समीर को इससे पहले शायद पता भी नहीं होगा कि उसका जन्म इस धरती पर जिस काम के लिए हुआ है वो उसके इतने पास है। हरियाणा के एक छोटे से गाँव मे जन्मा समीर बचपन से ही जासूस बनना चाहता था और बना भी लेकिन उस को क्या पता था कि जिंदगी उसे कितनी बड़ी जिम्मेदारी देने वाली है। समीर सोचता है कि रात को डॉक्टर रवि के घर जाना सही नहीं है इसलिए वो पलट कर वापस बूढ़ी औरत के घर जाने ही वाला होता है कि देखता है सामने शांति निवास है जहां वो पहले दिन रुका था। वो औरत जिसने समीर को खाना दिया था और अपने घर रखा था। वो घर के बाहर ही खड़ी है। वो औरत समीर को घूर रही थी जैसे उससे बात करना चाहती हो। समीर जैसे ही उस औरत के पास जाता है वो औरत अपने हाथ मे लिया एक छोटा थैला समीर की तरफ बढ़ाती है। इससे पहले समीर उस औरत से कुछ बोल पाए, वो औरत घर के अंदर जा कर दरवाजा बंद कर लेती है। समीर सोच मे पड जाता है ये क्या हुआ? क्या सच में यहां के लोग समीर की मदद करना चाहते है? वो गौर से देखता है तो उसे उस दरवाजे के ऊपर धूल से सना वो मुखौटा दिखता है ठीक वैसा जैसा डॉक्टर रवि के घर के बाहर था। समीर को अब समझ आ रहा है कि ये बात सिर्फ एक परिवार की नहीं है। वो बिना रुके वहां से सीधा घर जाता है। घर पहुँचते ही दरवाजे खिड़कियां बंद कर किताबों वाले कमरे में जाता है और उस थैले को खोलता है। थैले से निकलती है एक पुरानी डायरी। समीर डायरी पर चिपकी धूल झाड़ कर उसे खोलता है और जो देखता है वो सच उसे हैरान कर देता है। एक गुप्त सोसायटी जो किसी करोड़ी लाल ने बनाई थी इस साये जिसे ये देव कहते हैं उन्हें बुलाने के लिए। वरदान था अमरत्व का और उसकी कीमत थी एक बलि।

हर 50 साल में करोड़ी लाल के खून के एक बच्चे की एक बलि देव को अर्पित की जाएगी और सोसायटी के बाकी लोग हर पीढ़ी का एक बच्चा उस देव को सौंप देंगे। बदले में उन्हें ऐसा वरदान मिला जिससे वो कभी मर नहीं सकते। समीर के होश उड़ गये। अब तक उसने जो भी जाना था वो किसी एक परिवार की बात थी। अब वो जो देख रहा है उसके समझ से परे है। शांति निवास में उस बूढ़े couple के अलावा कोई नहीं रहता शायद उनका वंश आगे ही नहीं बढ़ा पर बाकी परिवार जो इस सोसाइटी में थे वो कहाँ गए?

समीर ने उस डायरी में देखा कि उसमे उस क्रिया की आकृतियां बनाई हुई है। जिससे इस साये को बुलाया जाता था। उस डायरी में भी एक पहेली लिखी है जिसका मतलब समीर को समझ नहीं आ रहा। उस डायरी में लिखा था -

मन की आँख दिखाए सच जो यूँ कभी ना दिख पाए, हस्त कला का जादू है जो कर पाए वो कर पाए।

समीर को सबसे पहले ये जानना है कि करोड़ी लाल कौन है इस शहर में?

