मुंबई में हुए बम धमाकों ने पूरे शहर को दहला दिया था और इसकी तपिश में नारायण एवं उसका परिवार भी जल रहा था। किस्मत की रेखाओं के धोखे से अभी नारायण उबरा भी नहीं था, तब तक इंस्पेक्टर सिद्धार्थ ने उसे एक और जोर का झटका दे दिया।
इंस्पेक्टर सिद्धार्थ की बातों को सुनकर नारायण सोच में डूबा हुआ था, तो उधर राधिका और उसके बेटे बेटी की भी हालत खराब थी। नारायण को थोड़ी देर तक सोचने के बाद भी जब ऐसी किसी चीज के बारे में याद नहीं आया, तो उसने डरते हुए इंस्पेक्टर सिद्धार्थ से पूछा, “माफ कीजियेगा इंस्पेक्टर साहब, लेकिन मुझे ऐसा कुछ भी याद नहीं आ रहा है, जो मैंने ट्रेन में छोड़ दिया हो। अगर ऐसा कुछ है, तो आप ही उसके बारे में बता दीजिए।”
नारायण की बातों को सुन रहे सिद्धार्थ की निगाहें उसके घर को अच्छे से स्कैन कर रही थीं। वो नारायण के घर के हर कोने को ऐसे देख रहा था, जैसे उसे कहीं भी सबूत मिल सकता है।
थोड़ी देर तक नारायण के घर में इधर उधर घूमने के बाद उसे जब कुछ भी संदिग्ध नहीं लगा, तो उसने अपने जेब से एक मोबाइल फोन निकालते हुए नारायण की ओर बढ़ा दिया, “ये हमें ट्रेन की बोगी में मिला था और जाँच में ये आपका निकला है। आप बता सकते हैं, आपका फोन वहां कैसे रह गया.?”
अपने फोन को इंस्पेक्टर के हाथों में देख नारायण ने तुरंत अपनी जेब टटोली, लेकिन उसे अपना फोन अपनी जेब में नहीं मिला।
"माफ कीजियेगा इंस्पेक्टर साहब, लगता है ब्लास्ट के वक्त ये फोन वहीं गिर गया और जल्दबाजी में मुझे ध्यान नहीं रहा।"
नारायण इसके आगे कुछ कहता, तभी सिद्धार्थ उसे बीच में रोकते हुए बोला, “वैसे आपका फोन भी आपकी ही तरह बेहद मजबूत है, क्योंकि इसपर भी एक खरोच तक नहीं आई है।”
नारायण से इतना कहकर सिद्धार्थ ने उसे उसका फोन तो दे दिया, लेकिन उसके मन में अभी भी नारायण को लेकर काफी शंका थी और अपने मन की बात उसने नारायण के सामने रख दी, “नारायण, तुम और तुम्हारा फोन, उस बोगी से जितने साफ सुथरे तरीके से बाहर निकले हैं, मैं इस केस से तुम्हें उतने साफ सुथरे तरीके से बाहर नहीं निकलने दूँगा। अगर मुझे तुम्हारे खिलाफ सबूत का एक टुकड़ा भी मिल गया, तो वो दिन तुम कभी भूल नहीं पाओगे।”
सिद्धार्थ की इन बातों को सुनकर नारायण के हाथ पैर खौफ की वजह से कांपने लगे। सिद्धार्थ जब वहां से लौट रहा था, तो उसके बूट की आवाज नारायण के कानों में गर्म लावे की तरह महसूस हो रही थी। उसे इतने बड़े बम धमाके में संदिग्ध माना गया था, ये बात नारायण को भीतर तक कचोट रही थी।
तभी राधिका उसके पास आई और उसने नारायण से कहा, "देखिए जी, आज जो कुछ भी हुआ, उसमें बिना मतलब ही हमारा नाम आ रहा है। इसलिए हमारे ऊपर और भी मुसीबत आये, उससे पहले ही आप बनारस जाने वाली बात अपने दिमाग से निकाल दीजिए।"
आज दिनभर के घटनाक्रम के बाद नारायण बेहद ही थक गया था, इसलिए राधिका की बातों का कोई जवाब दिए बिना, वो सीधा अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर लेट गया। थकान और चिंता से नारायण की आंखें भारी हो रही थी और उसे थोड़ी ही देर में नींद आ गई।
धीरे धीरे रात चढ़ती गई और नारायण की नींद भी गहरी होती गई। अपने सपनों में खोया नारायण करवटें बदल ही रहा था, तभी अचानक उसकी आँखों के सामने एक बार फिर से वही तेज रोशनी चमकी।
उस रोशनी से निकल रही प्रकाश की किरणें आंखें बंद होने के बाद भी नारायण महसूस कर रहा था, इसलिए उसने तुरंत अपनी आंखों को खोल दिया। आंखें खुलते ही उस तेज रोशनी को सामने देख नारायण की हालत खराब होने लगी और उसने डरते हुए पूछा, "तुम कौन हो?"
