लालच इंसान से क्या क्या नहीं कराती और जब बात अमरत्व की हो तो इंसान के अंदर सबसे पहले इंसानियत मर जाती है। जिसने भी इस साये को यहां बुलाया है, शायद वो इसके अंजाम से वाकिफ ना हो क्योंकि जो साया रूह को कैद कर सकता है, उसकी दी हुई जिंदगी पर कोई कब तक जी सकता है? अब तक समीर ने जो भी देखा, सुना और समझा वो सब बस शुरुआत थी। जिस साये के बारे में बूढ़ी औरत ने समीर को बताया था वो तो पुरानी बात थी पर अभी जो साया इस शहर पर मंडरा रहा है उस खतरे का अंदाज़ा लगा पाना मुश्किल था।
सुरंग से लौटकर समीर अपने होटल के कमरे में आया और सो गया। जो पत्थर उसने गले में पहन रखा है वो उसे साये से महफूज़ तो रख सकता है लेकिन कब तक? समीर ने इस साये से अब दुश्मनी मोल ले ली थी जिसका अंजाम है तबाही।
अगली सुबह सूरज नहीं निकला। कोटी जंगल और उसके पास काले बादल मंडरा रहे थे। उस चमकती बिजली और बादलों की आवाज में उस साये की चीख साफ सुनी जा सकती थी। साये का ये क्रोधित रूप देख लोग अपने घरों में दुबक कर बैठे थे।
समीर उठा और उसने वो टार्च उठा कर घड़ी की तरफ जलाई। सुबह के 7 बज रहे थे और अंधेरा ऐसा मानो आधी रात हो। समीर देखता है कि वो टार्च, जिसे ले कर वो सुरंग की तरफ गया था, उसका कांच भी टूटा हुआ है और उसपर भी वो निशान है। अब वो निशान हर जगह समीर की आँखों से दिखने लगा था।
एक बात और थी, समीर को उस सुरंग में शुक्रवार की सारी बातें याद थी पर अब वापस आ के वो बातें धुंधली सी पड़ गई।
शायद समीर उन दर्दनाक हादसों को याद भी नहीं करना चाहता। समीर को यह भी पता था कि अब ये होटल उसके लिए सुरक्षित नहीं है इसलिए वो निकल पड़ा इस शहर के इतिहास को खंगालने क्योंकि नक्शा खोजने के लिए उस लिपि को समझना जरूरी है जो उस सुरंग की दीवारों पर है और लिपि को समझने के लिए उस जगह का इतिहास जानना जरूरी है।
जैसे ही समीर अपने होटल से बाहर कदम बढ़ाता है एक तेज़ हवा का झोंका उसे रोकता है, जैसे किसी खतरे की चेतावनी हो। समीर को अब किसी भी खतरे का डर नहीं क्योंकि जब वो छैल आया था तब उसे गायब हो रहे tourists का पता लगाना था। अब उसका मकसद है इस साये को रोकना वरना ये मौत का खूनी खेल यूँ ही चलता रहेगा। अपनी टूटी टॉर्च की लाइट के सहारे समीर उस बूढ़ी औरत की दुकान पर पहुंचता है जिसके बाहर उस ने उसके घर की चाबी टांगी थी।
उस बूढ़ी औरत का घर जहां ऐतिहासिक, पौराणिक और प्राचीन कहानियों का संग्रह है समीर को सबसे सही जगह लगी। बूढ़ी औरत के मरने के बाद वो घर खाली था जिसे अब समीर अपना ठिकाना बनाने वाला था।
जैसे ही वह उस चाबी को उठा कर पलटता है, उसे डॉक्टर रवि डरे हुए से खड़े दिखाई दिए।
समीर ने उनसे पूछा..
समीर - डॉक्टर रवि आप? इतने खराब मौसम में नीचे कैसे आए? और क्यूँ आए?
रवि - समीर, वो अथर्व की तबीयत ठीक ही नहीं हो रही है... मैंने सारी अंग्रेजी दवाइयां आजमा ली। इस दुकान में एक बूढ़ी औरत रहती है उसके पास एक पहाड़ी बूटी है... अगर वो मिल जाए तो शायद अथर्व..
समीर - डॉक्टर रवि मैं माफी चाहूंगा पर वो बूढ़ी औरत अब इस दुनिया में नहीं रही। उनका देहांत हो गया और मैंने अपने हाथों से उनका संस्कार किया था कल..
