मित्रों और हमारी पोटेंशियल गर्लफ्रेंडों!

गलती तो इंसान से कहीं भी हो सकती है... चाहे इंसान गलती शहर में करे या फिर गाँव में। शहर में गलती करने के बाद लोग झगड़ा करते हैं, मारपीट होती है, फिर एफआईआर होती है, पर माफ़ी कोई नहीं माँगता क्योंकि शहर वाले लोग एक-दूसरे को माफ़ नहीं करते... वो मूव ऑन करते हैं। गाँव में अभी तक मूव ऑन का कॉन्सेप्ट आया नहीं है। गाँव में अगर कोई गलती करता है तो या तो उसे पंचायत में माफ़ी माँगनी पड़ती है नहीं तो सीधा खानदानी दुश्मनी होती है, जो कि पीढ़ियों तक चलती है।
गाँव और शहर दोनों जगह ये बात सिखाई जाती है कि माफ़ करने वाला हमेशा बड़ा होता है, पर माफ़ी माँगने वाला छोटा हो जाता है ये बात कोई नहीं सिखाता। ये कड़वा सच सबको पहले से ही पता होता है, इसलिए कोई माफ़ी नहीं माँगता।
हमारे बॉस को ही ले लीजिए। अब महाराज, अगर आपने ब्रा वाले क्लाइंट को गलती से मर्दों के कच्छों वाला कैम्पेन पिच कर दिया तो सॉरी बोलके गलती कबूल कर लीजिए। सबके सामने हमें गालियाँ देने की क्या ज़रूरत थी? हमने तो उस कैम्पेन पर काम भी नहीं किया था। फ्री फंड में ही गालियाँ खाईं और क्लाइंट ने जो हमें कबीर सिंह और ऐनिमल के नाम पर टॉक्सिक मर्द घोषित किया, वो अलग।
इस पर हमारे बॉस की अकड़ देखिए, न तो हमसे सॉरी बोला, ऊपर से हमारा सुट्टा ब्रेक कैंसल करके क्लाइंट को सॉरी बोलने के लिए हमसे ही फेमिनिज़म पर एस्से लिखवाया।
हमारे गाँव बखेड़ा में एक कहावत है कि झुकता तो इंसान ही है... अकड़ तो मुर्दों में होती है। अम्मा कसम, जिस दिन शहर छोड़कर गाँव गए, इसकी कब्र खोदकर जाएंगे!
फिलहाल तो शौर्य की कब्र खुद रही है, क्योंकि खेतों के बीचों-बीच उसने शिवांगी को अपने दादा जी के साथ बात करते हुए देख लिया है और उसके दादा जी के गुस्से वाले एक्सप्रेशन साफ़ बयान कर रहे हैं कि शिवांगी ने हरीश दद्दा को ललिता दीदी की दुकान वाली घटना पूरी डीटेल में बता दी है।
शौर्य समझ गया है कि उसकी शामत बिना ओटीपी के ही आने वाली है।

हरीश: ए बउआ... तनिक इहाँ तो आओ।

खेत के दूसरे कोने में बैठा शौर्य दूर से ही चिल्लाया...

शौर्य: नहीं दादा जी, मैं यहीं कंफर्टेबल हूँ।

हरीश: देखो, तीन तक गिनेंगे, या तो तुम इहाँ आ जाओ, नहीं तो हम खड़े-खड़े लप्पड़ मारेंगे, लखनऊ के चौक में टप्पा खाके सीधा कानपुर के घंटाघर पे बजोगे। एक...

इससे पहले हरीश दद्दा दो गिनते, शौर्य भागता हुआ हरीश दद्दा और शिवांगी के पास आ गया। शौर्य की आँखों में डर साफ़ झलक रहा था। और हरीश दद्दा की आँखों में गुस्सा उबल रहा था।

हरीश: ई आज सुबह तुमको इतना देर काहे लगा ललिता की दुकान मा?

शौर्य हिचकिचाते हुए बोला...

शौर्य: वो दादा जी, दरअसल दुकान थोड़ी लेट खोली थी न ललिता जी ने, इसलिए टाइम लग गया।

हरीश: पर तुम तो सुबह कहे थे कि दुकान मा भीड़ बहुत राहे, एई लिए टाइम लग गवा...

शौर्य अपने ही झूठ के जाल में फँस गया।

शौर्य: ओह... हाँ दादा जी, इसलिए तो भीड़ बहुत थी, क्योंकि दुकान लेट खुली न। सब लोग दुकान के बाहर खड़े इंतज़ार कर रहे थे। बड़ी लंबी लाइन थी। मुझे भी लाइन में वेट करना पड़ा, इसलिए टाइम लग गया।

हरीश: अच्छा-अच्छा, लाइन लगी राहे, ललिता की दुकान के बाहर... और गाँव वाले लाइन मा खड़े राहें? सही कहे न हम?

शौर्य: करेक्ट दादा जी।

हरीश: ऐसा है बउआ, हमरे गाँव वाले तो आज तक कभी वोटिंग की लाइन मा नहीं लगे, तो तुम इन्हें कैसे लाइन मा खड़े देख लिए!

