प्रिया की अतृप्त आत्मा ने महायज्ञ में विघ्न डाल दिया था और विधि पूरी नहीं होने दिया था। इस भयानक दृश्य को देखकर सभी के हाथ-पाँव काँप उठे थे। इसके बाद जो हुआ, उसे देखकर किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था। दीवार पर अपने आप बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा गया, "अमर को बुलाओ।"  

इस लेखनी को देखकर गुरु जगदीश ने तत्काल  प्रभाव से महल खाली करने का आदेश दिया। उन्होंने ये भी कहा कि अगर कोई भी यहाँ रुका, तो उसकी जान अतृप्त आत्मा द्वारा ले ली जाएगी। गुरु जगदीश की बात सुनकर किसी ने भी उनकी बात का विरोध करने की हिम्मत नहीं की। देखते ही देखते, उस महल में रहने वाले सभी लोग अलग-अलग दिशाओं में निकल पड़े। आसपास के लोगों ने भी इस घटना का ज़िक्र कभी दोबारा नहीं किया।

दिन, हफ्ते, महीने और साल बीतते गए और धीरे-धीरे सदियाँ भी बीत गईं। यह कहानी आम कहावत बन गई जिसे लोग दोहराते रहे - "एक था राजा, एक थी रानी, दोनों मर गए, ख़त्म कहानी।"  

पिछली बातें, पिछला रिश्ता, पिछले कर्म और पिछला जन्म इतनी आसानी से पीछा नहीं छोड़ते। बदलाव समय में आता है, शरीर में आता है, लेकिन आत्मा में नहीं! आत्मा को बदलना यानी विधि के विधान को चुनौती देना है।

सदी बदल जाने से, शहर बदल जाने से, या व्यक्ति बदल जाने से उसकी फितरत नहीं बदलती। हर किसी को उसके पिछले जन्म का एक हिस्सा ज़िंदगी के अलग-अलग मोड़ पर याद आता है, जिसे आजकल लोग 'डेजा वू' भी कहते हैं। ऐसे ही  'डेजा वू' शाश्वत को भी आने लगे थे , उसके सपने में मंदिर की घंटियाँ, ऊँची ऊँची दीवारें, लोगों की भीड़, किसी के आँखों की छवि, और बांसुरी की हल्की मीठी धुन सुनाई देती थी .  

ये सारी चीजें अपने सपनों में शाश्वत जब भी देखता तो नींद से अचानक उठ जाता . ये सब देखना उसकी समझ से परे था. शुरू शुरू में उसे ये सब सपनें में दिखना हैरान परेशान कर देता था। जहाँ हम आजकल असल ज़िन्दगी में हो रही घटनाओं को कुछ दिन के बाद भूल जाते है, वहां एसए सपनों का आना ,जो अभी धुंधले है उन्हें कहाँ से याद रख पायेंगे.  समय के साथ शाश्वत भी उन धुंधले सपनों पर ध्यान कम देने लगा और अपने काम  पर ज़्यादा फोकस करने लगा.  

शाश्वत 25 साल का था और पेशे एक एंटीक क्यूरेटर था, जो लंदन बेस्ड अपनी कंपनी "हेरिटेज वॉल्ट" के लिए वर्ल्ड के हर कोने से नायाब और बेशकीमती एंटीक्स इकट्ठा करता था। जिसके बाद उसकी कंपनी, इन एंटीक्स को हेरिटेज होटल्स, रिसॉर्ट्स और अमीरों को बढ़िया दामों पर बेचती थी।  

कभी-कभी इन सबके लिए शाश्वत को ब्लैक मार्केट और ख़तरनाक लोगों से डील करना पड़ता था.. लेकिन शाश्वत की पर्सनालिटी इतनी चार्मिंग थी कि वो किसी को भी अपनी बातों से इम्प्रेस कर सकता था। जिससे वो किसी भी टफ सिचुऐशन से बाहर निकाल आता था।  

उसकी इसी खूबी के चलते उसकी "हेरिटेज वॉल्ट" में काफी स्ट्रांग पोजीशन बन चुकी थी।  

इस बार शाश्वत की कंपनी कुछ अलग प्रोजेक्ट पर काम करने वाली थी। इस प्रोजेक्ट को सक्सेस्फुली कम्पलीट करने पर शाश्वत को कंपनी के बोर्ड ऑफ़ मेंबर्स की पोजीशन मिलती।  शाश्वत के साथ काम करने वाले सभी लोग जानते थे कि वो बहुत अम्बिशयस है। वो खुद को प्रूव करने का मौका कभी नहीं छोड़ेगा। वो अपनी पूरी जान लगा देगा इस प्रोजेक्ट को सक्सेसफुल बनाने में। ये प्रोजेक्ट इंडिया में होने वाला था, और एक इंडियन होने के बावजूद शाश्वत ने आज तक इंडिया में कदम भी नहीं रखा था। लंदन में पला बढ़ा शाश्वत, इंडिया के बारे में कुछ नहीं जनता था।  जनता था तो बस ये की इंडिया इस थे बेस्ट फॉर एंटीक क्यूरेशन.  

