मित्रों और हमारी पोटेंशियल गर्लफ्रेंडों!

अंग्रेजों ने हमसे बहुत कुछ लूटा और बदले में हमें बस एक चीज़ दी.. सॉरी! जब से ये सॉरी शब्द हम भारतवासियों की ज़िंदगी में आया है लोगों के अंदर गलती करने का खौफ ही खत्म हो गया है। पहले लोग गलती करने से पहले डरते थे.. दो बार सोचते थे.. पर अब लोग बेखौफ गलती करते हैं क्योंकि उन्हें पता है आखिर में एक सॉरी बोलकर सारा मामला रफादफा हो जाएगा। इस चक्कर में लोग अपनी गलती से सीख लेना ही भूल गए हैं और वही गलती रिपीट किए जा रहे हैं जैसे कि वो इनकी कोई प्लेलिस्ट हो। इसलिए ज़रूरी है कि गलती करने के बाद गलती की सज़ा भी मिले ताकि इंसान वही गलती दुबारा रिपीट ना करे और अगली बार एक नई फ्रेश गलती करे। महाराज शहर और गाँव की सज़ा में ज़मीन आसमान का फर्क होता है। अब अगर आप शहर में गलती करोगे तो उसकी सज़ा डिसाइड करने के लिए पुलिस है.. कानून है। आप गाँव में गलती करोगे तो उसकी सज़ा सिर्फ गाँव वाले ही डिसाइड कर सकते हैं। शहर में सज़ा से बचने के बहुत तरीके होते हैं क्योंकि हमारे लीगल सिस्टम में बहुत लूपहोल्स हैं और ऊपर से जिसकी जेब में पैसा हो वो तो अपने हिसाब से कानून को तोड़ मरोड़ भी सकता है। गाँववालों का ईमान इतना बिकाऊ नहीं है कि कोई भी उसे पैसे से खरीद ले। गाँव में पैसा आपको सज़ा से नहीं बचा सकता। गाँव में बस जात ही है आपकी लाइफलाइन और इस सब में कोई लूपहोल का भी स्कोप नहीं होता। क्योंकि जब एक बार आपको पेड़ से जिंदा लटका दिया तो फिर लाश बनके आप क्या ही कर लेंगे! पर हमारा गाँव बखेडा इन सब जात-पात से ऊपर है क्योंकि यहाँ के सभी फैसले हरिश दद्दा ही लेते हैं जो कि यहाँ के संविधान हैं और फिलहाल तो वो अपने पोते शौर्य को ललिता दीदी से बदतमीज़ी करने के लिए सज़ा देने वाले हैं।

शौर्य: …पर दादा जी ललिता जी ने मुझे माफ तो कर ही दिया। अब किस बात की सज़ा?

हरीश: ललिता के माफ करने से का होता है! गाँव की भी कोई परंपरा.. रीति रिवाज है। अगर सबको माफ़ी मांगने से माफ़ करने लगे तो फिर तो गाँववाले भी तुम सहर वालन की तरह किसी का मर्डर करके सॉरी बोलके निकल जाएं। नहीं नहीं, सजा देनी तो बहुत ज़रूरी है।

शौर्य को यकीन नहीं हो रहा था कि सोसाइटी में एक्ज़ाम्पल सेट करने के लिए उसके दादा जी उसी की बलि चढ़ाने वाले हैं। उसने हरिश दद्दा से डरते डरते पूछा…

शौर्य: क्या सज़ा देने वाले हैं आप मुझे दादा जी?

हरीश: भप्प बुड़बक! सजा हम काहे देंगे! सजा तो वो देई जिसके साथ तुम गलत किए हो।

यह सुनते ही सब गाँववालों की आँखें ललिता दीदी की ओर मुड़ी। हरिश दद्दा तो ललिता दीदी को फ्री हिट पर फुल टॉस दे दिए हैं। देखते हैं ललिता दीदी अब बॉल कहाँ मारती हैं!

हरीश: ललिता बिटिया हम इंसाफ मा विश्वास रखत हैं। ई मत सोचना कि ए हमरा पोता है तो ए खा मुर्गा बना के छोटी सी सजा देने से काम चल जाए। तुमका फ्री हैंड है.. कड़ी से कड़ी सजा दो.. हम तो कहते हैं कि तुम ए खे पछवाड़े मा झाड़ू घुसा के मोर बना के पूरे गाँव मा नचवाओ।

अपने दादा जी के बोल सुनकर शौर्य की आँखों में एक डर छा गया। उसके सगे दादा जी इतनी दर्दनाक सजा का सझेशन दे रहे थे तो ललिता दीदी जिनसे पहली मुलाकात में ही उसने झगड़ा कर लिया वो तो क्या क्या सजा देंगी। शौर्य ललिता दीदी की ओर देखने लगा। उनके चेहरे की मुस्कान बता रही थी कि उनके दिमाग़ में कुछ ख़ुराफ़ाती और दर्दनाक सजा का ख्याल चल रहा है। यह देखकर शौर्य और डर गया।

हरीश: बताओ ललिता बिटिया का सजा दे हो तुम ई गोबरचट्टे का?