समीर की ये बात सुन के डॉक्टर रवि के पांव कांपने लगे। जैसे रवि को अंदाजा हो गया था कि अब तबाही का आगाज हो चुका है। डॉक्टर रवि की मजबूरी देख समीर दुकान का ताला उस चाबी से खोलकर अंदर बढ़ता है। उसके पीछे पीछे डॉक्टर रवि भी जाते हैं।
रवि - समीर आप उस बूढ़ी औरत को कैसे जानते हैं?
समीर - जानते तो आप भी बहुत कुछ हैं डॉक्टर साहब पर अभी जानने समझने के लिए मेरे पास और भी बहुत कुछ है और समय बहुत कम। आप नाम बताइए उस बूटी का जो आपको चाहिए।
रवि - जटामासी! शायद उधर उस डब्बे में है।
अगले कुछ ही पलों में डॉक्टर रवि उस बूटी को लिये समीर से नजरे चुराकर वहाँ से निकल जाते है। बेटे को खो देने का डर उनकी आँखों में साफ़ झलक रहा था। रवि के जाते ही समीर उस कमरे में जाता है जहां पौराणिक और प्राचीन किताबों का संग्रहालय है।
समीर एक एक कर के बहुत सी किताबें पढ़ता है जिसमें छैल का इतिहास दर्ज था, उसे अचानक छैल पुराण नाम की एक किताब दिखती है जिसमें जिक्र था किसी ऐसे देवता का जिसका नाम कभी समीर ने इस शहर में या कहीं और नहीं सुना। उस किताब में लिखा था कि छैल शहर जिस धरती पर बसा है वहाँ कभी क्षम देव की पूजा होती थी। पौराणिक कहानियों के अनुसार क्षम देव नकारात्मक ऊर्जा के नाशक थे। हर बुरी शक्तियों से उस पावन धरती को बचाते थे। सन 1900 के आस-पास किसी अंग्रेज viceroy ने इस प्रथा पर रोक लगा दी और इसे जादू टोना बता कर उस मंदिर को हमेशा के लिए नष्ट कर दिया। कहानी के अनुसार उसके बाद शहर में लोगों की अचानक मौत होने लगी और लोग ये जगह छोड़ कर भागने लगे। कहा जाता है कि जो लोग यहां से भागे वो भी ज़िन्दा ना बच पाए। कुछ समय बीता और किसी तपस्वी ने इस पहाड़ी को एक सूत से बांध कर क्षम देव की आराधना ाम क्षमवाल रखा। बाद में इसे छैल के नाम से जाना गया। इस किताब के अनुसार आज भी उस मंदिर के अवशेष इस जमीन पर हैं जहां उनकी शक्तियां छुपी हुई हैं।
समीर ने सही समझा - वो सुरंग जो कभी अंग्रेजों ने बनाई थी उस मंदिर के अवशेष वहीं होंगे। वहीं वो जगह हो सकती है जहां इस साये की शक्तियां भी काम नहीं करती। समीर ने अगले तीन दिनों तक उस किताब को ढूँढने की कोशिश की जिसकी मदद से उस सुरंग में लिखी लिपि को समझा जा सके। आज गुरुवार था और समीर के पास बस आज का दिन है, कल किसी अनहोनी को होने से रोकने के लिए। वो जल्दी से उस घर से निकलकर कोटी पहाड़ी पर चला गया और एक एक टूरिस्ट को रोक कर वहाँ से जाने को कहने लगा। जो इंसान तीन दिन से ठीक से सोया ना हो, कुछ हफ्तों से अपनी दाढ़ी और बाल ना बनाए हो और इतने दिनों में दिल दहला देने वाले पल को बार बार देखा और महसूस किया हो तो उसका हुलिया देख उसपर भला कौन यकीन करेगा?