ख़्वामख़ा लोग कहते है कि इश्क का रंग गहरा होता है। जबकी इश्क से ज़्यादा गहरा रंग मेहनत का होता है. इश्क में लोग बिखर जाया करते है, मेहनत में डूबे हुए लोग निखर जाया करते है. ये बात भी किसी लेखक ने ही लिखी है, वहीँ लेखक जिसने किसी से बेइंतेहा मोहब्बत की होगी।  खैर. शाश्वत इस बात से बेखबर था कि उसकी मेहनत, उसकी किस्मत, इस प्रोजेक्ट के दौरान उसे उसकी मोहब्बत से मिलाने वाली है.  

शाश्वत : बॉस आपने बुलाया...  

“ हाँ शाश्वत, कम इन... मैं तुम्हें किसी से मिलाना चाहता हूँ, यें है मिस्टर रूद्र, फ्रॉम इंडिया। अ वेल नोन बिल्डर, इन्हें अपने एक बुटीक होटल के लिए कुछ एंटीक्स चाहिए। तो आई सजेस्टेड आर बेस्ट मेन 'स नाम।  पर ये चाहते है की पहले तुम इनकी प्रोपर्टी पहले देखो , जिसके लिए तुम्हें इंडिया जाना पड़ेगा।” उसके बॉस ने उसको जवाब दिया।"   

शाश्वत : इंडिया ????? आई एम इन।  

रूद्र: आपको प्रोजेक्ट की कोई और इनफार्मेशन नहीं चाहिए ?

शाश्वत : जब चलके देखना ही है, तो वही जाकर बात करते है।  एंड आई ऍम 100 परसेंट श्योर, बॉस आलरेडी बीन थ्रू ऑल  द डिटेल्स।  

शाश्वत के इस एक्सिटमेंट के आगे मिस्टर रूद्र ने कुछ नहीं कहा, शाश्वत को एक महीने का टाइम दिया गया अपने ऑन - गोइंग प्रोजेक्ट्स को ख़तम करने के लिए, क्योंकि इंडिया वाले प्रोजेक्ट में बहुत समय और साबरा चाहिए था।  

शाश्वत घर पहुंचते ही अपनी माँ को ये गुड न्यूज़ देता है कि वो जल्द ही इंडिया फ्लाई करेगा फॉर अ प्रोजेक्ट।  भले ही उसकी माँ लंदन में रहती थी, पर थी तो वो एक माँ ही ना. शाश्वत की बात सुन कर उनका चेहरा मुरझा गया, पर वो ये भी जानती थी कि शाश्वत अपने काम के बीच में किसी को नहीं आने देता है। इसलिए उसको इंडिया जाने से रोक पाना मुश्किल ही है। अपनी माँ के चहरे की उदासी देख के शाश्वत उन्हें प्यार से समझने की कोशिश करता है।  

शाश्वत: "मॉम, बस कुछ ही महीनों की बात है, एंड ट्रस्ट मी अगर में आपके बर्थडे के पहले नहीं आया तो....  

माँ: तो क्या ???  

शाश्वत: तो मैं आपको वहां बुला लूंगा , हम दोनों मिलकर एंटीक क्यूरेट करेंगे। क्या पता आपका सालों  पुराना मेरी शादी का सपना वहीँ पूरा हो जाए !

अपने कल से अनजान शाश्वत, इंटरनेट पर उस जगह के बारे में सर्च करता है जो मिस्टर रूद्र को बुटीक होटल में तब्दील करवानी होती है। वो उस हवेली की पिक्चर्स देख के उसकी खूबसूरती में खो जाता है, तभी एक कॉल उसका ध्यान तोड़ता है । (फ़ोन रींगस )  

