घर आकर श्री  माई   से सरिता और उसकी मंडली के बारे में बातें करने लगती है और फिर वो भी पूछ लेती है जो उसने सरिता से पूछा था।
श्री- “माई    , ये सरिता की दोस्त कौन है? आप जानती हैं क्या उसे?”
माई   - “हाँ जानती हैं,” माई     के चेहरे पर थोड़ी उदासी आ जाती है।
श्री- “क्या हुआ माई    ? आप उदास क्यों हो गईं?.. क्या सरिता की दोस्त ने उसके साथ कुछ गलत किया है?”
माई  - “गलत है या सही, इस पर तो सिर्फ वो ऊपरवाला ही जवाब दे सकता है… उसने अपने पास जो बुला लिया उसे..”
श्री  ये सुनते ही एकदम शॉक हो गई है,
श्री - “क्या? कब?”
माई  - “अभी कुछ दिन ही हुए हैं.. उसके जाने की खबर सुनने के बाद से ही सरिता बड़ी गुमसुम रहती है… आज तो पहली बार हुआ है ऐसा कि वो साथ आकर बैठी, सबसे बातें की.. खैर वक्त के साथ घाव भर ही जाते हैं, और जाने वाले का रिक्त स्थान भी.. हमें लगता है कि आज सरिता को तुमसे मिलकर अच्छा लगा.. जब तक यहाँ हो, मिल आया  करना कभी-कभी।”
श्री - “हाँ माई  .. बिलकुल। मैंने तो उनसे बात भी कर ली है कि मैं उनकी स्टोरी कवर करूंगी। और अब तो आपने भी कह दिया माई  , तो उनसे मिलना तो बनता ही है। पर माई  , उनकी दोस्त को क्या हुआ था? क्या आप जानती हैं? क्या आपने सरिता से कभी इस बारे में कोई बात की?”
माई  - “बिटिया.. सच कहें तो हमें ज्यादा पता नहीं है.. और ना ही हमने सरिता से पूछा। हम समय देना चाहते हैं उसे… वो संभल जाएगी तो खुद ही बता देगी.. पर हाँ रति.. रति बहुत ही गुणी, सरल, सुंदर बच्ची थी। जब कभी आती थी बनारस ,हमसे हमेशा मिलकर जाती थी पर अब क्या कर सकते हैं.. जिसका समय आ गया, उसका समय आ गया।”
और फिर कुछ देर के लिए माई   एकदम चुप हो जाती हैं। श्री  भी कोई और सवाल न कर, उन्हें डिस्टर्ब नहीं करती और धीरे से उठकर अपने कमरे में आ गई है।
“आखिर क्या हुआ होगा रति के साथ.. कितना टफ होगा न सरिता के लिए सब… अब तो उसे अकेले ही इन सब लेडीज का ख्याल रखना है.. "आई शुड डेफिनिटली वर्क ऑन दिस स्टोरी एंड हेल्प सरिता टू रीच आउट टू मैक्सिमम पीपल"
मुझे राजीव से भी डिस्कस कर लेना चाहिए ये सब..”
राजीव - “हैलो!”
श्री - “"हैलो राजीव, कैसे हो?"
राजीव - “आइ ऐम गुड श्री . "यू टेल मी, इज एवरीथिंग गोइंग वेल"?”
श्री - “"हाँ। मुझे काफी कुछ जानने मिल रहा है.. और डेफिनिटली ये हमारे कैंपेन के लिए हेल्पफुल होगा.."
"एक्चुअली राजीव, मुझे एक स्टोरी मिली है जो बहुत ही यूनिक और इंस्पायरिंग है.. आई वांट टू कवर इट फुली। मैं डॉक्यू फिल्म बनाना चाहती हूँ उस पर.. कैन आई?"
