जिस मौत के साये से लोग मुँह फेर कर दूर भागते थे समीर ने उसे दुश्मनी को दावत दे दी थी। क्या एक छोटा सा पत्थर समीर को इस साये से महफूज रख पाएगा? और अगर हाँ तो कब तक? जिस ताकत को समीर ने ललकारा था वो क्या कर सकती थी.. समीर को इस बात का अंदाज़ा नहीं था।
उस हादसे के बाद जब समीर की आँख खुलती है तो वो खुद को डॉक्टर रवि के घर में पाता है। वो उठते ही सबसे पहले अपने गले में उस माला को एक बार फिर से देखता है जिसमें वो पत्थर था। समीर को समझ नहीं आता कि अगर डॉक्टर रवि अथर्व को बचाना चाहते हैं तो ये माला अथर्व को क्यों नहीं पहना दी? समीर के मन मे एक और सवाल था कि कल ऐसा क्या हुआ जिससे वो डॉक्टर रवि के घर आ गया। तभी अचानक डॉक्टर रवि समीर के कमरे में आते हैं और पूछते हैं -
रवि - चाय पियोगे?
समीर - हाँ पर मैं यहां कैसे आया?
रवि - हम कई बार अंधेरे में सच खोजने निकल जाते हैं पर बिना रोशनी के कुछ नहीं दिखता। आप चाय पियो और रोशनी ढूंढो।
समीर चाय पीते पीते चारो तरफ देखने लगता है। उसे अथर्व कहीं नजर नहीं आता। वो गौर करता है कि डॉक्टर रवि उस से बात नहीं कर पा रहे उनकी आँखों में डर साफ़ नज़र आ रहा है। समीर चाय खत्म करते ही वहाँ से निकल जाता है और पीछे पलट कर देखता है कि डॉक्टर रवि के घर के ऊपर एक काला धुआं मंडरा रहा था।
वो बिना समय गंवाए सीधा बूढ़ी औरत के घर जाता है और चारो तरफ बिखरी किताबों को देखते हुए सोचने लगता है कि कोई तो ऐसी चीज़ है जिसे वो अभी तक नहीं देख पाया है। अचानक उसे डॉक्टर रवि की कही बात याद आती है बिना रोशनी के कुछ नहीं दिखता, रोशनी को ढूंढो। शायद डॉक्टर रवि समीर की मदद करना चाह रहे थे। समीर उस घर में रोशनी करने वाली हर चीज़ को गौर से देखने लगा। लाइट, बल्ब, टॉर्च तभी उसकी निगाह एक सुनहरे रंग की लालटेन पर पड़ी जो उस संग्रहालय में ऊपर टंगी थी। समीर ने गौर से देखा तो उसपर वैसे ही निशान बने थे जैसे उस सुरंग के अंदर थे। उस ने तुरंत वो लालटेन उठा कर देखा, उसमें बत्ती पहले से ही लगी हुई थी। समीर दिन के उजाले ने जलती हुई लालटेन के साथ निकल पड़ा उस सुरंग की ओर। वो जैसे ही सुरंग के अंदर गया उसे वापस सब कुछ याद आ गया। क्या डॉक्टर रवि और उनका परिवार ही वो परिवार है जिसने इस साये को बुलाया है? अगर ऐसा है तो डॉक्टर रवि समीर की मदद क्यों कर रहे है? कहीं ऐसा तो नहीं कि इस कहानी में कोई और भी है जो अथर्व को मोहरे की तरह इस्तेमाल कर रहा है। सवाल बहुत थे पर इस वक्त समीर के लिए सबसे जरूरी था उस सुरंग की दीवारों पर लिखी लिपि को समझना। चमगादड़ों से बचता हुआ, वो उस जगह पर जाता है जहां दीवार पर वो लिपि लिखी थी। समीर जैसे ही वो सुनहरी लालटेन उस निशान की तरफ बढ़ाता , तो देखता है कि एक परछाई सामने की दीवार पर दिख रही थी। ये कोई चित्र है जो दर्शाता है एक परिवार को। जैसे ही समीर आगे देखता है उसे सब कुछ काला दिखाई देने लग जाता है। समीर की नजर दाहिनी ओर पड़ती है और उसके रोंगटे खड़े हो जाते हैं। वो साया वहीं खड़ा था जिसने लालटेन से जा रही रोशनी को अपने काले अंधेरे धुएँ मे कैद कर लिया था।