अगली सुबह मौसम ठीक था शहर में चहल पहल थी। दुकाने खुली थी, लोग अपनी दिनचर्या में लगे हुए थे। समीर एक बार फिर घर का दरवाजा बंद कर बाहर निकला और उसने पता करना शुरू किया। दुर्भाग्य ऐसा की किसी को नहीं पता ये नाम। समीर ने हिम्मत नहीं हारी उसने एक दुकानदार से पूछा कि क्या यहाँ कोई ऐसी जगह है जहां इस शहर के परिवार के लोगों की कोई लिस्ट हो? दुकानदार ने समीर से कहा कि चौक के पास एक शिला है जिसपर इस शहर के पुराने परिवारों की वंशावली है। पिछले दो दशकों से ये प्रथा बंद हो गई है लेकिन उससे पहले के लोगों का नाम अभी भी दर्ज है वहाँ। समीर तुरंत उस तरफ भागता है और खोजने लग जाता है वो शिला। कुछ समय खोजने के बाद समीर को उस चौक के पीछे वो शिला दिख जाती है जिसपर उसे एक नाम दिखता है शांतिलाल शर्मा। शायद ये शांति निवास के मालिक हो। उनके दो बेटे मदन और मोहन का नाम भी था लेकिन उनकी अगली पीढ़ी में कोई नाम नहीं था। अब सवाल ये है कि शांति निवास में तो सिर्फ वो बुजुर्ग पति पत्नी ही रहते हैं.. तो बाकी कहाँ गए?

अगले नाम पर फिर समीर की नजर अटक जाती है ये नाम है श्री करोड़ी लाल का। करोड़ी लाल के दो बेटे भरत लाल और भगवान लाल। भगवान लाल के दो बेटे चंद्र लाल और रवि लाल।

समीर यहीं रुक गया। रवि लाल मतलब डॉक्टर रवि। इस साये से उनके परिवार का नहीं बल्कि उनके पूर्वजों का नाता है। एक बात गौर करने वाली थी हर वंश में किसी भी बड़े बेटे के आगे कोई वंशावली नहीं थी या फिर जिसका एक ही बेटा हो उसकी भी कोई वंशावली नहीं। इसका मतलब सब के सब बलि की भेंट चढ़ गए। चंद्र लाल यानी कि डॉक्टर रवि का भाई वो भी बलि चढ़ गया और अब बारी थी डॉक्टर रवि के इकलौते बेटे अथर्व की।

समीर अब समझ गया कि डॉक्टर रवि किस दर्द से गुज़र रहे हैं और वो किसी भी हालत में अब अथर्व को बलि नहीं चढ़ने देना चाहते।

समीर वहाँ खड़े सोच ही रहा था कि वो क्या करे, तभी उसे डॉक्टर रवि अपनी तरफ आते दिखे। डॉक्टर रवि को देख समीर खुद को रोक नहीं पाया और उन्हें गले लगा लिया। डॉक्टर रवि ने देखा कि समीर क्या पढ़ रहा है। फिर उन्होंने उससे कहा,

रवि - सुना है आपको समोसे पसंद है। जब सूरज आसमान के बीच में हो तब गरम समोसे चाय के साथ खा कर देखना।

डॉक्टर रवि इतना कह डरे हुए, अपनी नजरे चुराते वहाँ से चले जाते है। समीर डॉक्टर रवि की बात समझ गया और ठीक 12 बजे उस बस स्टैंड वाले समोसे की दुकान पर पहुंच गया। जहां डॉक्टर रवि पहले से ही बैठे थे।

डॉक्टर रवि ने समीर से कहा -

रवि - डॉक्टर रवि लाल। जी यही है मेरा नाम। कई बार मरीज़ को बचाने के लिए हमे ब्लड की जरूरत पड़ती है तो हम बाहर के ब्लड बैंक से ले कर इलाज करते है पर वो ब्लड कब तक मरीज़ को जिंदा रख पाएगा हमे नहीं पता। इस बार हमे पता है कि ये आखिरी बार हो सकता है। अगर इस बीमारी की दवा नहीं ला पाए आप तो मरीज़ को बचाना मुश्किल हो जाएगा। बस दो हफ्ते हैं उसके पास।

रवि ये बात बोलते बोलते भावुक हो जाते हैं। समीर समझ जाता है कि ब्लड से डॉक्टर रवि का मतलब था टूरिस्ट की जान और मरीज़ जो अथर्व है और बीमारी ये साया। बस दो हफ्ते हैं समीर के पास और उसे पता है कि वो मुखौटा और उस तहखाने की चाबी के बिना ये कर पाना नामुमकिन है पर समीर अभी भी डॉक्टर रवि की तरफ नाराज़गी भरी नजरों से देख रहा था..

