शाश्वत को महल के अंदर जाने के बाद, अपने पिछले जनम की अनुभूतियाँ होने लगती थीं और आखिर में वहाँ से निकलते वक़्त उसे एक जानी पहचानी आवाज़ की पुकार भी सुनाई दी, जिसे वो नज़रंदाज़ करके चला आता है.  

हम सब भले ही अलग-अलग स्वभाव के व्यक्ति क्यों ना हो? हम सब में एक बात तो आम है और वो यह कि हमें जिस काम को ना करने की हिदायत दी जाए, हम उस काम पर ही अपना ध्यान ज़्यादा लगाते हैं.  

शाश्वत भी यहीं करने की कोशिश कर रहा था. दिनभर की थकान के बाद जब शाश्वत अपने होटल रूम में आया, तो कपड़े चेंज करके फ्रेश होकर अपने बेड पर लेट गया. शाश्वत जब भी थककर अपनी स्पेस में जाता था, तब भी इमारतों के बारे में सोचता ही रहता था कि उसमें यूनिकनेस कैसे डालें ? और ये सोचते-सोचते वह सो जाया करता था. ये पहली बार था जब शाश्वत अपने काम को छोड़कर, किसी और चीज़ के बारे में सोच रहा था और वो चीज़ थी महल, जो ना चाहते हुए भी उसका ध्यान अपनी ओर खींच रहा था।  

शाश्वत शरीर से तो थक ही चुका था, मगर आज पहली बार वो दिमाग से भी थक रहा था. उसके सपनों का इस तरह सामने आना उसके लिए बड़ी बात थी. वो जवाब तो तलाशना चाह रहा था, पर उसे कोई ख़ास सोल्यूशन मिला नहीं, जिससे वो खुद के दिमाग को शांत कर पाए.  

यही सारी बातें सोच-सोचकर वो करवटें बदलता रहा और थोड़ी देर बाद सो गया. शरीर के साथ-साथ जब दिमाग भी थक जाता है, तब वो थोड़ी देर के बाद सोचना बंद कर देता हैं. इसके बाद ना तो सपने दिखाता है ना हकीकत से वाकिफ कराता है. बस शून्य सी अवस्था में इंसान को गहरी नींद सुला देता है. इस वक़्त शाश्वत भी गहरी नींद में ही सो चूका था।  

अगली सुबह जब वो उठा तो काफी हल्का महसूस कर रहा था. सही कहते है जब मन भारी हो जाए सबकुछ छोड़कर एक नींद ले लेना चाहिए। कम से कम परिस्थिति अपने अनुकूल रखने की ताक़त मिल जाती है. शाश्वत की आँख जैसे ही खुली उसने सबसे पहले फ़ोन चेक किया.  

ये आज का दौर भी ना! जहाँ पहले के ज़माने में लोग अपनी आँखें खोलने से पहले ऊपरवाले को धन्यवाद किया करते थे ,वहीँ आजकल हम सब आँख खुलते ही फ़ोन तलाशा करते हैं.  

शाश्वत ने जैसे ही अपना फ़ोन उठाया, उसमें माँ का मैसेज आया हुआ था  “उठते साथ मुझे विडियो कॉल करना”. माँ का मैसेज देखकर , शाश्वत हंस पड़ा और माँ को तुरंत विडियो कॉल किया।  

माँ: तूने कल मुझको कॉल क्यों नहीं किया?  

शाश्वत : बिज़ी हो गया था माँ…

माँ: बाबा विश्वनाथ के दर्शन अच्छे से तो किये ना, और मेरा दिया हुआ चढ़ावा! वो चढ़ाया ना तूने?

शाश्वत : हाँ माँ! जैसा कहां था कर दिया था। जो दिया था चढ़ा दिया था.

माँ:  गुड बॉय, अच्छा सुनना!

शाश्वत : सुन रहा हूँ..

माँ: वो निहारिका...  

शाश्वत : माँ अभी ये सब बात नहीं।  

माँ: पहले मेरी बात तो सुन फिर कुछ बोलना। तुम्हारी  जनरेशन की प्रॉब्लम ही यहीं है कि सुनते कम हो, रियेक्ट ज़्यादा करते हो.  

