रात भले कितनी ही देर से हुई हो, माई के घर की सुबह उसी समय होती है जिस समय हर रोज़ होती है। सुबह के 5 बज रहे हैं और मंदिर में दीपक जल गया है। हाथ जोड़े माई, रोज़ की तरह प्रार्थना कर रही हैं और श्री? श्री घोड़े बेचकर माई के बेड पर सो रही हैं। खराटों की आवाज़ आरती के रिदम से रिदम मिला रही हैं।
तीन घंटे बीत जाते हैं और अब माई, ध्यान करने के बाद, स्नान कर, हाथ में दो कप चाय लिए किचन से बाहर आती हैं और सीधे अपने कमरे में चली जाती हैं।
माई - “श्री.. बिटिया.. उठो..”
माई प्यार से श्री को आवाज़ देती हैं पर श्री के कानों में तो जू भी नहीं रेंगती। तो अब माई दूसरा तरीका अपनाती हैं.. जो है श्री के मुंह पर पानी डालना, जिसके बाद श्री झट से उठ खड़ी हुई है।
“हह हहह नहीं.. मैंने कुछ नहीं किया.. मैंने कुछ नहीं किया..।” इसी के साथ श्री की नींद खुल गई है और जिस सपने ने उसे सुलाकर रखा था वो भी खुल गया है.. वो भी माई के सामने।
श्री हाथों से आंखें मलने लगती हैं और फिर आंखें खुलने पर उसे सामने माई नज़र आती हैं।
श्री- “माई आप? यहाँ..”
माई श्री को आस-पास दिखाते हुए बताती हैं कि ये उसका नहीं, उनका कमरा है और कल रात वो उनके साथ ही सोई थी.. इस तरह श्री को याद आता है और फिर वो झट से जाकर ब्रश करके वापस आ जाती है।
श्री- “चाय… आह। मच रिक्वायर्ड… वैसे माई.. क्या हम बाहर जाकर चाय पी सकते हैं? बगिया के पास बैठकर चाय पीना मुझे अच्छा लगता है और फिर आपको कुछ बताना भी है।”
माई उठकर बाहर चली आती हैं। श्री भी उनके पीछे-पीछे आ जाती है। अब चाय की चुस्कियाँ लेते हुए, श्री बताना शुरू करती है,
श्री - “तो पहले तो आपको कल की बात बताती हूं.. मैं कल एक पंडित जी के साथ उनके घर गई थी और मैंने एक गुंडे से बचने में उनकी हेल्प की.. अब वो उन्हें कभी नहीं सताएगा.. पंडित जी और काकी मतलब कि उनकी वाइफ मुझे मेरी रिसर्च में भी हेल्प करेंगे.. दरअसल मैं गई तो इसी के लिए थी.. मैंने उस गुंडे को धमकी दी माई.. वो उन्हें कई दिनों से परेशान कर रहा था… अब नहीं करेगा, डर गया साला..”
साला सुनते ही माई श्री की ओर भौंएं चढ़ाकर देखती हैं। श्री सॉरी बोलती है और कंटीन्यू करती है,
श्री- “तो माई, क्या मैंने सही किया?..”
माई इस पर कुछ नहीं बोलती और उससे दूसरी क्या बात है, बताने को कहती हैं।
श्री - “पहले आप ये बताइये ना कि मैंने सही तो किया ना?”
माई अपना कप नीचे रखते हुए बोलती हैं,
माई- “जो उस वक्त तुम्हें सही लगा तुमने कर दिया, अब उस बारे में दोबारा सोच कर क्यों उस सब के प्रति मन में बुरे भाव लाना। हां कई बार होता है जब शक्ति मिल जाती है ऐसी परिस्थितियों में कुछ ऐसा कर जाने की जो हम बाद में बैठकर सोचते हैं तो लगता है कि मुमकिन ही नहीं था.. तुमने उनकी मदद की, अच्छी बात है बिटिया पर इसके साथ ही तुम्हें अपनी सुरक्षा का भी ख्याल रखना है और जिस किसी के साथ भी तुम अपने काम के लिए मिलती हो.. देख-परख कर ही काम किया करो। बाकी हम हैं यहाँ तुम्हारे लिए.. ठीक है?”
