शाश्वत को किसी के पुकारने की आवाज़, बनारस आने के बाद से साफ-साफ सुनाई लगी थी। एक दिन ऑफिस में काम करते समय भी यही होता है और वह काम करते-करते रुक जाता है। इसके बाद उसके मन में सवालों का पहाड़ खड़ा हो जाता है।  

शाश्वत के लिए बनारस बिल्कुल नया शहर था, जहाँ वह किसी को जानता भी नहीं था, तो भला उसके सवालों के जवाब उसे यहाँ कौन देता? कौन था वह व्यक्ति, जो शाश्वत के साथ हो रही घटनाओं की गुत्थी सुलझा सकता था? कोई कितना भी आगे क्यों न बढ़ जाए, उसकी ज़िंदगी का एक रहस्यमयी कल उसका पीछा कभी नहीं छोड़ता है। वह मन के एक कोने में जोंक की तरह चिपक कर रह जाता है, जिसे केवल जवाबों का नमक डालकर ही छुड़ाया जा सकता है।

हम किसी से भी जीतें या हारें, मगर हर हाल में हमारा खुद से जीतना ज़रूरी है। शाश्वत जितना दूसरों का दिल जीतना जानता था, उतना ही अपने मन को काबू में करना भी जानता था। उसके मन में गूंजती आवाज़ें, सपनों में दिखती आँखें, बाँसुरी की बजती धुन, और बनारस पहुँचते ही उसके सामने आता वह चेहरा। इन सबके बीच उसे एक अजीब सा जुड़ाव महसूस होने लगा था, जो उसके लिए पहेली बन चुका था। शाश्वत इन अलग-अलग टुकड़ों को एक साथ टेबल पर रख कर उनकी गुत्थी सुलझाना चाहता था, पर मजबूर था।

शाश्वत अपनी कहानी में डूब ही होता है कि अचानक उसके फोन में मैसेज का नोटिफिकेशन आया । मैसेज रुद्र त्रिपाठी का था, जिसमें लिखा था, “वी आर नॉट गोईंग टू विज़िट द साइट टूडै, एज़ आई हेव प्लैन्ड अ टीम मीटिंग फॉर यू.” रुद्र का मैसेज देखकर शाश्वत को अपने बनारस आने का मकसद याद आया और एक बार फिर उसने अपने सवालों की पोटली में गांठ मार के अपने मन में रख लिया।  

ऑफिस के लिए निकलने से पहले, शाश्वत ने अपनी माँ को रूटीन मैसेज ड्रॉप किया, जिसमें लिखा था, "मैंने ब्रेकफास्ट कर लिया है, पर आपके हाथ के खाने की याद आ रही है।"  

वैसे हम कितने भी बड़े क्यों न हो जाएँ, माँ के लिए हम हमेशा वही बच्चे रहते हैं, जिन्हें उन्होंने पैदा किया, अपने हाथों से खिलाया है और अच्छे संस्कारों के साथ पाला है। शाश्वत का मैसेज देखकर उसकी माँ ने हार्ट वाला इमोजी भेजा, जिसे देखकर शाश्वत भी मुस्कुरा पड़ा। उसकी माँ भी धीरे-धीरे सिख रही थी इस सदी के मैसेज करने के तरीके।  

हम कभी माँ की सोच और उनके दौर को पूरी तरह समझ नहीं पाते, इसलिए उनकी तरह काम भी नहीं कर पाते... मगर माँ, अपने बच्चों के लिए हर हद पार कर जाती हैं। उनके लिए यह नई टेक्नोलॉजी सीखना भी कोई बड़ी बात नहीं होती। शाश्वत ने भी अपनी माँ के भेजे मैसेज पर रिएक्ट किया और होटल से बाहर आ गया।

होटल से बाहर निकलते वक्त उसकी आँखें किसी को ढूंढ रही थीं। वह ढूंढ रहा था उस बूढ़े नौकर को, जो पिछले कुछ दिनों में दो बार उससे टकरा चुका था। बूढ़े नौकर को देखने के लिए शाश्वत ने जानबूझकर अपने कदम धीमे कर रखे थे, लेकिन उसकी यह कोशिश नाकाम रही। वो बूढ़ा नौकर आज उसे कहीं नहीं दिखा और फिर वो बिना समय गंवाए कार में बैठ गया। चलती गाड़ी से वो बनारस की अनोखी ज़िंदगी नाप रहा था, तभी ड्राइवर ने कहा… अरे शाश्वत बाबू, पान खाइयेगा ?    

शाश्वत : नहीं भईया मैं पान नहीं खाता हूँ.  

ड्राइवर ने शाश्वत के ज्ञान पर प्रकाश डालते हुए कहा “शाश्वत बाबू हमारे बनारस की तो जान है पान। हमारे अमिताभ बच्चन साहब खुद कहीते है... खई के पान बनारस वाला खुल जाए बंद अकल का ताला....”

इस बात पर दोनों हँसते है, फिर ड्राईवर शाश्वत से पूछता हैं .  