ललिता दीदी ने थोड़ी देर सोचने के बाद कहा…

ललिता: हरिश चचा मैं सोच रही थी कि आपके पोते को दरियाई घोड़ा बना कर पूरे गाँव में घुमाऊं या फिर नेवले की खाल पहनाकर सांप के बिल में छोड़ आऊं, पर फिर सोचा कि इस सब में मेरा क्या फायदा! मेरा फायदा तो तब है जब इसकी सजा से मेरे नाज़ुक कंधों का भार कम हो और सारा गाँव जानता है कि मेरे नाज़ुक कंधों पर तो बस मेरी दुकान का ही भार है। तो आपके पोते को सजा के तौर पर पूरे वन डे के लिए मेरी दुकान पर मेरा नौकर बन के काम करना पड़ेगा। दो सर्वेंट सर्विस इन माय शॉप वन फुल डे इज़ योर जेल टाइम।

ललिता दीदी की सजा सुनकर शौर्य का सारा संसार मानो उलट-पुलट हो गया हो। उसने जोर जोर से ना में सिर हिलाया और कहा…

शौर्य: नो वे! दादा जी मैं इस दुकान पे काम नहीं कर सकता.. इस दुकान पे तो एसी भी नहीं है।

हरीश: चुप बुड़बक! सजा मा चॉइस नहीं होत। ऊ का कहत हैं तुम्हरी अंग्रेजी मा.. प्रिज़ोनर्स कांट बी चूज़र्स।

शौर्य: दादा जी आप समझ नहीं रहे हैं.. मैं अमेरिका से एमबीए करके आया हूँ। मैं डैड के बड़े बड़े आलीशान ऑफिसों में काम करता हूँ.. मैं इस छोटी सी दुकान पे छोटू नहीं लग सकता।

हरीश: मारेंगे लप्पड़ सोलह दूनी आठ से आठ दूनी चौंसठ हो जाईयो। तुम्हरा बाप हमका तुम्हरी पूरी कुंडली दिया है.. अमेरिका से पढ़ाई बीच मा छोड़के आए हो तुम हमें सब पता है और अपने पिताजी के ऑफिस का तो तुमने आज तक मुँह भी नहीं देखा और ये दुकान मा नौकर लगने को छोटा काम समझ रहे हो? अरे जब आज तक कोई काम किया ही नहीं तो तुमका का पता की कौन सा काम छोटा है और कौन सा बड़ा!

ये सुनकर शिवांगी समेत सारा गाँव शौर्य पर हँसने लग गया। शौर्य को बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई पर दोस्तों है तो ये सत्य वचन ही।

शौर्य: दादा जी आप कुछ भी कह लीजिए पर मैं इस दुकान पर नौकर नहीं लगूँगा।

तुम्हरी मर्जी। चलो फिर घर चलो और अपना बोरिया बिस्तर बांधो। शहर की बस 10 मिनट मा निकलन वाली होई।

शहर जाने का नाम सुनते ही शौर्य ने तुरंत ललिता दीदी की दुकान पर छोटू लगने के लिए हाँ कर दिया। ये सुनकर ललिता दीदी के चेहरे पर बड़ी मुस्कान आई।

ललिता: नाउ कम कैमल माउंटेन डाउन अंडर। 

ललिता दीदी की दुकान पर नौकर का काम करने से ज्यादा दुख शौर्य को एक पूरा दिन ललिता दीदी की टूटी फूटी अंग्रेजी बर्दाश्त करने का है। अगले दिन सुबह शौर्य आराम से सोया हुआ था कि तभी हरिश दद्दा ने उसके मुँह पर पानी की बाल्टी उछाल दी। शौर्य हैरान हो उठ गया। उसने देखा कि अभी भी अंधेरा ही था। ना तो सूरज उगा था और ना ही मुर्गे ने बांग दी थी। उसने रोते हुए हरिश दद्दा से पूछा…

शौर्य: दादा जी अभी तो मुर्गा भी सो रहा है। तो फिर आपने मुझे क्यों उठा दिया है?

हरीश: बुड़बक.. मुर्गे के काम का आज पहला दिन नहीं है। तुम्हारा है। ई लो दुकान का चाबी.. ललिता बिटिया रात को दी थी। अब जाओ और ललिता की दुकान खोलो और साफ सफाई चालू करो। ललिता के आने से पहले डर लगता है कि घर चलो नहीं तो बैंड बजेगी। 

शौर्य: व्हाट! दादा जी मैं कोई झाड़ू पोछे वाली बाई थोड़ी ना हूँ जो जाकर उसकी दुकान साफ करूंगा!

