मित्रों और हमारी पोटेंशियल गर्लफ्रेंडों!

हमारे गाँव बखेड़ा में हमें हमेशा यह सिखाया गया है कि कोई भी काम बड़ा या छोटा नहीं होता। बड़ी या छोटी सिर्फ इंसान की सोच होती है। खेत में काम करने से लेकर मजदूरी करने तक गाँव में हर काम की इज्जत की जाती है क्योंकि जब तक उस काम से घर का चूल्हा जल रहा है तब तक कोई काम बुरा नहीं है। शहर में ऐसा नहीं होता क्योंकि शहर में आपका काम ही समाज में आपका स्टेटस तय करता है। जितनी ज्यादा इनकम उतनी ज्यादा समाज में इज्जत। फिर आप चाहे सिनेमा हॉल के बाहर टिकट ही क्यों न ब्लैक करते हों, समाज में एक पढ़े-लिखे इंजीनियर से ज्यादा इज्जत होगी आपकी क्योंकि 2-4 लाख के पैकेज वाले आदमी को दिवाली पर छुट्टी नहीं मिलती समाज में इज्जत कहां से मिलेगी? वो ज़माने गए जब सूट बूट और टाई लगाकर ऑफिस जाने वाले व्हाइट कॉलर जॉब वालों को शहर में इज्जत मिलती थी। अब तो इन सबको कॉर्पोरेट मजदूर बोला जाता है। इज्जत तो होती है अब उन लोगों की जो ठेला लगाकर तेलखा ऑमलेट बेचते हैं या फिर तहलका ऑमलेट बनाने वाले का फूड ब्लॉगर बनकर इंटरव्यू लेते हैं क्योंकि बिना किसी डिग्री और व्हाइट कॉलर जॉब के भी इनका आइटीआर बड़ी-बड़ी कंपनियों में काम कर रहे कॉर्पोरेट मजदूरों से ज्यादा बनता है। इस पैसे की दौड़ ने ही शहर के कामों में से इज्जत घटा दी है। अब तो जिसके पास पैसा है उसी की इज्जत होती है। इसलिए तो शहर वालों को काम छोटे और बड़े लगते हैं वहीं गाँव में आज भी सभी तरह के काम करने वाले लोग एक ही ठेके पर बैठकर पूरे भाईचारे के साथ दारू पीते हैं। गाँव में ठेका भले ही एक हो पर छोटे-बड़े का भेदभाव नहीं है, पर यह बात अब शौर्य को कौन समझाए जिसे ललिता दीदी की दुकान पर छोटू बनके काम करना किसी अपमान से कम नहीं लग रहा। वैसे तो शौर्य ने कभी अपने डैडी की बड़ी-बड़ी कम्पनियों के आलीशान ऑफिस में भी काम नहीं किया था पर आज उसे गाँव की इस छोटी सी दुकान में छोटू लगना बहुत छोटा काम लग रहा है, पर उसे क्या लगता है इससे ललिता दीदी को कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उन्हें तो बस अपने काम से मतलब है।

ललिता: छोटू! यह आटे की बोरियाँ उठाकर गोदाम में रख दो।

शौर्य: मेरा नाम छोटू नहीं शौर्य है! मुझे बार-बार चोटू बुलाना बंद करो और दुकान के पीछे एक 4 बाय 4 के कमरे को गोदाम नहीं कहते ललिता जी।
ललिता: लिसन छोटू विद ओपेन योर ईयर्स। माय शॉप माय प्रॉपर्टी नॉट योर डैडीज़ प्रॉपर्टी। आई कॉल व्हाट आई लाइक टू। यू डू नॉट स्पीक टू मी व्हाट डू आई कॉल व्हाट एंड व्हाट डू आई कॉल व्हाट नॉट।

ललिता दीदी की टूटी-फूटी इंग्लिश सुनने के बाद शौर्य ने रोते हुए हाथ जोड़ लिए।
शौर्य: ललिता जी आपको मुझसे जो काम करवाना है करवा लो.. मुझे चोटू, नौकर.. जो कहना है कह लो बट फॉर गॉड्स सेक इंग्लिश मत बोलो। आपकी इंग्लिश सुन-सुनके मेरी खुद की इंग्लिश खराब हो जाएगी।
ललिता: ठीक है अब ये आटे की बोरियाँ उठाकर गोदाम में रखो और दारू की बोतल सामने सजा दो। अंधेरा होने वाला है बेवड़े आते ही होंगे।

ललिता दीदी की दुकान गाँव की ऑल इन वन शॉप है जहाँ राशन, दवा, दारू सब मिलता है। शहर में भी एक दुकान में इतना कुछ नहीं मिलता। यह देखकर शौर्य हैरान था। उसने दारू की बोतलें सामने सजा दी और अंधेरा होते ही गाँव के सभी बेवड़े दारू खरीदने आ गए। गाँव के बेवड़ों में दारू के लिए इतना पैशन देखकर शौर्य के दिमाग में एक आइडिया चमका और उसने एक स्कीम ऐलान कर दी…
शौर्य: दो दारू की बोतलों पर एक चिप्स का पैकेट मुफ्त।

