बनारस आते ही शाश्वत को उसको सपनों वाले दृश्य अब हल्का-हल्का साफ़ दिखने लगता हैं. इस बात को नज़रंदाज़ करके वो आगे बढ़ता है, और जैसे होटल के लॉबी में आता है वहां का सर्वेंट उसके पाँव पकड़ लेता है और कहता है, “अब वो मुक्त हो जाएगी”. शाश्वत ये सुनकर शॉक्ड हो जाता है. वो घबराकर उस नौकर से दो कदम पीछे आ जाता है और कहता है.  

शाश्वत : आपको कोई ग़लतफ़हमी  हुई है !

बूढ़ा नौकर कहता है  “नहीं ये आँखें बूढ़ी ज़रूर हो गई है, पर इन्हें चेहरे याद रहते है.”  

शाश्वत : पर मैं इस देश में ही पहली बार आया हूँ .  

इतने में ही रूद्र की भेजी हुई कार आकर रुक जाती है. शाश्वत उस कार में बैठता है (sfx door closing) और चला जाता है. शाश्वत के जाने के बाद बूढ़ा नौकर कांपती आवाज़ में कहता है “तुम यहाँ आये नहीं हो, बुलाये गए हो... वाह रे डमरू बजाने वाले, आज तूने अपना खेल दिखा ही दिया.”

शाश्वत बहुत उत्सुकता के साथ बनारस की सड़कों को कार के अंदर बैठके देखता है। कहीं छोटे-छोटे बच्चे शिव जी की वेशभूषा में हँसते खेलते दिखते है, कहीं काशी चाट भंडार में टमाटर चाट की भीड़ होती हैं तो कहीं मलाइयों के लिए लोग लंबी लाइनों में खड़े दिखते हैं.. लेकिन कार में बैठे होने की वजह से शाश्वत असली बनारस को देख नहीं पाता.  

असली बनारस यानी  की गलियों में दिखते अल्हड़ और मस्तमौजी लोग, जिन्हें  देखकर शाश्वत  ड्राईवर से पूछता है..  

शाश्वत : भईया इन गलियों में घर कैसे बने होंगे ?  

“आप घर की बात करते है, बाबू! इन गलियों में कहानियाँ बनती है !”

शाश्वत: कौन सुनाता है, यहाँ की कहानियाँ ?

इन गलियों की दीवारें, हमारे यहाँ इन्हीं का भौकाल है बाबू। आप धीरे-धीरे समझ जायेंगे. अगर आज आप काम से जल्दी फुर्सत पा लिए, तो घूमियेगा ज़रूर और देखिएगा हमारे बनारस को. 

शाश्वत: देखेंगे बनारस के भौकाल को।

लीजिये पहुँच गए हम रूद्र भैया के ऑफिस “जे बिल्डर्स एंड कंस्ट्रक्शन”।

शाश्वत: आप उन्हें सर नहीं कहते?  

“अरे बाबू सर कहने में अपनापन नहीं लगता. और रूद्र भैया तो हमारे लिए परिवार जैसे है|”

शाश्वत जैसे ही कार से उतरकर ऑफिस में इंटर करता है, उसे ऑफिस का माहौल बहुत शांत कर देने वाला लगता है. धूप का हल्का हल्का धुंआ, उसमें मिली कपूर की महक. ऐसा महसूस करा रहीं थी मानो जैसे मन में चल रहे ख़यालों की कश्मकश शांत हो रही हो. शाश्वत पाँच मिनट खड़ा होकर इस एहसास को अपने भीतर कैद करने की कोशिश कर ही रहा था की तभी. रूद्र त्रिपाठी की एंट्री हुई और वह बोले-  

रुद्र: अतिथि देवो भवः, आपका स्वागत है शाश्वत जी.

शाश्वत: आप शाश्वत ही कहिए.

रुद्र: हमारे यहाँ हम अपने अतिथियों को पूरे मान सम्मान से बुलाते हैं.  

शाश्वत: मैं भी दिल से देसी ही हूँ.  

रुद्र: आइये मेरे केबिन में चलकर बैठते है, मैं आपको अपना विज़न बताता हूँ.

शाश्वत: येस प्लीज़.

