उस साये से हर आत्मा कांपती थी चाहे वो समीर की ही क्यूँ ना हो। समीर हिम्मत जुटाकर बूढ़ी औरत के घर की तरफ बढ़ने लगा। तभी उसे उसी समय एक बात सोच कर हैरानी हुई कि उस जगह कहीं भी किसी भी भगवान का कोई मंदिर नहीं था। ना शहर में और ना ही किसी के घर या दुकान में। ये अजीब है, एक पूरा शहर नास्तिक कैसे हो सकता है? क्या भगवान ने भी इस शहर से अपना मुँह मोड़ लिया था? समीर घर पहुचकर क्षम देवता की किताब खोलता है जिसमें लिखा था - जहां वो साया हो वहाँ किसी भी भगवान की मूर्ति, मंदिर बनाना और किसी भी तरह का पूजा पाठ वर्जित है। ये बात सन 1900 के समय हो रही मौतों के समय कही गई क्यूंकि जिस ने इस बात को नहीं माना उसने अपनी जान गंवाई।
दूसरे पेज पर लिखा था कि जब तक उस जगह से मंदिर, मूर्ति और पूजा स्थल को नष्ट नहीं कर दिया जाता वो साया उस जगह आना ही नहीं चाहता और एक बार वो साया आ गया फिर किसी ने मंदिर बनाना तो दूर पूजा पाठ करने की भी सोची तो वो साये का शिकार बन जाता। समीर के लिए ये सब एक डरावने सपने से कम नहीं था। हर रोज एक नयी कहानी और हर बार एक नया डर समीर की हिम्मत तोड़ने के लिए जोर लगा रहे थे पर समीर के हौसले टूटने वाले नहीं थे। वो एक बार फिर बाहर निकलता है उस शापित परिवार और शापित घर की तलाश में। वो जैसे ही दरवाजा बंद कर के सड़क की तरफ जा रहा होता है अचानक एक भेड़िया जो खाने की तलाश में शायद इंसानी बस्ती की तरफ आ गया था, समीर पर हमला कर देता है। समीर पास पड़े एक डंडे से उस भेड़िये का मुकाबला करता है और वो भेड़िया वापस जंगल की ओर भाग जाता है।
समीर का शरीर अचानक से कांपने लग जाता है जैसे उसे कोई हवा जकड़ रही हो। उसकी नजर जमीन पर पड़ती है और उसे एहसास होता है कि भेड़िये से लड़ते वक़्त उस की वो तिलस्मी पत्थर की माला टूट कर गिर गई। तभी एक तेज हवा का झोंका समीर की ओर बढ़त है और समीर गिर जाता है और अपने हाथ से उस माला को पकड़ लेता है। वो जानता था कि अगर एक चूक हुयी और उसकी जान गई। समीर अपना सारा काम छोड़ हाथ में वो माला पकड़े उस बस स्टैंड पर जाता है जहां से वो पहली बार आया था। वो वहाँ पहुँचते ही चौक जाता है क्यूंकि इस जगह आते ही उसे थोड़ा हल्का महसूस होने लगा था। इस जगह आते ही उसे कुछ धुंधली ही सही पर भूली हुयी सारी बातें याद आने लगीं।
समीर गौर से देखता है तो समझता है कि ये जगह बिल्कुल उस सुरंग के ऊपर है जहां साये का असर कम पड़ जाता है। वो वैसे ही उस माला को हाथ में लिए एक बस पर सवार हो कर पास के एक शहर सोलन की तरफ़ निकल जाता है। दिन सुहाना था, धूप खिली हुयी थी और बादल दूर दूर तक भी कहीं नज़र नहीं आ रहे थे। ये सफ़र एक आम tourist के लिए सुकून से भरा हो सकता है पर समीर के दिमाग में उस समय कई सवालों का सैलाब उमड़ रहा था। सोलन पहुचते ही उसे समझ आया कि उस साये का असर सिर्फ छैल और उसके आसपास की पहाडियों पर है। वहाँ वो एक सुनार की दुकान पर गया और दुकानदार से हाथ जोड़ के विनती करने लगा, कि वो वो पत्थर की एक अंगूठी कुछ घंटों में बना कर उसे दे दे।