टूरिस्ट समीर को पागल समझ उसकी बात पर हंसकर आगे निकल गये। समीर की हालत ऐसी थी कि वो अब चिल्लाते चिल्लाते रोने लगा,
समीर - रुको... चले जाओ यहां से.. तुम अपनी जान गंवा दोगे... मेरी बात मान लो... वो तुम्हें नहीं छोड़ेगा... भगवान के लिए मेरी बात मान लो…
समीर का शरीर इतना थक चुका था कि वो कोटी जंगल की पगडंडियों पर गिर कर बेहोश हो गया।
कई घंटे बीत चुके थे, शाम हो गयी, सूरज ढलने ही वाला था। ठंडी हवाएं तेज़ होती जा रही थीं और समीर अब भी बेहोश पड़ा था। तभी अचानक समीर की आँख खुलती है और वो देखता है डॉक्टर रवि सामने खड़े हैं। डॉक्टर रवि हैरानी भरी निगाह से एक टक समीर की छाती की तरफ देख रहे थे। समीर की माला जो बेहोशी की वजह से उसकी कमीज़ से बाहर लटक रही थी डॉक्टर रवि के मन में बहुत से सवाल खड़े कर रही थी। डॉक्टर रवि ने बिना समय गंवाए उसको नीचे तक छोड़ा और घर जा कर सो जाने को कहा।
समीर को ये बात समझ आ गई कि रवि ने उसके गले में वो पत्थर देख लिया है लेकिन वो इतना थका हुआ था कि उसने घर पहुंचते ही खिड़की दरवाज़े बंद किए
अगली सुबह शुक्रवार की थी। वो मौत का तमाशा आज भी होगा। समीर सुबह उठ कर अपने गले में वो पत्थर की माला देखता है और उसे सुरक्षित देख उसकी जान में जान आती है। वो बाहर निकल एक छोटी सी चाय की दुकान पर चाय पीने चला गया और सोचने लगा कि आज इस मुसीबत को कैसे टाला जाए?
उसने फैसला किया कि आज वो इस साये का सीधा सामना करेगा और किसी भी टूरिस्ट को मरने नहीं देगा।
शाम हुई और शहर में फिर से सन्नाटा हो गया।
समीर जो कोटी पहाड़ी पर डॉक्टर रवि के घर के पास खड़ा था, बाहर बैठे अथर्व को गौर से देख रहा था। अथर्व की आँखों में डर साफ नजर आ रहा था जैसे उसे पता हो कि सूरज ढलते ही उसके साथ क्या होने वाला है। अथर्व मन ही मन कुछ बुदबुदा रहा था जैसे भगवान से अपनी जिंदगी की भीख मांग रहा हो। उसका शरीर कांप रहा था। तभी अचानक तेज़ हवा चलती है जंगल से..... हवा की आवाज़ इतनी डरावनी थी कि गरज रहे हों। उस जंगल से तेज़ हवाओं के साथ एक काला धुआं निकलता है जो अथर्व की तरफ बढ़ता है। समीर को इससे पहले कुछ सूझे वो धुआं अथर्व को पीछे से जकड़ लेता है। अथर्व के पैर हवा में उठ जाते है और उसकी आंख पूरी काली हो जाती है। अथर्व चीखता है पर ये अवाज़ उसकी नहीं। एक भारी भरकम मोटी चीख जिससे किसी की रूह दहल उठे। अथर्व धीरे धीरे जंगल के किनारे आगे की ओर बढ़ने लगता है, इस अवाज़ को थोड़ी दूर एक टेंट के बाहर आग जला कर खाना बना रहा tourist सुनता है और वो उसकी तरफ दौड़ने लगता है। उसे अथर्व की तरफ आता देख समीर भी अथर्व की तरफ दौड़ता है लेकिन तेज़ हवा के झोंके उसे पीछे ढकेल देते हैं। समीर उन हवाओं से लड़ते हुए अथर्व को छूने ही वाला होता है कि अथर्व उसकी तरफ पलट कर जोर से चीख़ता है।
ये चीख़ इतनी तेज़ और भयानक थी कि समीर के कान सुन्न पड़ जाते हैं। हवाओं ने समीर के चारों ओर एक घेरा बना लिया था जिससे बाहर निकल पाना नामुमकिन था। वो tourist जो भागता हुआ आ रहा था अब अथर्व के सामने हवा में तैरने लगता है। अथर्व की चीख एकदम से बंद हो जाती है। उस tourist के हाथ और पैर एक एक कर के उल्टे होने लगते हैं। उसकी टूटती हड्डियों की अवाज़ साफ सुनाई देने लगती है। वो tourist चीख़ तो रहा था पर कोई आवाज़ नहीं आ रही। अगले ही पल उसकी छाती के दो टुकड़े हो जाते हैं और उसकी आत्मा उसके शरीर से निकलकर उस साये के अंदर चली जाती है। ये सब समीर बेबसी के साथ देख रहा था। उसकी आँखों से गुस्सा पानी की तरह बहने लगता है।
क्या इस साये से लड़ पाने में समीर कामयाब होगा? कहाँ है वो किताब जिसके सहारे समीर उस सुरंग पर लिखे नक्शे को समझ पाएगा? ऐसी क्या मजबूरी है की डॉक्टर रवि अथर्व को बचाने के लिए कुछ नहीं कर पा रहे?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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