श्री मुस्कुराकर सर हिला देती है। फिर माई उसे फिर एक बार वो बताने को कहती हैं जिसे बताने के लिए वो कल रात से कह रही है और श्री माई से पूछती है,
श्री- “वो फोटो वाला लड़का याद है माई?”
माई- “हां.. हां याद है।”
श्री- “उसने ही मेरा सामान उन चोरों से बचाया था, रवि भाई जी की मदद लेकर.. फिर उसके बाद वो मुझसे कई बार टकराया और तो और कई बार उसने मेरी मदद भी की पर.. पर माई कुछ अजीब सा है उसके साथ। कभी वो अच्छे से बात करता है और कभी कुछ ऐसा बोल देता है जो समझ ही नहीं आता.. कल पंडित जी के घर के बाहर भी वो मिल गया था फिर हम साथ घाट पर भी बैठे। वो.. वो मुझे अपने बारे में बता रहा था और फिर अचानक से उठकर चला गया। लंदन से आया है.. कह रहा था कि उसका वापस जाने का दिल नहीं कर रहा.. माई, मुझे लगता है कि उसके साथ कुछ हुआ है। और ऑनेस्टली   ना माई.. उसने इतनी बार मेरी मदद की है .. अब मैं भी उसकी हेल्प करना चाहती हूं… पर मुझे समझ नहीं आ रहा है कि क्या करूं.. मैं क्या करूं माई?”
माई को श्री की आंखों में वो दिख रहा है जिसे वो खुद भी अब तक नहीं देख पाई है,
माई- “समय। समय दो उसे। और जब वो बताना चाहे अपने बारे में तो पहले सुनना, फिर समझना और फिर तय करना कि उसे तुम्हारी मदद की जरूरत है भी या नहीं। फिर यदि उसे तुम्हारी मदद की जरूरत हो तब इस बारे में सोचना… और बिटिया, आज के समय में तो किसी को अपने साथ बैठने के लिए सहज महसूस कराना ही सबसे बड़ी मदद है.. जैसे तुम हमारे साथ सहज हो, और हम तुम्हारे साथ…”
माई की बातों ने श्री के कुछ कन्फ्यूज़न्स को दूर कर दिया है और अब वो तय करती है कि वो वासन को समय देगी, जबरदस्ती उसकी लाइफ को जानने के लिए उसे फोर्स नहीं करेगी..
माई- “अच्छा सुनो बिटिया हम सबको नाश्ता दे दिए हैं, तुम भी ले लो.. फिर हम आज कीर्तन के लिए जाएंगे।”
बताकर माई, श्री का नाश्ता लेने चली जाती हैं और वापस आकर देखती हैं तो श्री नहा-धोकर एकदम तैयार है।
माई- “10 मिनट में नहा भी लिया..”
माई अचंभित होकर बोलती हैं।
श्री- “हां आपके साथ कीर्तन में चलना है ना।”
माई- “अच्छा.. ठीक है.. नाश्ता कर लो तब तक हम छत से कपड़े ले आते हैं।”
श्री हां में सर हिला देती है और प्लेट हाथ में लेकर जल्दी-जल्दी खाने लगती है। माई उसे आराम-आराम से खाने का कहकर ऊपर छत पर चली जाती हैं। और फिर कुछ ही देर में सभी काम कर के श्री और माई, कीर्तन के लिए आ गए हैं।
श्री पहुँचते ही तस्वीरें क्लिक करने लगती है और अब वह अपनी टैब में कुछ-कुछ नोट डाउन कर रही है। फिर उसका ध्यान वहाँ मौजूद सफेद साड़ी में बैठी एक लड़की पर जाता है जो बाकी सभी से थोड़ी दूर बैठी हुई है। श्री उठकर उसके पास आकर बैठ जाती है.. सभी औरतें उसे अचंभे से देखती हैं.. फिर ढोलक की थाप रुक जाती है और माई, श्री को अपने पास बुलाकर सभी को उससे मिलवाती हैं..
