शाश्वत उन आँखों की झलक भीड़ में देखकर दंग रह जाता है, और उसके बारे में खुद से सवाल जवाब करने लगता है. महल से कुछ दूर पहले कार ख़राब होने के कारण उसकी नींद टूटती है, और वो जागकर अपने फ़ोन को देखता है। उसकी माँ का मैसेज नोटिफिकेशन उसे दिखता है, जिसमें लिखा होता है कि अपना ख़याल रखना, और सब चीज़ टाइम पर कर लेना, मुझे कॉल भी.
माँ का मैसेज देखने के बाद, शाश्वत की बेचैनी थोड़ी कम होने लगती है. अपने काम को लेकर वो सीरियस होने लगता है, साथ ही अपना अटेंशन पूरा अपने काम पर लगाना शुरू कर देता है. कार जैसे-जैसे महल के नजदीक पहुँचती है, वैसे-वैसे शाश्वत को बांसुरी की धुन सुनाई देने लगती है और वो रूद्र से पूछता है.
शाश्वत : इस गाँव में इतनी अच्छी फ्लूट कौन बजा रहा है?
रुद्र : फ्लूट? आपको अचानक बांसुरी की आवाज़ कहां से आने लगी ?
शाश्वत : आपको सुनाई नहीं दे रहीं है.
रूद्र थोड़ा और ध्यान से सुनने की कोशिश करता है कि तभी उनका ड्राइवर बोलता है.
“भैया वो आज यहां मेला लगा है, वहीँ कहीं पर बज रही होगी।”
ड्राईवर की बात सुनकर रूद्र और शाश्वत इस बात को वहीँ छोड़ देते है, पर उसके बाद भी बांसुरी की धुन शाश्वत को सुनाई देती रहती है. इस बार शाश्वत के दिमाग में ड्राइवर की बात भी चल रही होती है, तो वो इस धुन को अनसुना कर देता है.
थोड़ी ही देर के बाद कार महल के सामने आकर रूकती है. शाश्वत और रूद्र साथ में कार से उतरते हैं. शाश्वत जैसे ही महल को देखता है उसे फिर उस महल की ओर अपना झुकाव सा महसूस होने लगता है. हालाँकि उसने अब तक जितनी भी इमारतों को नया किया है, उन सभी से उसे जुड़ाव रहा हैं.
ऐसा होना आम सी बात है. जब काम अपनी पसंद का हो तब काम से इश्क होने ही लगता है. शाश्वत की ज़िन्दगी में काम की दस्तक तो हो चुकी थी, अब बारी थी इश्क की आहट की। जिसके लिए किस्मत ने उसे महल तक लाकर खड़ा कर दिया था. शाश्वत महल की बनावट बड़े गौर से देख रहा था. उस वक़्त उसके मन में सिर्फ एक ही बात चल रही थी “इस महल को एक नया रूप देने की”. शाश्वत इसके नए डिजाइंस के बारे में सोच ही रहा था कि रूद्र ने उसे आवाज़ दी.
रुद्र : शाश्वत जी इधर आइये, आपको कुछ दिखाना है .
शाश्वत : जी दिखाइये ?
रुद्र : ये हैं इस महल की पुरानी डिजाईन.
शाश्वत : इसे आप महल ही बनाना चाहते हैं?
रुद्र : हाँ शाश्वत जी, मेरा मानना है कि जब किसी भी इमारत को नया बनाना हो, तब उसमें उसके पुरानेपन की खुशबू रखनी चाहिए.
शाश्वत : लगता है मैं आपसे बहुत कुछ सीखकर वापस जाने वाला हूँ.
रुद्र : शाश्वत जी आप हमसे नहीं, आप बनारस से बहुत कुछ सीख कर जायेंगे। हमारी काशी नगरी है ही ऐसी, जो यहां आता है सत्य से परिचित हुए बिना नहीं जाता.
काशी नगरी .... ये दोनों शब्द एक साथ सुनकर. शाश्वत को फिर से आभास हुआ कि उसने इन शब्दों को पहले भी कई बार सुना है. शाश्वत अब तक कुदरत के सारे इशारे नहीं समझ पा रहा था, क्योंकि उसके साथ एक के बाद एक ऐसा हो रहा था. सभी घटनाओं को लेकर वो एक माला में अपने खयाल पिरो पाता, उससे पहले ही रूद्र ने शाश्वत को उसके ख़यालों से बाहर निकाला और कहा,
रुद्र : शाश्वत जी आप भूतों पर या भटकती आत्माओं पर विश्वास करते हैं?