समीर के पास वहाँ से तुरंत वापस चले जाने के सिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचता। वो दबे पांव उस सुरंग से बाहर निकल जाता है और वापस उस लालटेन को लिये हुए घर पहुंच जाता है। कोई परिवार है जिसके पास वो नक्शा है। समीर ने कभी किसी और परिवार पर ध्यान क्यों नहीं दिया? क्या और भी कुछ है जिसे वो अभी तक सुलझा नहीं पाया? समीर घर से बाहर निकलकर लोगों से बात करने की कोशिश करने लग जाता है। अब यहां के लोग उसको अपने जैसा मानने लगे थे और उससे अब बात करने में हिचकिचा नहीं रहे थे। समीर ने कुछ लोगों से पूछा कि शुक्रवार का उन्हें कुछ भी याद है? तो लोगों ने बताया की धुंधली यादें होती है कुछ भयानक होता है एक डर सा बैठ जाता है अगले दिन पर उस दिन होता क्या है किसी को ठीक से याद नहीं। समीर उस चौक की तरफ वापस जाने लगता है जहां उस बूढ़ी औरत का घर है तभी डॉक्टर रवि उसे अपनी ओर आते दिखते हैं।
समीर डॉक्टर रवि का हाथ पकड़कर उस बुढ़ी औरत के घर में ले जाता है और पूछता है -
समीर - क्यों कर रहे हैं आप ये? चलिए मान लिया आपको यहां आने वाले किसी tourist से कोई हमदर्दी नहीं है पर अथर्व? वो तो आपका बेटा है ना? क्या उसका दर्द भी नहीं दिख रहा आपको।
रवि - समीर मुझसे जो बन पड़ रहा है मैं कर रहा हूं। आपको मुझ पर भरोसा करना होगा।
समीर - कैसे करूं भरोसा? मेरे सारे सबूत इस तरफ इशारा कर रहे हैं कि जिसने इस बर्बादी को यहां बुलाया वो परिवार आपका है।
रवि - सच हमेशा उतना नहीं होता जितना दिखता है। आधा सच कई बार झूठ से भी ज्यादा खतरनाक होता है।
समीर - आप पहेलियां बुझाना बंद करो और साफ साफ बताओ इसे कैसे रोकना है इस तबाही को?
रवि - ये पत्थर जो आपके गले में है आपको बचाए रखेगा लेकिन मेरे और मेरे परिवार के पास कुछ भी नहीं है। उसके बारे में बात करना भी मौत को दावत देने जैसा है। बस एक बात याद रखना। वो हो सकता है जहां कहीं भी मन है , पर जुड़ जाए उस बंधन से जब जो इक बार , ना हिल सके जब तक उसके हिस्से वो तन है। हमें भी आपसे बहुत उम्मीद है समीर। निराश मत करना।
डॉक्टर रवि इतना कहते ही वहाँ से चले गए। समीर को रवि की बात कुछ समझ नहीं आयी। ऐसा क्या कह रहे थे डॉक्टर रवि? वो परिवार कौन है जिनके पास वो नक्शा है? क्या वो दीवार किसी घर को दर्शा रही थी?