माई - “ये श्री है। श्री अय्यर। बड़ी दूर से बनारस आई है, अपने काम के लिए और अभी हमारे साथ रह रही है।”
सभी औरतें हाथ जोड़कर श्री को नमस्ते करती हैं, श्री भी उन्हें नमस्ते करती है और फिर जो सवाल उसके मन में इतनी देर से घूम रहा है, उसे पूछ लेती है,
श्री- “आप सभी लोग 50 प्लस हो.. आइ मीन क्या ये ओल्ड मेंबर्स ग्रुप है?”
सरिता, जो कि इस मंडली की सबसे छोटी सदस्य है और इस वक्त सबसे दूर बैठी हुई है उठकर खड़ी हो जाती है और श्री को बताती है,
FVO - “"मैं इस ग्रुप की संस्थापक हूं और मैं इस ग्रुप की सबसे छोटी मेंबर हूं। बाकी सब 50 प्लस.. क्यों सरिता की सुरिलियों?"
श्री के लिए ये काफी सरप्राइजिंग है और वो कीर्तन के बाद सरिता से अलग से बात करने के लिए पूछती है। सरिता हां बोलकर, अब वहीं सबके बीच बैठ जाती है और ढोलक अपने हाथ में ले लेती है। श्री, माई के पास आकर बैठ गई है और टुकुर-टुकुर हर एक औरत को देख रही है… 1 घंटे के कीर्तन के बाद, सभी औरतें घर के बाहर बने आंगन में एक गोला बनाकर बैठ गई हैं। चार लड़कियाँ रसोई से निकल आई हैं और सभी को खाना परोस रही हैं.. एक तरफ खड़ी श्री सब कुछ बड़े गौर से देख रही है और जो कुछ भी हो रहा है, उसे नोट कर रही है।
“आप मुझसे कुछ बात करना चाहती थीं..”
सरिता श्री के पास आकर खड़ी हो गई है।
श्री- “उउह यस। क्या हम कहीं बैठकर बात कर सकते हैं?”
श्री इधर-उधर बैठने की कोई जगह ढूंढ़ते हुए पूछती है।
“शयोर .. आइए मेरे साथ”
श्री सरिता के साथ घर की बैठक में आ जाती है… और वह बड़ी चकित हो गई है वहां की पुरानी दीवारों को देखकर जिन पर पत्थरों को घिस-घिसकर डिज़ाइन्स बनाए गए हैं,
श्री- “लगता है बहुत पुराना घर है आपका।”
“ये हवेली मेरे ग्रैंड-ग्रैंडफादर की है और फोरचूनेटली उनफोरचूनेटली मेरे डैड ने इसे मेरे नाम कर दिया था.. वेल, आप बताइए, क्या लेंगी?”
श्री कुछ भी खाने-पीने से मना करती है पर सरिता आवाज़ देकर मठरी और चाय लाने को कह देती है,
“पूछें, क्या पूछना है आपको?”
श्री- “ये जो आपने बाहर बताया कि आप इस ग्रुप की फाउंडर हैं.. कुछ समझ नहीं आया। क्या आप बता सकती हैं कि कौन हैं ये सब? और क्या करते हो एक्सैक्टली आप लोग?.. ऑनस्टली, आइ थॉट तहत दैट  ये एक नॉर्मल सा लेडीज का भक्ति-भजन ग्रुप टाइप कुछ होगा… वो जो जनरली होता है कि आस-पास की कुछ लेडीज मिलकर एक ग्रुप फॉर्म कर लेती हैं और मिलकर कीर्तन करती हैं..”