सुनार ने भी बात मान ली और दो घंटे में उसने अंगूठी बना कर दे दी। समीर उस अंगूठी को पहनकर वापस बस में बैठ, छैल की तरफ चल पड़ा। दोपहर के तीन बजने मे कुछ समय बाकी था। बस जैसे ही घाटी पर चढ़ी, खिड़की पर बैठे समीर ने देखा कि सूरज एक पहाड़ी के दूसरी तरफ आ गया और उस पहाड़ी की परछाई से दूसरी पहाड़ी पर छांव थी। समीर ने खिड़की से सिर बाहर निकाल कर देखा तो एक सूखी नदी देखकर दंग रह गया। उस किताब में उसी का तो जिक्र था। उसने कंडक्टर को तुरंत बस रुकवाने को कहा।
बस कंडक्टर ने समीर को बताया कि छैल पहाड़ी के दूसरी तरफ कुछ 2 किलो मीटर दूर है। समीर ने उससे कहा कि उसे यहीं उतरना है। बस के ब्रेक की आवाज उस पहाड़ी पर गूँज उठी। समीर बस से उतर सीधा पगडंडियों से नीचे की तरफ बढ़ने लगा। उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। जैसे ही समीर नीचे उतरा, कुछ दूर चलने पर उसे उस सूखी नदी के बीच टूटा हुआ पुराना लकड़ी का घर दिखा। उसको यक़ीन हो गया कि यही है वो शापित घर जिसका जिक्र उस किताब में है। जैसे ही समीर उस घर की तरफ बढ़ा उसे किसी बूढ़े आदमी की आवाज आयी, “उधर मत जाओ वो जगह तुम सैलानियों के लिए नहीं है।”
समीर - मैं कोई tourist नहीं हूं।
बूढ़ा आदमी बोला, “तुम जो भी हो ये घर श्रापित है इससे दूर रहो।”
समीर - आपको इस घर के बारे में कैसे पता?
बूढ़े आदमी ने जवाब दिया, “सवाल ये नहीं कि मुझे कैसे पता, सवाल ये है कि तुम कैसे जानते हो इसके बारे में? कौन हो तुम?”
समीर उस बूढ़े आदमी को फिर पूरी कहानी सुनाता है। उस की कहानी सुन बूढ़ा आदमी उसे आगाह करता है
“जिसे तुम साया बुला रहे हो वो उसे देव कहते हैं। राक्षस और देवता से परे भी इस धरती पर कुछ है। ये उस लोक से आया है जहां आत्माएँ गुलाम बन कर रहती हैं। जो तुम करने जा रहे हो उसमें तुम्हारी जान का जाना बहुत छोटी बात है, बल्कि वो पूरा शहर खत्म हो सकता है।”
समीर - मैं ऐसे ही लोगों को मरते और दहशत में जीते नहीं छोड़ सकता आपको मेरी मदद करनी होगी।
वो बूढ़ा आदमी समीर को उस घर के अंदर ले जाता है जहां नीचे एक तहखाना था। उस तहखाने के दरवाज़े पर एक मुखौटा सा बना हुआ था। बूढ़ा आदमी उसे बताता है कि इसकी चाबी उसी के पास मिलेगी जिसने इसे खोल कर वो नक्शा निकाला था। समीर एक पल के लिए थम सा गया। ये मुखौटा उसने डॉक्टर रवि के दरवाज़े पर भी देखा था।
बूढ़ा आदमी उससे पूछता है, “क्या हुआ? इस मुखौटे को कहीं देखा है? ये मुखौटा उस काली शक्ति को शांत करने के लिए है।”
समीर - मुझे क्या करना होगा?
बूढ़ा आदमी बोला, “जिसके पास ये मुखौटा है चाबी भी उसी के पास होगी। जाओ अगर ला सकते हो तो ले आओ बस ध्यान रहे ये क्रिया सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच ही की जा सकती है। सूरज ढलने से पहले तुम यहाँ से चले जाओ।”
समीर उस पहाड़ी पर चढ़कर सड़क की ओर जाता है। जाने उस जगह ऐसा क्या था कि बस वाले वहाँ बस रोक ही नहीं रहे थे। समीर कुछ दूर पैदल चलकर एक बस्ती की तरफ जाता है। उसे वहाँ एक छोटा सा बस स्टैंड दिखता है। थोड़ी देर बाद एक बस आ कर रुकती है और उस बस में बैठके समीर अपने ख़यालों मे खोया हुआ वापस छैल के उस बाजार में उतरता है जहां वो पहली बार आया था। आज बाजार में लोग थे पर वो अपने अपने घर जा रहे थे। कुछ tourist भी थे जो हंसी ठिठोली करते अपने अपने होटल की ओर जा रहे थे। समीर एक कोने में खड़ा उन सब को देखने लगा और दूसरी तरफ उसके दिमाग में ये सवाल चल रहा था कि सच क्या है?