“अच्छा शाश्वत बाबू ये बताइए कि आप लोग अपने लंदन में, मैं करके ही बात करते हैं क्या ?”

शाश्वत : मैं समझा नहीं...  

ड्राइवर ने कहा “हमारा कहने का मतलब है कि आप जब भी जवाब देते हैं, तो कहते है! मैं नहीं खाता, मैं नहीं जानता, आपको मैं बोलते वक़्त अकेला नहीं लगता. आप एक बार हम बोलकर देखिये, आपको अपनापन लगने लगेगा, इससे आप बनारस को भी अपना पायेंगे.”

शाश्वत : मैं कोशिश... नहीं, हम कोशिश करेंगे।  

ड्राइवर ये सुनते ही खुशी के मारे बोल “जे बात, अब देखिएगा आप, कैसे बनारस का भौकाल आप में आता हैं.”  

ड्राइवर, शाश्वत को बनारस के बारे में छोटी-छोटी कहानियाँ सुनाता है। जैसे ही वह बनारस के मंदिरों के बारे में बताना शुरू करता है, वैसे ही ऑफिस आ जाता है। ऑफिस पहुँचने के बाद मंदिरों की कहानी और उनके रहस्य वहीं छूट जाते हैं।

शाश्वत जैसे ही ऑफिस में एंटर करता है, उसे हल्का-हल्का धूप का धुआँ और उसमें मिली कपूर की खुशबू का एहसास फिर एक बात होता है, जिससे उसका मन फिर से शांत और स्थिर होने लगता है। शाश्वत रुद्र के केबिन के सामने पहुँचता है और डोर पर नॉक करता है।

शाश्वत: मे आई कम इन सर?  

रूद्र : येस प्लीज़.  

शाश्वत: इतनी जल्दी टीम मीटिंग, कोई ख़ास रीज़न? 

रूद्र : हाँ रीज़न तो हैं, शाश्वत जी! और वो ये है कि हम आपको हमारे ऑफिस के बेस्ट एम्प्लाइज से मिलवाना चाहते हैं। जो आपको आपके एंटीक क्युरेशन में असिस्ट करेंगे.

शाश्वत : ग्रेट टू हियर देट.  

रूद्र : उन्हें अंदर भेजिए हीरा जी।  

रूद्र के कॉल काटने के बाद तीन एम्प्लॉई एक साथ केबिन के अंदर आते हैं। पहला, प्रतीक जोशी, जो इंजीनियर की पोस्ट पर है। दूसरा, आलम खान, जो साइट इंजीनियर है। तीसरा, जतिन चौबे, जो साइट इंस्पेक्टर है। रूद्र इन तीनों के बारे में शाश्वत को बता ही रहा था कि तभी, केबिन के दरवाज़े पर खड़े होकर किसी ने कहा, "मे आई कम इन, सर?"

इस आवाज़ को सुनते ही केबिन में चल रही बातें रुक गईं, और सबका ध्यान उस आवाज़ की ओर चला गया। रूद्र ने देखा और तुरंत कहा…

रूद्र: ओह लुक हू इज़ हियर, दी ऐस ऑफ़ स्पेड फॉर द “जे कंस्ट्रकशंस”, मिस परीता दीक्षित। हमारे जे कंस्ट्रकशंस की वास्तु कंसलटेंट और एक उम्दा अस्ट्रोलोजर.  

परीता : थैंक्स फॉर योर जेस्चर सर.  

रूद्र : परीता, इनसे मिलिए ये हैं, शाश्वत! एंटीक क्यूरेटर, लंदन से. ये यहाँ हमारे शहर से दूर एक महल को एक नया रूप देने आये हैं.  

परीता : प्लेज़र मीटिंग यू  शाश्वत.  

शाश्वत : सेम हियर गाईज़  

इस फॉर्मल से इंट्रोडक्शन के बाद चारों एम्प्लाइज अपने-अपने काम के लिए निकल रहे थे, तभी रूद्र ने परीता को रोकते हुए कहा,  

रूद्र: परीता, प्लीज़ बी हियर।    

परीता : ओके सर ।  

रूद्र : शाश्वत जी, आपके एंटीक क्युरेशन वाले काम में आपको सबसे ज़्यादा जिनकी ज़रुरत पड़ने वाली है, वो हैं परीता. परीता आपको उस जगह की वाइब्स के बारे में डिटेल्स में बताती जायेगी, जो आपके काम को आसान बनाता जाएगा. साथ ही आपके सितारें कैसे हैं, परीता के साथ रहते-रहते वो भी आपको पता चल जाएगा.

शाश्वत  : इन देट केस, मिस परीता कैसे है मेरे सितारें ?  

परीता : फिलहाल तो बुलंद है, मगर आने वाले कुछ दिन आपके लिए उलझनों वाले हो सकते हैं .  

शाश्वत : आप कहती हैं तो मान लेते है, वरना ऐसी बातें सिर्फ सुनने में ही अच्छी लगती हैं.  