समीर वापस उस घर के संग्रहालय में जाता है जहां उसे उस किताब का दूसरा भाग मिलता है जिसमें लिखा था कि श्रापित परिवार मे सिर्फ उस घर के खून के सदस्य नहीं थे उस घर में रहने वाला हर इंसान श्रापित था। एक सूखा पेड़, एक सूखी नदी सूरज की रोशनी ना होती कभी। वो श्रापित घर जो धंस गया, उस जमीन के नीचे बस गया।
इन किताबों में हर बात घुमा फिरा कर, मुहावरों में क्यों लिखी है? क्या इसे किसी से छुपा कर रखा गया है? जब बूढ़ी औरत के पास ये किताब थी तो जरूर उसे पता होगा कि इसका मतलब क्या है? समीर किताब के आखिरी पन्ने पर देखता है जिस पर हाथ से लिखा था, कविता और मुहावरे जिंदा दिली से समझ आते हैं, उन्हें क्या समझ जो मौत के सहारे जिंदा हो।
समीर को अब समझ आया कि इस साये को मुहावरे और कविताएं समझ नहीं आती शायद इसलिए जितनी बार भी डॉक्टर रवि समीर से मिले उन्होंने हर बार घुमा फिरा कर ही बात की। इसका मतलब साफ था वो साया डॉक्टर रवि को सुन रहा था। समीर ने ठंडा पानी पिया और उन मुहावरों को सुलझाने में लग गया।
उसने सबसे पहले डॉक्टर रवि की कही बात को अपनी डायरी में लिखा और इसका मतलब समझने में लग गया।
वो हो सकता है जहां कहीं भी मन है , पर जुड़ जाए उस बंधन से जब जो इक बार , ना हिल सके जब तक उसके हिस्से वो तन है।
समीर ने एक एक शब्द को तोड़ तोड़ कर पढ़ा और इस मुहावरे का अर्थ समझ लिया और फिर अगले शुक्रवार का इंतजार करने लगा। उस शुक्रवार की शाम फिर से अंधेरा छा गया। गलियां, सड़क चौराहे सब वीरान हो गए सबके घर मे खिड़कियाँ और दरवाज़े बंद हो गए यही सही समय था समीर के निकलने का क्यूंकि जैसा डॉक्टर रवि के मुहावरे से समझ आया कि वो जहां भी उसका मन करे जा सकता है पर एक बार अगर अथर्व के शरीर से जुड़ गया तो फिर वो साया वहाँ से हिल नहीं सकता जब तक उसका काम पूरा ना हो। इस समय अगर समीर उस सुरंग मे जाता है तो उसे नक्शे का पूरा पता मिल सकता है क्यूंकि साया वहाँ नहीं होगा। समीर जैसे ही उस तरफ बढ़ने लगा, उसे दूर उस साये की आवाज सुनाई देने लगी। जैसे उसने अथर्व को जकड़ लिया हो। जैसे जैसे वो उस सुरंग के पास पहुंचता है वो आवाज धीमी होने लगती है। सुरंग मे घुसते ही समीर को फिर से शुक्रवार की सारी बातें याद आने लगती है जिससे वो बहुत परेशान हो उठता है और उस सुरंग में एक जगह बैठ कर खुद को संभालता है। फिर थोड़ी देर बाद हिम्मत जुटा कर अपनी लालटेन से वो निशान देखता है जिसका प्रतिबिंब दूसरी दीवार पर पड़ रहा था और दिखता है एक परिवार , उनका घर जो दो पहाडियों के बीच कहीं खाई में है। एक पेड़ है जो सूख चुका है, एक नदी सी है जिसमें सिर्फ सूखे कंकड़ नजर आ रहे हैं। समीर आगे देखता है वो किताब जिसकी आकृति उस दीवार पर बनी है और उस किताब के अंदर कैद है ये काला साया।
वो जल्दी से वहाँ से निकलता है और बूढ़ी औरत के घर की ओर बढ़ता है। सब कुछ सुनसान है एक डरावना सा सन्नाटा है उस जगह। वो जैसे ही चौक तक पहुंचता है तो सामने जो देखता है उसको अपनी आँखों पर यकीन नहीं होता। अथर्व बेहोश था, उसे अपने कंधे पर उठाए डॉक्टर रवि कोटी पहाड़ी की ओर जा रहे थे। किसी इंसान के शरीर के टुकड़े जमीन पर पड़े थे जिसे काले रंग के कुछ मोटे कीड़े कपड़ा सहित खाए जा रहे थे और कुछ ही पलों में वो सड़क साफ हो गयी। समीर के पैर ठंडी हवाओं की वजह से जम से गए है और उसे अपने सामने बिजली के खंबे में दिखा वही निशान।
क्या समीर खोज पाएगा इस परिवार को जो दो पहाड़ों के बीच किसी सूखी नदी के पास रहता है? क्या समीर उस नक्शे को ले पाएगा जिसमें उस किताब तक पहुँचने का रास्ता है? अगर समीर को नक्शा मिल भी गया तो क्या किताब ढूँढ पाना इतना आसान होगा? क्या और कोई बात भी है जो बूढ़ी औरत समीर को बताना चाहती थी पर उसके पहले ही साये नें उसकी जान ले ली ?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
No reviews available for this chapter.