नारायण के सवाल को सुनकर उस रोशनी ने एक बेहद ही भयानक राक्षस की आकृति ले ली…ये देख नारायण का डर और भी बढ़ने लगा। उस आकृति ने नारायण से तो आगे कुछ नहीं कहा, लेकिन अगले ही पल नारायण को ऐसा महसूस हुआ, जैसे उसकी आंखों के सामने अंतरिक्ष में पृथ्वी तैर रही है और वो आकृति काले धुएं में बदलकर पूरी पृथ्वी को अपने आगोश में ले रही है।
नारायण की आंखों के सामने घट रही ये घटनाएं इतनी भयानक थी, कि नारायण से रहा नहीं गया और वो चीखते हुए किसी को मदद के लिए बुलाने की कोशिश करने लगा। लेकिन, उसके शब्द हलक से बाहर नहीं निकल रहे थे। नारायण को ऐसा लग रहा था, जैसे उस रोशनी के प्रभाव में आकर उसके शब्द ही उसका गला घोट रहे हैं।
ये एहसास नारायण को और भी बेचैन करने लगा। उसे लगने लगा, जैसे आज की रात के बाद वो कल की सुबह भी नहीं देख पायेगा, तभी उसे महसूस हुआ जैसे कोई उसे झकझोर रहा है। घबराते हुए नारायण ने जब अपनी आंखें खोली, तो ये राधिका थी।
"उठिए, सुबह हो गई है। सूरज कब का निकल आया, आप और कितनी देर तक सोएंगे।" राधिका की आवाज सुनकर नारायण को अपनी पूरी जिंदगी में उतनी खुशी नहीं हुई थी, जितनी आज हो रही थी। आंखें खोलते ही वो समझ गया कि ये सब एक बुरा सपना था, इसलिए उसने मुस्कुराते हुए राधिका से कहा, "बस जग गया….मैं नहा धोकर आता हूँ, तुम नाश्ता बना दो।"
नारायण की बातों को सुनकर राधिका नाश्ता बनाने लगी और थोड़े ही देर में नारायण भी नहा धोकर नाश्ता करने आ गया।
नारायण नाश्ते के लिए बैठा तो था, लेकिन उसके दिमाग में अभी भी वो सपना और अपने गुरु की कही बातें ही घूम रही थी, "मुझे बार बार दिखाई दे रही ये रोशनी कुछ तो कहना चाहती है। लगता है इसका भी संबंध मेरी कुंडली के उल्टे सितारों से ही है। नारायण तू जितनी जल्दी बनारस जाकर ज्योतिषाचार्य पंडित रामनारायण से मिलेगा, तेरे लिए उतना अच्छा होगा। बैठा क्या है नारायण, चल शुभ मुहूर्त देख और बनारस जाने की तैयारी शुरू कर।"
दिमाग में ये ख्याल आने के साथ ही नारायण तुरंत नाश्ता खत्म कर के एक बार फिर से अपना पंचाग लेकर बैठ गया। कल नारायण के सितारों ने उसे जैसा धोखा दिया था, इसके बाद पंचांग और शुभ मुहूर्त देखने का उसका मन तो नहीं हो रहा था, लेकिन वो अपने गुरु की आज्ञा भी नहीं टाल सकता था।
"गुरुजी ने शुभ मुहूर्त में यात्रा करने के लिए कहा है और मेरे सितारें ही उल्टे चल रहे हैं। वैसे एक काम तो कर सकता हूँ, रोज मैं अपना भविष्य देखता था, लेकिन आज मैं अपनी राशिवालों का भविष्य देखता हूँ। अब मेरी राशि में जन्म लेने वाले सभी जातकों का तो दिन खराब नहीं जायेगा।" ये सोच नारायण ने जब अपनी राशि वालो का भविष्य देखा, तो उसे कई जरूरी बातें पता चली।
"मेरे राशि वालों के लिए आज यात्रा का शुभ मुहूर्त है और फिर एक सप्ताह तक कोई मुहूर्त नहीं होगा। नारायण तब तो तुझे आज ही निकलना होगा। वैसे राशिफल के मुताबिक दिन में थोड़ी कठिनाई तो होगी, लेकिन रात का सफर आराम से गुजरेगा।"
अपनी राशि के जातकों का भविष्य देखकर नारायण ने खुद का फैसला भी कर लिया और फिर तुरंत बनारस जाने के लिए तैयार हो गया।
नारायण अपने कमरे में जाकर एक छोटे से बैग में अपना सामान भर ही रहा था, कि तभी राधिका ने उसे देख लिया। “कल आप इतनी बड़ी मुसीबत से बचकर लौटे हैं, पुलिसवालों को भी हमपर शक है और आप ऐसी स्थिति में हमें छोड़कर अपनी ज़िद पूरी करने के लिए बनारस जाने की तैयारी करने लगे.?”