रूद्र और शाश्वत दोनों चलते रहते है इस बीच शाश्वत, ऑफिस का इंटीरियर बड़े गौर से देखता हैं और सोच में पड़ जाता है कि ऑफिस में मॉडर्न इंटीरियर होने के बाद भी सब कुछ मिस्ट्री जैसा क्यों दिखाई देता है. चुकी शाश्वत एंटीक क्यूरेटर है, इसलिए उसे वास्तु का भी अच्छा ख़ासा नॉलेज है. यही वजह भी है की वो ऑफिस के इंटीरियर को बड़े गौर से देखता है.  

शाश्वत ऑफिस देखने में इतना मग्न हो जाता है कि उसे पता नहीं चला कि कब वो केबिन में आ जाता है. उसका ध्यान तब टूटता है जब रूद्र उससे कहते हैं….

रुद्र: हैव अ सीट शाश्वत जी.

शाश्वत: आई मस्ट से रूद्र जी, ऑफिस का इंटीरियर इज़ टू ब्यूटीफुल. आई लव्ड दी एस्थेटिक्स.  

रुद्र: आई ऍम ग्लैड यू नोटिसड.

शाश्वत: सो.. हमें किस बिल्डिंग को एंटीक क्युरेशन के लिए देखने जाना है?

रुद्र:  वो एक सोलहवीं सदी का महल हैं, शाश्वत जी. जिसे लेकर वहां के आस-पास के लोगों ने अपने मनोरंजन के लिए राजा रानी की कहानियां बना दी हैं.

शाश्वत: और आपका इस पर क्या कहना है ?

रुद्र: एक था राजा, एक थी  रानी दोनों मर गए ख़तम कहानी.

ये बात सुनकर रूद्र और शाश्वत दोनों ही बहुत ज़ोर से हंस पड़े, तभी शाश्वत ने बातों का सिलसिला जारी रखते हुए पूछा...  

शाश्वत: ये जगह शहर में है या शहर से दूर  

रुद्र: शहर से 30 किमी दूर.  

शाश्वत: वहाँ जाने से पहले आप मुझे उस महल की तस्वीर दिखा दीजिये।  

रुद्र: अब उस एंटीक पीस को आप खुद चलकर अपनी आँखों से देखिएगा।  तो चलें ?

रूद्र और शाश्वत, रूद्र की कार में बैठकर उस महल के लिए निकल जाते हैं। घाटों का शहर बनारस, शाश्वत को अपनी ओर खींचने लगता  हैं. इस बात से अंजान शाश्वत की बनारस ही उसकी मंज़िल है। वो मग्न हो जाता है, अपने फ़ोन में बनारस को कैद करने में. इस बीच रूद्र और शाश्वत की बस औपचारिक बातें होती है और कार में लंबे समय तक ख़ामोशी छाई रहती है.  

ये ख़ामोशी तब  टूटती है, जब कार के आगे अचानक से बैंड बाजा और बारात  की भीड़ आ जाती है। शाश्वत उसे देखने और कैप्चर करने में इन्वॉल्व हो जाता है।  

लंदन में पले बढ़े शाश्वत ने कभी अपनी भारतीय संस्कृति का ये रूप नहीं देखा था. जहाँ रिश्तों के कई रंग एक साथ खुशी मानते है, ख़ुशी से पैसों की गड्डी हवा में उछाली जाती है और बैंड वालों को अलग से पैसे दिये जाते है, पसंदीदा धुन बजाने के लिए.  

ये सब शाश्वत ने सिर्फ हिंदी पिक्चरों में देखा था। आज अपने सामने ये सब होता देख वो खुद को रोक नहीं पाया और चला गया बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना बनकर बारातियों के साथ डांस करने .  

हमारे भारत में लोगों को अपना बनाने में देर नहीं लगती, बस देखकर हल्की सी मुस्कान दे दो , तो सामने वाला खुद-ब-खुद बात शुरू कर देता है, फिर यहाँ तो शाश्वत किसी की ख़ुशी में शामिल होने जा रहा था.  

शाश्वत ने अपने डांस करने की इच्छा दिखाई तो उन बारातियों ने भी इनकार नहीं किया. अपने परिवार का हिस्सा मानकर शाश्वत को शामिल कर लिया. सारे बारातियों के साथ शाश्वत भी अपनी धुन में मगन हो गया और दिल खोलकर नाचने लगा. ऐसे जैसे उसके किसी सगे संबंधी की बारात हो.  