राजीव श्री  को हेडस उप देने से पहले इस स्टोरी का एक कान्सेप्ट नोट  बनाकर शेयर करने को कहता है और फिर उसे कुछ आश्रमों के बारे में बताता है.. जिन्हें कैंपेन के लिए विजिट करना अच्छा रहेगा। उन आश्रमों में शामिल हैं श्री  सतुआ बाबा आश्रम, मातृधाम आश्रम, कीना राम बाबा आश्रम, परमहंस आश्रम और साइकिल स्वामी आश्रम।
श्री  सभी नाम अपनी डायरी में नोट कर, अपना लैपटॉप खोल.. उनके बारे में सर्च करने लगती है और फिर दोपहर होने पर जब माई   उसे लंच करने के लिए बुलाने आती हैं तो वो उनसे कीना राम बाबा के आश्रम के बारे में पूछती है…
श्री - “माई  , क्या आप कीना राम बाबा के बारे में कुछ जानती हैं?”
माई   - “बिटिया.. बाबा कीनाराम अघोर संप्रदाय के अनन्य आचार्य थे, उनके बारे में जानना है तो कई सारी पुस्तकें हैं, उनका आश्रम है.. वहां से तुम्हें सही और सटीक जानकारी मिलेगी… अच्छा सुनो.. ये पढ़ाई-लिखाई खाना खाने के बाद करना अब।”
श्री  अपना लैपटॉप बंद कर देती है और माई   के साथ ही बाहर आ जाती है फिर वो दोनों साथ बैठकर खाना खाती हैं। खाना खाने के बाद, श्री  माई   के पास ही लेट जाती है और उनसे अपने शहर की बातें करने लगती है.. और बातें करते - करते उसे फिर नींद लग जाती है।
माई  - “बिटिया.. बिटिया उठ जाओ.. शाम हो गई है,”
शंख की आवाज के साथ-साथ माई   की आवाज भी श्री  के कानों में पड़ती है और वो उठ बैठती है। फिर दीवार पर टंगी घड़ी को देखती है और समय देख कर उसकी आँखें फटी की फटी रह जाती हैं..
श्री - “शाम के 7 बज गए… आज तो मैंने कुछ भी काम नहीं किया। माई  .. आपने मुझे जल्दी क्यों नहीं उठाया?”
माई   - “कल की थकान है ये बिटिया जो आज ऐसे निकल रही है। कोई बात नहीं आज नींद पूरी हो गई अब कल से अच्छे से काम करना… चलो अब हाथ-मुँह धो लो, हम चाय लेकर आते हैं… कुछ खाने का भी लाते हैं..”
माई   किचन में चली जाती हैं और श्री  अपने कमरे में आकर तैयार होने लगती है। और अगले 10 मिनट बाद वो गुलाबी रंग का सूट पहन कर बाहर आती है.. माई   उसे देखकर प्यारी सी मुस्कुराहट देती हैं और चाय का कप उसे थमा कर घर के मंदिर में आरती करने चली जाती हैं। श्री  झट से चाय खत्म कर, मंदिर में पहुँच जाती है और फिर आरती करने के बाद, देर से लौटने का बोलकर दुर्गा मंदिर जाने के लिए निकल जाती है।
जब तक श्री  मंदिर पहुँच रही है, हम थोड़ा काशी को जान लेते हैं.. यहाँ बहुत से मंदिर हैं और उनमें जाने पर वहां मौजूद शक्ति का आभास हो ही जाता है या यूं कहना ज्यादा सही होगा कि यहाँ आने पर एक व्यक्ति के आध्यात्मिक मार्ग को एक गति मिल जाती है। माना जाता है कि स्वयं शिव जी ने इस शहर को बसाया था। माता पार्वती यहाँ आकर रहीं। और तो और मंदिरों में मौजूद मूर्तियों के बनने से पहले यहाँ देवी देवताओं के साक्षात्कार दर्शन देने की भी बात कही जाती है।
