बनारस जाने के क्रम में नारायण के सितारों ने एक बार फिर से अपना खेल दिखाना शुरू कर दिया था। उसके साथ अब सारी घटनाएं उसके राशिफल के विपरीत हो रही थी और इस वक्त वो बिना टिकट के पकड़ा जा चुका था।

तभी वहाँ आये एक बाबा ने जो कुछ भी कहा, उसे सुनकर नारायण की आँखें फटी की फटी रह गई। नारायण ने कांपते हुए होठों से बाबा की ओर देखते हुए कहा, “बाबा आपको मेरा नाम कैसे पता चला और कौन मुझे खोज रहा है?”

नारायण को घबराते देख और बाबा की बातों को सुनकर टीटी ने भी नारायण का हाथ छोड़ दिया। उसके लिए भी ये घटनाक्रम अब काफी रोचक होते चला जा रहा था। 

तभी बाबा ने हँसते हुए नारायण से कहा, “वो कौन है, अगर इसका जवाब मिल जाये, तो जिंदगी इतनी मुश्किल ना रहती नारायण। रही नाम की बात, तो नाम में क्या रखा है। बस जो जुबान पर आया, मैंने बोल दिया।”

 

नारायण से इतना कहकर वो बाबा एक बार फिर से अपनी चादर तानकर सोने लगे। ये देख नारायण उनको जगाने के लिए उनकी ओर बढ़ा ही था, तभी जोर-जोर से उनके खर्राटे की आवाज आने लगी। बाबा को इतनी जल्दी गहरे नींद में सोता देख नारायण को उन्हें जगाने की हिम्मत नहीं हुईं।

तभी वहीं खड़े टीटी ने एक बार फिर से नारायण का हाथ पकड़ लिया, "देखिए, आप लोग कौन हैं मुझे नहीं पता। लेकिन, बिना टिकट मैं आपको स्लीपर क्लास में नहीं बैठने दे सकता। आप जनरल बोगी में चले जाइये।" टीटी की बातों को सुनकर नारायण फिर से जनरल बोगी की तरफ जाने के लिए बढ़ गया।

 

नारायण के कदम तो आगे की ओर बढ़ रहे थे, लेकिन उसका ध्यान वहीं बाबा की बातों और अचानक गायब हुई रोशनी के ऊपर ही था। फिर से अपनी सीट पर आकर बैठने के बाद भी नारायण की आंखों से नींद कोसों दूर थी। थोड़ी ही देर में सुबह हो गई और नारायण को अब बस बनारस पहुँचने का इंतजार था।

दिन भर गाड़ी में नारायण की यात्रा बहुत ही बेचैनी के साथ कटी और आखिरकार उस दिन शाम को उसका इंतजार समाप्त हुआ, जब ट्रेन बनारस स्टेशन पर जाकर रुकी। ट्रेन से बाहर निकलने के बाद नारायण ने जब अपने कदम बनारस की धरती पर रखे, तो उसके शरीर में भीतर तक सिहरन फैल गई।

 

बनारस में एक अलग ही ऊर्जा बसती है और जब शाम की गोधूलि बेला में बनारस स्टेशन से नारायण बाहर निकला, तो उसे हर तरफ यही ऊर्जा - पूजा की घंटियों और हवा में घुल रही चंदन की खुशबू के रूप में महसूस होने लगी। अपने गुरु द्वारा दिये गए पते को देखते हुए नारायण जब गंगा घाटों की ओर बढ़ने लगा, तो उसे हर ओर साधुओं की कतारें, रंग-बिरंगे फूलों की दुकानें, और कहीं दूर से आती "हर-हर महादेव" की गूंज सुनाई देने लगी।

ये सब देखकर नारायण कुछ पल के लिए इनमें खो सा गया और थोड़ी ही दूरी पर मौजूद गंगा का किनारा उसे अपनी ओर बुलाने लगा। नारायण को ये सब बेहद सुंदर तो लग रहा था, लेकिन इस सुंदरता के बीच भी उसके दिल की धड़कनें तेज थीं। घाटों पर जमी भीड़ के बीच नारायण आगे की ओर बढ़ तो रहा था, लेकिन फिर भी उसे लग रहा था, जैसे बनारस की इस रूहानी फिज़ा में कोई रहस्य छिपा हो, जो उसके आने का इंतज़ार कर रहा है।