शाश्वत : नहीं, मुझे इन दोनों ही नामों से ज़्यादा इंसानों से डर लगता है. भूतों का तो फिर भी पता होता है की परेशान करेंगे, पर इंसान तो अचानक से नुकसान पहुंचाते है।
रुद्र : आपकी ये बात भी पते की है, शाश्वत जी। चलिए महल को अंदर चलकर देखते है.
रूद्र और शाश्वत, महल के अन्दर जाते है, महल में घुसते ही, शाश्वत के कदम अपने आप राज भवन हॉल की ओर रुख कर लेते है. शाश्वत को राज भवन की ओर जाता देख रूद्र कुछ नहीं कहता , वो भी महल की बाकी जगहों को देखने लगता है. वहीँ शाश्वत जैसे ही राज भवन हॉल में जाता है. उसे पुराना जंग लगा हवन कुंड दिखता है, जिसका अब सिर्फ ढांचा ही रह गया है. वहीँ पर उसे जले सिकुड़े पर्दे दिखते हैं. महल में धूल की परत जमने के कारण शाश्वत चाहकर भी फ़ैली, बिखरी चीज़ों को हाथ नहीं लगा पाता। वो बस चलता ही जाता है. शाश्वत जैसे ही अपने कदमों को बढ़ाते जाता है। उसके कान हलचल की आवाज से खड़े हो जाते है। उस हलचल को सुनकर वो आगे बढ़ता जाता है, जैसे-जैसे वो बढ़ता है, वैसे- वैसे हलचल भी बढ़ने लगती है। उसे इस हलचल में बस इतना ही सुनाई देता है कि
‘महाराजा वर्मा ने राजकुमार अमर को मृत्यु दण्ड देने का फैसला किया है। आने वाली अमावस्या के दिन राजकुमार अमर को मृत्यु दंड दिया जाएगा.’
शाश्वत इन आवाजों को सुनता है और घबराकर पसीना-पसीना हो जाता है. उसके दिल की धडकनें बढ़ने लगती है, हाथ पाँव कांपने लगते है, वो अपनी जगह से हिल भी नहीं पाता है कि अचानक से खिड़की के बजने की आवाज़ आती है।
ये आवाज़ सुनकर, शाश्वत होश में आता है और देखता हैं की उसकी हालत अब एक दम नॉर्मल हैं. ना तो धडकनें तेज़ है, ना ही माथे पर पसीना है और ना ही कोई बेचैनी है. शाश्वत ने खुद में बेचैनी से चैन वाले शिफ्ट को महसूस किया, तो यकीन नहीं कर पाया की जो कुछ उसने सुना, वो वाकई में सच था या सिर्फ मन का वहम.
इस इंसिडेंट के बाद शाश्वत के मन में सवाल उठने लगे, जिसके जवाब वो अपने होटल में पहुंचकर शांत मन से ढूंढना चाहता था. शाश्वत ने लौटने की सोची और उसने अपने कदम राजभवन की और बढ़ा लिए, जहाँ दूर से उसे रूद्र आते हुए नज़र आ रहे थे…
रुद्र : अरे शाश्वत जी आप कहाँ चले गए थे, हम कब से आवाजें लगा रहे हैं आपको.
शाश्वत : कुछ नहीं इस महल की कंडीशन देखकर, बस यहीं सोच रहा था की यहाँ सदियों पहले क्या हुआ होगा?
रुद्र : राजमहल है शाश्वत जी, यहाँ तो नर्तकियों का नृत्य, बड़े-बड़े व्यापारियों का मेल-मिलाप, युद्ध की नीती और शाही महोत्सव, बस ऐसा ही कुछ हुआ होगा।
शाश्वत : क्या कहां आपने ?
रुद्र : शाही महोत्सव!
शाश्वत ने जैसे ही शाही महोत्सव का नाम सुना, उसे हलकी-हलकी झलकियाँ दिखने लगी.. जैसे बाज़ार का शोर (sfx पुराने समय के बाज़ार की आवाज़ ), ढ़ोल की आवाज़, बहुत सारे लोगों के हंसने की आवाज़ और आखिर में बांसुरी की आवाज़. इस अनुभूति के बाद शाश्वत इस महल की कहानी जानने के लिए और भी उत्सुक हो गया। उसने रूद्र से कहां।
शाश्वत : मुझे इस महल के बारे सब कुछ जानना है .
