जाकर सिर्फ मेरा नाम ले लेना।”

कहते हैं, डूबते को तिनके का सहारा भी काफी होता है और वही हाल नारायण का भी था। “ठीक है गुरुजी, मैं आज ही बनारस जाने के लिए निकल जाता हूँ। वैसे भी अब मुझे जब तक अपने सवालों का जवाब नहीं मिलता, मैं चैन से नहीं रह सकता।”

नारायण की इस बेचैनी को देख गुरु ने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे रोकते हुए उससे कहा, "नारायण समय बुरा चल रहा है और उसमें भी तुम इस तरह जल्दबाजी में फैसले लोगे, तो मुसीबत और भी बढ़ जाएगी। इसलिए तुम थोड़ा इंतजार करो और ग्रहों की स्थिति सही होने के बाद ही यात्रा करना।"

 

गुरुजी की इन बातों को सुनकर नारायण भी उनसे सहमति जताते हुए वहां से चला गया। आज सुबह से नारायण की किस्मत उसे यहाँ से वहाँ से भगा रही थी और अब वो घर जाने के लिए निकल गया था। मुंबई की सड़कें अभी भी शांत थी और ये शांति नारायण को अंदर तक कचोट रही थी। थोड़े ही देर में वो कांदिवली पहुँच गया और नाके पर उतरकर पैदल ही घर जाने के लिए निकल गया।

नारायण को ये अंदाजा था कि आज घर जाते ही उसे काफी कुछ सुनने को मिलेगा और ठीक ऐसा ही हुआ।

घर के भीतर कदम रखते ही उसकी पत्नी उसके पास आ खड़ी हुई, "यहाँ लोग सुबह से आपकी चिंता कर के मरे जा रहे हैं और आपको किसी की परवाह ही नहीं है।" राधिका की बातों से झलक रहे उसके गुस्से की तपिश नारायण महसूस कर रहा था। इसलिए हाथ पाँव धोते हुए उसने कहा, "मैं समझ रहा हूँ राधिका, लेकिन मेरे सवालों का भी जवाब जानना जरूरी था।" 

नारायण ने आज बहुत कुछ सहा था, इसलिए राधिका उसे ज्यादा नहीं सुनाने की कोशिश कर रही थी। नारायण की बातों को सुन राधिका ने उसकी ओर पानी का ग्लास बढाते हुए कहा, “गुरुजी ने क्या कहा और अब आगे आप क्या करने वाले हैं.?”

राधिका को अभी शांत देख नारायण ने उसे सच बताते हुए कहा, “गुरुजी के पास मेरे सवालों का जवाब तो नहीं था, इसलिए उन्होंने मुझे बनारस जाने के लिए कहा है। उनका मानना है कि मेरे सवालों का जवाब अब वहीं मिल सकता है।”

राधिका अभी तक खुद को शांत रखने की कोशिश कर रही थी, लेकिन ये सब सुनते हुए उसका गुस्सा फट पड़ा, “यहां हम लोग दाने दाने के मोहताज हुए जा रहे हैं, घर में फूटी कौड़ी भी नहीं है और आपको फालतू के सवालों का जवाब जानने के लिए बनारस जाना है। वाह पंडितजी वाह, आपके जैसा स्वार्थी इंसान तो मैंने इस धरती पर आज तक नहीं देखा होगा।”

राधिका को अचानक इस तरह गुस्सा होते देख नारायण ने उसे समझाते हुए कहा, "देखो राधिका, सवाल सिर्फ मेरा नहीं है, बल्कि इससे हमारा पूरा परिवार प्रभावित होता है। इसलिए मुझे बनारस जाना ही होगा।"

 

नारायण ने इतना कहा ही था, तभी उसके दरवाजे से अंदर आते हुए इंस्पेक्टर सिद्धार्थ ने उससे कहा, “इतनी भी क्या जल्दी है नारायण, जो ये सब छोड़कर बनारस भागने की सोचने लगे।”

अचानक इंस्पेक्टर सिद्धार्थ को घर के अंदर आते देख नारायण चौंक गया और उसके घरवाले भी चिंतित हो उठे। ये देख नारायण ने तुरंत आगे आते हुए सिद्धार्थ से कहा, “नहीं इंस्पेक्टर साहब, आप गलत समझ रहे हैं। मैं बनारस भागकर नहीं जा रहा, बल्कि मैं तो वहाँ अपने कुछ सवालों के जवाब ढूंढने जा रहा हूँ। और भला मैं क्यों भागने लगा, ये मुंबई तो मेरी कर्मभूमि और जन्मभूमि दोनों है।”

नारायण की बातों को सुनकर सिद्धार्थ ने शक भरी निगाहों से उसकी ओर देखते हुए कहा, “देखो नारायण, इतने बड़े विस्फोट के बाद तुम उस बोगी में होते हुए बिना किसी खरोंच के बच गए, ये बात मुझे हज़म नहीं हो रही है। इसलिए जो भी बात है, तुम मुझे सच सच बता दो।”

अपने आप को इंस्पेक्टर की निगाहों में एक दोषी की तरह देखकर नारायण को शर्मिंदगी महसूस हो रही थी। 

"इंस्पेक्टर साहब आप मेरी बातों का यकीन कीजिये, वहां क्या और कैसे हुआ, मुझे इसका जरा भी अंदाजा नहीं है।" इंस्पेक्टर से इतना कहते हुए नारायण बिल्कुल बेचैन हो उठा था।

उधर नारायण से इतना सुनते ही इंस्पेक्टर की आवाज और भी सख्त हो गई और उसने बेहद ही कड़क अंदाज में कहा, "मिस्टर नारायण, आप उस बोगी में कुछ ऐसा भूल गए थे, जो आपको नहीं भूलना चाहिए था और यही चीज आपके गले की फांसी बनेगी।"

 

आखिर उस बोगी में ऐसी कौन सी चीज भूल गया है नारायण, जो उसे मुश्किल में डाल सकती है.?

क्या नारायण की किस्मत ने उसे जोड़ दिया है इस विस्फोट के साथ.?

क्या नारायण अब बनारस की यात्रा कर के जान पायेगा अपने सवालों का जवाब.?

जानने के लिए पढ़ते रहिए… 'स्टार्स ऑफ़ फेट'!

 

 

 

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