ये कॉल उसकी मॉम का था. वो कहती है "निहारिका तुमसे मिलने आई है, नीचे आ जाओ" . निहारिका हमेशा से ही शाश्वत को पसंद करती थी, लेकिन  शाश्वत के लिए वो सिर्फ एक दोस्त थी।  शाश्वत की मॉम ने कई बार चाहा की ये दोस्ती रिश्तेदारी में बदले, पर शाश्वत बिना प्यार के शादी नहीं करना चाहता था।  निहारिका वो लड़की नहीं थी जो उसके सपनों में आती थी और फिर वो अपने काम से इतना प्यार करता था कि उसकी लाइफ में किसी और की जगह भी नहीं थी।  

एंटीक क्यूरेशन के लिए वो हमेशा की एक देश से दूसरे देश ट्रेवल करता रहता था. उसका सारा समय एंटीक आइटम्स की स्टडी में ही निकल जाता था। इसलिए कभी-कभी उसकी मॉम  उसको प्यार से "पुराने चावल" भी कहती थी. शाश्वत रेडी होकत नीचे आता है और ये देख के शॉक हो जाता है कि इस बार निहारिका अकेले नहीं आई थी। वो अपनी फैमिली के साथ आई थी।  

निहारिका की माँ, शाश्वत को  देखते हुए कहती है कि "हम चाहते है , शाश्वत के इंडिया जाने के पहले सगाई हो जाए ". इस बार पर शाश्वत की माँ हंसकर जवाब देती है कि "चाहती तो में भी यही हूँ पर.... " अपनी मॉम की बात को बीच काटते हुए शाश्वत - निहारिका से कहता है -

शाश्वत : हम पहले भी इस बारे में बात कर चुके है और मैं कम्फर्टेबल नहीं हूँ अभी शादी जैसी बड़ी रिस्पांसिबिलिटी के लिए। प्लीज अंडरस्टैंड एंड रिस्पेक्ट माय स्पेस.

अपनी बात खत्म कर के, गुस्से में शाश्वत पैकिंग करने के लिए चला जाता है। अगली सुबह उसकी फ्लाइट होती है इंडिया के लिए, मिस्टर रूद्र उसका वेट कर रहे होते है एयरपोर्ट लाउन्ज में। शाश्वत के आते ही वो उठ के वॉर्म हैंडशेक करते है। अपना ब्रीफ़केस ओपन करते है और उसमें रखी उस बुटीक होटल के फोटोज दिखाते है।  

कुछ फोटोज़ के नीचे उसे एक दिवार की फोटो दिखती है जहाँ वही चि बना होता है, जो उसके सपनों में हर दिन आता है। वो कुछ समझ पता उसके पहले ही फ्लाइट अनाउंसमेंट हो जाती है और वो इंडिया में अपने नए सफर से अनजान,  फ्लाइट में बैठ जाता है।  

कुछ अड़तीस घाटों की थका देने वाली फ्लाइट के बाद, जब वो पहली बार बनारस पहुँचता है, तो नास्तिक शाश्वत सीधा गंगा घाट पर स्नान करने पहुंच जाता है।  मिस्टर रूद्र को लगा जैसे बाकि नॉन - इंडियन सिर्फ एक्सपेरिएंस के लिए ये सब करते है, वैसे ही शाश्वत भी एक्सपीरिंयस ले रहा होगा।  

यहाँ बात एक्सपेरिएंस की नहीं जनम और मृत्यु के परे की थी।  बात थी प्रेम की।  शाश्वत उस दिन कशी नरेश के दर्शन कर होटल में रेस्ट करने चला जाता है। जेटलैग के कारण उसकी जैसे ही नींद लगती है, उसको सपनों में विज़न पहले से ज़्यादा स्पष्ट दिखने लगते है। उसके माथे पर पसीना आना शुरू होता है और उसकी नींद एक आवाज़ से खुलती है - "मेरा इंतज़ार अब ख़तम हुआ". 

वो चौक के उठता है और इधर उधर देखता है, पर उसको कोई नहीं दिखता। इतने में मिस्टर रूद्र का कॉल आ जाता है "गेट रेडी, माय ड्राइवर इज़ कमिंग टू पिक यू उप ". वो रेडी होकर ड्राइवर का वेट कर रहा होता है लॉबी में , तभी उसको देख कर एक स्टाफ मेंबर उसके पैर पकड़ लेता है !  

शाश्वत शॉकेड हो जाता है कि क्यों इस स्टाफ मेंबर ने उसके पैर पकड़े हुए है? वो तो पहली बार इंडिया आया है, फिर क्यों ये जगह उसको पराई नहीं लग रही ? क्यों सिर्फ रात को आने वाले सपने अब दिन में भी आने लगे है ? जीन सवालों के जवाब वो ढूंढ रहा है, उसको कहाँ ले जाएंगे ?  जानने के लिए पढ़ते रहिए। 

 

 

 

 

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