इसके बाद जो हुआ वो शाश्वत की समझ से बाहर था. डांस करते वक़्त उसे फिर से वहीँ आँखें भीड़ से उसको देखते हुए दिखी. ये वहीँ आँखें थी जो शाश्वत को, ना जाने कबसे सपने में दिखाई देती थी। जिसका अक्स शाश्वत को बेचैन कर देता था. शाश्वत ने जैसे ही उन आँखों को इसस बार अपनी खुली आँखों से देखा वो स्तब्ध रह गया. उसके कानों में बैंड की आवाज़े कम होने लगी और एक रहस्यमयीं बांसुरी की धुन बजने लगीं (SFX; slow down sound & increase flute sound.).  

अचानक से शाश्वत को पसीने आने लगे, उन आँखों को देख वो फिर कश्मकश में आ गया. अजीब सी आँखें थी वो, डरी हुई सी, रोई हुई सी और डरावनी भी. शाश्वत अपने इस ख़याल में खोया हुआ रहता ही है कि तभी पीछे से ड्राईवर हॉर्न बजाता है ( sfx कार हॉर्न ) और चिल्ला कर कहता है  

“अरे शाश्वत बाबू, अन्दर आ जाइये बारात कब की आगे निकल चुकी है.”

शाश्वत हाँ में सिर हिलाता है और फ़ौरन गाड़ी में आकर बैठ जाता है. उसे हैरान परेशान और खोया हुआ देख रूद्र उससे सवाल करते है.  

रुद्र : आर यू ऑल राइट शाश्वत जी?  

शाश्वत : हां, आई गैस कोई था वहाँ पर.  

रुद्र: रोड पर तो लोग होंगे ही, लगता है आप पर बनारस का रंग पहले दिन से चढ़ रहा है. थोड़ी देर आँख बंद कर लीजिये, अभी एक घंटा समय लगेगा, हमें महल पहुँचने में.  

रूद्र की बातें  सुनकर शाश्वत आँखें बंद कर लेता है, और इस सोच में पड़ जाता है कि क्या था उन आँखों में? इतने सारे भाव एक साथ क्यों थे उन आँखों में. बनारस आते ही क्यों उसके साथ अजीबो-गरीब चीज़े होनी शुरू हो गई थी. शाश्वत को क्यों उन आँखों से डर के साथ साथ लगाव भी होना शुरू हो गया था. अपने इसी सब ख़याल के उधेड़बुन में शाश्वत को कब नींद आ गई पता ही नहीं चला और वो सो गया. अक्सर ऐसा होता है कि कोई जगह ऐसी होती है, जो अपने आप दिल में बस जाती है. उस जगह जाकर मन बार-बार सोचने की कोशिश करता है कि आखिर उस जगह से हमारा संबंध क्या है? पर अफ़सोस इसका जवाब मिल नहीं पाता और हम उस जगह के साथ अपना संबंध जानने की कोशिश नहीं करते. शाश्वत गहरी नींद में था, उसे सोता देख रूद्र ने भी उसे डिस्टर्ब नहीं किया. कार में पूरी तरह से ख़ामोशी छाई हुई थी कि तभी कार का टायर पंक्चर हो गया और गाड़ी महल पहुँचने से पहले ही रुक गई. गाड़ी के रुकने से शाश्वत की नींद टूटी, उसने उठकर पूछा,

शाश्वत : सब ठीक है।  

“हाँ, एक छोटा सा पंक्चर है, मैं 15 मं में ठीक कर दूंगा।” ड्राइवर ने अपने यूपी वाले अंदाज में कहा।  

तभी रूद्र, शाश्वत को  देखकर  मुस्कुरा दिया, बदले में शाश्वत ने भी मुस्कुरा दिया. एक घंटे की नींद के बाद शाश्वत अब फ्रेश दिख रहा था, उसका दिमाग शांत था।  वो उस महल को देखने के लिए एक्साइटेड था, जो की बस कुछ मिनटों की दूरी के बाद उसके सामने आने वाला था. शाश्वत, अब तक इस बात से बेखबर था कि उसकी ज़िन्दगी ना केवल बदलने वाली है, बल्कि वहाँ सदियों पुराना कोई शख्स उसका इंतज़ार कर रहा है.  

क्या शाश्वत को महल पहुँचते ही सब याद आ जाएगा? क्या महल पहुँचने के बाद उसे उसके सपने परेशान करना बंद कर देंगे?  क्या वो आँखें उसे दोबारा नहीं दिखेंगे। इस रहस्य को जानने के लिए पढ़ते रहिए। 

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