इस डर के बीच जब एक घाट से नारायण ने गंगा को बनारस की घाटों को छूते देखा, तो वो मंत्रमुग्ध सा हो गया, "दुनिया का पहला शहर, जहां से सारी सभ्यताओं ने जीना सीखा और जिस शहर को खुद देवताओं ने बसाया। नारायण इस बनारस शहर में तो तुझे तेरे सवालों का जवाब जरूर मिल जाएगा।" 

ये सोचकर नारायण को थोड़ी शांति मिली और वो पंडित रामनारायण को खोजने के लिए आगे बढ़ गया। नारायण अब जल्द से जल्द पंडित रामनारायण से मिलना चाहता था, तभी उसके फोन की घंटी बजी। 

नारायण ने सोचा वो फोन ना उठाये, लेकिन स्क्रीन पर फ्लैश होते चिंतामणि के नंबर को देख उससे रहा नहीं गया और उसने फोन उठा लिया।

फोन उठाते ही दूसरी ओर से चिंतामणि की घबराई हुई आवाज उसके कानों में पड़ी, "बाबा, आप क्यों चले गए? पुलिसवाले हमारे घर आये हैं और वो तोड़ फोड़ रहे हैं।" 

चिंतामणि की बातों को सुन नारायण ने भी घबराते हुए कहा, “ये सब तुम क्या बोल रहे हो बेटा? मेरी उनसे बात कराओ।”

नारायण की बातों को सुन चिंतामणि ने फोन तुरंत इंस्पेक्टर सिद्धार्थ को दे दिया। "नारायण, तुम्हें मुंबई छोड़कर नहीं जाना चाहिए था।" इंस्पेक्टर की बातों से उसका गुस्सा साफ झलक रहा था।

"लेकिन इंस्पेक्टर साहब, मेरे लिए बनारस जाना बेहद जरूरी था। अपने सवालों का जवाब मिलते ही मैं तुरंत वापस आ जाऊँगा। आप मेरे परिवार को परेशान मत कीजिये।" सिद्धार्थ के आगे गिड़गिड़ाते हुए नारायण बेहद बेबस लग रहा था।

उसकी बातों को सुनकर इंस्पेक्टर सिद्धार्थ ने कहा, “तुम मुंबई छोड़कर गए, तुम्हारे ऊपर शक करने के लिए ये वजह काफी है और जांच तो चलती रहेगी, बस तुम यहाँ जितनी जल्दी आ जाओगे, तुम्हारे परिवार के लिए उतना अच्छा होगा।”

सिद्धार्थ ने इतना कहकर फोन चिंतामणि को दे दिया। चिंतामणि के फोन लेते ही नारायण ने उससे कहा, “बेटा तुम चिंता मत करो, वे लोग तलाशी लेकर चले जायेंगे। वैसे भी हम गलत नहीं हैं, इसलिए तुम सब घबराना मत। मैं भी जल्द वापस आने की कोशिश करता हूँ।”

 

नारायण की बातों को सुनकर चिंतामणि ने फोन रख तो दिया, लेकिन नारायण के कदम अब आगे की ओर नहीं बढ़ रहे थे। वो अपनी जगह पर किसी बुत की माफिक जम गया था। तभी उसके पीछे से आते हुए एक शख्स ने उससे कहा, “का हो महाराज, गंगा में कूदे के सोचत हउव का.?”

बनारसी भाषा नारायण के लिए नई थी, लेकिन वो इतना तो समझ गया था कि वो गंगा में कूदने की बात कर रहा है। इसलिए नारायण ने घबराते हुए कहा, “नहीं, नहीं, मैं तो किसी से मिलने जा रहा हूँ।”

नारायण की बातों को सुन पान चबा रहा सामने खड़ा शख्स मुस्कुराया, "लगता है, आप बनारस के नहीं हैं। बताइए आपको कहां जाना है, अभी पहुँचाते हैं।"

 

एक अंजान शख्स को अचानक अपनी मदद करते देख नारायण घबराया, लेकिन उसे ये नहीं पता था, एक बनारसी किसी अंजाने को भी अपना ही परिवार मानता है और उसे मंजिल तक पहुँचा कर ही छोड़ता हैं। नारायण ने घबराते हुए जब पंडित रामनारायण का पता बताया, तो वो शख्स मुस्कुराने लगा।