“तो ये भी तो ऐसा ही है.. आपको इसमें अलग क्या लगा जो आपको मुझसे ये सवाल करना पड़ गया?”
सरिता मुस्कुराते हुए श्री से पूछती है।
श्री- “उम्म्म.. तो मेरे लिए डिफरेंट है कि ये सब 50 प्लस हैं.. आपके अलावा कोई भी यंग नहीं इस ग्रुप में। और ये कोई नॉर्मल कीर्तन जैसा साउंड नहीं कर रहा था…. यू  ऑल वर  सो मच इन सिंक एंड दैट टू वेरी मेलोडियस। मैं किसी और को कम मेलोडियस नहीं कह रही पर ये बहुत ज्यादा ही अच्छा था.. जैसे सब प्रोफेशनली सिंगिंग करते हो।”
ये सुनकर सरिता की आँखों में पानी आ गया है और वो दो मिनट के लिए कुछ भी नहीं बोल पाती , फिर थोड़ा सा पानी पीती है और एक गहरी सांस लेती है,
“टुडे, आइ अचीवड इट. आपने इनकी गायकी के लिए इन्हें सबसे अलग समझा.. ये मेरे लिए बहुत बड़ा अचीवमेंट है श्री। मैं एक प्रोफेशनल सिंगर हूँ और पिछले दो साल से इन्हें सिंगिंग सिखा रही हूँ.. आज मेरी मेहनत सफल हुई.. अब लग रहा है कि हम शोज़ लेना शुरू कर सकते हैं.. आइ नो ये थोड़ा सा टफ  होगा पर जैसे आज ये हुआ, कल वो भी होगा।”
श्री- “क्या आप थोड़ा सा डिटेल में बताएंगी सरिता?”
श्री चाय का कप हाथ में लेते हुए पूछती है।
“ओके.. तो.. ये जो सभी लेडीज हैं.. ये मेरे साथ इस हवेली में रहती हैं.. ये इन सभी का घर है। 2 साल पहले मैंने अपनी एक फ्रेंड के साथ मिलकर इस ग्रुप  की शुरुआत की थी। ये सभी औरतें विधवा हैं, ... तो हमने सोचा कि हम इन्हें एक ऐसा घर दें जहां ये भी सभी की तरह एक नॉर्मल लाइफ जी सकें.. जहां इनकी अपनी एक पहचान हो.. खुलकर हंस सकें, बातें कर सकें, पढ़ सकें। हम एक अच्छी जिंदगी देने के साथ, इन्हें पहचान भी दिलाना चाहते थे इसलिए जो कुछ आता है उसकी मदद से इस मंडली को फॉर्म किया और आज जब आपने वो सब कहा तो बहुत अच्छा लगा.. मेहनत रंग ला रही है..”
सरिता और उसकी इस कीर्तन मंडली की कहानी सुनने के बाद श्री उठकर खड़ी हो जाती है और सरिता को सल्यूट करती है.. फिर आगे बढ़कर उसे गले से लगा लेती है,
श्री- “मैं आपकी स्टोरी को कवर करना चाहती हूँ और "आई ऐम डेफिनिटली गोइंग टू हाइलाइट इट इन माय रिसर्च". आप और आपकी दोस्त बहुत अच्छा काम कर रही हैं। आइ होप आप मुझे परमिशन देंगी..”
सरिता हां बोलकर अपनी सहमति देती है और फिर जब श्री उससे उसकी फ्रेंड के बारे में पूछती है तब वह बिना कुछ कहे बाहर चली आती है। श्री भी बाहर आ जाती है और फिर माई के साथ अपने घर लौट आती है।
क्या सरिता कुछ छुपा रही है या अनजाने में श्री किसी और कहानी का हिस्सा बनने  जा रही है?? अनुमान लगाते रहिए.. आस-पास जो चल रहा है उस पर गौर फरमाते रहिए और जब समय मिले कीर्तनों में जाते रहिए।

 

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