शाश्वत : अच्छा ठीक है, अब बोलो भी क्या बात है ?  

माँ: निहारिका के घरवालों ने तेरे और निहारिका के रिश्ते को आगे बढ़ाने की बात ख़तम कर दी है। वो लोग निहारिका के लिए दूसरा लड़का भी देख रहें हैं. ये डिसिशन उनके लिए इम्पोर्टेन्ट है।  

शाश्वत :ओह! अच्छा!!!  ठीक है। माँ मैं अभी कॉल रखता हूँ... काम हैं।  

शाश्वत के मन को चुभ गया था, निहारिका के घरवालों का ऐसा करना। यही कारण भी था की उसने जैसे ही ये बात सुनी काम का बहाना बनाकर कॉल रख दिया. शाश्वत उस वक़्त निहारिका से बात करना चाहता था, पर ये सोचकर रुक गया कि आखिर किस हक से वो उससे सवाल करेगा.  

शाश्वत के सपनों में आती उन आँखों ने शाश्वत को कभी निहारिका की आँखों में देखने ही नहीं दिया.  यही सोचकर शाश्वत पीछे हट गया, और निहारिका से बात नहीं करने की ठानी. कुछ देर बाद शाश्वत भी इस चीज़ को भूल गया और अपने दिनचर्या में लग गया.  

पहले फ्रेश हुआ और फॉर अ चेंज आज जूस की जगह, चाय पीने होटल से कुछ दूर, ठेले पर चला गया. देश दुनिया में क्या हो रहा है, किस राजनेता की बातों में कितनी सच्चाई हैं, आज निफ्टी प्लस में हैं या माइनस में, किस कंपनी के शेयर्स आज प्रॉफिट में रहेंगे, ये सारी बातें, एक छोटे से चाय के ठेले या फिर टपरी पर सुनने को मिल जाती है.  

शाश्वत भी उसी ठेले में ऐसा माहौल देखने चला गया. मगर उसे क्या मालूम था कि उसकी  मुलाक़ात फिर उस बूढ़े नौकर से होगी जो उससे कहेगा  “तो तुम मिल आये”  

शाश्वत: मैं किस्से मिलूँगा बाबा ?  

वहीँ जिसने तुम्हें यहाँ तक बुलाया है।  

शाश्वत :  देखिये आप बुज़ुर्ग है इसलिए मैं चुप हूँ !

ऐसा कहकर शाश्वत वहाँ से चला गया. शाश्वत के जाते ही बूढ़े नौकर ने कहां  

“मुझे तो चुप करा लोगे बेटा, मगर अपनी किस्मत को कैसे चुप कराओगे।”

शाश्वत अपने होटल रूम पहुंचते ही ऑफिस के लिए रेडी होने लगता है. अचानक उसे रूद्र जी की कही बात याद आती है कि अगर इतिहास जानना है, तो पुरानी मिट्टी से जुड़े पुराने लोगो को ढूंढना होगा(रूद्र की आवाज़ में ).  

शाश्वत अपने तैयार होने की स्पीड बढ़ाता है और इस बार वो खुद बूढ़े नौकर से बात करने के लिए उनके पास जाता है. बूढ़ा नौकर देखकर समझ जाता  है कि शाश्वत उनसे क्या बात करना चाहता है, फिर भी वो शाश्वत के कहने का इंतज़ार करते है.

शाश्वत: मैं जब से आया हूँ, आप मुझसे  सिर्फ एक ही बात कह रहे हैं, कि किसी ने मुझे बुलाया है.

तुम तो आज के बच्चे हो, तुम्हारे लिए तो ये सब बातें एक मज़ाक है।  

शाश्वत: मुझे माफ़ कर दीजिये, आपसे ऐसे चिढ़ के बात नहीं करनी चाहिए थी, पर क्या आप मुझे उस महल की कहानी के बारे में बता सकते हैं, जो यहाँ से 30 किमी दूर है?  

उस बुड़े आदमी ने खीज के बोला “पूछो क्या पूछना चाहते हो ?”