"अच्छा बाबा के घरे जाए के ह। अभी पहुँचा देत हईं।" इतना कह उस शख्स ने नारायण का हाथ पकड़ा और पूरे रास्ते उसे बनारस की गलियों की कहानी कहते हुए थोड़े ही देर में पंडित रामनारायण के घर के सामने लाकर खड़ा कर दिया। 

"बाबा के घर आ गइल। अब हम चलत हईं।" उस शख्स को कुछ पैसे देने के लिए नारायण अपनी जेब में हाथ डालता, उससे पहले ही वो शख्स वहां से चला गया।

 

नारायण को अभी तक बनारस शहर ही अच्छा लग रहा था, लेकिन अब उसे यहां के लोग भी ठीक लगने लगे थे। उस शख्स के अपनी आंखों से ओझल होते ही नारायण ने जब अपने सामने देखा, तो उसे पंडित रामनारायण के नाम का बोर्ड दिखाई पड़ा। वो बोर्ड देखते ही नारायण की धड़कने एक बार फिर से तेज होने लगी। ये सोचकर उसकी बेचैनी अब बढ़ते जा रही थी कि आखिर उसकी कुंडली में कौन सा दोष है और पंडित रामनारायण क्या कहेंगे।

एक बार को नारायण की इच्छा हुई कि वो उस दरवाजे से ही वापस लौट जाए, लेकिन उसने हिम्मत कर के दरवाजा खटखटा दिया। दरवाजे पर दस्तक होते ही अंदर से एक बीस बाइस साल का युवक बाहर निकला और उसने नारायण की ओर देखते हुए कहा, “पंडितजी अब किसी का भविष्य नहीं बताते। आप यहां से चले जाइये।”

नारायण से इतना कहकर वो लड़का वापस जाने लगा। ये देख नारायण ने तुरंत घबराते हुए कहा, “मुझे मुंबई से सदाशिव जी ने भेजा है और मैं उनका शिष्य हूँ। हमें एक प्रश्न का जवाब नहीं मिल रहा और ये जवाब हमें बस पंडित रामनारायण ही दे सकते हैं।”

नारायण की इन बातों को सुनने के बाद भी वो लड़का बिना कुछ कहे जाने लगा, तभी उस घर के ऊपरी मंजिल से एक वृद्ध शख्स की आवाज आई, "सदाशिव ने भेजा है, तो जरूर कोई बड़ी बात होगी। उन्हें अंदर आने दो।"

 

उस शख्स की आवाज आते ही लड़के ने दरवाजा खोल दिया और नारायण को ऊपरी मंजिल की ओर लेकर जाने गया। अगले ही मिनट नारायण एक 90 वर्ष के वृद्ध शख्स के सामने खड़ा था, जिनके माथे का तेज युवाओं को भी मात दे रहा था। 

उन्हें देखते ही नारायण को समझने में देर नहीं लगी कि ये पंडित रामनारायण हैं और वो तुरंत उनके पैरों में गिर गया, "मुझे बचा लीजिए गुरुजी। मेरा नाम नारायण है और मेरे सितारे ही मुझे धोखा दे रहे हैं। अगर आपने मुझे अब कोई समाधान नहीं दिया, तो मेरी जिंदगी व्यर्थ हो जाएगी।" पंडित रामनारायण के कदमों में गिरकर विनती कर रहा नारायण काफी घबराया हुआ था।

ये देख पंडित रामनारायण ने उसे उठाया और पानी का एक ग्लास उसकी ओर बढाते हुए कहा, “तुम मेरे शिष्य के भी शिष्य हो नारायण। अगर सदाशिव ने तुम्हें मेरे पास भेजा है, तो मैं समझ सकता हूँ, समस्या काफी गंभीर है। लेकिन, पहले तुम मुझे इसके बारे में विस्तार से बताओ।”

पंडित रामनारायण की बातों को सुनकर नारायण ने उन्हें बम विस्फोट वाले दिन की घटना से लेकर अभी तक की सारी बातें बता दी। नारायण जैसे जैसे अपनी कहानी बताते जा रहा था, पंडित रामनारायण के माथे पर शिकन वैसे-वैसे बढ़ते जा रही थी। उनके चेहरे का भाव भी गंभीर होते जा रहा था और उन्होंने अपनी उंगलियों पर कुछ गणना भी शुरू कर दिया था।

नारायण की बातें खत्म हो गई थी, लेकिन पंडित रामनारायण अभी भी अपनी आंखें बंद कर के चुप बैठे थे। 

ये देख नारायण से ज्यादा देर रहा नहीं गया और उसने बेहद ही धीमी आवाज में कहा, "गुरुजी, मेरी कुंडली के सितारें आखिर उल्टे क्यों चल रहे हैं.? और मेरी कुंडली का ये दोष कैसे ठीक होगा?"