हरीश: बउआ तुम भूल रहे हो कि अगले 24 घंटे तक तुम ललिता के छोटू हो और ललिता बिटिया जो भी कहे, तुमका करें का पड़ी और अउ अगर नहीं किए तो लप्पड़ की बारिश कर तुमका सच मा हाइट से छोटू बना देब।

अपने दादा जी के थपड़ों की बारिश के डर से शौर्य तुरंत खाट से उठा, नहला उसे दद्दा जी ने दिया था तो वो ब्रश करके दुकान की ओर निकलने लगा। तभी उसे हरिश दद्दा ने झाड़ू और पोछे की बाल्टी पकड़ाई और काम के पहले दिन के लिए दही शक्कर खिला कर घर से रवाना किया। शौर्य जिसने कभी शहर में अपने आलीशान बंगले में एक धूल की लकीर भी साफ नहीं की थी वो आज गाँव की छोटी सी दुकान में झाड़ू पोचा मार रहा है और कमाल की बात तो ये महराज की इसे झाड़ू पोचा भी मारना नहीं आता क्योंकि इसने झाड़ू से पहले गीला पोचा मार दिया और फिर फूँक मार के दुकान के सुखने का इंतजार करने लगा। इतनी देर में ललिता दीदी आयीं और दुकान में कदम रखते ही वो गीले फर्श पर फिसल कर गिर गई। उन्हें शौर्य पर बहुत गुस्सा चढ़ा और उन्होंने शौर्य को पूरी दुकान में राइट टू लेफ्ट और लेफ्ट टू राइट लोटपोट करवाके पूरे गीले फर्श को सुखाया। फर्श तो सूख गया पर शौर्य पूरा गीला हो गया। थोड़ी देर में दुकान पर ग्राहक आने लगे और शौर्य की मुसीबतें और बढ़ गईं। कोई शौर्य से अरहर की दाल माँगता तो शौर्य उसे उरद की दाल पकड़ाता। कोई शौर्य से सुपारी माँगता तो आरवा उसे गुटका थमा देता। और पैसे का तो हिसाब ही मत पूछो।

ललिता: तेरे दादा जी सही कहते हैं। तू सच में ही गोबरचट्टा है। तुझे मैंने छोटू बनाया था ताकि मेरा बोझ कम हो तूने तो मेरा बोझ और बढ़ा दिया है। तुझे डेढ़ और ढाई में फर्क नहीं पता?

शौर्य: यार फर्क जानना ही क्यों है? आप यूपीआई क्यों नहीं लगवा लेती? जिसके जितने पैसे होंगे वो सीधा यूपीआई कर जाएगा।

ललिता: ए बौड़म! पहली बात तो इस गाँव में मोबाइल का नेटवर्क ढंग से नहीं आता है, UPI के लिए इंटरनेट क्या तुम्हारा डोनल्ड ट्रम्पवा देगा? हर कोई यूपीआई करने लग गया तो छुट्टे के बदले में जो मैं टॉफी बेच के पैसा कमाती हूँ.. मेरे उस स्कैम का तो सत्यनाश हो जाएगा ना!

शौर्य: तो फिर मैं क्या करूँ?

ललिता: तू एक काम कर दुकान के बाहर जितने लोग चाय पी रहे हैं। सबको सुट्टा, गुटका, जर्दा पूछके आ। चाय के साथ कुछ और भी तो कमाई हो!

शौर्य: वेट अ मिनिट! यू वांट कि मैं लोगो को नशे सर्व करूँ?

ललिता: करेक्ट, और ऐसे इंग्लिश में ही करना.. ये गाँव वाले ज्यादा पैसे देंगे!

शौर्य जिसे शहर के बड़े बड़े क्लबों में दारू ऑर्डर करने की आदत है आज वो खुद वेटर की तरह गाँव वालों को गुटका, बीड़ी और जर्दा सर्व कर रहा है! मैंने शहर आके लोगों को रैग्स टू रिचेस बनते बहुत बार सुना है पर ये पहली बार है जब एक मालिक गाँव आकर नौकर बन गया है।

ललिता: ए छोटू डू फास्ट। मोर वर्क रेमेनिंग। डू नॉट हैव वन 24 आवर डे।

ललिता दीदी की खराब अंग्रेजी सुनकर शौर्य को अब हँसी नहीं खुद पर तरस आ रहा है। 

क्या शौर्य ललिता दीदी का नौकर बनके पूरे 24 घंटे गुजार पाएगा? 

क्या होगा अगर शौर्य अपनी सजा पूरी नहीं कर पाया तो? 

क्या शौर्य की अंग्रेजी सुनकर गाँव वाले बीड़ी को सिगार समझ लेंगे? 

सब कुछ बताएंगे महराज.. गाँव वालों के अगले चैप्टर में!

 

 

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