परीता के साथ की शाश्वत की पहली मुलाक़ात, पहेली जैसी थी. शाश्वत को परीता की सादगी और सरलता आकर्षित कर रहीं थी। जो उसे बार-बार मजबूर कर रहीं थी परीता से बात करने के लिए. इसलिए शाश्वत ने शुरुआत उसके नाम के मतलब से की ...  

शाश्वत : परीता.. तुम्हारे नाम का मतलब क्या हैं ?  

परीता : इन इच डायरेक्शन यानि कि हर दिशा में ..  

शाश्वत : नो वंडर आपने, वास्तु कंसलटेंट होना क्यों चुना.  

शाश्वत की बात सुनकर परीता मुस्कुराई और दोनों के बीच झिझक कम होने लगी. अक्सर हम सामने से बात करने की आदत को नज़रंदाज़ करते है. समझ नहीं पाते कि सामने से बात करना, हमारी कमजोरी नहीं बल्कि खूबी हैं. फेक ईगो के चलते हम अपने अन्दर के ही गुणों को मारने लगे हैं.  

शाश्वत ने जैसे ही परीता से बातें करनी शुरू की, परीता भी इन्वॉल्व हो गई। कॉन्वर्सेशन के दौरान वो शाश्वत से लंदन के वर्क कल्चर के बारे में पूछती है और शाश्वत उससे बनारस के बारे में पूछता है. इस बीच रूद्र उन्हें बातें करते हुए देख रहा था, फिर अचानक उसने बोला...  

रूद्र : शाश्वत जी! कल आप और परीता, उस महल की सेकंड विज़िट पर क्यों नहीं चले जाते?  

शाश्वत: आर यू कम्फ़र्टेबल?  

परीता : येस, दीस इज़ माय वर्क.  

परीता के ऐसा कहने के बाद, रूद्र, शाश्वत को याद दिलाते हुए कहता हैं.  

रूद्र : शाश्वत जी! आपने पहले दिन पूछा था ना कि ऑफिस की डिजाइन इतनी यूनिक और स्पेसिफिक कैसे है?  

परीता की वजह से, शी इज़ दी वन बिहाइंड द आईडियाज़। परीता ने उस-उस जगह में हमें डिजाइंस का स्ट्रक्चर बदलने को कहा, जिस डायरेक्शन का कनेक्शन नेगेटिविटी से हो रहा था. नो डाउट शी इज़ दी सेवियर।  

शाश्वत : येस शी इज़.  

रूद्र : आप इस बात का ख़ास ख़याल रखियेगा कि आप परीता की कही हुई बातें, अपने ज़ेहन में रखें.  

शाश्वत :  सर्टेनली ।  

इस कॉन्वर्सेशन के बाद शाश्वत और परीता अपने अपने कामों में लग जाते है. शाश्वत महल के नक़्शे समझने में बिज़ी हो जाता है, और परीता महल की डिरेकशंस को समझने में. दोनों अपने-अपने कामों में किसी साधक की तरह लगे रहते हैं। जैसे उन्हें अपने कामों की सिद्धि चाहिए हो.  

काम तभी शिद्दत से पूरा होता है, जब उसमें तन, मन और आत्मा लगे, वरना एज्युकेटेड नौकर तो हर छोटी बड़ी कंपनीज़ में देखने को मिल जाते हैं.  

शाश्वत नक़्शे को गौर से देखता है कि तभी उसका ध्यान जाता है ईस्ट फेसिंग विंडो में. जो उसके दिमाग को सोचने पर मजबूर कर देती है कि उस खिड़की में दो लोग बैठे हैं... वो दो लोग जो प्रेमी की तरह दिख रहे हैं. शाश्वत उन्हें गौर से देखने लगता है, समझने लगता है कि आखिर नक़्शे में उन दो लोगों का अक्स क्यों दिख रहा हैं?  

यही सोचते हुए उसके दिमाग में फिर से आवाज़ों का शोर हो उठता है. उसे फिर से सुनाई देता है, “मैं तुम्हारा यहीं इंतजार करती रहूंगी अमर, मुझे लेने जल्दी आना।” इस बार उसे  प्रिया की ही नहीं बल्कि अमर यानी अपनी आवाज़े भी सुनाई देने लगी थी  “तुमसे वादा हैं प्रिय, हम जल्द ही आएंगे तुम्हारे पास.”

शाश्वत उनकी बातें और सुनना चाहता था, वो एकतक बस खिड़की की बनावट को ही देखता रहा था। उसके कानों में उन दो आवाज़ों का शोर तब तक चलता रहा, जब तक परीता ने उसे ज़ोर से आवाज़ नहीं लगाई.  

परीता: शाश्वत , कहां बिज़ी हो गए, किस धुन में हो ?  

शाश्वत : नहीं वो .. बस नक्शा देख रहा था।  

क्या शाश्वत के सामने आ पाएगी वो धुंधली तस्वीर? क्या शाश्वत जान पायेगा सच या उसके सामने आएगा एक नया रहस्य? जानने के लिए पढ़ते रहिए। 

 

 

 

 

Continue to next

No reviews available for this chapter.