 

नारायण के काँपते हुए इन शब्दों को सुनकर पंडित रामनारायण अपने बिस्तर से उठ खड़े हुए और उन्होंने अपनी बालकनी का दरवाजा खोल दिया। वो दरवाजा खुलते ही कमरे से जीवनदायनी गंगा का दर्शन होने लगा और ठंडी हवाओं ने पूरे कमरे को शीतल कर दिया।

उस कमरे का दरवाजा खोलने के बाद गुरुजी बालकनी में खड़े होकर कभी गंगा, तो कभी आसमान में निकले चांद को देखने लगे और थोड़ी देर ये सब निहारने के बाद उन्होंने नारायण से कहा, “नारायण, मैंने आजतक ऐसा दोष ना तो किसी की कुंडली में देखा है और ना ही किसी शास्त्र में मुझे ऐसे किसी दोष का वर्णन मिला है। मुझे समझ नहीं आ रहा, मैं तुम्हें क्या जवाब दूं.?”

पंडित रामनारायण की इन बातों को सुनकर नारायण का चेहरा एकदम से पीला पड़ने लगा। उसकी सारी उम्मीदें, सारा हौसला पलभर में ही टूटकर बिखर गया था, "गुरुजी, मैं बड़ी उम्मीद के साथ बनारस आया था। मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि ये शहर मुझे इतना निराश करेगा।"

 

नारायण के इन हताशा भरे शब्दों को सुनकर पंडित रामनारायण कमरे के अंदर आये और भगवान के पास रखे भभूत को लेकर नारायण के माथे पर रखते हुए कहा, “नारायण, मैंने कहा मेरे पास जवाब नहीं है, लेकिन इसका मतलब ये थोड़ी है कि तुम्हारी बनारस यात्रा असफल हो गई। अरे काशी ने तो महादेव के रौद्र रूप काल भैरव का भी मन शांत कर दिया था, फिर ये तुम्हें ऐसे कैसे छोड़ सकता है।”

पंडित रामनारायण की बातों को सुनकर नारायण उनकी तरफ उम्मीद भरी निगाहों से देखने लगा। तभी उन्होंने आगे कहा, "नारायण तुम्हें अपने सवालों का जवाब जानने के लिए मणिकर्णिका घाट पर जाकर त्रिकालदर्शी से मिलना होगा। कहते हैं वो समय और भाग्य के रहस्यों के ज्ञानी हैं। नारायण बस इस बात का ध्यान रखना की त्रिकालदर्शी सबसे नहीं मिलते। वे केवल उन्हीं को दिखाई देते हैं, जिनका उनसे मिलना तय होता है। इसलिए अगर ये तुम्हारी किस्मत में लिखा है, तो तुम उनसे जरूर मिलोगे।"

 

पंडित रामनारायण की इन बातों को सुनकर नारायण के मन में एक बार फिर से उम्मीद की लौ जलने लगी और वो गुरुजी का आशीर्वाद प्राप्त कर मणिकर्णिका घाट की ओर जाने के लिए बढ़ गया।

कहते हैं, मणिकर्णिका पर जल रही चिता की लपटें कभी ठंडी नहीं होती और नारायण आधी रात को वहां पहुँचने के बाद भी उन लपटों की धधक को महसूस कर सकता था। मणिकर्णिका घाट पर आधी रात को भी सैकड़ो चिताएं जल रही थी और उन्हीं चिताओं की लौ के बीच नारायण अपने सवालों का जवाब तलाशने की कोशिश करने लगा।

 

 

कौन हैं ये त्रिकालदर्शी और क्या ये देंगे नारायण को दर्शन?

आखिर नारायण की कुंडली में ऐसा कौन सा दोष है, जो उसे जवाब जानने के लिए करनी पड़ रही है इतनी यात्रा.?

मुंबई में चल रही पुलिस जाँच का नारायण पर क्या होगा असर.?

जानने के लिए पढ़ते रहिए… 'स्टार्स ऑफ़ फेट'!
 

 

 

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