समीर - ब्लड? वाकई? इंसान किस हद्द तक स्वार्थी हो सकता है। आपसे मुझे ये उम्मीद नहीं थी डॉक्टर साहब।

रवि - समीर आपका कोई बच्चा है?

समीर - जी नहीं मेरी शादी नहीं हुई अभी।

रवि - तभी आप समझ नहीं पा रहे प्रेम और स्वार्थ में फर्क़।

समीर - मैं कुछ ढूँढ रहा हूं और मुझे लगता है वो आपके घर मे…

रवि - मैंने बैटरी चार्ज करने के लिए दी है। समय आने पर वो दुकान ढूँढ लेगी आपको।

इतना कहकर डॉक्टर रवि वहाँ से चले जाते है। उस दुकान में समोसे खा रहा समीर सोच रहा होता है कि ये गुत्थी जितनी सुलझाए उतनी उलझती जाती है। उस सोसाइटी का क्या हुआ? अगर उन सब ने अपने बच्चों की कुर्बानी दी तो फिर वो सब जिंदा क्यूँ नहीं है? क्या ये अमरत्व का वरदान भी एक छलावा है? या सच कुछ और है? समीर एक बार फिर कुछ और तथ्यों को जुटाने निकल पड़ता है ये सोचता हुआ कि बैटरी की दुकान से डॉक्टर रवि का क्या मतलब था? क्या वो नक्शा किसी बैटरी की दुकान में हैं? या फिर ये भी एक पहेली है?

समीर के सवालों का कोई अंत नहीं था हर दिन नया सवाल, नयी पहेली,नयी बात। ये तजुर्बा समीर के जीवन में बिल्कुल अलग था पर उसके हौसले उसे लगातार आगे बढ़ाए जा रहे थे। डॉक्टर रवि के हिसाब से समीर के पास दो हफ्ते भी नहीं थे उससे पहले समीर को उस साये को रोकना था। समीर को अब ये जानना था कि जब साये को बुलाने वाला परिवार उस विधि को जानता था कहानी के अनुसार.. तो वो तो चला गया। फिर डॉक्टर रवि के दादा करोड़ी लाल जी को ये विधि कैसे पता चली? क्या है ये पहेली जिसे सुलझा कर समीर ये बात जान पाए कि अंग्रेज़ी शापित परिवार से ये शाप डॉक्टर रवि के परिवार तक कैसे आया? समीर घर पहुंच वापस उस किताब में कुछ और तथ्य ढूँढने लग जाता है। वो बार बार उस किताब को पढ़ता है जिसमें शापित परिवार का जिक्र था। अचानक उसे एक ऐसा character नजर आता है जिसकी किसी ने बात ही नहीं की। उस शापित परिवार का एक नौकर जिसने उस अँग्रेजी परिवार की मदद की थी इस साये को कैद करने में और उस परिवार को इस जगह से निकलने में। कहां है वो? और वो बूढ़ा आदमी कौन था जो अभी भी उस शापित घर की रखवाली कर रहा है। वो आदमी जो समीर को मिला था और मुखौटे के बारे में बताया था। कहीं वही तो वो नौकर नहीं? क्या समीर को उस जगह वापस जा कर कुछ और पूछना चाहिए? पर समय ही तो नहीं है समीर के पास इस कहानी में इतनी अनसुलझी गांठें हैं जिन्हें सुलझाना समीर के लिए आसान नहीं होगा। कौन है वो आदमी जिसे इस कहानी के बारे में इतना कुछ पता है और उस शापित घर की रखवाली वो अभी तक कर रहा है। शांति निवास, जहां उस महिला ने समीर को ये डायरी दी। क्या रिश्ता है उसका इस कहानी से? अगर वो परिवार भी इस श्राप से जुड़ा है तो फिर समीर की मदद क्यूँ करना चाह रहा है?

सवालों के इस क्रम में एक और सवाल जुड़ता है कि ये हस्त कला क्या है? उस औरत की दी हुई डायरी में लिखी पहेली के लिए क्या समीर सीख पाएगा हस्तकला? और इतने समय मे ये सबकुछ कर समीर अथर्व की जान बचा पाएगा?

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

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