शाश्वत: यहीं की वहाँ कोई रहता है क्या ? कल बहुत सी आवाजें आ रही थीं।  

“खाली इमारतों में खामोशियों का शोर बहुत होता है, आप ये बताओ किस तरह की आवाजें थी वो?” बूढ़े आदमी ने शाश्वत से पूछा।  

शाश्वत: जैसे पहले के लोग आर्डर देते थे वैसी ही। 

तो राजा सदियों बाद भी राजा ही हैं। 

शाश्वत: जी! आपने कुछ कहा?  

 मैं नहीं कहूँगा तुमसे कुछ, तुमसे जो कहना है वो ही कहेगी। बुड़े आदमी की इस बात ने शाश्वत को परेशान कर दिया? उसने चौक कर पूछा, 

शाश्वत:: कौन ?  

बूढ़ा नौकर अपनी बात पूरी करने ही वाला रहता है कि शाश्वत के फ़ोन में रूद्र का कॉल आ जाता है, और वो बूढ़े नौकर की बात सुने बिना ही निकल जाता है. शाश्वत जब कार में बैठ के वहाँ से निकाल जाता है, तब उसे याद आता हैं कि बूढ़ा नौकर उसे कुछ बता रहा था , जिसे वो बिना सुने ही आ गया.  

रास्ते भर शाश्वत की जिज्ञासा बढ़ती ही जा रही थी. वो हर वक़्त बस यहीं दिमाग लगता कि वो  बूढ़ा नौकर आख़िर उससे क्या कहना चाहता था? महल का ऐसा कौन सा राज़ है, जो उसकी सोच से परे है. इन सब ख़यालों में घिरे शाश्वत को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करें ? कैसे जवाब ढूंढे? की तभी उसे रूद्र की बातें याद आई. वो कहावत है ना “डूबते को तिनके का सहारा काफी है”. शाश्वत को याद आया की रूद्र उसे उस महल की कहानी बताने वाला था. शाश्वत ऑफिस पहुंचते ही सीधा रूद्र के केबिन में गया और कहां-  

शाश्वत: आपका समय मिल सकता हैं।  

रुद्र: अपने अतिथि के लिए तो पूरा समय है हमारे पास।  

शाश्वत: आपने कल महल की कहानी नहीं सुनाई थी।  

रुद्र: महल की कहानी .. हाँ याद आया उस महल में कुछ ख़ास हैं, नहीं बस खाली होने के कारण वहाँ नशेड़ियों को छोड़कर कोई नहीं जाता है. हमें उसे नया रूप देते वक़्त इस बात का भी ध्यान रखना होगा.  

शाश्वत : ओह तो ये बात हैं! ना जाने क्या-क्या सोचने लग गया था.  

रूद्र की बातें सुनकर, शाश्वत को यकीन हो गया कि उसके साथ बीती शाम जो हुआ वो महज़ एक मज़ाक था. जिसके बाद शाश्वत ने राहत की सांस ली और अपने काम में लग गया. शाश्वत अपने लैपटॉप में मेल के ज़रिये, लंदन में बॉस को सारी अपडेट दे ही रहा था । उसे अचानक फिर से वहीँ पुकार सुनाई दी, जो उससे कह रहीं थी — “मत जाओ, रुक जाओ अमर”

शाश्वत ने जैसे ही ये आवाज़ सुनी, उसने एक बार में अपना लैपटॉप बंद किया और बैठ गया. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था, आख़िर उसके साथ ये क्या हो रहा है। लाख कोशिशों के बाद भी उसे जवाब नहीं मिल रहें थे। शायद एक रास्ता मिल गया था,  वो बूढ़ा नौकर! जो उसे उस महल की कहानियाँ सुनाने वाला था.  

शाश्वत ने ये तय किया कि जैसे ही वो आज शाम को ऑफिस से अपने होटल जाएगा , वो सबसे पहले उस बूढ़े नौकर को ढूंढ कर उससे बात करेगा। अब देखना ये है की क्या वो बूढ़ा नौकर मिलेगा शाश्वत को ? या किस्मत फिर  लेकर आएगी शाश्वत की ज़िन्दगी में नया मोड़। क्या होगा आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए। 

     

 

 

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