शौर्य की स्कीम सुनते ही सारे बेवड़ों में एक खुशी लहर दौड़ गई और वो सब बेवड़े जो रोज़ सिर्फ एक ही दारू की बोतल खरीदते थे उन्होंने फ्री के चखने के चक्कर में दो-दो बोतलें खरीद लीं। कुछ ने तो चखने के लालच में आकर 4-4 बोतलें भी खरीद लीं। जितनी दारू की बोतलें ललिता दीदी एक हफ्ते में बेचती थीं शौर्य ने एक रात में ही बेच डाली। शौर्य की कमाल की स्कीम देखकर ललिता दीदी शौर्य से बहुत इम्प्रेस हुईं। सारा दिन शौर्य ने ललिता दीदी का बोझ बहुत बढ़ाया था और उनका नुकसान भी करवाया था, पर उसकी इस एक स्कीम से ललिता दीदी के पूरे नुकसान की भरपाई भी हो गई और उन्हें प्रोफिट भी हुआ।
ललिता: अरे वाह शौर्य! तुम्हारी इस स्कीम ने तो कहर ही ढा दिया! पहले कभी भी मेरी इतनी दारू नहीं बिकि थी! गज़ब कर दिए तुम तो!
शौर्य: गज़ब तो आपकी ये दुकान है ललिता जी। एक ही छत के नीचे आप राशन, दवा और दारू सब बेच रही हैं। पता है लंदन में भी ऐसे सुपरमार्केट नहीं हैं जहाँ ये सब कुछ एक छत के नीचे मिलता हो।
ललिता: ये तो इस गाँव की मजबूरी है। अब इतने छोटे गाँव में ना तो कोई केमिस्ट वाला आता है दुकान खोलने और ना ही कोई और धंधा करने आता है। इसीलिए मुझे ही सब बेचना पड़ता है।
शौर्य: वेल डन यू आर अ परफेक्ट एग्जांपल ऑफ आपदा को अवसर में कैसे बदले! यू ट्रेड ऑपॉर्च्युनिटी फॉर डिसास्टर।"

अंग्रेजी में अपनी तारीफ सुनकर ललिता दीदी बहुत खुश हुईं। शौर्य की सज़ा के 24 घंटे पूरे हो गए और ललिता दीदी ने दुकान बंद कर दी।
ललिता: मुबारक हो शौर्य, तुमने अपनी सज़ा बहुत अच्छे से पूरी कर ली।

ललिता दीदी शौर्य के काम से इतना खुश हुईं कि उन्होंने शौर्य को उसकी एक दिन की मजदूरी के लिए पूरे 100 रुपये इनाम दिए।  शौर्य ने लेने से मना कर दिया।
शौर्य: ललिता जी इसकी कोई ज़रूरत नहीं है। मेरी सज़ा पूरी हो गई मेरे लिए इतना ही काफी है।

दरअसल शौर्य को ललिता दीदी से दिहाड़ी लेने में शर्म महसूस हो रही थी। करोड़ों की प्रॉपर्टी के मालिक के लिए 100 रुपये की दिहाड़ी... उसे बहुत शर्मनाक लग रही थी, पर ललिता दीदी भोलेपन में उसके चेहरे पर शर्मिंदगी पढ़ नहीं पाईं। ऊपर से रात भी बहुत हो गई थी और मेरे गाँव बखेड़ा में कोई स्ट्रीट लाइट भी नहीं है।
ललिता: नहीं नहीं..  आई फोर्स.. तुम्हें ये पैसे लेने ही पड़ेंगे। ये तुम्हारे हक की कमाई है। हम गाँव वाले पैसों से गरीब जरूर हैं पर इमान के बहुत अमीर हैं। हम कभी किसी की हक की कमाई नहीं रखते। दिस इज़ योर फंडामेंटल राइट। कीप इट।

यह कहकर ललिता दीदी ने 100 रुपये का नोट शौर्य की हथेली में थमा दिया।
शौर्य: …पर ललिता जी मैं इतने पैसों का क्या करूंगा?
ललिता: जाके अपने दादा जी को दे देना। उन्हें खुशी होगी और फिर वो बताएंगे करेंगे कि इस पैसे का क्या करना है!