शौर्य: दादा जी, आपको अपने पोते की बातों पर यकीन नहीं है?

हरीश: ऐसा है बउआ, हमरे लप्पड़ को न गाँव का पॉलीग्राफ टेस्ट कहा जात है। एक ही लप्पड़ मा गुनहगार अपना सारा जुर्म क़बूल कर लेत है। दोबारा पूछेंगे... इस बार शराफ़त से बताना, वरना मारेंगे लप्पड़, जिसकी आवाज़ दूर तक गूँजेगी पर तुमका सुनाई नहीं देई... ढोल फाड़ देंगे तुम्हारे कान का। समझे?

शौर्य ने डर के मारे हाँ में मुँड़ी हिलाई।

हरीश: तो बताओ आज सुबह तुमका इत्ता देर काहे लगा ललिता की दुकान मा?

शौर्य: वो दादा जी मेरा झगड़ा हो गया था ललिता जी से।

हरीश: जानत हैं। अभी-अभी शिवांगी बताई तुम्हरी कुत्ती करतूत। सहर मा कांड किए वो कम है का जो गाँव वालन से भी लड़ाइयाँ करत फिर रहे हो। तुम्हरे चक्कर मा कहीं हमका भी गाँव ना छोड़ना पड़ जाए।

शिवांगी: हरिश दद्दा आप गुस्सा मत होइए। मैंने इसे ललिता दीदी की दुकान पर सबक सिखा दिया था। मुझे पता नहीं था कि ये आपका पोता है। वरना मैं थोड़ा नरमी से पेश आती।

हरीश: अरे ई तुम नरमी ही दिखाई हो। हम होते ना, तो पहिले एखे मास का गूंड के बनाते ऊ की लिट्टी और हड्डीयन का पीस-पीस के बनाते चोखा और बादाम की चटनी के साथ खा जाते।

यह सुनके शौर्य ने खैर मनाई कि उस वक्त उसके दादा जी ललिता दीदी की दुकान पे नहीं थे।

हरीश: बेईमान! तुमका औरत लोगन का बिलकुल भी इज्जत नहीं है ना?

शौर्य: दादा जी मैं औरतों की बहुत रिस्पेक्ट करता हूँ, पर क्या करूँ वो ललिता जी की इंग्लिश ही इतनी फनी है कि मैं अपनी हंसी रोक ही नहीं पाया।

हरीश: हमें तो तुम्हरी सकल ही जोकर जैसन लगत है.. और तुम्हरी हरकतें देखने की अगर टिकट बेचना सुरू कर दें तो कुछ ही दिनन मा अम्बानी को पीछे छोड़ जाइबे हम। चलता फिरता सर्कस हो तुम, पर हम हंसे का तुमपे? जानती हो शिवांगी बेटी इस गोबरचट्टे को बीज बोना नहीं आवत। ट्रैक्टर चलाने को कहा तो स्टीयरिंग नहीं घूमा। खेतों मा पानी डालने के लिए कहा तो खेत का स्विमिंग पूल बना डाला। अब बताओ गाँव मा कोई का ए खी हरकतन का पता चली, तो लोग कपिल शर्मा छोड़ ए खा ही देखना सुरू कर देंगे।

दोस्तों बड़े बुजुर्ग बेइज्जती करें तो बुरा लगता है पर जब बड़े बुजुर्ग किसी दूसरे के सामने बेइज्जती करें और वो भी शिवांगी जैसी एक जवान खूबसूरत लड़की के सामने.. तो दिल से बुरा लगता है और शर्मिंदगी भी महसूस होती है। जो कि इस वक्त भारी मात्रा में शौर्य को महसूस हो रही है क्योंकि हरिश दद्दा शताब्दी की स्पीड से नॉन-स्टॉप शौर्य की बेइज्जती किए जा रहे हैं।

हरीश: अरे ए से ज्यादा काम के तो हमरे बैल हैं। कम से कम ऊ हल जोतन के काम तो आवत हैं। ए खा तो वो भी नहीं आवत है और पता है शिवांगी बिटिया…

शौर्य: दादा जी बस कीजिए। मामला सॉर्ट हो गया ना। मैंने ललिता जी का मजाक उड़ाया और इस स्कूलटीचर शिवांगी ने मुझे सबक सिखाया.. हिसाब बराबर हो गया.. आगे से ऐसी गलती नहीं करूंगा। आई प्रॉमिस!

शिवांगी: अरे ऐसे कैसे हिसाब बराबर हुआ? तुमने गलती की पर गलती की माफी तो मांगी ही नहीं ललिता दीदी से!