श्री  मंदिर में कदम रखती ही है कि उसके आगे चल रही एक छोटी सी बच्ची का पैर फिसल जाता है और उसकी माँ इसके लिए श्री  को दोषी बताती है। श्री  पहले खुद को निर्दोष साबित करने की कोशिश करती है और फिर जब कोई उसकी बात पर भरोसा नहीं करता तो वो सिर झुका कर उस बच्ची की माँ से माफी मांग लेती है। बच्ची की माँ, उसका हाथ पकड़कर अब आगे बढ़ जाती है और श्री  दो कदम पीछे हट जाती है.. कुछ देर बाद श्री  आगे बढ़ती है और जाकर माँ दुर्गा की अलौकिक मूर्ति के दर्शन करती है… दर्शन करने के बाद जब बारी आगे बढ़ने की आती है तब श्री  चाहकर भी आगे नहीं बढ़ पा रही है। उसके हाथ-पैर भारी हो गए हैं और आँखें लाल हो गई हैं… दूसरे दर्शनार्थी श्री  की ओर अचंभित होकर देखने लगते हैं और देखते ही देखते उसके आसपास लोग घेरा बनाकर खड़े हो गए हैं। मूर्ति के पास मौजूद पंडित जी, आस-पास खड़े लोगों को आगे बढ़ने को कहकर, श्री  के ऊपर गंगा जल डालते हैं और ऐसा करते ही.. श्री  को हल्का महसूस होने लगा है।
श्री - (लंबी सांस) “पंडित जी मुझे क्या हुआ था? मैं हिल भी नहीं पा रही थी.. ऐसा लगा जैसे पूरा शरीर इस जगह ही ठहर गया है…”
पंडित  - “माँ के सामने माथा टेको बेटी.. ये सब उनकी महिमा है और शायद उनका ही कोई इशारा..”
श्री - “इशारा?.. कैसा इशारा?”
पंडित - “जिस शक्ति का एहसास तुम्हें हुआ.. उसकी महत्त्वता को पहचानने का इशारा.. माँ की कृपा सदा तुम पर बनी रहे..”
पंडित जी ज्यादा कुछ नहीं बोलते और आशीर्वाद देते हुए, श्री  के हाथ पर प्रसाद दे देते हैं और श्री  आगे बढ़ जाती है। अब वह सीढ़ियाँ उतर कर नीचे आ जाती है… असल में दुर्गा मंदिर की बनावट कुछ इस प्रकार की है कि यह एक कुंड सा लगता है जिसके मध्य में देवी माँ विराजमान हैं और आस-पास सीढ़ियाँ हैं। श्री  अब मूर्ति के चारों ओर फेरी लगा रही है और इस बात का आभास भी उसे हो रहा है कि कोने में बैठे एक पंडित जी की निगाहें उस पर ही टिकी हुई हैं। जब श्री  फेरी पूरी कर, माथा टेक कर उठती है तब पंडित जी उसे अपने पास आने को कहते हैं। श्री  थोड़ी शरमाई   हुई है.. पंडित जी से थोड़ा दूर जाकर खड़ी हो जाती है।
पंडित - “तुम्हारे साथ कुछ बहुत बड़ा होने वाला है.. जीवन बदल जाएगा तुम्हारा.. जब भी ऐसा हो, धीरज रखना.. और हाँ जब गलती ना हो तो अपने लिए खड़ा होना सीखो, माँ शक्ति सब में बस्ती है.. हम देखे कि कैसे वहाँ दरवाजे पर तुम्हारी कोई गलती नहीं थी… फिर भी तुमने माफी मांगी। माफी मांगने से कोई छोटा नहीं होता पर गलत का साथ देना.. सच्ची माँ, सच्चा दरबार.. हे माँ इसका करो बेड़ा पार!!”
श्री  हाथ जोड़कर पंडित जी को प्रणाम कर अब मंदिर के दूसरे द्वार से बाहर आ गई है। और बाहर आकर वह देखती है कि कई सारी दुकानें बनी हुई हैं जिन पर चूड़ियाँ, खिलौने, सिंदूर और रंग-बिरंगी तरह-तरह की चीजें मिल रही हैं। श्री  भी एक दुकान पर जाकर चूड़ियाँ देखने लगती है।
श्री - “भैया इस रंग में मेरी कलाई का साइज दीजिए ना…”
युवा लड़का - “लीजिए दीदी जी..”