राधिका का गुस्सा होना लाजमी था, लेकिन नारायण भी अपना फैसला कर चुका था।
उसने अपना बैग उठाया और घर से बाहर निकलते हुए अपनी पत्नी से कहा, "देखो राधिका, अगर मैंने सच का पता नहीं लगाया न, तो ये बेचैनी मुझे मार डालेगी। ज्योतिष ही मेरी जिंदगी है और मैं उसके प्रति अपने मन में किसी भी शंका को नहीं पनपने दे सकता। अगर तुम मुझे जिंदा देखना चाहती हो, तो मुझे मत रोको।"
नारायण ने अपनी जिंदगी की बात कर के राधिका को निरुत्तर कर दिया था। इस वक्त राधिका की आँखों में आँसू तो थे, लेकिन उसकी इतनी हिम्मत नहीं हुई, कि वो नारायण को रोके। राधिका को अपनी बातों के जाल में उलझाकर नारायण सीधा लोकमान्य तिलक टर्मिनल पहुँचा और जनरल टिकट लेकर बनारस जाने वाली कामायनी एक्सप्रेस के जनरल डिब्बे में सवार हो गया।
ट्रेन की बोगी के दरवाजे पर जाकर नारायण ने जब भीड़ देखी, तो उसे समझ आ गया कि आज दिन की यात्रा क्यों खराब होने वाली है। भीड़ के बीच ही किसी तरह जगह बनाते हुए वो डिब्बे के अंदर चला गया और थोड़ी जगह देखकर खड़ा हो गया।
नारायण डब्बे के अंदर चुपचाप खड़ा था, तभी वहाँ बैठे एक शख्स ने अखबार में अपना राशिफल देखते हुए कहा, “ये अखबार वाले भी बकवास चीजें छापते रहते हैं। मैं तो राशि वगैरह में मानता ही नहीं, क्योंकि ऐसा कुछ होता ही नहीं है।”
उस शख्स की ये बातें नारायण को अपनी बेइज्जती की तरह लगी, "आप ऐसा कैसे कह सकते हैं.?"
नारायण से इतना सुनते ही उस शख्स ने तुरंत कहा, "देखो एक और पाखण्डी बाबा चले आए।"
इतना कहकर वो शख्स हँसता, उससे पहले ही नारायण ने उसकी हाथ की रेखाओं को देखते हुए उससे कहा, “आप शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े हैं और आपकी शादी नहीं हुई है, क्योंकि आपके हाथ में वो रेखा ही नहीं है। आपकी लकीरें बता रही हैं, आपके जीवन में शारीरिक कष्ट भी बहुत ज्यादा है।”
अचानक नारायण की इन बातों को सुनकर वो शख्स सन्न रह गया, “आपको मेरे बारे में इतना सब कुछ कैसे पता चल गया?”