यह सुन के हरिश दद्दा का खून और खौल गया।

हरीश: का कहा! एह बुड़बक, गोबरचट्टा अभी तक ललिता से माफी नहीं मांगा है! अरे कपूत तुमका हमरे ही घर मा जन्म लेना था! तुम्हरी तो आज हम छाती ही चीर देब।

हरिश दद्दा ने शौर्य को मारने के लिए हल उठा लिया, पर शिवांगी ने उन्हें रोक लिया।

शिवांगी: हरिश दद्दा रुक जाइए। इसे मारने से इसकी गलती का पछतावा नहीं होगा और वैसे भी खून लगे हल से खेत नहीं जोतते.. अपशगुन होता है।

अपशगुन वाली बात सुनकर हरिश दद्दा ने हल नीचे रख दिया।

हरीश: सही कह रही हो बिटिया। ई दुश्ट का इतनी आसान मौत नहीं देब। तुमका तो हम अच्छा सबक सिखाई बे लेकिन पहिले चलो और ललिता से अपनी गलती के लिए माफी मांगों।

शौर्य: क्या माफी? और वो भी मैं? दादा जी मैंने आज तक अपने डैड को सॉरी नहीं बोला है।

हरीश: तभी तो तुम्हरे ई लच्छन हैं। आओ आज तुम्हारा सॉरी का उद्घाटन समारोह करते हैं।

शौर्य: नो वे दादा जी। मैं कोई सॉरी वॉरी नहीं बोलने वाला हूँ।

हरीश: देखो बउआ बड़े प्यार से समझा रहे हैं.. या तो ललिता से माफी मांगो नाहीं तो मारेंगे लप्पड़ जुबान ऐसी टेढ़ी हुई जाएगी कि कोई नाम भी पूछी तो मुँह से सॉरी निकली।

हरिश दद्दा के थप्पड़ के डर से शौर्य ने हां में मुंडी हिलाई और अपने दादा जी और शिवांगी के साथ ललिता दीदी की दुकान पर पहुंच गया माफी मांगने।

हरीश: ललिता बिटिया हमरा पोता को तुमसे कुछ कहिना है।

शौर्य ने बड़ी हिम्मत जुटाकर कहा…

शौर्य: ललिता जी आई एम.. 

हरीश: एक मिनिट बउआ.. ऐसान नहीं.. हम कहे थे ना, समारोहन का आयोजन हुईये।

हरिश दद्दा ने आवाज लगाकर पूरे गाँव वालों को इकठ्ठा किया क्योंकि मेरे गाँव बखेड़ा की परंपरा है कि जिल्लत कोई प्राइवेट अफेयर नहीं है जो बंद कमरों के पीछे हो.. ये तो पब्लिकली सबके सामने होनी चाहिए। सारा गाँव शौर्य की माफी का तमाशा देखने के लिए इकठ्ठा हो गया। कोई चने लेकर आया था तो कोई मक्की दे दाने। तो कोई तो तौलिये में अपना साबुन लगा बदन ही लेकर आ गया क्योंकि नहाना धोना तो बाद में होता रहेगा पर एंटरटेनमेंट का ऐसा मौका गाँव में बार-बार नहीं मिलता। जब हरिश दद्दा को यकीन हो गया कि सारा गाँव आ चुका है फिर उन्होंने शौर्य को माफी मांगने के लिए कहा। शौर्य जिसने बड़ी मुश्किल से हिम्मत जुटाई थी माफी मांगने के लिए.. इतनी भीड़ देखकर उसकी सारी हिम्मत टूट गई। उसका मन तो कर रहा था कि वह यहां से भाग जाए पर क्योंकि वह ऑलरेडी शहर से भागकर गाँव आया था तो उसके पास कोई ऑप्शन नहीं था। सब लोग बेताबी से शौर्य की माफी का इंतजार कर रहे थे पर शौर्य चाहकर भी इतने सारे लोगों के सामने माफी मांगने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। तभी उसकी नजर अपने दादा जी पर पड़ी जो कि लप्पड़ मारने के लिए अपना हाथ सेंक रहे थे। उनका गर्मागर्म लप्पड़ इससे पहले शौर्य के मुँह पर पड़ता, शौर्य झट से बोला…

शौर्य: ललिता जी आई एम सॉरी!

शौर्य की माफी सुनकर ललिता दीदी ने उसे माफ कर दिया।

ललिता: इन इंग्लिश यू डिमांड सॉरी। सो आई गिव टू यू। बट नेक्स्ट टाइम डू नॉट रिपीट टेलीकास्ट।

ललिता दीदी की टूटी-फूटी इंग्लिश सुनकर शौर्य की फिर से हंसी निकलने वाली थी,  पर अपने दादा जी के लप्पड़ के डर से उसने अपनी हंसी मुँह में ही निगल ली। शौर्य ने राहत की सांस ली क्योंकि तमाशा खत्म हो चुका था। तभी हरिश दद्दा चिल्लाए…

हरीश: इत्ती बड़ी गलती की बिना सजा के माफी नहीं मिल सकत भाई।

अपने दादा जी के बोल सुनकर शौर्य की हवा टाइट हो गई। 

आखिर क्या सज़ा देने वाले हैं हरिश दद्दा शौर्य को? 

क्या शौर्य ये सजा पूरी कर पाएगा? 

क्या शौर्य को कभी बैल जितनी इज्जत मिलेगी अपने दादा जी से? 

सब कुछ बताएंगे महाराज.. गाँव वालों के अगले चैप्टर में!

 

 

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