रुद्र : इतिहास एक दिन में पता नहीं चलता शाश्वत जी। इतिहास के कई राज़ ऐसे होते है, जो पन्नों में शुमार नहीं होते. ऐसे इतिहास को जानने के लिए टटोलना पड़ता है, पुरानी मिट्टी से जुड़े हुए लोगों को. आपको इस महल की कहानी ज़रूर पता चलेगी, बस आपको पुराने लोगों को ढूँढना पड़ेगा।
शाश्वत : इमारतों को नई बनाने से पहले, उनकी कहानियां तलाशना ही तो मेरा काम है, रूद्र जी !
रुद्र : बस फिर आप एक दो दिन में अपने इस काम पर लग सकते हैं। फिलहाल चलिए बाहर चलते है, मैं आपसे इस महल के डिजाइन को लेकर कुछ डिस्कस करना चाहता हूँ.
रूद्र और शाश्वत महल के बाहर पहुँचने लगते है, तो देखते है कि बाहर मौसम ख़राब हो रहा हैं. वो लोग कुछ देर महल के अंदर ही रुकने का फ़ैसला करते हैं. शाश्वत को पता नहीं क्यों मगर उस महल में रूककर अच्छा भी लग रहा था और अजीब भी. इससे पहले की वो अपना एक्सपीरियंस रूद्र के साथ साझा करता, रूद्र बोल पड़ा,
रुद्र : ये महल ज़र्ज़र हो रहा है फिर भी इसमें एक अजीब सा आकर्षण है.
शाश्वत : मैं भी कुछ ऐसा ही सोच रहा था।
रुद्र : मैंने इस महल के कमरे देखें, उन कमरों की बनावट मेरे अब तक के देखे हुए सभी आर्किटेक्चर वंडर्स से अलग है।
शाश्वत : हैरानी की बात तो ये भी है, रूद्र जी कि ये महल सदियों पुराना होते हुए भी पुराना लग नहीं रहा है। मतलब यहां कुछ तो अलग हैं, और वो क्या हैं? मुझे अभी ये पता नहीं।
रुद्र : आपको इस महल की कहानी जाननी हैं ना?
शाश्वत : हाँ बिलकुल!
रुद्र : सोलहवीं सदी की बात है, हुआ यूँ।
रूद्र कहानी शुरू ही करता हैं कि तभी ड्राईवर उन्हें आवाज़ लगता है… “भैया मौसम खुल गया है, चलिए चलते हैं.”
ड्राईवर की आवाज़ सुनते ही, शाश्वत और रूद्र कहानी को शुरू करने से पहले ही ख़त्म कर देते है और तेज़ी से बाहर की ओर चलने लगते है. शाश्वत के कदम जैसे ही महल के दरवाज़े से बाहर निकलने के लिए पड़ते है, तभी उसे एक आवाज़ सुनाई देती है “ मत जाओ, रुक जाओ अमर।”
इस आवाज़ की पुकार में इतना दर्द था कि शाश्वत एक पल को रुक गया, पर फिर जैसे ही गाड़ी के हॉर्न की आवाज़ आने लगी, उसने उस पुकार को अनसुना किया और महल से बाहर निकल आया. महल से बाहर आते ही खुली हवा में उसे अच्छा तो लग रहा था, पर वापस जाते वक़्त, उसका ध्यान बार-बार महल के अंदर उसके साथ घटी घटनाओं पर ही जा रहा था.
बनारस शहर ने पहले ही दिन उसके दिलो-दिमाग को झकझोर के रख दिया था. शाश्वत इतना थक चूका था कि गाड़ी में बैठते ही उसकी आँख एक बार फिर लग गई. शाश्वत ने आँखें बंद की ही थी कि तभी उसे वही पुकार उसे एक बार और सुनाई दी “ रुक जाओ, मत जाओ अमर”
इस आवाज़ को सुनकर शाश्वत की आँखें खुली और वो खिड़की से बाहर देखने लगा. क्या शाश्वत को ये पुकार कभी समझ आएगी ? क्या जल्द ही इस पुकार के पीछे की कहानी उसके सामने आने वाली थी? क्या रूद्र ये पुकार सुनकर अनसुना कर रहा था ?? जानने के लिए पढ़ते रहिए।
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