वो शख्स आश्चर्यचकित होकर नारायण से सवाल कर रहा था, लेकिन नारायण बस मुस्कुरा कर चुप हो गया। नारायण की इस कला को देख थोड़े ही देर में उसके आगे हाथ दिखाने के लिए लोगों की लाइन लग गई। नारायण को अब एक अच्छी सीट भी मिल चुकी थी और शाम होते-होते उसने पाँच हजार रुपये भी कमा लिए थे।
ये सब देखकर नारायण के चेहरे पर भी एक मुस्कान उभर आई, "राशिफल में दिन की यात्रा में संघर्ष लिखा था, लेकिन आज थोड़ा संघर्ष के बाद दिन तो अच्छा कटा। और रात तो वैसे भी अच्छी ही कटने वाली है।"
इन बातों को सोंचकर नारायण खुश था और अपनी सीट पर बैठे बैठे ही सोने लगा। रात का अंधेरा धीरे-धीरे घना हो रहा था और उस बोगी के अधिकतर लोग भी सो गये थे। आधी रात होने के बाद ट्रेन अब इटारसी से भोपाल के बीच के जंगलों में कहीं दौड़ रही थी और ट्रेन के बाहर सब कुछ काले अंधेरे की चादर ओढ़े खड़ा था।
नारायण भी गहरी नींद में सोया हुआ था, तभी अचानक उसे अपने सर पर किसी का हाथ महसूस हुआ। नारायण ने आंखें खोली, तो उसके सामने फिर से वही रोशनी थी। उस बोगी में सो रहे लोगों के बीच उस नीली रोशनी को देख नारायण की धड़कने तेज होने लगी।
"कौन हो तुम और मेरा पीछा क्यों कर रहे हो.?" नारायण ने अभी ये सवाल किया ही था, तभी वो रोशनी आगे बढ़ने लगी। ये देख नारायण ने भी आज उसका पीछा करने का निर्णय लिया और उठकर उसके पीछे जाने लगा।
नारायण उसके पीछे जितनी तेज से दौड़ता, वो रोशनी उतनी ही तेजी में आगे बढ़ती। थोड़े ही देर में नारायण स्लीपर क्लास की बोगियों के बीच खड़ा था और वो रोशनी आगे बढ़ती चली जा रही थी।
नारायण भी उस रोशनी के पीछे जाने लगा, तभी अचानक टीटी ने उसे रोकते हुए कहा, “रुको, तुम्हारी कौन सी सीट है। अपना टिकट दिखाओ।”
टीटी को सामने खड़ा देख नारायण ने उससे हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा, “वो देखिए, वो रोशनी मुझे यहां तक लाई है।”
नारायण की बातों को सुनकर टीटी ने उस ओर देखा तो उसे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था, “अरे नशा कर रखा है क्या.? तेरी टिकट कहाँ है.?”
टीटी की बातों को सुनकर नारायण ने अपने जेब में हाथ डाला, तो उसके पास उसका टिकट भी नहीं था, “वो मैंने टिकट लिया था, लेकिन लगता है कहीं गिर गया।”
नारायण से इतना सुनते ही टीटी भड़क उठा, “अबे ओ चोर.. तेरे जैसे कितने चोरों को मैंने यूं रात में चोरी करते हुए पकड़ा है। अब चल तेरे होश तो भोपाल में पुलिस वाले ही ठिकाने लगाएंगे।”
टीटी की इन बातों को सुनकर नारायण को एक बार फिर से अपने राशिफल पर गुस्सा आने लगा, “दिन में बुरा होना था, तो सब अच्छा हुआ और अब रात को जब सब अच्छा होना था, तो मैं इतनी बड़ी मुसीबत में फस गया।”
नारायण ये सोचते हुए बड़बड़ा रहा था, तभी टीटी ने उससे कहा, “लगता है तू नशा ही करता है और इसी लिए चोरी कर रहा था। लेकिन आज तेरा सारा नशा मैं उतरवा दूँगा।”
टीटी की बातों को सुनकर नारायण कुछ बोलता, तभी वहां सोए एक बूढ़े बाबा ने जागते हुए कहा, “इसे मत पकड़ो टीटी, ये सही बोल रहा है। और नारायण तुम्हें जिसकी तलाश है, वो खुद भी तुम्हें खोज रहा है।”
बाबा की बातों को सुनकर नारायण को और भी बड़ा झटका लगा, क्योंकि जिस शख्स से वो कभी मिला नहीं था, उन्हें उसका नाम पता था और वो उसके मकसद के बारे में भी जानते थे.?
आखिर कौन हैं वो बाबा और उन्हें कैसे पता चला नारायण का नाम.?
वो किससे नारायण के मिलने की कर रहे हैं भविष्यवाणी.?
नारायण इन सारे झंझटों से कैसे निकलेगा बाहर.?
जानने के लिए पढ़ते रहिए… 'स्टार्स ऑफ़ फेट'!
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