खनखनाती चूड़ियाँ पहनकर श्री  आगे बढ़ती ही है कि उसके सामने वो माँ और बच्ची आकर खड़ी हो जाती हैं।
श्री - “देखिए, मैंने पहले भी आपसे कहा था मेरी कोई गलती नहीं पर आप नहीं माने। फिर गलती ना होने पर मैंने माफी भी मांग ली.. पर आप फिर यहाँ आकर मेरा रास्ता रोक रही हैं.. क्या परेशानी है आपको?”
(श्री  बड़े ही प्यार से पूछती है।)
मुझे माफ कर दें। अभी मेरी बेटी ने मुझे बताया कि उसका पैर उसके ही स्कर्ट में उलझ कर मुड़ गया था और फिर वो फिसल गया.. मैंने बिना पूरी बात जाने आपको भला-बुरा कहा.. बिना गलती के भी आपने मुझसे माफी मांगी.. माफी तो मुझे आपसे मांगनी चाहिए..आइ ऐम सो सॉरी मुझे माफ करें।”
श्री  मुस्कुराकर उस औरत की माफी स्वीकार करती है और पलट कर मंदिर के द्वार की ओर देखती है.. जिन पंडित जी ने उसे अभी कुछ देर पहले बहुत कुछ बताया था.. वो उसे वहाँ से बाहर आते हुए दिखते हैं। पंडित जी उसे ही देख रहे हैं.. और मुस्कुराते हुए अपना हाथ उठाकर उसे आशीर्वाद देते हैं। श्री  मुस्कुराते हुए सिर झुका कर उनका अभिवादन करती है और मंदिर से बाहर आकर रिक्शेवाले को ढूंढ़ती है।
कई बार हमारे साथ कुछ ऐसा हो जाता है कि बस कुछ समय के लिए हम उसके ही होकर रहना चाहते हैं.. श्री  ने भी आज ऐसा ही कुछ अनुभव किया है और अब वो सीधे घर के लिए वापस आ जाती है।
श्री  को घर पर जल्दी आया देख माई   पूछती हैं,
माई   - “तुम तो देर से लौटने का कहकर गई थी बिटिया तो फिर इतनी जल्दी कैसे लौट आईं?”
श्री  मुस्कुराकर माई   को देखती है और अपने कमरे में चली जाती है। माई   समझ गईं हैं कि कुछ हुआ है पर वो इस समय उसके पीछे नहीं आईं हैं…
कुछ देर बाद माई  .. काढ़ा बनाकर ले आती हैं और श्री  के कमरे में दस्तक देती हैं,
माई   - “इसे पीने से अच्छा लगेगा… फिर जब थोड़ा हल्का महसूस करो और बताने का मन हो तो बताना क्या बात है!”
श्री  माई   को कसकर पकड़ लेती है और उसकी आँखों से आंसू निकल पड़ते हैं फिर वो बैठकर .. जो कुछ भी आज उसके साथ मंदिर में हुआ, वो सब बताती है।
माई   - “ऐसे घबराना स्वाभाविक है.. वो क्या कहते हैं.. स्ट्रॉंग एनर्जी .. आज तुमने बिटिया उस स्ट्रॉंग एनर्जी को महसूस किया। अच्छी बात है ना, माँ का आशीर्वाद मिला और रही बात उन पंडित जी की तो उसमें डरने वाला क्या है.. तुम तो आई ही यहाँ कुछ बड़ा करने के लिए हो.. अच्छा काम करोगी, अच्छा होगा.. बड़ा होगा… और अब तो तुम आ गईं ना माई   के पास.. घबराने  की अब कोई बात ही नहीं है.. और एक बात ध्यान रखना बिटिया… काशी है ये, यहाँ चमत्कार होते हैं.. विश्वनाथ उनके होने का आभास भी कराते हैं और साथ भी देते हैं… आई समझ?”
इस तरह श्री  का काशी में एक और दिन निकल गया है और जैसा कि पंडित जी ने कहा, उसके साथ कुछ बड़ा होने वाला है। अब श्री  के साथ और क्या - क्या होता है ये जानने के लिए कहानी को आगे बढ़ाना होगा,

 

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