शौर्य ललिता दीदी से ज्यादा बहस नहीं करना चाहता था इसलिए उसने न चाहते हुए भी वो पैसे रख लिए और अपने दादा जी के घर की ओर निकल गया। घर पहुँचते ही उसने वो 100 रुपये अपने दादा जी को थमा दिए।
हरीश: ई का है?
शौर्य: दादा जी ये पैसे मुझे ललिता दीदी ने दिए हैं उनकी दुकान पर एक दिन काम करने के लिए।

ये सुनते ही हरीश दद्दा की आँखें नम हो गईं और उनका दिल भर आया, क्योंकि जो बात शौर्य को इतनी देर से समझ नहीं आई वो हरीश दद्दा एक पल में समझ गए। ये उनके पोते की पहली कमाई है। जो उसने खुद मेहनत करके कमाई है और इसके लिए उसे अपने बाप दादा के नाम का सहारा भी नहीं लेना पड़ा। एक पोता जब मेहनत करके अपनी पहली कमाई अपने दादा जी के हाथ में रखता है तो उसके दादा जी के लिए इससे ज्यादा खुशी का पल जीवन में और कोई नहीं होता। इन 100 रुपयों की कीमत हरीश दद्दा के लिए करोड़ों से भी ज्यादा है। ये देखकर हरीश दद्दा समझ गए कि उनका पोता अब फाइनली सही रास्ते पर चल पड़ा है और धीरे-धीरे वो उसे सुधार ही देंगे। हरीश दद्दा का मन तो कर रहा है कि वो अपने पोते को कस के गले लगा लें पर वो जानते हैं कि रास्ता अभी भी बहुत लंबा है इसलिए उन्होंने अपने इमोशन्स को कंट्रोल किया और वापस से एक सख्त दादा जी वाला रूप धारण कर लिया।

हरीश: हाँ तो ठीक है। सजा मिली थी। पूरी करनी थी.. कर ली। अब आगे से ऐसी गलती मत करना और एक दिन काम का कर लिया इसका मतलब ई नहीं कि अब बाकी दिन आराम करते रहियो.. सुस्ताएँ की  जरूरत नहीं है। ई गाँव है तुम्हरा सहर नहीं। अब चलो रोटी तैयार है.. खाना खा लो।

अपने दादा जी के ताने खाने के बाद शौर्य ने पेट भरके खाना खाया। शौर्य जबसे गाँव आया था ये उसका पहला प्रॉपर भोजन था। हरीश दद्दा आज अपने पोते से इतना खुश थे कि उन्होंने उसके लिए मीठा भी बनाया पर ये बात उसे जाहिर नहीं होने दी कि कहीं शौर्य सिर पे ना चढ़ जाए। शौर्य के छत पे जाते ही हरीश दद्दा ने फोन निकाला और शहर अपने बेटे को फोन मिलाया। नितिन चचा अपने पिता जी का कॉल आता देख सोच में पड़ गए, फिर कॉल उठाते ही बोले, “प्रणाम पिताजी। कैसे हैं आप? और शौर्य कैसा है? गाँव में अडजस्ट हो गया?”

हरीश: अरे ई तुम अपना बेटा भेजे हो या कोई जंगली जानवर? पालतू जानवर मा भी ऊ से ज्यादा अकल होत है, पर धीरे-धीरे लाइन पे ला रहे हैं हम। तुम बिगाड़े हो, अब हम सुधारेंगे।

नितिन चचा बोले, “तभी तो आपके पास भेजा है पिताजी। मेरे हाथ से तो बाहर निकल चुका है। बस अब आप ही हैं जो इसकी लगाम खींच सकते हैं।”

हरीश: फिकर मत करो। लगाम कसके बांधी हुई है। वैसे तुम्हें एक खुशखबरी देने के खातिर फोन किए रहे हैं। आज तुम्हारे लाड़ साहब अपनी मेहनत से पूरे 100 रुपये कमाए हैं।

यह सुनते ही नितिन चचा के चेहरे पर मुस्कान और आँखों में आँसू आ गए। अपने बेटे की पहली कमाई सुनकर उनका दिल गार्डन-गार्डन हो गया। उनके लिए ये 100 रुपये उनके कमाए हुए करोड़ों से कहीं ज्यादा वैल्यू रखते हैं। इमोशनल होकर वो बोले, “पिताजी ये खबर सुनाकर तो आपने मेरी सारी टेंशन ही दूर कर दी। अब मुझे यकीन है कि शौर्य गाँव से सुधर कर ही वापस लौटेगा। आपने सोचा क्या करेंगे उस 100 रुपये का?”

हरीश: वही जो तुमरी पहली कमाई के साथ किए थे। अपनी कुल देवी का प्रसाद चढ़ाएंगे। उन्हीं का आसीर्वाद है कि हमरा बउआ अब सही रास्ते पर निकल पड़ा है, पर पहले एक जरूरी काम निपटाना है।

यह कहकर हरीश दद्दा ने फोन काट दिया और छत पर शौर्य के साथ सोने चले गए।
हरीश: देर रात तक फोन ना चलाना.. कल सुबह जल्दी उठकर दूसरे गाँव जाना है हमें।
शौर्य: दूसरे गाँव? क्यों दादा जी?
हरीश: इसका जवाब बउआ कल ही मिलेगा।

शौर्य को सस्पेंस में छोड़कर हरीश दद्दा खर्राटे मारते हुए सो गए। 

आखिर क्या काम है हरीश दद्दा को दूसरे गाँव में? 

क्या नया ट्विस्ट आने वाला है शौर्य की जिंदगी में? 

क्या शौर्य टाइम से सुबह उठ पाएगा? 

सब कुछ बताएंगे महाराज.. गाँववालों के अगले चैप्टर में!

 

 

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