समीर को डॉक्टर रवि का खेल समझ नहीं आ रहा था कि आखिर वो चाहते क्या हैं? एक तरफ वो समीर की मदद भी कर रहे हैं और दूसरी तरफ उस साये से जुड़े सारे तार उनके परिवार और उनके घर की तरफ जा रहे हैं। इस बात का तीसरा पहलू भी है कि डॉक्टर रवि खुद भी उस साये के खौफ में हैं और चलो मान भी लें कि वो इस शहर में अमन और शांति चाहते हैं तो फिर अथर्व? अथर्व की इस हालत का क्या जवाब है उनके पास? सूरज ढलने वाला है और समीर को समझ नहीं आ रहा कि वो क्या करे। वो उस समोसे की दुकान पर जा उस दुकानदार से फिर से पूछता है -
समीर - डॉक्टर रवि को जानते हो?
दुकानदार बोला, “आप अभी तक इस शहर में हो? tourist नहीं लगते।”
समीर - ये मेरे सवाल का जवाब नहीं है। मैंने पूछा डॉक्टर रवि को...
दुकानदार ने समीर को बीच में ही टोकते हुए कहा, “ कौन नहीं जानता उन्हें। आज हम जिंदा हैं तो उनकी मेहरबानी से। इस शहर में ज्यादा सवाल जवाब नहीं करते साहब, सूरज बस ढल ही गया है हमें दुकान बढ़ानी है।”
दुकानदार की बात समीर के समझ नहीं आती कि इस शहर मे सब कुछ इतना रहस्यमयी है कि किसकी बात पर यकीन करें, किसकी बात नजरअंदाज करे। समीर छैल की गलियों में हर एक घर के बाहर उस निशान को ढूंढने लगा। सूरज ढल चुका था और लोग अपने दरवाजे बंद कर रहे थे। वो एक एक कर के लगभग हर गली, हर रास्ते से गुज़रा लेकिन किसी भी घर के बाहर उसे वो निशान ना मिला। समीर तंग आकर उस चौराहे पर बैठ गया जहां उस बूढ़ी औरत का घर है। उसे अचानक कुछ याद आया , वो घर में गया और उस बूटी का डब्बा उठाया जो उस दिन डॉक्टर रवि लेने आए थे। समीर ने उस डब्बे को अगल बगल से देखा उसपर लिखा था जटामासी। समीर ने उस डब्बे के नीचे देखा और चौक गया। उस पर लिखा था इलाज के लिए प्रयोग में लें। इस बूटी से तंत्र क्रिया करना वर्जित है। उस दिन डॉक्टर रवि ने इस बूटी से ऐसा क्या किया होगा? और क्या क्या राज़ छुपा है डॉक्टर रवि और उनके परिवार के में? क्या करते हैं वो उस बंद घर में जो इस शहर की सबसे असुरक्षित जगह पर है? ये सवाल अपने मन में लिए समीर उस जगह जा कर खड़ा हो जाता है जहां से वो पगडंडी ऊपर कोटी जंगल की तरफ जाती है और डॉक्टर रवि का घर साफ दिखाई देता है। वहीं वो बोर्ड है जिस पर लिखा है -
सूरज ढलने के बाद कोटी जंगल की तरफ जाना वर्जित है। सैलानियों से निवेदन है कि खराब मौसम मे भी इस तरफ ट्रेकिंग या कैम्पिंग के लिए ना आयें।
क्या डॉक्टर रवि सच में कोई राज़ छुपा रहे है? कहीं ऐसा तो नहीं कि वो दुकानदार सही था और डॉक्टर रवि इस साये से शहर को बचाना चाहते हो?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
No reviews available for this chapter.